Monday, April 25, 2011

साख के गुंबद में सेंध


न्यूयार्क स्टॉक एक्सचेंज की छत पर लटके यक्ष ने एक युधिष्ठिर टाइप के निवेशक से पूछा, वत्स ! दुनिया के वित्तीय बाजार में प्रश्नों से परे क्या है ? निवेशक बोला अमेरिका (दीर्घकालीन कर्ज उपकरण) की साख। यक्ष ने कहा कल्यांण हो और निवेशक अपनी किस्मत आजमाने बाजार में उतर गया। वित्तीय बाजारों में वर्षों से सब कुछ यक्ष के वरदान के मुताबिक चल रहा था कि अचानक निवेशकों को बुरे सपने आने लगे। सपने अमेरिकी साख को लेकर थे जिनका मतलब समझने के लिए निवेशक यक्ष को तलाश ही रहे थे कि उनका दुस्वप्न सच हो गया। दुनिया की प्रमुख रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर ने बीते सप्ताह अमेरिकी की साख को नकारात्मक दर्जे में डाल दिया। अपने रेटिंग इतिहास के 70 वर्षों में पहली बार स्टैंडर्ड पुअर चीखी कि अमेरिका को कर्ज देने या उसके कर्ज उपकरणों में निवेश करने वाले जोखिम उठाने को तैयार रहें। दुनिया आशंकित तो थी मगर यकायक विश्वाास नहीं हुआ। बाजार सदमे से बैठ गए, निवेशक अपना रक्तचाप नापने लगे, डॉलर गिरावट के कोटर में छिप गया। कोई बोला ऐसा कैसे हो सकता है ? यह तो वित्ती्य बाजार की सबसे मजबूत मान्यता, विश्वास, दर्शन, सिद्धांत, परंपरा और मानक टूटना है!....मगर ऐसा हो गया है। अमेरिका वित्तीय साख का शिखर, बुर्ज, गुंबद, मस्तूल, प्रकाश स्तंभ सभी कुछ है लेकिन कर्ज व घाटे ने साख के गुंबद में सेंध मार दी है। अमेरिकी सरकार के कर्ज बांडों व हुंडियों ( ट्रेजरी बिल) पर रेटिंग एजेंसियां हमेशा से सर्वश्रेष्ठ और सबसे सुरक्षित की मुहर ( ट्रिपल ए रेटिंग) लगाती हैं, जिसे छीने जाने की उलटी गिनती शुरु हो चुकी है। वित्तीय दुनिया अनदेखी अनसुनी और अप्रत्याशित उलझनों के लिए हिम्मत जुटा रही है।
घनघोर कर्ज
2009 में ऋण संकट के वक्त ही अमेरिकी साख पर खतरे की आहट सुन ली गई थी। कुछ हिम्म तियों कहा था कि यह तो अमेरिका है वरना इतने कर्ज पर तो रेटिंग एजेंसियां किसी दूसरे देश की साख का बैंड बजा देतीं। स्टैंडर्ड एंड पुअर ने जब बीते सप्ताह अमेरिका की दीर्घकालीन कर्ज रेटिंग पर अपना आउटलुक यानी नजरिया (स्थिर से नकारात्मक) बदला तो साफ हो गया कि पानी सर से ऊपर निकल गया है। अमेरिका में कर्ज और घाटे के ताजे आंकड़े भयावह हैं। अमेरिका की संघीय सरकार का कर्ज 4.6 ट्रिलियन डॉलर और राष्ट्रीय कर्ज ( सभी तरह के सरकारी कर्ज) 9.67 ट्रिलियन डॉलर पर पहुंच गया है। यानी कि कुल सार्वजनिक कर्ज करीब 14.27 ट्रिलियन डॉलर के शिखर पर है। कर्ज जीडीपी अनुपात को देखकर निवेशकों का कलेजा
 मुंह को आ रहा है। करीब 99.5 फीसदी के अनुपात के साथ अमेरिका का कर्ज व आर्थिक उत्पादन बराबर हो गया है। जीडीपी के अनुपात में करीब 11 फीसदी का बजट घाटा अभूतपूर्व है। पिछले दो वर्षों में अमेरिका दुनिया से उलटा चला है। घाटे से परेशान यूरोप ने घाटा कम करने की सख्ती दिखाई तो अमेरिका ने तेज आर्थिक विकास के लिए घाटा बढ़ाने का दांव चला। जिससे साख पर बन आई है।
उम्मीद का घाटा
कर्ज से निबटने की उम्मीद के मामले में अमेरिका यूरोप से भी गया गुजरा है। यूरोप के देशों ने घाटा घटाने की रणनीति तो बनाई है अमेरिका में तो रिपब्लिकन और डेमोक्रेट घाटा कम करने की योजना को लेकर लड़ रहे हैं। अमेरिका में एक बजट डील यानी कि घाटा घटाने की कार्ययोजना पर राजनीतिक असहमति के बाद जो नाउम्मीदी आई है, वह स्टैंडर्ड एंड पुअर के फैसले का आधार है। रिपब्लिकन चाहते हैं कि ओबामा प्रशासन यानी डेमोक्रेट्स घाटा कम करने के लिए कर लगायें और खर्च घटायें जबबकि टीम ओबामा केवल सरकारी कर्ज की सीमा बढ़ाने की कोशिश में है। बहस का सबसे बड़ा मुद्दा यही है कि सरकार के कर्ज लेने की सीमा बढ़ाई जाए या नहीं। अमेरिका की सीनेट व कांग्रेस में बहुमत का संतुलन पेचीदा है और माना जा रहा है कि 2012 के चुनाव के बाद , जब कोई एक दल बहुमत में होगा, तब घाटा कम होने की रणनीति बन सकेगी। अमेरिका में सार्वजनिक कर्ज की मौजूदा सीमा (14.3 ट्रिलियन डॉलर) अगले माह पार हो जाएगी। अमेरिकी कांग्रेस को हर हाल में कर्ज लेने की सीमा बढ़ानी होगी। घाटे पर नियंत्रण की ठोस उम्मी्द के बिना और घटती साख के साथ अगर अमेरिका और जयादा कर्ज उठायेगा तो वित्तीय बाजारों में बड़ा कोहराम मचेगा।
आशंकाओं का इंडेक्स
1998 में मूडीज ने जापान को लेकर अपना आउटलुक स्थायी से नकारात्मक किया तो येन तलहटी से जा लगा और जापानी सरकार के बांड बाजार की हिकारत का सबब बन गए। अमेरिका पर स्टैंडर्ड एंड पुअर की रेटिंग आते ही दुनिया के बाजार भरभरा गए। अमेरिका में कर्ज और उसे चुकाने की सरकारी क्षमता को लेकर उठे सवाल दूर तक असर करेंगे। जब संघीय सरकार की साख ढह रही है तो खरबों डॉलर के राज्य सरकारों के बांड बाजार और म्युनिसिपल बांड बाजार में तो संहार शुरु हो जाएगा। अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ना, रिटर्न घटना तय है क्यों कि सरकारी प्रतिभूतियां बाजार में ब्याज दरें तय करने का आधार हैं। अमेरिकी डॉलर का कमजोर होना तय है जिससे अमेरिकी निवेशक पैंतरा बदलेंगे और दुनिया नई रिजर्व करेंसी की बहस में जुट जाएगी जिसकी शुरुआत भारत-चीन-रुस-ब्राजील ने कर दी है। मगर इन सबसे अलग सबसे गहरी आशंका अमेरिकी बांडों की ट्रिपल ए (पूरी तरह सुरक्षित) रेटिंग को लेकर है। आमतौर पर कर्ज की साख पर रेटिंग का नजरिया ( आउटलुक) नकारात्मिक (नेगेटिव) होने छह से 24 माह के भीतर बांडों से रेटिंग घटा दी जाती है। अर्थात अगर अमेरिका ने कर्ज नहीं कम किया तो दो साल के भीतर वित्तींय बाजार में वह होगा जो कभी नहीं हुआ। यानी कि संप्रभु कर्ज की साख का शिखर ढह जाएगा ? दुनिया इस हादसे लिए कतई तैयार नहीं है।
  निवेशक बदहवास हैं। दुनिया के सबसे बड़े बांड निवेशक पिमोको ने इस साल फरवरी में ऐलानिया तौर अमेरिका बांडो की बिकवाली शुरु कर दी। अब तो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष भी अमेरिकी वित्तीय कुप्रबंध से पसीने पसीने हो रहा है। ...न्यूयार्क स्टॉक एक्सेचेंज की छत वाला यक्ष फिर पूछ रहा है कि दुनिया के वित्तीय बाजार में प्रश्नों से परे क्या है, झुंझलाये निवेशक कहते हैं बेचैनी, अस्थिरता और असमंजस। अमेरिका की वित्तीाय साख इतिहास के सबसे भयानक भंवर में है और यूरोप में भी कर्ज संकट का दूसरा चरण शुरु हो चुका है। लगता है जैसे वित्तीय संकट से निकलने की बात बनते बनते बिगड़ गई है। और हां.... याद आया इस बार तो वित्तीय बाजार का वरदानी यक्ष भी बिना कुछ कहे ही उड़ गया है। ... वित्ती य बाजारों को दुआओं के भारी निवेश की जरुरत है।

 -------------------- 
अर्थार्थ ने लिखा था

दिंसबर 2009
महासंकट की उलटी गिनती... अमेरिकी साख पर बन आई है और कर्ज संकटों की शुरुआत हो रही है।
http://artharthanshuman.blogspot.com/2009/12/blog-post_07.html
मई 2010
ऐसा भी हो सकता है .... अमेरिका और ब्रिटेन में ऋण संकट के पसरने का आकलन मई में। वक्त उसी तरफ ले जा रहा है।
http://artharthanshuman.blogspot.com/2010/05/blog-post_17.html
मई 2010
पछतावे की परियोजनायें ... संकटों का प्रायश्चित। सरकारी संपत्तियों की बिक्री। नए टैक्सों से जनता की आफत
http://artharthanshuman.blogspot.com/2010/05/blog-post_31.html
जुलाई 2010
घट घट में घाटा ... घाटों का अभूतपूर्व जमघट। पूरी दुनिया की सरकारों के बजटों में भयानक घाटे।
http://artharthanshuman.blogspot.com/2010/07/blog-post_12.html
नवंबर 2010
मुद्रास्फीति की महादशा ... अमेरिका में डॉलर छपाई मशीन के खतरे। हाइपरइन्फ्लेशन का डर
http://artharthanshuman.blogspot.com/2010/11/blog-post.html
दिसंबर 2010
साख नहीं तो माफ करो .... महाबलशाली बांड बाजार की यूरोप व अमेरिका को घुड़की
http://artharthanshuman.blogspot.com/2010/12/blog-post_13.html

-------------------------



No comments: