Tuesday, December 1, 2009

समृद्धि का नकलिस्‍तान

दुनिया का सबसे महंगा होटल, सबसे बड़ी शॉपिंग मॉल, रेगिस्तान के बीच आइस स्कीइंग का इंडोर स्टेडियम, समुद्र के बीच शानदार इमारत... पिछले करीब दो दशकों में दुनिया का बहुत कुछ शानदार ठीक हमारे पड़ोस में उगा है और वह भी रेत बीच जहां तेल तक नहीं था। अब इस स्वर्ग के ढहने की बारी है। दुबई तो इस साल की शुरुआत से ही ढह रहा है मगर हमें पता तब तक इसने अर्जेटीना की राह पकड़ ली जो इसे दीवालियेपन की तरफ ले जाती है। दुबई नई उदार दुनिया का एक ऐसा अनोखा मॉडल है जिसमें अपनी पूंजीवाद न्यूनतम अच्छाइयों और अधिकतम बुराइयों के साथ मुखरित हुआ था। अचल संपत्ति लालच, कर्ज और खोखले विकास का यह मॉडल जितने कम वक्त में उभरंा था उससे भी कम समय में जमींदोज होने लगा है। खरबों डॉलर के वित्तीय संकट के धुंऐ के छंटने की उम्मीद में वित्तीय दुनिया जब आंखे खोलने की कोशिश कर रही थी तब दुबई के बवंडर की रेत इसकी आंखों में भर गई है।
रेत के महल. सच में !
नकली विकास का क्या मतलब होता है? दुबई से अच्छा कोई सबक नहीं है। नखील.. यही तो नाम है दुबई की उस कंपनी का जिस कर्ज न चुका पाने से यह पूरी कहानी शुरु हुई है। समृद्धि का नखलिस्तान बनाने की कोशिश में लगी दुबई सरकार की यह कंपनी नकली विकास का प्रतीक बन कर उभरी है। दुबई पास सिर्फ तीन चीजें थीं। एक समृद्ध अरबी का पड़ोसी, दूसरी शेखों की सल्तनत जिसमें कानून बनाना व बदलना आसान था और एक दूरदर्शी व आधुनिक उदारता, जो अरब के अन्य मुल्कों में दुर्लभ थी। यह दुबई के शासक शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम के परिवार को अन्य अरब शेखों से अलग करती है और चौथा खुद ब्रांड दुबई यानी कामयाब मार्केटिंग। इन चार के सहारे कोई देश लंबे समय तक नहीं खड़ा हो सकता अलबत्ता इन्होंने मिलकर दुबई को चुटकियों में कमाई कराने वाली मरीचिका जरुर बना दिया। तेल की नेमत से महरुम दुबई सत्तर के दशक तक महज एक बंदरगाह था। नब्बे के दशक में यह अमीर अरब देशों की बदौलत व्यापार का केंद्र बन गया। मगर दुबई की अचंभित कर देने वाली नई तस्वीर महज दस साल पहले बननी शुरु हुई थी। ऐसा मानने वालों की कमी नहीं है कि अमेरिका जब डब्लूटीसी ढहा तो दुबई में इमारतों के शिखर कंगूरे बनने शुरु हुए। आकलन है कि कानूनों में बदलाव और सख्ती से डरे अरब के समृद्ध निवेशक करीब एक खरब डॉलर वापस मध्य पूर्व में लाए थे और जिन्होंने अचल संपत्ति के कारोबार को चमका दिया। रुस के अमीरों ने इसे बढ़ाया और ब्रिटेन डेवलपरों व फाइनेंसरों को इसमें मोटी कमाई मिली जिनके पीछे लंदन का उदार वित्तीय बाजार खड़ा था। 2003 के ईराक युद्ध के बाद तेल से कमाने वालों का अकूत धन भी इस कथित स्वर्ग में लगा और कुछ वर्षों के भीतर दुबई में इतना कुछ बन गया कि देखने वाले हैरत में पड़ गए। चाहे वह बुर्ज अल अरब होटल हो या समुद्र के बीच बन रहा नखील का स्वप्निल पाम जुमेरा या मरुस्थल के बीच स्कीइंग अथवा 1.5 अरब डॉलर की लागत से होटल अटलांटिस जिसकी उद्घाटन पार्टी पर ही 20 लाख डॉलर खर्च हुए थे। दुनिया की 25 फीसदी विशालयकाय क्रेनें अकेले दुबई में खपने लगीं और निर्माण के आधुनिक आश्चर्य डिस्कवरी व नेट जिओ जैसे चैनलों की नियमित कथाओं में बदल गए। छोटे से दुबई में इस साल फरवरी तक करीब 4000 इमारतें बन रही थीं।
छोटा नहीं है यह बवंडर
दुबई का संकट विशुद्ध रुप से अचल संपत्ति का है दुबई के पास इसके अलावा कुछ है भी नहीं। जमीन और भवनों की बेसिर पैर कीमतें। मकान बनने से पहले ही कई बार बिक जाना और अंधाधुंध मुनाफा। अकेले इस साल दुबई में 60,000 अपार्टमेंट बिकने को तैयार थे। मंदी से मांग घटी और सब कुछ ढह गया बचा सिर्फ कर्ज और बेकारी। इस साल फरवरी में जब बुर्ज दुबई ने 2.5 अरब डॉलर के कर्ज के लिए रिफाइनेंस की अर्जी डाली थी तभी से यह स्पष्ट हो गया था कि दुबई में अचल संपत्ति का गुब्बारा फूटने की तरफ बढ़ रहा है। बुर्ज को अमीरात के दो बैंकों ने मदद की लेकिन कुछ माह के भीतर ही नखील के लिए कर्ज मुश्किल बनने लगा और जोखिम भरी रेटिं" के कयास लगने लगे। इस वक्त दुबई की कई सरकारी व गैर सरकारी कंपनियां और दुबई वाटर एंड इलेक्टिसिटी अथॉरिटी कर्ज भुगतान टलवाने वालों की कतार में आ गए थे। अगर कोई इसे सिर्फ 80 अरब डॉलर का संकट मान रहा है तो वह गलती पर है। यह कर्ज सिर्फ नखील और दुबई व‌र्ल्ड या डीपी व‌र्ल्ड जैसे सरकारी डेवलपरों का है। इससे कहीं ज्यादा कर्ज लेकर निजी कंपनियां वहां आई थीं और इमारतें बना रहीं थीं। दुबई का संकट इसलिए गहराने वाला है क्यों कि इसमे केवल अरब के धनकुबेरों का नहीं पैसा नहीं लगा तमाम बैंकरों, वित्तीय संस्थाओं, ने शेयर व बांड बाजारों से पैसा जुटा कर भी नकली स्वर्ग लगाया है। दुबई में यह बीमारी 'यादा बड़ी है, मगर कतर और अबूधाबी में पिछले कुछ सालों में दुबई की नकल गई है। पूरे अमीरात में बन रही लगभग आधी अचल संपत्ति परियोजनायें बंद हो गई हैं। जिनकी संयुक्त लागत 582 अरब डॉलर है। इनमें बहुचर्चित पाम जुमेरा सहित स्नोडोम और दुबई के इर्द गिर्द अरब कैनाल जैसी परियोजनायें भी हैं। कतर में भी मुश्किल है और कुवैत का एक बड़ा निवेश बैंक इस साल की शुरुआत में दो करोड़ डॉलर के कर्ज में डिफाल्टर हो चुका है। यानी कि यह रोग अरब में और फैलेगा और मारेगा उन प्रवासियों जो यहां अपनी जीविका के लिए आए थे।
शानदार गलतियां करने की कला
दुबई ने उन गलतियों को ज्यादा भव्य और बेफिक्री के साथ किया जिन्हें अन्य देश पहले से करते आए हैं। यानी अचल संपत्ति पर आधारित विकास और कर्ज का सहारा। मगर दुबई का पूरा आर्थिक मॉडल एक मामले में दुनिया में अनोखा और सबसे ज्यादा जोखिम भरा हो गया। दुबई ने अपने इस पूरे विकास में जिन्हें बाजार बनाया वह दुनिया का बहुत समृद्ध तबका था। जबकि कर्ज और अचल संपत्ति के जोखिम को कम से एक बड़ा देशी बाजार तो चाहिए ही। मगर दुबई की अधिकांश आबादी प्रवासियों की है जो सिर्फ काम करने के लिए आए हैं। विकास के बेहद महंगे मॉडल को इस महंगे मॉडल को थामने के लिए न तो देश के भीतर कोई बड़ा बाजार था और कोई दूसरा उद्योग। देश की अधिकांश आबादी प्रवासियों की है। बन रहे भवनों, होटलों या मॉल में जिनके लिए कोई जगह नहीं है। दुबई के पास कोई प्राकृतिक संसाधन या निर्यात भी नहीं है। विदेशी मुद्रा का स्रोत पर्यटन व सेवायें हैं, जिनका बाजार बहुत संवेदनशील है। इसलिए जब मंदी आई तो बड़े ग्राहक किनारा कर "ए और कर्जदारों ने अंगूठा दिखा दिया। दुबई पड़ोसी भी अपनी साख का लेकर चिंतित हैं इसलिए मदद पता नहीं कितनी होगी।
मार्केटिंग की दुनिया का प्रिय जुमला है कि अगर कोई कहानी किसी खास ढंग से सुनाई जाए तो यह भी एक अच्छा कारोबार है.. दुबई ने दुनिया को अपनी कहानी बहुत कायदे से सुनाई। दुबई पिछले दशक की सबसे बड़ी ब्रांडिंग सफलता है। संसाधनों से महरुम दुबई ने बहुत नपे तुले ढंग से स्वयं दुनिया की सबसे भव्य, सुंदर, सर्वश्रेष्ठ, आरामदेह और प्रतिष्ठित जिंदगी देने वाले देश के रुप में और प्रस्तुत किया। ब्रांड दुबई ने दुनिया के हर बड़े चर्चित व्यक्ति को खींचा नतीजतन तमाम तरह की अनोखी परियोजनायें जो कभी नहीं बनीं मगर चर्चा में रहीं। दुबई सिंगापुर की तरह एक व्यापार केंद्र बनने निकला था और अंतत: बन गया अचल संपत्ति का कैसिनो यानी जुआघर। दुनिया को सीखना चाहिए कि कुछ लाख अरबपतियों के बसने या सबसे भव्य इमारतो से कोई अर्थव्यवस्था मजबूत नहीं होती। माफ कीजिये! दुबई ने जल्दी ढह कर दुनिया पर उपकार किया है।
anshumantiwari@del,jagran.com

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