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Monday, February 18, 2013

सुधार पुरुष का आखिरी मौका



स यह बजट और !! .... इसके बाद उस नामवर शख्सियत की इतिहास में जगह अपने आप तय हो जाएगी जिसने 24 जुलाई 1991 की शाम, फ्रेंच लेखक विक्‍टर ह्यूगो की इस पंक्ति के साथ, भारत को आर्थिक सुधारों की सुबह सौंपी थी कि दुनिया की कोई भी ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसके साकार होने का समय आ गया है। लेकिन सुधारों का वह विचार अंतत:  रुक गया और 1991 जैसे संकटों का प्रेत फिर वापस लौट आया। सुधारों के सूत्रधार की अगुआई में ही भारत की ग्रोथ शिखर से तलहटी पर आ गई जो अवसरों का अरबपति रहा है। आने वाला बजट पी चिदंबरम के लिए एक और मौका नहीं है, यह तो भारत के सुधार पुरुष के लिए अंतिम अवसर है। यह डा. मनमोहन सिंह का आखिरी बजट है।  
पांच साल वित्‍त मंत्री और दस साल प्रधानमंत्री अर्थात आर्थिक सुधारों के बाइस साल में पंद्रह साल तक देश की नियति का निर्धारण। डा मनमोहन सिंह से ज्‍यादा मौके शायद ही किसी को मिले होंगे। संयोग ही है कि प्रख्‍यात अर्थशास्‍त्री और सुधारों के प्रवर्तक ने 1991 में इकतीस पेज के बजट भाषण में भारत के तत्‍कालीन संकट की जो भी वजहें गिनाई थीं, देश नए संदर्भो में उन्‍हीं को