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Friday, August 7, 2020

जागते रहो !

 

घनघोर मंदी के बीच शेयर बाजार की छलांग देखने के बाद एक नवोदित ब्रोकर ने शेयरों-शेयरों का पानी पिए अपने तपे तपाए उस्ताद के केबि‍न में जाकर खि‍लखि‍लाते हुए कहा, '', मजा आ गया, आज तो निफ्टी रॉकेट हुआ जा रहा है.'' उम्रदराज ब्रोकर ने कंप्यूटर से निगाहें हटाकर कहा, ''की फूल हो तुम.'' यानी किस्मती मूर्ख, जो मौके के सहारे मीर (फूल्ड बाई रैंडमनेस) बन जाते हैं और अपनी कामयाबी को तर्कसंगत ज्ञान मान बैठते हैं. सतर्क होकर ट्रेड करो, फंडामेंटल्स और टेक्नि‍कल्स की मर्यादा मत तोड़ना.

यकीनन अर्थव्यवस्था में जि‍तने नकारात्मक आंकडे़ हो सकते हैं वे सब एक साथ बरस रहे हों और अनि‍श्चि‍तता की ब्रह्मपुत्र कारोबारों को अपनी बाढ़ में डुबा रही हो तब शेयर बाजार में जोखि‍मों का भंवर तैयार होने के लिए यह सबसे माकूल मौका है. बाजार हमेशा वास्तविकताओं को कंबल ओढ़ाकर ख्याली तेजी में लग जाता है इसलिए अगर आप बहुत उत्साही हैं तो भी कुछ ताजा तथ्यों को समझना जरूरी है ताकि कम से कम आप अपनी गाढ़ी बचत न जला बैठें.

संयोग है कि बाजार के रंगों को परखने वाले ही नहीं बल्कि रिजर्व बैंक ने भी (फाइनेंशि‍यल स्टेबिलि‍टी रिपोर्ट 2020) अधि‍कृत तौर पर इस बात पर बेचैनी जाहिर की है कि आखि‍र बीते एक माह में सेंसेक्स 3000 अंक कैसे कूद गया जबकि आने वाला हर आकलन यह बता रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर इस पूरे साल में शून्य से 10 फीसद नीचे तक टूट सकती है. 

वित्तीय बाजार अक्सर अति आशावाद का शि‍कार हो कर मौके के मीरी को हकीकत मान लेते हैं. कुछ तथ्य हमें सतर्क करते हैः

• आमतौर पर बॉन्ड, गोल्ड और शेयर मार्केट एक साथ नहीं दौड़ते. शेयरों में तेजी के वक्त पैसा बॉन्ड बाजार से निकल कर शेयरों में जाता है क्योंकि तत्काल फायदे की उम्मीद होती है लेकिन इस समय आर्थिक अनि‍श्चतताओं के बीच जब पूंजी बॉन्ड बाजार में लग रही है. (बॉन्ड की यील्ड कम है यानी ग्राहक खूब हैं) संकट में चमकने वाला सोना भी बढ़ रहा है तो फिर शेयरों में पैसा कौन लगा रहा है?

• लॉकडाउन के बाद कंपनियों के नतीजों की हालत देखते ही बनती है. कभी भी घाटा न उठाने वाली तेल कंपनियां तक एक तिमाही में ४० फीसद का नुक्सान दर्ज कर रही हैं. दरअसल, बाजार में सूचीबद्ध करीब 1,640 प्रमुख कंपनियों (बैंक व एनबीएफसी के अलावा) के मुनाफे बीते बरस की चौथी ति‍माही में करीब 10.2 फीसद गिरे. यह गिरावट कॉर्पोरेट टैक्स में कमी के बावजूद हुई. नए वित्त वर्ष (2020-21) की दो तिमाही पूरी तरह डूबने के बाद बाजार में बड़ी सतर्कता जरूरी है.

• मंदी के कारण कंपनियों के मुनाफे ही नहीं गिरे बल्क‍ि उनके कर्ज देनदारी की भी थम गई. कंपनियों ने बड़े पैमाने कर्ज भुगतान टालने का विकल्प चुना. इससे उनकी साख पर गहरा असर पड़ा है. रिजर्व बैंक ने कंपनियों के खातों को परख कर बताया है कि ज्यादातर कर्जदारों की साख टूट (डबल ए से नीचे) रही है. इसके बाद भी किसका पैसा बाजार में लग रहा है.

• रिलायंस के बाद भारतीय शेयर बाजारों की जान भारत के बैंकिंग उद्योग में बसती है. आत्मनिर्भरता के तमाम मृदंग वादन के बावजूद बैंकों की कर्ज देने की रफ्तार अब तक केवल तीन फीसद रही है जो पिछले दशकों की न्यूनतम है. कोविड लॉकडाउन के बाद कर्ज का भुगतान टालने से बैंकों के पैर लड़खड़ा गए हैं. वहां संकट के बल्ब जल रहे हैं.

• जून में इक्विटी म्युचुअल फंड 95 फीसद कम हुआ यानी कि छोटे निवेशकों की पूंजी भी बाजार से निकल रही है. डेट फंड में तो संकट पहले से ही है.

• अर्थव्यवस्था में मांग की वापसी के दूर-दूर तक कोई सबूत नहीं हैं और अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में गहरी अनि‍श्चति‍ता है. इसलिए रिजर्व बैंक को भी यह मंदी लंबी चलने का खतरा नजर आ रहा है.

इस समय भारतीय बाजार में तेजी चुनिंदा शेयरों में सीमित है, जो छोटे निवेशकों को भरमाए रखने के लिए है. रि‍जर्व को डर है यह बाजी पलट सकती है. सनद रहे कि जानवर बनना आदमी का पुराना शौक है. इसीलि‍ए वित्तीय बाजार दुनिया की सबसे दिलचस्प जगह हैं. यहां पूरी भीड़ का दिमाग शहद वाली मक्ख‍ियों की तरह एक तरफ दौड़ पड़ता (स्वार्म इंटेलिजेंस) है, यानी कभी पालकी को उठाने की होड़ तो कभी पटकने की प्रतिस्पर्धा.

बाजार में  रोज  कुछ लकी फूल्स होते हैं बकौल  नसीम तालेब (किताब- फूल्ड बाइ रैंडमनेस) इनको होने वाले 99 फीसद मुनाफे केवल मौके का नतीजा हो सकते हैं. लेकिन वे कारोबारी इसे अक्सर अपनी सफल रणनीति समझ लेते हैं और कइयों को चिपका देते हैं यानी उनकी नकल करते हुए असंख्य लोग मौके के मीर बनने की कोशि‍श करते हैं. इसलिए सतर्क रहिए क्योंकि इस मंदी के बीच, आप अपनी गाढ़ी बचत के साथ एक बार लकी (भाग्यशाली) और सौ बार (फूल) ठगे जाना झेल नहीं पाएंगे.

 

 


Saturday, February 8, 2020

दूर है वसंत



वही आदर्श मौसम
और मन में कुछ टूटता-सा :
अनुभव से जानता हूं कि यह वसंत है

वसंत की जगह बजट शब्द रख दें तो रघुवीर सहाय की इस क्षणिका का अर्थ नहीं बदलेगा. बजट, वसंत का सहोदर है सो उम्मीदें ज्यादा ही बौराती हैं, अलबत्ता कोई गारंटी नहीं कि हर बजट के बाद आर्थि परिवेश में वासंती टेसू-पलाश दहक उठें.
केंद्र सरकार के बजट इतने बड़े नहीं होते कि पलक झपकते ही आर्थिक माहौल बदल दें. लेकि वे आने वाले मौसम की खबर जरूर देते हैं. इस बजट की एक संख्या या एक आंकड़ा ऐसा है जिसे कायदे से समझने के बाद सबके दिमाग पर चढ़ा फागुन उतर गया है
वित्त मंत्री ने कहा है कि 2020-21 में भारत की विकास दर (जीडीपी) महंगाई को मिलाने के बाद 10 फीसद रहेगी. यानी जीडीपी की विकास दर 5 से 6 फीसद और महंगाई भी 5 से 6 फीसद.
इस बजट का यह आंकड़ा ही, इसका सब कुछ है. यही आकलन निवेश पर रिटर्न, बाजार में मांग और सरकार को मिलने वाले राजस्व की बुनियाद है. अब विदेशी निवेशकों से लेकर उद्योगपति, बैंकर तक सभी मंदी की लंबी सर्दी-गर्मी से बचने की तैयारी में जुट रहे हैं. आम लोगों यानी कामगारों, छोटे कारोबारियों, नौकरीपेशा और बेरोजगारों के लिए इस आंकड़े का मतलब तो कहीं ज्यादा गहरा और व्यापक है.
निवेश और मांग
केवल छह फीसद या महंगाई मिलाकर केवल दस फीसद विकास (लगातार तीसरे वर्ष 7 फीसद से कम की विकास दर) के बाद अब भारत के लिए 9-10 फीसद के विकास की मंजिल दूर हो गई है. दहाई के अंक में ग्रोथ तो अगले पांच साल तक नामुमकिन है
सरकार को मांग या निवेश में फिलहाल किसी तेज बढ़त की उम्मीद नहीं है. खबर हो कि मौजूदा वित्त वर्ष में निवेश 15 साल के न्यूनतम स्तर पर है. इसके बढ़ने में वक्त लगेगा
महंगाई और बचत
यह विकास दर (5 या 6 फीसद) व्यावहारिक तौर पर आने वाले महीनों में महंगाई की दर के लगभग बराबर होगी. या फिर महंगाई इससे ज्यादा होगी. खाद्य महंगाई बढ़ने लगी है और पुराने तजुर्बे बताते हैं कि ईंधन या मैन्युफैक्चरिंग की महंगाई इसका पीछा करती है. अब जबकि कंपनियों को मांग बढ़ने की उम्मीद कम है तो कीमतें बढ़ाकर नुक्सान की भरपाई होगी
बढ़ती महंगाई मांग को खाएगी और बचत पर रिटर्न को नकारात्मक बना देगी
कमाई और रोजगार
मरियल विकास दर की रोशनी में कंपनियों के मुनाफे दबाव में रहेंगे. यानी कि नए निवेश से रोजगार या आय (वेतन या मजदूरी) में उतनी भी बढ़ोतरी की उम्मीद नहीं जितनी की कीमतें बढ़ेंगी
जब सात फीसद विकास दर पर भारत में बेकारी की दर 45 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर थी तो आगे क्या होगा, यह समझा जा सकता है
सरकारों के राजस्व
दस फीसद (महंगाई सहित) विकास दर यानी बेहद कमजोर ग्रोथ की रोशनी में सरकारी राजस्व (केंद्र राज्य) के आकलन तितर-बितर हो जाएंगे जैसा कि 2019-20 में हुआ. ऐसे में सरकार अगले साल शायद उतना भी खर्च कर सके जितना इस साल हुआ है
अगर राजस्व संभालने के लिए जीएसटी बढ़ता है तो मंदी के करेले पर नीम चढ़ जाएगा
कर्ज और ब्याज 
कमजोर जीडीपी के साथ महंगाई बढ़ने और भारी सरकारी घाटों (केंद्र राज्य) का असर बाजार में ब्याज दरों (बाॅन्ड यील्ड) पर पड़ना तय है. रिजर्व बैंक ने इसलिए ही ब्याज दरों में कमी रोक दी है.
निवेश और शेयर बाजार
इतने कमजोर जीडीपी के बाद कंपनियों के मुनाफे किस गति से बढ़ेंगे? कुछ कंपनियां बेहतर रिटर्न दे सकती हैं लेकिन आमतौर पर कमाई में 9-10 फीसद की बढ़ोतरी के बाद उन कंपनियों में कौन निवेश करेगा जो तेज विकास की उम्मीद के चलते, जिनके शेयर दोगुनी ऊंची कीमत (मूल्य-आय अनुपात) पर मिल रहे हैं

2019-20 में विकास दर केवल पांच फीसद रही है. बजट से ठीक पहले सरकार ने पिछले वर्षों का जीडीपी का आकलन घटाया (2018-19 में 6.8 से 6.1 फीसद और 2017-18 में 7.17 से 7 फीसद) है. यानी कि भारत में मंदी की ढलान दो साल पहले शुरू हो चुकी थी.
सनद रहे कि गिरती ग्रोथ तेजी से नहीं लौटती. 2008 के संकट के बाद, बीते एक दशक में दुनिया (चीन भी) तेज ग्रोथ का मुंह नहीं देख सकी. बुढ़ाती जनसंख्या के बीच यह कमजोर विकास दर करीब एक-तिहाई आबादी की खपत में बढ़ोतरी को सीमित कर देगी. बुढ़ाती जनसंख्या के बीच यह जिद्दी मंदी भारत में अधिकांश आबादी के निम्न या मझोली आय के शिकंजे से निकलने की कोशिशों पर सबसे ज्यादा भारी पड़ने वाली है.

सरकार थक गई है. अधिकांश भारतीयों को यह वक्त बेहद संभल कर बिताना होगा. भारतीय अर्थव्यवस्था का वसंत और दूर खिसक गया है