Monday, November 11, 2013

पटाखेबाजी के बाद

 इस बार बहुत से लोगों ने 69-70 रुपये के डॉलर पर दांव लगाकर दीपावली का शगुन किया है। 
टाखों के बारे में एक नई खोज यह है इनका प्रचलन सिर्फ त्‍योहारों की दुनिया में ही नहीं, बाजारों की दुनिया में भी होता है। वित्‍तीय बाजारों में भी जोरदार आवाज और चमक वाली आतिशबाजियां होती हैं जिनके बाद सब धुंआ धुंआ रह जाता है। दीवाली के दिये जलने से पहले शेयर बाजारों में ऐसी ही पटाखेबाजारी उतरी थी जिस पीछे न कहीं ठोस ठोस आर्थिक कारण थे तेजी बनने की तर्कसंगत उम्‍मीदें। इसलिए त्‍योहारों के बाद जैसे मन जीवन को

एक अनमनापन और उदासी घेर लेती है ठीक उसी तरह शेयरों में तेजी की गैस चुकते ही वित्‍तीय बाजार पुरानी चिंताओं से गुंथ गए हैं। रुपये की सेहत का सवाल नई ताकत के साथ वापस लौट आया है।  विदेशी निवेशकों की मेहरबानी से डॉलरों की आमद के बावजूद रुपये में गिरावट शुरु हो गई है। विदेशी मु्द्रा बाजार में तेज  उतार-चढ़ाव का इशारा करने वाले सूचकांक मई के मुकाबले ज्‍यादा सक्रिय हैं क्‍यों कि रुपये को ढहने से बचाने वाले सहारे हटाये जा रहे हैं। इधर अमेरिकी फेड रिजर्व के प्रोत्‍साहन पैकेज की वापसी
का तूफान भी आहट देने लगा है, जिससे सहम कर डॉलर अगस्‍त में 70 रुपये को सूंघ चुका है। 
शेयरों में तेजी की फुलझड़ी केवल भारतीय बाजारों तक ही सीमित नहीं थी।  अमेरिका में सस्‍ती पूंजी की आपूर्ति जारी रहने के बाद एशिया के बाजारों में निवेशकों की चहलकदमी शुरु हुई थी। भारत सहित सभी उभरते बाजारों में शेयरों की कीमतें आकर्षक स्‍तर तक गिर चुकी थीं इसलिए खरीद वापस लौटी लेकिन निवेशकों को जल्‍द ही समझ में आ गया कि पूर्वी एशिया के देशों में निर्यात की ग्रोथ नदारद है, जो कि बाजार में मांग का आधार है। चीन में सुस्‍ती कायम है वहां ढांचागत संकट, नए सुधारों की मांग कर रहे हैं और भारत में हालात सुधरते देर लगेगी। यह सच खुलते ही कंपनियों के मुनाफों में तेज बढ़ोत्‍तरी की उम्‍मीद टूट गई। शेयरों के मूल्‍य आय अनुपात गिरने के आकलन बाजारों में तैरने लगे और उभरते बाजार पुन: चूहा बन गए।
उभरते बाजारों में आशंकाओं के सूचकांक में ताजा उछाल के बीच वित्‍त मंत्रालय और रिजर्व बैंक के लिए त्‍योहार की खुमारी छोड़ने की हांक लग गई है। बाजार फिर जोखिम भरा हो चला है और रुपये की दरारें नए सिरे से खुल रही हैं। दीपावली से पहले तक विदेशी निवेशकों ने बाजार में 13,500 करोड़ रुपये डाले हैं। विदेशी मु्द्रा भंडार जो सितंबर में 39 माह के न्‍यूनतम स्‍तर पर चला गया था। उसमें नवंबर की शुरुआत तक नौ अरब डॉलर का इजाफा हुआ। रिजर्व बैंक ने डॉलरों की निकासी रोकने व आवक बढ़ाने के लिए डॉलर रुपया स्‍वैप व बैंकों को विदेश से कर्ज लाने छूट दी थी, जिससे विदेशी मु्द्रा भंडार को बढ़ाने में मदद मिली। इसके बावजूद दीपावली पर शेयर बाजार जब रिकार्ड तेजी दिखा रहा था तब भी डॉलर 61-62 रुपये से ऊपर नहीं गया और शेयर बाजार में गिरावट के साथ बीते गुरुवार को रुपया वापस एक माह के सबसे निचले स्तर पर आ गया।
रुपये को बचाने के लिए आकस्मिक उपायों की जरुरत फिर पड़ सकती है। अगले तीन माह में रुपये में उतार-चढ़ाव का इशारा करने वाला वॉलेटिलिटी इंडेक्‍स मई की तुलना में दोगुना है यानी डॉलर रुपया विनिमय दर में अस्थिरता का खतरा पहले मुकाबले कहीं ज्‍यादा है। बाजार को आयात आदि नियमित जरुरतों के लिए हर माह करीब 8 अरब डॉलर चा‍हिए। इसमें सबसे बड़ी मांग तेल कंपनियों की है। अगस्‍त में रिजर्व बैंक ने तेल कंपनियों को अलग से डॉलर देने का इंतजाम किया था। यह सुविधा अगले कुछ सप्‍ताह में बंद हो जाएगी और लगभग 400 मिलियन डॉलरों की मांग रोज बाजार में आएगी। रिजर्व बैंक के मुखिया रघुराम राजन ठीक कहते हैं कि यह मांग आने के बाद ही पता चलेगा कि रुपये का क्‍या हुआ। इस बीच रुपये के सहारे के लिए उठाये गए अन्‍य कदम भी वापस होने लगे हैं इसलिए रुपये में नई गिरावट के आकलन मुंबई से लेकर न्‍यूयार्क तक तैर रहे हैं। शेयर बाजार में बिकवाली, तेल की ऊंची कीमतों और नीतिगत अनिश्चितता के चलते प्रमुख ग्‍लोबल बैंक एचएसबीसी को इस साल के अंत तक डॉलर 65 रुपये पर जाता दिख रहा है। रेटिंग एजेंसी स्‍टैंडर्ड एंड पुअर की ताजा चेतावनी भी रुपये में कमजोरी की आशंका से प्रे‍रित है।
रघुरामराजन की ताजगी को सलाम लेकिन रुपये में गिरावट तो दरअसल अमेरिकी फेड रिजर्व के मुखिया बेन बर्नांके ने थामी थी नहीं तो अमेरिकी फेड रिजर्व ने जब बाजार में पूंजी की सप्‍लाई घटाने पर विचार किया था तो अगस्‍त के अंतिम सप्‍ताह में डॉलर सत्‍तर रुपये की खाई से जरा ही दूर रह गया था और भारत के सर पर 1991 का संकट नाच गया था। रुपये पर ताजा दबाव अगस्‍त की तुलना में ज्‍यादा पेचीदा है क्‍यों कि डॉलरों की आमद बढ़ने व कई आकस्मिक उपायों के बावजूद रुपये में कमजोरी की अंतरधारणा खत्‍म नहीं हुई है। यही वजह है कि विदेशी मु्द्रा बाजार में जरा ठंड बढ़ते ही रुपये को गिरावट का जुकाम हो गया है। जबकि रुपये के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण मौसम तो अभी आया ही नहीं है।

इस तथ्‍य से कोई गाफिल नहीं है कि शेयर बाजारों में दीवाले के पहले दिखी आतिशबाजी चीन में नहीं अमेरिका में तैयार हुई थी क्‍यों कि अमेरिकी फेड रिजर्व ने इस दिसंबर तक बाजार में सस्‍ती पूंजी की सप्‍लाई जारी रखने का फैसला किया था। अब दिसंबर ज्‍यादा दूर नहीं है। अमेरिकी केंद्रीय बैंक का मंदी प्रोत्‍साहन पैकेज सिकुड़ने की उलटी गिनती शुरु हो गई है। भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था का बाहरी मोर्चा फिर सबसे बडे सवाल से मुकाबिल है कि जब सस्‍ते अमेरिकी डॉलर बाजार से निकलेंगे तो उस तूफान में रुपये की क्‍या गत बनेगी। यकीन मानिये इस बार बहुत से लोगों ने 69-70 रुपये के डॉलर पर दांव लगाकर दीपावली का शगुन किया है। 

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