Monday, October 1, 2012

बड़े दांव और गहरे जोखिम



ह इतिहास बनते देखने का वक्‍त है, जो आर या पार के मौके पर बनता है। दोहरी मंदी और वित्‍तीय संकटों की अभूतपूर्व त्रासदी में खौलते अटलांटिक के दोनों किनारों में ऐतिहासिक फैसले शुरु हो गए हैं। यूरोप और अमेरिका में ग्रोथ को वापस लाने की निर्णायक मुहिम शुरु हो चुकी है। जिसकी कमान सरकारों के नहीं बल्कि प्रमुख देशों के केंद्रीय बैंकों के हाथ है। अमेरिकी फेड रिजर्व और यूरोपीय केंद्रीय बैंक अब मंदी और संकट से मुकाबले के आखिरी दांव लगा रहे हैं। केंद्रीय बैंकों के नोट छापाखाने ओवरटाइम में काम करेंगे। मंदी को बहाने के लिए बाजार में अकूत पूंजी पूंजी छोड़ी जाएगी। यह एक नया और अनदेखा रास्‍ता है जिसमें कौन से मोड और मंजिले आएंगी, कोई नहीं जानता। क्‍या पता मंदी भाग जाए या फिर यह भी सकता है कि  सस्‍ते डॉलर यूरो दुनिया भारत जैसी उभरती अर्थव्‍यवस्‍थाओं के बाजार में पहुंच कर नई धमाचौकड़ी मचाने लगें। या ग्‍लोबल महंगाई नई ऊंचाई छूने लगे। .... खतरे भरपूर हैं क्‍यों कि इतने बड़े जोखिम भी रोज रोज नहीं लिये जाते।
पूंजी का पाइप 
बीते 15 सितंबर को दुनिया के बाजारों में लीमैन ब्रदर्स की तबाही की चौथी बरसी अलग ढंग से मनाई गई। फेड रिजर्व के मुखिया बेन बर्नांके ने अमेरिका के ताजा इतिहास का सबसे बड़ा जोखिम लेते हुए बाजार में हर माह 40 अरब डॉलर झोंकने का फैसला किया, यानी क्‍वांटीटिव ईजिंग का तीसरा दौर। तो दूसरी तरफ यूरोपीय सेंट्रल बैंक ने कर्ज संकट में ढहते यूरोपीय देशों के बांड खरीदने का ऐलान कर दिया। बैंक ऑफ जापान  ने भी बाजार में पूंजी का पाइप खोल दिया। इन खबरों से शेयर बाजार जी उठे और यूरोप और अमेरिका के बांड निवेशकों के चेहरे खिल गए।
अमेरिका को मंदी से उबारने के लिए शुरु हुआ फेड रिजर्व का आपरेशन ट्विस्‍ट कई मामलों में अनोखा और क्रांतिकारी है। पहला मौका है जब
कोई केंद्रीय बैंक ग्रोथ और रोजगारों की वापसी तक ब्‍याज दरें कम रखने और बाजार में पर्याप्‍त पूंजी बनाये रखने का कौल ले रहा है। फेड रिजर्व ने तय किया है कि वह अमेरिका में ग्रोथ आने तक यानी फिलहाल 2015 तक ब्‍याज दरों को कम से कम रखेगा। इस फैसले से हर साल करीब 480 अरब डॉलर बाजार में आएंगे। फेड रिजर्व जरुरत पड़ने पर और पूंजी देने को तैयार है। दूसरी तरफ यूरोपीय सेंट्रल बैंक ने भी वह कदम उठाने की हिम्‍मत जुटा ही ली जिसकी जद्दोजहद दो साल से चल रही थी। यूरोप के लिए यह फैसला बहुत बड़ा है कि वहां का केंद्रीय, बैंक कर्ज में डूबे ग्रीस, पुर्तगाल, स्‍पेन,इटली जैसे देशों के बांडों की खरीद करेगा। डूबते यूरोप की सांस फिलहाल लौट आई है।
ईजी मनी का डर 
केंद्रीय बैंकों यह आखिरी दांव गहरे जोखिम से भरपूर हैं। अमेरिका से सस्‍ते डॉलर यानी ईजी मनी की नदी बहने वाली है। जो खुद अमेरिका को और शेष विश्‍व को भी नई चुनौतियों से मुकाबिल करेगी। अमेरिका के लिए इस फैसले का मतलब है कि मुद्रास्‍फीति को न्‍योता। बाजार में बहने वाली पूंजी महंगाई बढ़ायेगी। मांग, उत्पादन, निर्यात और रोजगार में बदहाल अमेरिका मंदी के साथ महंगाई में भी फंस सकता है या दूसरी आर्थिक विसंगतियां पैदा हो सकती हैं। यूरोप के सत्रह देशों में मुद्रास्‍फी‍ति की सितंबर में अचानक उछल गई हैअमेरिका का बांड बाजार संकेत दे रहा है कि महंगाई में एक फीसदी का इजाफा तय है।  अमेरिका को 2000 की शुरुआत का दौर याद आ रहा है जब  एलन ग्रीनस्‍पन फेड रिजर्व के मुखिया थे और लंबे समय तक कम ब्‍याज दरें व सस्‍ती पूंजी के कारण डॉटकॉम कंपनियों में जबर्दस्‍त निवेश हुआ। बाद में बुलबुला फूटा और निवेशकों के हाथ जले।
फेड रिजर्व इस कदम से अन्‍य मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर के कमजोर होने का खतरा भी है। फेड रिजर्व ने जब 2010 में जब इसी तरह के कदमों के तहत करीब 600 अरब डॉलर के बांड खरीदे थे तब अमेरिकी डॉलर करीब 18 फीसदी कमजोर हुआ था। डॉलर का अवमूल्‍यन बहुतों की सांस उखाड़ सकता है क्‍यों कि दुनिया के विदेशी मुद्रा भंडार इस रिजर्व करेंसी की खूंटी पर टंगे है। अमेरिकी बाजार में डॉलर की बारिश की संभावनाओं से ब्राजील से चीन तक छाते निकल आए हैं। डॉलरों की यह बाढ़ उभरते बाजारों के दरवाजे आने लगी है। भारतीय रुपया पांच माह के सबसे ऊंचे स्‍तर पर है। सस्‍ते डॉलरों की ऊधम से उभरते बाजारों की मुद्राओं की मजबूती बढ़ने का डर है, जो निर्यात को कमजोर करेगी। इसलिए बर्नांके का इलाज उभरते बाजारों के केंद्रीय बैंकों को डरा रहा है। फेड रिजर्व की घोषणा के बाद ब्राजील व पेरु अपनी मुद्राओं को कमजोर करने के कदम उठाये हैं। टर्की ने ब्‍याज दर घटाई है जबकि बैंक ऑफ जापान ने बाजार में पूंजी छोड़कर येन को नरम किया है। चीन की प्रतिक्रिया भी आने वाली है। यदि डॉलर गिरा तो पूरी दुनिया में मुद्राओं को कमजोर करने की होड़ शुरु हो सकती है।
अमेरिका किसी भी कीमत पर मंदी से  उबरना चाहता है जबकि यूरोजोन की सरकारें किसी भी शर्त पर यूरो को बचाना चाहती है। दुनिया के केंद्रीय बैंकों ने ऐसा रास्‍ता चुना है, जिसकी मंजिल पता नहीं है। ईजी मनी एक गहरा जोखिम है, जिसके कई तजुर्बे दुनिया के पास हैं।  अमेरिकी से यूरोप तक प्रॉपर्टी बाजारों में तबाही, सट्टेबाजी, बैंकिंग संकट और महंगाई तक सस्‍ती पूंजी ने कई गहरे जख्‍म दिये हैं। इसलिए दुनिया अगले कुछ माह तक दम साध कर देखेगी कि केंद्रीय बैंकों के दांव किस तरह का इतिहास बनाते हैं। यदि सस्‍ते कर्ज से दुनिया की ग्रो‍थ लौटी तो इतिहास बनेगा और अगर  दांव उलटा पड़ा तो ?? .. दुआ कीजिये कि यह दूसरा वाला इतिहास न बने, बस

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