Monday, November 6, 2017

ताकि, सनद रहे !

लत सिद्ध होने का संतोष कभी कभी, सही साबित होने से ज्यादा कीमती होता है. सरकारी फैसलों पर  सवाल उठाना और आगाह करना कोई क्रांति नहीं है. यह तो पत्रकारिता का सहज  दायित्‍व है. नीतियों के नतीजे अच्‍छे रहें तो  लोकतंत्र में पत्रकारिता की यह असफलता श्रेयस्कर ही होगी.
नोटबंदी के नतीजे सामने हैं।
यह रहा नोटबंदी और उसके बाद पिछले एक वर्ष में सवालों, विश्‍लेषणों का Hyperlinked संकलन।
काश! हम गलत सिद्ध होते.
  •     नोटबंदी का तिलिस्मी खाता (5 नवंबर 2017https://goo.gl/BNrBDW
  •         सोचा न था...(8 अक्‍टूबर 2017)  https://goo.gl/ryyQVY
  •         खर्च करेंगे तो बचेंगे  (10.अक्‍टूबर 2017https://goo.gl/E3MYHm
  •         सही साबित होने का अफसोस (27जून 2017https://goo.gl/kgvQkB
  •         नोटबंदी और जीएसटी (13 जून 2017https://goo.gl/LUEhZ3
  •         बड़ी मछलियां  (20 फरवरी 2017https://goo.gl/a46rmB
  •         नोटबंदी का बजट  (12फरवरी 2017https://goo.gl/ZTGJW9
  •         नींव का निर्माण फिर (09 जनवरी 2017https://goo.gl/eKN9ey
  •         कल क्या होगा? (31.दिसंबर 2016https://goo.gl/3LDc6H
  •         न होती नोटबंदी तो .. (26 दिसंबर 2016https://goo.gl/vufudv
  •         नोटबंदी की पहली नसीहत  (19 दिसंबर 2016https://goo.gl/oPavbu
  •         8.11.16 बनाम 6.6.66 और 1.7.91 (12 दिसंबर 2016) https://goo.gl/NNpKEd
  •        कैशलेस कतारों का ऑडिट  (04 दिसंबर 2016https://goo.gl/gLBQgk
  •        मैले हाथों से सफाई!  (28 नवंबर 2016https://goo.gl/3ZCJHa
  •        नोटबंदी की बैलेंस शीट (20 नवंबर 2016https://goo.gl/w25yTF
  •        काले धन की नसबंदी (14 नवंबर2016https://goo.gl/qXnFL6

पत्रकारिता कभी चुप नहीं हो सकती. यही उसका सबसे बड़ा गुण है और उसका बड़ा दोष भी. उसे हमेशा बोलना चाहिए. चाहे लोग आश्‍चर्य में डूबे हों या कि जीत की दुंदुभि बज रही या फिर खौफ का सन्‍नाटा पसर चुका हो. पत्रकारिता को तुरंत बोलना चाहिए - Henry Anatole Grunwald 

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