Monday, December 17, 2012

कैश फॉर वोट

नोट के बदले वोटसियासत में जीत का यह सबसे लोकप्रिय ग्‍लोबल फार्मूला है, जो परोक्ष रुप से दुनिया के हर देश में काम करता है। भारत में इसका प्रत्‍यक्ष और सरकारी अवतार एक जनवरी से प्रकट हो जाएगा। जनता को सीधे नकद पैसा देने की स्‍कीम यानी डायरेक्‍ट बेनीफिट ट्रांसफर पर जमीनी तैयारियां शुरु हो   चुकी हैं। आम जनता को सुविधाओं के बजाय बड़े पैमाने पर संगठित रुप से नकद पैसा देने की इस स्‍कीम में देश का सबसे विवादित राजनीतिक आर्थिक प्रयोग बनने की गुंजायश छिपी है। यह स्‍कीम राजनीतिक समर्थन के लिए बजट के खुले इस्तेमाल की एक ऐसी नई परंपरा शुरु कर सकता है जिसमें राज्‍य सरकारें लोककल्‍याणकारी राज्‍य को वोट कल्‍याणकारी राज्‍य में बदल देंगी। लोगों को नकद सब्सिडी देने के पैरोकार इस दो टूक निष्‍कर्ष के लिए माफ करेंगे लेकिन हकीकत यह है कि इससे सब्सिडी की बर्बादी रुकने और सही लोगों तक केंद्रीय स्‍कीमों का पैसा पहुंचने की कोई गारंटी नहीं है अलबत्‍ता इसका चुनावी इस्‍तेमाल होना शत प्रतिशत तय है। 
कंडीशनल की जगह डायरेक्‍ट    

जरुरतमंद लोगों को बडे पैमाने पर सरकारी बजट से नकद पैसा देने के प्रयोग पूरी दुनिया में विवादित और राजनीतिक तौर पर अस्‍वीकार्य रहे हैं। इस तरह के प्रयोगों में राजनीतिक लाभ का लेने का संदेह हमेशा छिपा होता है। यही वजह है कि दुनिया में कैश ट्रांसफर हमेशा इस शर्त पर होते हैं कि लाभार्थी स्‍वास्‍थ्‍य व शिक्षा की संस्‍थागत सुविधाओं को
अपनायेंगे ताकि नकद मदद के बदले उनकी जिंदगी में आने वाली बेहतरी को नापा भी जा सके। असली स्‍कीमें तो दरअसल कंडीशनल कैश ट्रांसफर हैं। विश्‍व की पहली कंडीशनल कैश ट्रांसफर स्‍कीम 1994-2000 के बीच मैक्सिको में शुरु हुई। बोस्‍टन यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर ओर मैक्सिको के उप वित्‍त मंत्री सैंटियागो लेवी इस स्‍कीम के जनक थे जिसे प्रोग्रेसा कहा गया। प्रो. लेवी जानते थे कि गरीबों को सरकारी बजट से नकद पैसा देना राजनीतिक रुप से विवादित होगा इसलिए उन्‍होंने प्रोग्रेसा में पैसा पाने के लिए बच्‍चों को स्‍कूल भेजने की शर्त जोडी। इसकी मॉनीटरिंग की जाती थी। कंडीशनल कैश ट्रांसफर का मॉडल लोकप्रिय हुआ और ब्राजील की चर्चित स्‍कीम बोल्‍सा फैमिलिया सहित दुनिया में कई जगह इसे अपनाया गया। लगभग सभी जगह जनता को नकद देने की स्‍कीमें कंडीशनल यानी सशर्त थीं। 
भारत में इस अंतरराष्‍ट्रीय प्रयोग का शानदार राजनीतिकरण हुआ है। कांग्रेस ने बड़ी सफाई से स्‍कीम में कंडीशनल व्‍यवस्‍था गायब कर दी और इसे डायरेक्‍ट कैश ट्रांसफर बना दिया है। सरकार लोगों जो नकद पैसा देगी उसमें ऐसी कोई शर्त नहीं है कि दिया गया धन निर्धारित मकसद के लिए ही इस्‍तेमाल हो। सरकार के पास यह नापने की कोई व्‍यवस्‍था भी नहीं है कि 34 स्‍कीमों के तहत नकद पैसा देने से लोगों के जीवन स्‍तर में क्‍या बदलाव आएगा? इसलिए स्‍कीम की बुनियाद ही खोटी है।
सियासत का आधार 
कैश ट्रांसफर से सब्सिडी के सही लोगों तक पहुंचने के तर्क के पास भी पैर नहीं हैं। जिस आधार कार्ड को आधार बनाकर लोगों को नकद पैसा बांटा जाएगा, वह सिर्फ एक पहचान कार्ड है। आधार से लाभार्थी आय के स्‍तर की कोई जानकारी नहीं मिलती। गरीबों की पहचान और लोगों की आय का कोई भरोसेमंद आंकड़ा न होने के चलते यह जानने की कोई व्‍यवस्‍था नहीं है कि  नकद सब्सिडी सही हाथों में जा रही है या नहीं। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले फर्जी बीपीएल कार्ड बनते थे अब आधार कार्ड बन रहे हैं। सब्सिडी की लूट पुराना फर्जीवाड़ा अब बायोमीट्रिक हो गया है। नकद सब्सिडी बांटने से पैसे की बर्बादी रुकने की कोई गारंटी नहीं है अलबत्‍ता सियासत के माफिक लोगों को चुनकर पैसा देने की गारंटी जरुर है। गौर फरमाइये कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने कैंप लगाकर आधार कार्ड बनावाने का आदेश जारी किया।
देश में हर व्‍यक्ति के पास बैंक अकाउंट नहीं है। लोगों तक नकद सब्सिडी पहुंचाने का काम  बिजनेस करेसपांडेंट्स करेंगे जो एक छोटी मोबाइल एटीएम मशीन लेकर लाभार्थी के पास जाएंगे और आधार कार्ड के जरिये उसकी पहचान के बाद पैसा देंगे। रिजर्व बैक के नियमों के मुताबिक कोई भी व्‍यक्ति एक बिजनेस करेसपांडेंट बन सकता है। बिजनेस करेस्‍पांडेट्स आने वाले दिनों में इस नई व्‍यवस्‍था की सबसे जरुरी कड़ी होंगे, जिसके पास लाभार्थी की पहचान भी होगी और उन तक पैसा पहुंचाने की जिम्‍मेदारी भी। इन कारकुनों के राजनीतिक इस्‍तेमाल पर संदेह न करना नासमझी होगी।
सरकारें राजनीतिक दलों की होती हैं इसलिए सरकारों के खाते से लोगों को नकद पैसा देना हमेशा से गहरे नैतिक सवालों में घिरता रहा है। कुछ ताजे अध्‍ययनों और हाल की एक चर्चित पुस्‍तक (पुअर इकोनॉमिक्‍स  अभिजीत बनर्जी और एस्‍थर डुफ्लो) की रोशनी में गरीबों को नकद पैसा देने के प्रयोगों सफलता पूरी दुनिया में संदिग्‍ध हो रही है लेकिन भारत में तो इस नकद सब्सिडी का मकसद ही दूसरा है। यही वजह है कि सरकारी स्‍कीमों का ढांचा बदलने वाला यह कथित क्रांतिकारी कदम कांग्रेस पार्टी के मंच से घोषित हुआ है और टीम राहुल इस इसे सफल बनाने में जुट भी गई है।
वित्‍त मंत्री पी चिदंबरम ने ठीक ही कहा कि यह एक गेम चेंजर प्रयोग है। यह स्‍कीम राजनीति का खेल बदल सकती है। इस सच से मुंह चुराने से कोई लाभ नहीं कि इस का राजनीतिक फायदा कांग्रेस को नहीं मिलेगा। कंडीशनल कैश ट्रांसफर पहली मैक्सिकन स्‍कीम प्रोग्रेसा को पवित्र व गैर राजनीतिक चाहे जो प्रयास किये गए हों लेकिन 2000 के चुनाव में सत्‍तारुढ़ पीआरआई पार्टी को प्रोग्रेसा के जरिये खरीदे गए वोटों का स्‍पष्‍ट फायदा मिला। भारत अब एक ऐसे राजनीतिक अर्थशास्‍त्र के दौर पहुंच गया है जहां वोट खरीदना जायज है। यह सफर लैपटॉप, टैबलेट कंप्‍यूटर व बेकारी भत्‍ते देकर वोट लेने से शुरु हुआ था जो अब सरकारी स्‍कीमों के जरिये सीधे नकद देने पर गया है। केंद्र सरकार ने राह खोली है, बस देखते जाइयेराज्‍य सरकारें कुछ साल के भीतर ही सब्सिडी के पूरे तंत्र को कैश फॉर वोट में बदल देंगी।
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