Sunday, April 7, 2019

चौकीदारों की चौकीदारी


जनवरी 2018
इलेक्टोरल यानी चुनावी बॉन्ड से राजनैतिक चंदे के लिए साफ सुथरे धन का इस्तेमाल होगा और पारदर्शिता आएगी.
अरुण जेटलीवित्त मंत्री

मार्च 2019
इलेक्टोरल बॉन्ड से चुनावी चंदे में पारदर्शिता ध्वस्त हो गई है.
चुनाव आयोग का सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा 

एक साल पहले यह बॉन्ड लाते समय वित्त मंत्री ने चुनाव आयोग से पूछा भी था या नहीं अथवा उस समय चुनाव आयोग के मुंह में दही क्यों जम गया थालेकिन अब सुप्रीम कोर्ट में आयोग के हलफनामे के बाद इस पर शक बिल्कुल खत्म हो जाना चाहिए कि राजनैतिक चंदे भारत का सबसे बड़ा संगठित घोटाला हैंचौकीदारों की सरकार में यह घोटाला पहले से ज्यादा वीभत्स और बेधड़क हो चला है.

दरअसल पिछले पांच साल में सभी तरह के देशी और विदेशी राजनैतिक चंदे जांच से परे यानी परम पवित्र घोषित कर दिए गए हैंसिर्फ यही नहींसियासी चंदे का यह पूरा खेल लेने और देने के वाले के लिए टैक्स फ्री भी है.

हमारे लिए यह जानना जरूरी है कि यह सब कब और कैसे हुआ?

·       एनडीए की पहली सरकार ने पहली बार राजनैतिक चंदे पर कंपनियों को टैक्स में छूट (खर्च दिखाकरलेने की इजाजत दीसियासी दलों के लिए चंदे की रकम पर कोई टैक्स पहले से नहीं लगता. 2017-18 में 92 फीसदी कॉर्पोरेट चंदा भाजपा को मिलायह लेनदेन टैक्स फ्री है.
·       कांग्रेस की सरकार ने चंदे के लिए इलेक्टोरल ट्रस्ट बनाने की सुविधा दीदेश के सबसे धनी इलेक्टोरल ट्रस्ट ने 85 फीसदी चंदा भाजपा को दिया.

·       नोटबंदी हुई तो भी राजनैतिक दलों के नकद चंदे (2,000 रुतकबहाल रहे.

·       मोदी सरकार ने वित्त विधेयक 2017 में कंपनियों के लिए राजनैतिक चंदे पर लगी अधिकतम सीमा हटा दीइससे पहले तक कंपनियां अपने तीन साल के शुद्ध लाभ का अधिकतम 7.5 फीसदी हिस्सा ही सियासी चंदे के तौर पर दे सकती थींइसके साथ ही कंपनियों को यह बताने की शर्त से भी छूट मिल गई कि उन्होंने किस दल को कितना पैसा दिया है.

·       2016 में सरकार ने विदेशी मुद्रा नियमन कानून (एफसीआरएउदार करते हुए राजनैतिक दलों को विदेशी चंदे की छूट दे दी. 

·       और वित्त विधेयक 2018 में राजनैतिक दलों के विदेशी चंदों की जांच-पड़ताल से छूट देने का प्रस्ताव संसद ने बगैर बहस के मंजूर कर दियाजनप्रतिनिधित्व कानून में इस संशोधन के बाद राजनैतिक दलों ने 1976 के बाद जो भी विदेशी चंदा लिया होगाउसकी कोई जांच नहीं होगी चाहे पैसा कहीं से आया होसियासी चंदों के खेल में बहुत भयानक गंदगी हैइसीलिए तो 1976 के बाद से सभी विदेशी चंदे जांच से बाहर कर दिए गए हैंसनद रहे कि 2014 में दिल्ली हाइकोर्ट ने भाजपा और कांग्रेसदोनों को विदेशी चंदों के कानून के उल्लंघन का दोषी पाया थाइस बदलाव के बाद दोनों के धतकरम पवित्र हो गए हैं.

·                   अंततइलेक्टोरल ब्रॉन्डजिन्हें चुनाव आयोग ने पारदर्शिता पर चोट बताया हैइनसे 95 फीसदी चंदा भाजपा को मिला है.

भ्रष्टाचार के वीभत्स स्वरूपों से रू--रू होने के बाद यह उम्मीद करना क्या गलत था कि ईमानदारी का हलफ उठाकर सत्ता में आई सरकार राजनैतिक पारदर्शिता बढ़ाने के लिए कुछ नए प्रयास करेगीहोना तो दरअसल यह चाहिए था कि
¨    जब सरकार सामान्य लोगों से हर तरह के रिटर्न मांगती है तो राजनैतिक दलों को भी चंदे की एक-एक पाई का हिसाब देश को देना चाहिएहमें क्यों  पता चले कि कौनकिसको चंदा दे रहा है और सत्ता में आने पर उसे बदले में क्या मिल रहा है.

¨    अब चुनावी हलफनामों के दायरे में पूरा परिवार होना चाहिएआखिर देश को यह जानकारी क्यों नहीं मिलनी चाहिए कि उनके नुमाइंदों के परिजनों का कारोबार क्या हैउनके परिवार में कौनकहां और क्या करता हैउन्होंने किन कंपनियों में निवेश कर रखा है.

याद रखना चाहिए कि 2016 में नोटबंदी की लाइनों में खड़ा देश जब अपनी ईमानदारी का ‌इम्तिहान दे रहा था तब सरकारराजनैतिक दलों को यह छूट दे रही थी कि वह बंद किए गए 500 और 1,000 रुपए के नोट में चंदा लेकर उन्हें अपने खातों में जमा करा सकते हैं.

ईवीएम पर बटन दबाने से पहले एक बार खुद से जरूर पूछिएगा कि क्या हम भारत के सबसे बड़े घोटाले के लिए वोट देते हैंचंदों की गंदगी में लिथड़े नेता हमारे चौकीदार कैसे हो सकते हैंउलटे हमें ही इनकी चौकीदारी करनी होगी.

1 comment:

Unknown said...

भारतीय लोकतंत्र की एक कड़वी सच्चाई को आपने सामने रखा