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Tuesday, February 20, 2018

जीएसटी जैसे-तैसे

एक फरवरी 2018 भारत के लिए एक खास तारीख थी. इसलिए नहीं कि उस दिन बजट आया. वह तो हर साल आता है. यह भारत में विशाल अंतरराज्यीय कारोबार को एक सूत्र में पिरोने का दिन था. इस तारीख को द्वारका से दीमापुर और लेह से कोवलम तक कारोबारी सामान की आवाजाही सभी किस्म के अवरोधों से मुक्त होने वाली थी.

जीएसटी ई वे बिल?

सही पकड़े हैं. 

यह जीएसटी का सबसे जरूरी और दूरगामी हिस्सा था. यह वन नेशनवन सिस्टम की शुरुआत था. बस कंप्यूटर से निकला एक बिल और कहीं भी माल ले जाने की छूटन कोई परमिटन चेकपोस्ट! यही वजह थी कि बजट के दिन कारोबारियों की दिलचस्पी वित्त मंत्री के भाषण में नहीं बल्कि ई वे बिल में थी. 

एक फरवरी को बजट भाषण और जीएसटी नेटवर्क से ई वे बिल लेने की जद्दोजहद एक साथ शुरू हुई. बजट भाषण खत्म होने तक जीएसटी का नेटवर्क बैठ चुका था. कुछ राज्यों ने इस पर अमल रद्द करने का ऐलान कर दिया. शाम होते-होते टीवी स्टुडियो में जब बजट गूंज रहा थाउसी दौरान जीएसटी के अफसर एक ट्वीट टिकाकर घर को निकल लिए कि तकनीकी दिक्कतों के कारण ई वे बिल का क्रियान्वयन अनिश्चितकाल के लिए टाला जा रहा है.

और इस तरह देश को एक बाजार बनाने यानी जीएसटी का सबसे बड़ा मकसद भी खेत रहा.

शुरुआत के सात महीने बीतते-बीततेजीएसटी सुधार से चुनौती में तब्दील हो गया है.

- इस बजट में टैक्स की जो मार (कैपिटल गेंससीमा शुल्क में बढ़ोतरीसेस व सरचार्ज) हुई वह जीएसटी का नतीजा है. नेटवर्क की नाकामी से रिटर्न और टैक्स संग्रह का बुरा हाल पहले से था. इस बीच गुजरात चुनाव की चपेट में जीएसटी का ढांचा फेंट दिया गया. 95 फीसदी करदाताओं को रिटर्न भरने से रियायत मिली. नतीजतन पिछले सात माह में जीएसटी से राजस्व बढऩे की उम्मीदें ढह गईं.

- राज्यों को और ज्यादा नुक्सान हुआ. पिछली जुलाई से मार्च तक के लिए केंद्रीय बजट से राज्यों को 60,000 करोड़ रु. की भरपाई होगी और अगले साल 90,000 करोड़ रु. दिए जाएंगे. राजस्व में कमी और क्षतिपूर्ति ने वित्त मंत्री का घाटा नियंत्रण रिकॉर्ड दागदार कर दिया.

- सभी कारोबारियों को करदाता बनाने का मकसद पटरी से उतर गया है. जीएसटीएन की खामी95 फीसदी करदाताओं को तिमाही रिटर्न की सुविधा और एक फीसदी टैक्स व तिमाही रिटर्न वाली कंपोजिशन स्कीम के कारण केवल 30 फीसदी करदाता विस्तृत इनवॉयस रिटर्न भर रहे हैं. जीएसटी की गफलत से काफी बड़ा कारोबार टैक्स निगहबानी से बाहर है. 

- जीएसटी में पंजीकरण के शुरुआती आंकड़े सरकार के लिए उत्साहवर्धक हैं. करदाताओं की संख्या 50 फीसदी बढ़ी है. छोटे उद्योगों में एक-तिहाई लेन-देन कारोबारी इकाइयों के बीच हो रहा है. इससे कर नियम पालन कराना आसान है. हर राज्य को उसके औद्योगिक कारोबारी परिदृश्य के हिसाब से पंजीकरण मिले हैं. इससे किसी खास राज्य को नुक्सान या फायदे की आशंका खत्म हुई है. 

- अलबत्ता इन उपयोगी सूचनाओं के जरिए राजस्व बढऩे की उम्मीद कम है क्योंकि जीएसटी का क्रियान्वयन पटरी से उतर चुका है. ई वे बिल के जरिए देश भर में माल की आवाजाही की मॉनिटरिंग होनी थी जो टैक्स चोरी रोकने के लिए जरूरी है. सात-आठ लाख बिल प्रति दिन जारी करने वाला सिस्टम बनाने के लिए एनआइसी (सरकारी कंप्यूटर एजेंसी) को लगाया गया लेकिन यह कोशिश भी असफल रही.

बजट के बाद अपने साक्षात्कारों में वित्त‍ मंत्री ने कहा कि टैक्स नियमों के पालन में सख्ती के साथ जीएसटी का राजस्व बढ़ेगा. वित्त मंत्रालय का कहना है कि निगरानी बढ़ाकर एक लाख करोड़ रु. टैक्स वसूला जा सकता है. सरकार को जानकारी है कि इस सुधार में रियायतों का कोटा पूरा हो गया है. चुनावी डर के चलते दी गई सुविधाओं और तकनीकी खामियों के कारण टैक्स चोरी हो रही है. राजस्व में गिरावट के कारण जीएसटी में अगले सुधार (पेट्रो उत्पादअचल संपत्ति को शामिल करना) जहां के तहां ठहर गए हैं. 


जीएसटी को लेकर सरकार की राजनैतिक दुविधा ज्यादा बड़ी है. इसे पटरी पर लाने के लिए इंस्पेक्टर राज की वापसी यानी छोटे व्यापारियों पर सख्ती करनी होगी. गुजरात की जली सरकार चुनावों के साल यह जोखिम तो लेने से रही. इसलिए सीधे और आसानी से उगाहे जाने वाले टैक्स (इनकम टैक्ससेस और सीमा शुल्क) बढ़ा लिए गए हैंउपभोक्ता तो टैक्स चुका ही रहे हैंकारोबारी टैक्स देंगे या नहींइसका हिसाब चुनाव देखकर होगा. 

जिसका डर था वही हुआ है. भारत का सबसे नया सुधार सिर्फ सात माह में पुराने रेडियो की तरह हो गयाजिसे ठोक-पीट कर किसी तरह चलाया जा रहा है. जीएसटी का सुधारवाद अब इतिहास की बात है. 

Saturday, July 8, 2017

जीएसटी का चीन कनेक्शन


चीन के लिए जीएसटी अच्‍छी खबर नहीं है लेकिन भारतीय उद्योगों के लिए क्‍या यह खुश खबरी है ?


इस साल दीपावली पर चीन में बने बल्‍ब और पटाखे अगर कम नजर आएं तो जीएसटी को याद कीजिएगा. चीन से जीएसटी का अनोखा रिश्‍ता बनने वाला है. यह सस्‍ते चीनी सामान के आयात पर भारी पड़ेगा. रिएक्‍टरमशीनेंटरबाइन जैसे बड़े आयात बेअसर रहेंगे लेकिन जीएसटी के चलते सस्‍ते उत्‍पादों की अंतरदेशीय बिक्री थम सकती है जिससे तात्‍कालिकमहंगाई नजर आएगी.

चीन से आने वाले सस्‍ते खिलौनेछोटे इलेक्‍ट्रॉनिक्‍समोबाइल एसेसरीजबिजली के सामानटाइल्‍सक्रलोरिंगस्‍टेशनरी व प्‍लास्टिकके कारण दिल्‍ली के गक्रफार मार्केटनेहरू प्‍लेस या मुंबई का मुसाफिर खाना मनीष मार्केट और देशभर में फैले ऐसे ही दूसरे बाजार गुलजार रहते हैं. इन बाजारों में अगले कुछ महीनों के दौरान सन्‍नाटा नजर आ सकता है.

चीन के सस्‍ते करिश्‍मे आम लोगों तकपहुंचने की शुरुआत भारतीय आयातकों के यिवू (सस्‍ते सामानों का दुनिया में सबसे बड़ा बाजार) पहुंचकर माल चुनने और ऑर्डर देने से होती है. इन आयातों पर 14 से 28 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी लगती है. 

चीन में उत्‍पादन पर सब्सिडी के चलते ज्‍यादातर सामान बेहद सस्‍ते होते हैं इसलिए कई उत्‍पादों पर काउं‍टर‍वेलिंग या ऐंटी डंङ्क्षपग ड्यूटी (0 से 150 फीसदी तकभी लगाई गई है ताकि देशी उत्‍पादको संरक्षण मिल सके. हाल में ही सरकार ने सेरमिकक्रॉकरी और सिलाई मशीन के पुर्जों पर ऐंटी डंपिंग ड्यूटी लगाई है.

सस्‍ते चीनी माल का आयात थोकमें (पूरा कंटेनर) होता है. अंतरराज्‍यीय वितरण तंत्र इनकी बिक्री की रीढ़ है‍ जिसके जरिए पलकझपकते चीन माल शहरों से कस्‍बों और गांवों तकफैल जाता है. ज्‍यादातर बिक्री नकद में होती है जो टैक्‍स नेटवर्क से बाहर है.

छोटे व्‍यापारी थोकविक्रेताओं से उपभोक्‍ताओं की तरह माल खरीदते हैं. टैक्‍स व ट्रांसपोर्ट अधिकारियों की मुट्ठी गरमाते हुए उपभोकताओं तकमाल पहुंचाते हैं. चीनी उत्‍पादों की लागत इतनी कम है कि ऊंची इंपोर्ट ड्यूटीरि‍श्‍वतों और सबके मार्जिन के बावजूद सामान बेहद सस्‍ता बिकता है।

जीएसटी चीनी सामान की अंतराज्‍यीय बिक्री के लिए बुरी खबर है

कोई गैर रजिस्‍टर्ड कारोबारी अंतरराज्‍यीय बिक्री नहीं कर सकेगा। राज्‍यों के बीच चीनी सामान की आवाजाही टैक्‍स राडार पर होगी। ई वे बिल लागू होने के बाद गैर रजिस्‍टर्ड ट्रांसपोर्ट लगभग बंद हो जाएगा

जीएसटी की छूट सीमा (20 लाख के टर्नओवर पर  छूट और 75 लाख तक कारोबार पर कंपोजीशन स्‍कीम) वाले कारोबारी भी अंतरराज्‍यीय कारोबार नहीं कर सकेंगे। यानी कि सस्‍ते चीनी माल को स्‍थानीय बाजार में ही बेचना होगा इससे  आपूर्ति सीमित हो जाएगी

खुदरा कारोबारियों के जरिये चोरी छिपे अंतरराज्‍यीय बाजारों में पहुंचने वाले सामान की मात्रा कम ही होगी

जीएसटी नेटवर्कमें पंजीकरण के बाद बिकने वाला चीनी सामान टैक्‍स के कारण खासा महंगा होगा

सरकार ने जीएसटी के तहत कई एसे सामानों पर ऊंचा टैक्‍स (18 और 28 फीसदी) लगाया है जो आमतौर पर चीन से आयात होते हैं

जीएसटी का यह तात्‍कालिक 'फायदाशुरुआत में दर्द लेकर आने वाला है

1. चीन से आना वाला सस्‍ता मांग भारत में कई चीजों की महंगाई रोकने में बड़ी भूमिका निभाता है इनमें प्‍लास्टिकइलेक्‍ट्रॉनिक्‍सलाइटिंगक्रॉकरी आदि प्रमुख हैं। इन कारोबारों में किल्‍लत और कीमतें बढऩा लगभग तय है। कीमतों में ज्‍यादा तेजी दूरदराज के बाजारों में दिखेगी जहां सीधे आयात नहीं होता।

2. भवन निर्माणइलेक्‍ट्रानिक्‍स रिपयेरिंग जैसे कई उद्योग व सेवायें चीन से सस्‍ते माल पर निर्भर हैं । देशी उत्‍पादन इनकी कमी पूरी नहीं कर सकता इसलिए कई बाजारों में लंबे समय तकसन्‍नाटा रह सकता है

3.छोटे शहरों में चीनी माल की बिक्री के कारोबार और रोजगार में खासी कमी आ सकती है

अलबत्‍ताअगर आप इसे भारतीय उद्योगों के लिए मौके के तौर पर देख रहे हैं तो  उत्‍साह को संभालिये। चीन से आयात होने वाले सामान के बदले भारत में उत्‍पादन की जल्‍दी शुरुआत मुश्किल है।

इसकी भी वजह जीएसटी ही है।

जीएसटी में उन उत्‍पादों पर ऊंचा टैक्‍स लगा है जो  छोटे व असंगठित क्षेत्र में बनते हैं और चीनी माल का विकल्‍प बन सकते हैं इसके अलावा जीएसटी नियमों को लागू करने की भी खासी ऊंची होगी। ईंधन यानी पेट्रोल डीजलबिजलीकर्ज और जमीन की महंगाई के कारण परेशान छोटे उद्योगों के लिए जीएसटी चैत की कड़ी धूप की मानिंद है

भारतीय उद्योग इतनी बड़ी मात्रा में इतने सस्‍ते सामान नहीं बना सकतेइसलिए सस्‍ते चीनी माल की आपूर्ति लौटेगी अलबत्‍ता इस बार चीनी उत्‍पाद जीएसटी के नेटवर्कमें दर्ज होकर आएंगे। उपभोक्‍ताओं के लिए कीमतें और चीनी सामान का इस्‍तेमाल करने वालों की लागत बढेगी लेकिन सरकार का राजस्‍व भी बढेगा।

क्‍या देशी उद्योग चीनी माल से टक्‍कर ले पाएंगे?

उसके लिए सरकारों को कमाई का लालच छोड़ कर टैक्‍स कम करने होंगे
जीएसटी से फायदा है या नुकसान! फिलहालयह फैसला हम आप छोड़ते हैं   गुड्स एंड सर्विसेज टैक्‍स का सफर तो अभी बस शुरु ही हुआ है




Tuesday, May 30, 2017

जीएसटी के फूल-कांटे


क्या हम यही गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स चाहते थे
                            
                                जीएसटी की पाती आ गई है.
किस पर कितना टैक्स, क्या नियम, कौन से कायदे, अब सभी कुछ तय हो गया है.
जीएसटी की पावती भेजने के बाद खुद से यह जरुर पूछियेगा कि क्या हम यही गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स चाहते थे
क्या‍ इसी के लिए 16 साल इंतजार किया गया?
जीएसटी का रोमांच सन् 2000 से बनने लगा था तब तक तो वैल्यू एडेड टैक्स (वैट) भी पूरी तरह लागू भी नहीं हो पाया था.
रोमांच की तीन वजहें थीं:
एक: भारत को रियायती इनडाइरेक्ट टैक्स चाहिए. अधिकतम दो टैक्स और दो दरें, ताकि लोग खर्च करें, मांग बढ़े, निवेश बढ़े और बढ़े रोजगार. जीएसटी वाले मुल्कों में टैक्स रेट औसत 15 से 18 फीसदी है.
दोः कम टैक्स और छूट बिल्कुल नहीं. सभी कारोबारी टैक्स के दायरे में.
तीनः बेहद आसान कर नियम ताकि कारोबार करना मुश्किल न बन जाए.
जीएसटी से देश का जीडीपी कम से दो फीसदी बढऩे की उम्मीद इसी उत्सुकता की देन थी.
....और जीएसटी मानो अलादीन का चिराग हो गया.
जीएसटी, जो हमें मिला
- तारीफ करनी होगी कि उत्पादों और सेवाओं पर दरें तय करने में पूरी पारदर्शिता रही. जीएसटी काउंसिल ने जो फॉर्मूला तय किया था उस पर वह अंत तक कायम रही. कॉर्पोरेट लॉबीइंग नहीं चली.
इस फॉर्मूले के चलते ही राज्यों से सहमति बनी जो राजस्व नुकसान को लेकर आशंकित थे, यानी अगर पारदर्शिता रहे तो विश्वास बन सकता है.
लेकिन
वन टैक्स, वन नेशन के बदले आठ जीएसटी दरें (5,12,18, 28%) मिली हैं, गुड्स की (एक्साइज/ वैट) चार और चार दरें सर्विसेज की, सेस अलग से.

आम खपत के कई उत्पादों (स्किन केयर, हेयर केयर, डिटर्जेंट, आयुर्वेद, कॉफी) पर टैक्स रेट अपेक्षा से अधिक है. बिल्डिंग मटीरियल और बिजली के सामान पर भी बोझ बढ़ा है.

बेहतर जिंदगी की उम्मीद से जुड़े उत्पादों-सेवाओं पर 28 फीसदी का टैक्स है जो काफी ऊंचा है.

ऊंचे टैक्स वर्ग में आने वाली कंपनियों को अपने मार्जिन गंवाने होंगे या फिर मांग. निवेश की बाद में सोची जाएगी.

हिसा‍ब-किताब
टैक्स को लेकर सरकार का बुनियादी नजरिया नहीं बदला है. अच्छी जिंदगी की उम्मीद को महंगा रखने की जिद कायम है.

जिन उत्पादों व सेवाओं (उपभोक्ता उत्पाद, भवन निर्माण, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल) पर सबसे ज्यादा टैक्स है वहीं नया निवेश, नई तकनीक, इनोवेशन और रोजगार आने हैं. यह मेक इन इंडिया की उम्मीदों के विपरीत है.

इनपुट टैक्स क्रेडिट (लागत में शामिल टैक्स की वापसी) जीएसटी का एकमात्र नयापन है. सफलता इस निर्भर होगी कि जीएसटी का नेटवर्क कितनी तेजी से निर्माता-विक्रेताओं को इनपुट टैक्स की वापसी करता है.

बहुत सी कर दरें, ढेर सारे रिटर्न और केंद्र व राज्य की दोहरी ब्यूरोक्रेसी के कारण करदाताओं, खासतौर पर छोटे-मझोले कारो‍बारियों के लिए यंत्रणा से कम नहीं होगा. दो की जगह 37 रिटर्न भरने होंगे. कर नियमों के पालन की लागत पहले से ज्यादा होगी.

जीएसटी के बाद

महंगाई नहीं बढ़ेगी या बेहद मामूली बढ़ो‍तरी होगी.

कर ढांचा यथावत है इसलिए मांग भी नहीं बढ़ेगी.

जीएसटी के चलते अगले दो साल में जीडीपी में किसी खास तेजी की उम्मीद नहीं है.

केंद्र या राज्‍यों को तत्‍काल बड़ा राजस्‍व नहीं मिलने वाला.

इनडाइरेक्‍ट टैक्‍स देने वालों की संख्या बढ़ेगी जो शायद भविष्‍य में राजस्‍व में बढ़ा सके.

केंद्र सरकार को 2018 में करीब 500 अरब रुपए (0.3प्रतिशत जीडीपी) का नुक्सान उठाना पड़ सकता है जो राज्‍यों को दी जाने वाली क्षतिपूर्ति की वजह से होगा.

ज्यादातर केंद्रीय क्षतिपूर्ति महाराष्‍ट्र, गुजरात, तमिलनाडु आदि सप्‍लायर राज्‍यों को मिलेगी.

राज्‍यों में तैयारियां सुस्‍त हैं. लागू होने में एक से दो माह की देरी हो सकती है.

कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारे पास मजबूत सरकार है, लोकप्रिय प्रधानमंत्री है या अधिकांश देश में एक ही दल की सरकार है, जीएसटी, राजनैतिक-आर्थिक रूप से दकियानूसी ही है क्रांतिकारी या चमत्कारी नहीं.

हद से हद हमने अपने टैक्स ढांचे की ओवरहॉलिंग कर ली है. करीब 16 साल (2000 से 2017) घिसटने के बावजूद हम ऐसा टैक्स ढांचा नहीं बना पाए जिसे देखकर दुनिया बरबस कह उठे,  'यह हुआ सुधार!'' 

दुआ कीजिए कि यह जीएसटी जैसा भी है अब ठीक ढंग से लागू हो जाए, शायद वही इसकी सफलता होगी.


Tuesday, August 16, 2016

जीएसटी हो सकता है कारगर बशर्ते .....

जीएसटी क्रांतिकारी सुधार बनाने के लिए इसे केंद्र सरकार के सूझबूझ भरे राजनीतिक नेतृत्‍व की जरुरत है। 

जीएसटी लागू होने के बाद उपभोक्‍ता राजा बन जाएगा ! टैक्स चोरी बंद! जीडीपी में उछाल! राज्यों की ज्यादा कमाई! टैक्स अफसरों का आतंक खत्म! छोटे कारोबारियों के लिए बड़ी सुविधाएं! जीएसटी से अपेक्षाओं की उड़ान में अगर कोई कमी रह गई थी तो प्रधानमंत्री के 8 अगस्त के लोकसभा के संबोधन ने उसे पूरा कर दिया है.

दरअसल2014 के नरेंद्र मोदी और 2016 के जीएसटी में एक बड़ी समानता है. दोनों ही अपेक्षाओं के ज्वार पर सवार होकर आए हैं. 2014 में जगी उम्‍मीदों का तो पता नहींअलबत्ता प्रधानमंत्री के पास जीएसटी को ऐसा सुधार बनाने का मौका जरूर है जो अर्थव्यवस्था के एक बड़े क्षेत्र का कायाकल्प करने और दूरगामी फायदे देने की कुव्वत रखता है.

संयोग से जीएसटी को कामयाब बनाने के लिए प्रधानमंत्री के पास पर्याप्त राजनैतिक ताकत हैसाथ ही संसद के दोनों सदनों ने अभूतपूर्व सर्वानुमति के साथ जीएसटी का जो खाका मंजूर किया हैउसके प्रावधान जीएसटी को क्रांतिकारी सुधार बना सकते हैं बशर्ते केंद्र सरकार सूझबूझ और संयम के साथ जीएसटी का राजनैतिक नेतृत्व कर सके.

संसद की दहलीज पार करते हुए जीएसटी को तीन ऐसी नेमतें मिल गई हैं जो भारत में इस तरह के (केंद्र व सभी राज्यों के सामूहिक) इतने बड़े सुधार के पास पहले कभी नहीं थीं.

एक- संसद से मंजूर जीएसटी विधेयक में राज्यों की अधिकार प्राप्त समिति के सभी सुझाव और केंद्र की सहमति शामिल है. जीएसटी के पूर्वज यानी वैट (वैल्यू एडेड टैक्स) को 2005 में सहमति का यह तोहफा नहीं मिला था. गुजरातराजस्थानमध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सहित सात राज्यों ने पूरे देश के साथ मिलकर वैट लागू नहीं किया. ये राज्य इस सुधार में बाद में शामिल हुए.

दो- जीएसटी काउंसिल के तौर पर देश को पहली बार एक बेहतर ताकतवर संघीय समिति मिल रही हैजिसमें राज्यों के सामूहिक अधिकार केंद्र से ज्यादा हैं. आर्थिक फैसलों के मामले में यह अपनी तरह का पहला प्रयोग है जो अच्छे जीएसटी की बुनियाद बनना चाहिए.

तीन- राज्य सरकारों के संभावित वित्तीय नुक्सान का बीमा हो गया है. यदि जीएसटी लागू करने से टैक्स घटता है तो केंद्र सरकार पांच साल तक इसकी भरपाई करेगी. पहली बार दी गई इस संवैधानिक गारंटी के बाद जीएसटी को उपभोक्ताओं के लिए कम बोझ वाला बनाने का विकल्प खुल गया है.

व्यापक सहमतिफैसले लेने की पारदर्शी प्रणाली और राज्यों के नुक्सान की भरपाई की गारंटी के बादयकीनन जीएसटी एक ढांचागत सुधार हो सकता है लेकिन इसके लिए केंद्र सरकार को जीएसटी के गठन में छह व्यवस्थाएं अनिवार्य रूप से सुनिश्चित करनी होंगी. यह काम सिर्फ केंद्र सरकार ही कर सकती है क्योंकि जीएसटी का नेतृत्व नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली की टीम ही करेगी. 

पहलाः मोदी यदि जीएसटी में ग्राहकों को राजा बनाना चाहते हैं तो उन्हें जीएसटी की स्टैंडर्ड दर 18 फीसदी रखने के लिए राजनैतिक सहमति बनानी होगी. राज्यों में स्टेट वैट की स्टैंडर्ड दर 14.5 फीसदी हैजिसके तहत 60 फीसदी उत्पाद आते हैं जबकि सेंट्रल एक्साइज की 12.36 स्टैंडर्ड दर अधिकांश उत्पादों पर लागू होती है. सर्विस टैक्स की दर 15 फीसदी है. यदि इन तीनों को मिलाकर 18 फीसदी की स्टैंडर्ड जीएसटी दर तय हो सके तो यह जीएसटी की सबसे बड़ी सफलता होगी. इस दर के तहत कुछ उत्पादों और सेवाओं पर टैक्स बढ़ेगा लेकिन कई दूसरे टैक्सों को मिलाने के फायदे इसे संतुलित करेंगे और महंगाई काबू में रहेगी. केंद्र सरकार राज्यों को इस संतुलन के लिए राजी कर सकती है क्योंकि संविधान संशोधन विधेयक ने उनके घाटे की भरपाई को सुनिश्चित कर दिया है. 

दूसराः ऊर्जा व जमीन आर्थिक उत्पादन की सबसे बड़ी लागत है लेकिन बिजलीपेट्रो उत्पाद और स्टांप ड्यूटी जीएसटी से बाहर हैं. इन पर टैक्स घटाए बिना कारोबार की लागत कम करना असंभव है. इन्हें जीएसटी के दायरे में लाना होगा. केंद्र सरकार तीन साल की कार्ययोजना के तहत जीएसटी काउंसिल को ऐसा करने पर सहमत कर सकती है.

तीसराः केंद्र को यह तय करना होगा कि जीएसटी कारोबार के लिए कर पालन की लागत (कॉस्ट ऑफ कंप्लायंस) न बढ़ाए. जीएसटी का ड्राफ्ट बिल खौफनाक है. इसमें एक करदाता के कई (केंद्र व राज्य) असेसमेंटदर्जनों पंजीकरणरिटर्न और सजा जैसे प्रावधान हैं. अगर इन्हें खत्म न किया गया तो जीएसटी टैक्स टेररिज्म का नमूना बन सकता है.

चौथाः जीएसटी की राह पर आगे बढ़ते हुए केंद्र सरकार को राज्यों में गैर-कर राजस्व जुटाने के नए तरीकों और खर्च कम करने के उपायों की जुगत लगानी होगी. वित्त आयोग और नीति आयोग इस मामले में अगुआई कर सकते हैं. जीएसटी कानून के तहत राज्यों में कर नियमों में आए दिन बदलाव की संभावनाएं सीमित करनी होंगी.

पांचवां स्वच्छताबुनियादी ढांचे और अन्य जरूरतों के लिए स्थानीय निकायों को संसाधन चाहिए. जीएसटी में कई ऐसे टैक्स शामिल हो रहे हैं जो इन निकायों की आय का स्रोत हैं. केंद्र को यह ध्यान रखना होगा कि जिस तरह केंद्र के राजस्व में राज्यों का हिस्सा तय हैठीक उसी तरह राज्यों के राजस्व में स्थानीय निकायों का हिस्सा निर्धारित हो.

छठा जीएसटी की व्यवस्था तय करते हुए केंद्र की अगुआई में जीएसटी काउंसिल को हर स्तर पर सभी पक्षों यानी उपभोक्ताछोटे-बड़े उद्यमीस्थानीय निकायों को चर्चा में जोडऩा होगा जो अभी तक नहीं किया गया है.

बहुत से लोग यह कहते मिल जाएंगे कि जीएसटी न होने से एक कमजोर जीएसटी होना बेहतर है लेकिन हकीकत यह है कि एक घटिया जीएसटी जो समस्याएं पैदा करेगाउनकी रोशनी में जीएसटी की अनुपस्थिति ही बेहतर है. जीएसटी भारत में सुधारों की दूसरी पीढ़ी की सबसे बड़ी पहल है और अभी इसकी सिर्फ नींव रखी गई है. 

यदि प्रधानमंत्री मानते हैं कि जीएसटी से भारत की सूरत बदल जाएगी तो उन्हें स्वयं इस सुधार का नेतृत्व करना चाहिए. यदि वे देश को एक दूरगामीसहज और कम महंगाई वाला टैक्स सिस्टम दे सके तो यह आर्थिक उदारीकरण के बाद भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि होगीजिसे लेकर इतिहास उन्हें  हमेशा याद रखेगा.

Wednesday, August 3, 2016

आगेे और महंगाई है !


अच्‍छे मानसून के बावजूद, कई दूसरे कारणों के चलते अगले दो वर्षों में महंगाई  की चुनौती समाप्‍त होने वाली नहीं है। 

देश में महंगाई पर अक्सर चर्चा शुरू हो जाती हैलेकिन जब सरकार कोई अच्छे फैसले करती है तो उसका कोई जिक्र नहीं करता." ------ 22 जुलाई को गोरखपुर की रैली में यह कहते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति और आर्थिक प्रबंधन की सबसे पुरानी दुविधा को स्वीकार कर रहे थेजिसने किसी प्रधानमंत्री का पीछा नहीं छोड़ा. कई अच्छी शुरुआतों के बावजूद महंगाई ने ''अच्छे दिन" के राजनैतिक संदेश को बुरी तरह तोड़ा है. पिछले दो साल में सरकार महंगाई पर नियंत्रण की नई सूझ या रणनीति लेकर सामने नहीं आ सकी जबकि अंतरराष्ट्रीय माहौल (कच्चे तेल और जिंसों की घटती कीमतें) भारत के माफिक रहा है. सरकार की चुनौती यह है कि अच्छे मॉनसून के बावजूद अगले दो वर्षों में टैक्सबाजारमौद्रिक नीति के मोर्चे पर ऐसा बहुत कुछ होने वाला हैजो महंगाई की दुविधा को बढ़ाएगा.
भारत के फसली इलाकों में बारिश की पहली बौछारों के बीच उपभोक्ता महंगाई झुलसने लगी है. जून में उपभोक्ता कीमतें सात फीसदी का आंकड़ा पार करते हुए 22 माह के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गईं. अच्छे मॉनसून की छाया में महंगाई का जिक्र अटपटा नहीं लगना चाहिए. महंगाई का ताजा इतिहास (2008 के बाद) गवाह है कि सफल मॉनूसनों ने खाद्य महंगाई पर नियंत्रण करने में कोई प्रभावी मदद नहीं की है अलबत्ता खराब मॉनसून के कारण मुश्किलें बढ़ जरूर जाती हैं. पिछले पांच साल में भारत में महंगाई के सबसे खराब दौर बेहतर मॉनसूनों की छाया में आए हैं. इसलिए मॉनसून से महंगाई में तात्कालिक राहत के अलावा दीर्घकालीन उम्मीदें जोडऩा तर्कसंगत नहीं है.
भारत की महंगाई जटिलजिद्दी और बहुआयामी हो चुकी है. नया नमूना महंगाई के ताजा आंकड़े हैं. आम तौर पर खाद्य उत्पादों की मूल्य वृद्धि को शहरी चुनौती माना जाता है लेकिन मई के आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण इलाकों में महंगाई बढऩे की रफ्तार शहरों से ज्यादा तेज थी. खेती के संकट और ग्रामीण इलाकों में मजदूरी दर में गिरावट के बीच ग्रामीण महंगाई के तेवर राजनीति के लिए डरावने हैं.
अच्छे मॉनसून के बावजूद तीन ऐसी बड़ी वजह हैं जिनके चलते अगले दो साल महंगाई के लिए चुनौती पूर्ण हो सकते हैं.
सबसे पहला कारण सरकारी कर्मचारियों के वेतन में प्रस्तावित बढ़ोतरी है. इंडिया रेटिंग का आकलन है कि वेतन आयोग की सिफारिशों के बाद खपत में 45,100 करोड़ रु. की बढ़ोतरी होगी. प्रत्यक्ष रूप से यह फैसला मांग बढ़ाएगालेकिन इससे महंगाई को ताकत भी मिलेगी जो पहले ही बढ़त की ओर है. जैसे ही राज्यों में वेतन बढ़ेगामांग व महंगाई दोनों में एक साथ और तेज बढ़त नजर आएगी.
रघुराम राजन के नेतृत्व में रिजर्व बैंक महंगाई पर अतिरिक्त रूप से सख्त था और ब्याज दरों को ऊंचा रखते हुए बाजार में मुद्रा के प्रवाह को नियंत्रित कर रहा था. केंद्रीय बैंक का यह नजरिया दिल्ली में वित्त मंत्रालय को बहुत रास नहीं आया. राजन की विदाई के साथ ही भारत में ब्याज दरें तय करने का पैमाना बदल रहा है. अब एक मौद्रिक समिति महंगाई और ब्याज दरों के रिश्ते को निर्धारित करेगी. राजन के नजरिए से असहमत सरकार आने वाले कुछ महीनों में उदार मौद्रिक नीति पर जोर देगी. मौद्रिक नीति के बदले हुए पैमानों से ब्याज दरें कम हों या न हों लेकिन महंगाई को ईंधन मिलना तय है.
तीसरी बड़ी चुनौती बढ़ते टैक्स की है. पिछले तीन बजटों में टैक्स लगातार बढ़ेजिनका सीधा असर जेब पर हुआ. रेल किराएफोन बिलइंटरनेटस्कूल फीस की दरों में बढ़ोतरी इनके अलावा थी. इन सबने मिलकर पिछले दो साल में जिंदगी जीने की लागत में बड़ा इजाफा किया. जीएसटी को लेकर सबसे बड़ी दुविधा या आशंका यही है कि यदि राज्यों और केंद्र के राजस्व की फिक्र की गई तो जीएसटी दर ऊंची रहेंगी. जीएसटी की तरफ बढ़ते हुए सरकार को लगातार सर्विस टैक्स की दर बढ़ानी होगीजिसकी चुभन पहले से ही बढ़ी हुई है.
महंगाई पर नियंत्रण की नई और प्रभावी रणनीति को लेकर नई सरकार से उम्मीदों का पैमाना काफी ऊंचा था. इसकी वजह यह थी कि मूल्य वृद्धि पर नियंत्रण के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नई सूझ लेकर आने वाले थे. मांग (मुद्रा का प्रवाह) सिकोड़ कर महंगाई पर नियंत्रण के पुराने तरीकों के बदले मोदी को आपूर्ति बढ़ाकर महंगाई रोकने वाले स्कूल का समर्थक माना गया था.
याद करना जरूरी है कि मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के बतौर एक समिति की अध्यक्षता की थीजो महंगाई नियंत्रण के तरीके सुझाने के लिए बनी थी. उसने 2011 में तत्कालीन सरकार को 20 सिफारिशें और 64 सूत्रीय कार्ययोजना सौंपी थीजो आपूर्ति बढ़ाने के सिद्धांत पर आधारित थी. समिति ने सुझाया था कि खाद्य उत्पादों की अंतरराज्यीय आपूर्ति बढ़ाने के लिए मंडी कानून को खत्म करना अनिवार्य है. मोदी समिति भारतीय खाद्य निगम को तीन हिस्सों में बांट कर खरीदभंडार और वितरण को अलग करने के पक्ष में थी. इस समिति की तीसरी महत्वपूर्ण राय कृषि बाजार का व्यापक उदारीकरण करने पर केंद्रित थी.
दिलचस्प है कि पिछले ढाई साल में खुद मोदी सरकार इनमें एक भी सिफारिश को सक्रिय नहीं कर पाई. सरकार ने सत्ता में आते ही मंडी (एपीएमसी ऐक्ट) कानून को खत्म करने या उदार बनाने की कोशिश की थी लेकिन इसे बीजेपी शासित राज्यों ने भी भाव नहीं दिया. एनडीए सरकार ने पूर्व खाद्य मंत्री और बीजेपी नेता शांता कुमार के नेतृत्व में एक समिति बनाई थी जिसने एफसीआइ के विभाजन व पुनर्गठन को खारिज कर दिया और खाद्य प्रबंधन व आपूर्ति तंत्र में सुधार जहां का तहां ठहर गया. 
मोदी सरकार यदि लोगों के ''न की बात" समझ रही है तो उसे बाजार में आपूर्ति बढ़ाने वाले सुधार शुरू करने होंगे.अंतरराष्ट्रीय बाजार में जिंसों की कीमतों में गिरावट उनकी मदद को तैयार है. 
दरअसलमौसमी महंगाई उतनी बड़ी चुनौती नहीं है जितनी इस अपेक्षा का स्थायी हो जाना कि महंगाई कभी कम नहीं हो सकती. भारत में इस अंतर्धारणा ने महंगाई नियंत्रण की हर कोशिश के धुर्रे बिखेर दिए हैं. इस धारणा को तोडऩे की रणनीति तैयार करना जरूरी है अन्यथा मोदी सरकार को महंगाई के राजनैतिक व चुनावी नुक्सानों के लिए तैयार रहना होगाजो सरकार के पुरानी होने के साथ बढ़ते जाएंगे.