Saturday, September 7, 2019

मंदी के आर-पार


मंदी या लंबी आर्थिक गिरावट सिर्फ इसलिए बुरी नहीं होती कि वह हमें तोड़ देती है बल्कि ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि वह हमें किस हाल में ले जाकर छोड़ देती हैअठारह महीने से जारी यह मंदी कब थमेगीइसके संकेत मिलने अभी बाकी हैंअगली तिमाही और मुश्किल भरी हो सकती है लेकिन मंदी से उबरने तक भारतीय बाजार में प्रतिस्पर्धा कमोबेश हमारा साथ छोड़ चुकी होगी.

·     मोबाइल नेटवर्क चाहे जितने घटिया हों लेकिन अगले कुछ माह में हमें शायद दो कंपनियों में एक को चुनना होगाबीएसएनल की बीमारी लाइलाज हो चुकी हैमंदी के बीच वोडाफोन-आइडिया संकट में है यानी कि टेलीकॉम सेवा में प्रतिस्पर्धा आखिरी सांसें ले रही है.
·     स्मार्ट फोन के बाजार में भी बहुत से विकल्प नहीं रहेंगेवहां भी चीन और कोरिया की दो कंपनियां करीब 50 फीसदी बाजार हिस्सा कब्जा चुकी हैंदेशी कंपनियां किसी गिनती में नहीं रहीं.

·     पिछले सात साल में सबसे बुरा वक्त देख रहे विमानन उद्योग में जेट एयरवेज की विदाई के बाद अब प्रतिस्पर्धा सिर्फ दो कंपनियों के बीच सिमट गई है.

·     2015 में एक दर्जन से अधिक ई-कॉमर्स कंपनियां भारत में हंस खेल रही थीं लेकिन अब पूरा रिटेल (ऑनलाइन और स्टोरबाजार अब पूरी तरह दो अमेरिकी कंपनियों के पास चला गया हैअमेरिकी ग्लोबल रिटेल स्टोर दिग्गज वालमार्ट ने फ्लिपकार्ट के अधिग्रहण के साथ खुद को ई-कॉमर्स में स्थापित कर लिया तो ई-कॉमर्स की सुल्तान अमेरिकी कंपनी अमेजन ने भारतीय रिटेल दिग्गज फ्यूचर ग्रुप में हिस्सेदारी खरीद ली हैअब रिटेल बाजार वालमार्ट बनाम अमेजन में बदल गया है.

·     बीते बरस सितंबर में सेबी के चेयरमैन इस बात पर फिक्रमंद थे कि भारत के म्युचुअल फंड बाजार केवल चार कंपनियां या फंड 47 फीसदी निवेश क्यों संभाल रहे हैं जबकि (ऐसेट मैनेजमेंटकंपनियां तो 38 हैंशेयर बाजार में ताजा गिरावट के बाद तो अब दो या तीन खिलाड़ी ही बचेंगे.

भारतीय बाजार पहले से ही एकाधिकारों और कंपनियों की मिलीभगत का दर्द झेल रहा हैकोयलापेट्रो ईंधनबिजली ग्रिडबिजली उत्पादन जैसे बड़े क्षेत्रों में सरकार का एकाधिकार हैइंडियन ऑयल जल्द ही भारत पेट्रोलियम का अधिग्रहण कर लेगी यानी कि पेट्रो उद्योग में प्रतिस्पर्धा और सिमट जाएगीस्टीलदुपहिया वाहनप्लास्टिकएल्युमिनियमट्रक और बसेंकार्गोरेलवेसड़क परिवहनकई प्रमुख उपभोक्ता उत्पाद सहित करीब एक दर्जन उद्योगों या सेवाओं में एक से लेकर तीन कंपनियां (निजी या सरकारीकाबिज हैं.

लंबी खिंचती मंदी प्रतिस्पर्धा के लिए सबसे बड़ी सजा का ऐलान हैमंदी से लड़ने के तरीके बहुत सीमित हैंउद्योग सरकार से मदद की उम्मीद करते हैं लेकिन जब सरकार के पास खर्च बढ़ाने या टैक्स घटाने के मौके नहीं (जैसा कि अब हैहोते तो उद्योगों के पास कीमत कम करने का आखिरी विकल्प बचता हैत्योहारी मौसम के मद्देनजर देश में यह आखिरी कोशिश शुरू हो रही है.

मगर ठहरिएकीमतें कम होने से हालात बदल नहीं जाएंगेयहां से एक दुष्चक्र शुरू होने का खतरा हैयह मंदी कीमतें ऊंची होने की वजह से नहीं हैमहंगाई रिकॉर्ड न्यूनतम स्तर पर हैजीएसटी कम हुआ हैमंदी तो आय न बढ़ने के कारण हैलोगों के पास बचत नहीं हैइसलिए खपत नहीं बढ़ी.

दुनिया के अन्य बाजारों के तजुर्बे बताते हैं कि मंदी के दौर में जब कंपनियां कीमत घटाती हैं तो सिर्फ बड़ी कंपनियां इस होड़ में टिक पाती हैंक्योंकि मंदी के बीच कीमत घटाकर उसका असर झेलने की क्षमता सभी कंपनियों में नहीं होतीटेलीकॉम इसका उदाहरण हैजहां कीमतें कम होने से कंपनियां ही मर गईं.
पिछले छह-सात वर्षों मेंभारतीय बाजार में प्रतिर्स्धा सिकुड़ गई हैविदेशी कंपनियों के आक्रामक विलयअधिग्रहण और कर्ज के कारण बड़े पैमाने पर कंपनियां बंद हुई हैंनोटबंदीजीएसटी ने मझोली कंपनियों को सिकोड़कर स्थानीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा को भी सीमित कर दियाजिसकी वजह से कई लोकल ब्रांड खेत रहे.

कहते हैं कि मंदी के बाद अमेरिकी पूंजीवाद को वापस लौटने में पांच दशक लग गएभारत भी जब इस मंदी से उबरेगा तो यहां कई क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा सिमट चुकी होगीकंपनियां हमेशा एकाधिकार चाहती हैंगूगल-फेसबुक वाली नई दुनिया तो वैसे ही एकाधिकार से परेशान है.

कंपनियों के एकाधिकार सरकारों के लिए भी मुफीद होते हैं क्योंकि राजनीति-कॉर्पोरेट गठजोड़ आसानी से चलता हैलाइसेंस परमिट राज में यही तो होता थालेकिन इस पर सवाल उठाने होंगेक्योंकि अर्थव्यवस्था को खुली होड़ चाहिएसीमित प्रतिस्पर्धा वाले क्षेत्रों में नई कंपनियों के प्रवेश की नीति जरूरी हैपांच-छह बड़ी और असंख्य छोटी कंपनियां हर क्षेत्र में होनी ही चाहिएइससे निवेश आएगा और रोजगार भी.

हैरत नहीं कि प्रसिद्ध कारोबारी बोर्ड गेम ‘मोनोपॉली’ (भारत में व्यापारअमेरिका की महामंदी के दौरान सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुआ थाबेकारी के दौर में लोग खेल वाले नोटों की अदला-बदली से समय काटते थे और कृत्रिम कारोबार खरीदते-बेचते थेअगर हम नहीं चेते तो बड़ी कंपनियां मंदी की बिसात पर यह खेल शुरू कर देंगीजिसकी कीमत हम रोजगार में कमीखराब सेवाएं और घटिया उत्पाद खरीद कर चुकाएंगे.

1 comment:

प्रणीत रावत said...

मन्यवार, आपने जो चिंता व्यक्त की हैं वो सही लगती हैं, लेकिन आपको नहीं लगता कि ये सब स्वाभविक प्रक्रिया है।.... मतलब हर जगह शीर्ष में एक-दो कंपनी ही होती हैं जैसे किसी संस्थान, परिवार या देश में शीर्ष में एक-दो प्रमुख ही होते हैं।..... ऐसा नहीं लगता कि कंपनियों के मामले में भी यही प्राकृतिक व्यवस्था देखने को मिलती है ?.... फिर भी आप कहें कि यह प्राकृतिक व्यवस्था नहीं है तो कृपया मार्गदर्शन करें कि शीर्ष मे पांच-छह बड़ी और असंख्य छोटी कंपनियां हर क्षेत्र में होने के लिये सरकार क्या कर सकती है ? या सरकार को क्या करना चाहिये ?