Saturday, December 7, 2019

हैं और भी वजहें मंदी की


पां ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के ख्वाब के बीच यह कैसा ब्रांड इंडिया बन रहा है जिसका निर्यात पिछले पांच साल से धराशायी है
दुनिया को बाजार खोलने की नसीहतदेते हुए भारत अपना ही बाजार क्योंबंद करने लगा
हमें खुद से भी यह पूछना पड़ेगा कि तारीफों से लदी-फंदी विदेश नीति पिछले पांच बरस में हमें एक नया व्यापार समझौता भी क्यों नहीं दे सकी?

इन सवालों का सीधा रिश्ता भारत की ताजा जिद्दी मंदी से है क्योंकि इस संकट की एक बड़ी वजह ढहता विदेश व्यापार भी हैनिर्यात की बदहाली की नई तस्वीर उस उच्चस्तरीय सरकारी समिति की रिपोर्ट में उभरी हैजिसे एशिया के सबसे बड़े व्यापार समूह यानी आरसीईपी (रीजनल कॉम्प्रीहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिपमें भारत की भागीदारी के फायदे-नुक्सान आंकने के लिए इसी साल बनाया गया था.

पूर्व विदेशवाणिज्य सचिवोंडब्ल्यूटीओ के पूर्व महानिदेशकवित्त मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार और अर्थशास्त्रियों से लैस इस समिति (अध्यक्ष अर्थशास्त्री सुरजीत भल्लाने 253 पेज की रिपोर्ट के जरिए भारत के आरसीईपी में शामिल होने की पुरजोर सिफारिश की थीआरसीईपी को पीठ दिखाने से एक हफ्ते पहले तक वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल इसी रिपोर्ट को सरकार के लिए गीता-बाइबिल-कुरान बता रहे थेइस रिपोर्ट की रोशनी में आरसीईपी से भारत का पलायन और ज्यादा रहस्यमय हो गया है.

हाल के वर्षों में पहली बार अर्थशास्त्रियों और नौकरशाहों ने ठकुरसुहाती छोड़ भारत के विदेश व्यापार के संकट को आंकड़ों की रोशनी दिखाई हैरिपोर्ट के तथ्य बताते हैं कि ताजा मंदी इतनी चुनौतीपूर्ण क्यों है.

·       सन् 2000 में अंतरराष्ट्रीय व्यापार (निर्यात-आयातकी भारत के जीडीपी में हिस्सेदारी केवल 19 फीसद थी जो 2011 में बढ़कर 55 फीसद यानी आधे से ज्यादा हो गई जो अब 45 फीसद रह गई हैयही वजह है कि घरेलू खपत के साथ विदेश व्यापार में कमी की मारी विकास दर 4.5 फीसद पर कराह रही है.

·       2003 से 2011 के मुकाबले 2012 से 2017 के बीच भारत का निर्यात लगातार गिरता चला गयाआरसीईपी पर बनी समिति ने गैर तेल निर्यातक 60 बड़ी अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के साथ तुलना के बाद पाया कि जीडीपी में बढ़ोतरी और अपेक्षाकृत स्थिर विदेशी मुद्रा विनिमय दर के बावजूद इन पांच वर्षों में सभी (कृषिमैन्युफैक्चरिंगमर्चेंडाइज और सेवाएंनिर्यात में समकक्षों के मुकाबले भारत की रैंकिंग गिरी हैइस बदहाली के मद्देनजर 2014 के बाद जीडीपी के उफान (सात फीसद से ऊपरपर शक होता है.

·       2000 के बाद उदारीकरण ने भारत को सॉफ्टवेयर सेवाएंफार्मा और ऑटो निर्यात का गढ़ बना दिया थालेकिन 2010 के बाद भारत निर्यात में कोई जानदार कहानी नहीं लिख सका.

·       हाल के वर्षों में भारत ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने में विशेषज्ञता हासिल कर ली. 2017 से पहले लगातार घटता रहा सीमा शुल्कनई सरकार की अगुआई में बढ़ने लगाआयात महंगा होने से आयातित कच्चे माल और सेवा पर आधारित निर्यात को गहरी चोट लगीइस संरक्षणवाद से दुनिया के बाजारों में भारत के लिए समस्या बढ़ी है.

·       भल्ला समिति ने नोट किया कि भारतीय नीति नियामक आज भी आयात को वर्जित मानकर गैर प्रतिस्पर्धी उद्येागों को संरक्षण की जिद में हैं जबकि भारत ने बढ़ते विदेश व्यापार से जबरदस्त फायदे जुटाए हैं.

·       आरसीईपी विरोधियों को खबर हो कि बकौल भल्ला समितिसभी मुक्त व्यापार समझौते भारत के लिए बेहद फायदेमंद रहे हैंइनके तहत आयात-निर्यात का ढांचा सबसे संतुलित है यानी कच्चे माल का निर्यात और उपभोक्ता उत्पादों का आयात बेहद सीमित है.

·       यह रिपोर्ट आसियान के साथ व्यापार घाटे को लेकर फैलाए गए खौफ को बेनकाब करती हैयह घाटा पाम ऑयल और रबड़ के आयात के कारण हैजिनकी देशी आपूर्ति सीमित है और ये भारतीय उद्योगों का कीमती कच्चा माल हैं.

इस सरकारी समिति ने छह अलग-अलग वैश्विक परिस्थितियों की कल्पना करते हुए यह निष्कर्ष दिया है कि अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के हालात में आरसीईपी जैसे किसी बड़े व्यापार समूह का हिस्सा बनने पर भारत के जीडीपी में करीब एक फीसदनिवेश में एक 1.22 फीसद और निजी खपत में 0.73 फीसद की बढ़ोतरी होगी!

हमें नहीं पता कि आरसीईपी में बंद दरवाजों के पीछे क्या हुआकिसे फायदे पहुंचाने के लिए सरकार ने यह मौका गंवायालेकिन अब जो आंकड़े हमारे सामने हैं उनके मुताबिकभारत की विदेश और व्यापार नीति की विफलता भी इस मंदी की एक बुनियादी वजह हैपूरी तरह ढह चुकी घरेलू खपत के बीच तेज निर्यात के बिना मंदी से उबरना नामुमकिन है और निर्यात बढ़ाने के लिए बंद दरवाजों को खोलना ही होगापांच ट्रिलियन के नारे लगाने वालों को पता चले कि हाल के दशकों में दुनिया की कोई बड़ी अर्थव्यवस्था निर्यात में निरंतर बढ़ोतरी के बगैर लंबे समय तक ऊंची विकास दर हासिल नहीं कर सकी है.




3 comments:

Pawan Upadhyay said...

Export increases the Cash in flow in the country, Export increases the income of Farmers and Bussiness man and increase the purchasing capacity.

Shubham upadhyay said...

Very informative Sir🙏

Kiradvivek said...

सर NRC जैसे मुद्दे अर्थव्यवस्था को कितना प्रभावित कर सकते हैं जब बड़ा श्रमबल ( सरकारी व गैर सरकारी ) देश मे नागरिकता के फेर में लगा होगा
NRC पर सरकारी व्यय व जो लोग नागरिक नहीं रह जाऐंगे उनके डिटेंशन केन्द्रों पर शासकीय व्यय कितना प्रभावित कर सकता है