Showing posts with label bank frauds. Show all posts
Showing posts with label bank frauds. Show all posts

Sunday, December 4, 2016

कैशलेस कतारों का ऑडिट

स्कीम का एक महीना बीतने से पहले ही टैक्‍स देकर काले धन को सफेद  
करने का मौका देने की जरूरत क्यों आन पड़ी
ह मजाक सिर्फ सरकारें ही कर सकती हैं कि काले धन को नेस्तनाबूद करने के मिशन के दौरान ही कालिख धोने का मौका भी दे दिया जाए. भारत दुनिया का शायद पहला देश होगा जो काला धन रखने वालों को बच निकलने के लिए दो माह में दूसरा मौका दे रहा है और वह भी काले धन की सफाई के नाम पर.

डिमॉनेटाइजेशन ने 8 नवंबर से अब तक इतने पहलू बदले हैं कि सरकार और रिजर्व बैंक भी भूल गए होंगे कि शुरुआत कहां से हुई थी. अलबत्ता टैक्स वाली कलाबाजी बेजोड़ है. स्कीम का एक महीना बीतने से पहले ही काले धन को सफेद (टैक्स चुकाकर) करने का मौका देने की जरूरत क्यों आन पड़ी

दरअसलनोटबंदी के पहले सप्ताह में जो सबसे बड़ी सफलता थीवही अगले कुछ दिनों में चुनौती और असफलता में बदलने लगी. डिमॉनेटाइजेशन के बाद बैंकों में डिपॉजिट की बाढ़ से काली नकदी का आकलन और नोटबंदी का मकसद ही पटरी से उतरने लगा है. रिजर्व बैंक के मुताबिक, 10 से 27 नवंबर तक डिपॉजिट और पुराने नोटों की अदला-बदली 8.44 लाख करोड़ रु. पर पहुंच गई. अपुष्ट आंकड़ों के अनुसार, 30 नवंबर तक डिपॉजिट 11 लाख करोड़ रु. हो गए थे.
  • ·    8 नवंबर को नोटबंदी से पहले बाजार में लगभग 14 लाख करोड़ रु. ऊंचे मूल्य (500/1000) के नोट सर्कुलेशन में थे. यानी कि 30 नवंबर तक 63 से 75 फीसदी नकदी बैंकों में लौट चुकी है.
  • ·        जमा करीब 49,000 करोड़ रु. प्रति दिन से बढ़े हैं. स्कीम 30 दिसंबर तक खुली है. आम लोगों के बीच हुए सर्वे बताते हैं कि अभी करीब 23 फीसदी लोगों ने अपने वैध पुराने नोट बैंकों में नहीं जमा कराए हैं.
  • ·        डिमॉनेटाइजेशन के बाद करीब 30 लाख नए बैंक खाते खुले हैं. 
  • ·        बैंकों से पुराने नोटों का एक्सचेंज बंद हो गया हैइसलिए अब डिपॉजिट ही होंगे. बैंकर मान रहे हैं कि करेंसी इन सर्कुलेशन का 90 फीसदी हिस्सा बैंकों में लौट सकता है.

डिपॉजिट की बाढ़ के दो निष्कर्ष हैः 
एकनकदी के रूप में काला धन था ही नहीं. आम लोगों की छोटी नकद बचत और खर्च का पैसा ही डिपॉजिट हुआ है. इसे बैंकों में लाना था तो इतनी तकलीफ बांटने की क्या जरूरत थी
अथवा
दोबैंकों की मिलीभगत से काला धन  खातों में पहुंच गया है. जन धन खातों के दुरुपयोग की खबरें इस की ताकीद करती हैं.

ध्यान रहे कि नोटबंदी की सफलता के दो पैमाने हैं. एककितना नकद बैंकों के पास आया और कितना बाहर रह कर बेकार हो गया. दोनोटबंदी से हुए नुक्सान के मुकाबले सरकार को कितनी राशि मिली है.
अब एक नजर नुक्सान के आंकड़ों परः
  •     सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसाररोजगारटोल की माफीकरेंसी की छपाई की लागत आदि के तौर पर 1.28 लाख करोड़ रु. का नुक्सान हो चुका है.
  •      इसमें जीडीपी का नुक्सान शामिल नहीं हैजो काफी बड़ा है.
  •      कंपनियों के मुनाफेशेयर बाजार में गिरावटबैंकों के नुक्सान अभी गिने जाने हैं.

प्रक्रिया पूरी होने के बाद रद्द हुई नकदी पर्याप्त मात्रा में नहीं होती है तो नुक्सान का आंकड़ाफायदों के आकलन पर भारी पड़ेगा.

डिपॉजिट की बाढ़ और नुक्सानों का ऊंचा आंकड़ा देखते हुए सरकार के पास पहलू बदलने के अलावा कोई रास्ता नहीं था. इसलिए काले धन को सफेद करने की नई खिड़की खोली गईजिसके तहत काला धन की घोषणा पर 50 फीसदी कर लगेगा और डिपॉजिट का 25 फीसदी चार साल तक सरकार के पास जमा रहेगा. पकड़े जाने के बाद टैक्स की दर ऊंची हो जाएगी.

इनकम टैक्स की नई कवायद के दो स्पष्ट लक्ष्य दिखते हैः

पहला— बेहिसाब डिपॉजिट पर भारी टैक्स से लोग हतोत्साहित हो जाएंगे और जमा में कमी आएगी. इससे कुछ नकदी बैंकिंग सिस्टम से बाहर रह जाएगी जो कामयाबी में दर्ज होगी.

दूसराअगर डिपॉजिट नहीं रुके तो जमा पर टैक्स और खातों में रोकी गई राशि सफलता का आंकड़ा होगी. 

डिमॉनेटाइजेशन आर्थिक फैसला हैजिसकी तात्कालिक सफलता आंकड़ों से ही साबित होगीवह चाहे नकदी को बैंकिंग से बाहर रखकर हासिल किया जाए या फिर टैक्स से. सरकार को काली नकदी के रद्द होने या टैक्स से मिली राशि का खासा बड़ा आंकड़ा दिखाना होगा जो इस प्रक्रिया से होने वाले ठोस नुन्न्सान (जीडीपी में गिरावटरोजगार में कमीबैंकों पर बोझ) पर भारी पड़ सके.

यह आंकड़ा आने में वक्त लगेगा लेकिन पहले बीस दिनों में नोटबंदी के खाते में कुछ अनोखे निष्कर्ष दर्ज हो गए हैंजिनकी संभावना नहीं थी.
  • ·        भारत का बैंकिंग सिस्टम बुरी तरह भ्रष्ट है. यह सिर्फ कर्ज देने में ही गंदा नहीं है बल्कि इसका इस्तेमाल काले धन की धुलाई में भी हो सकता है. सरकार इसे कब साफ करेगी?
  •    इनकम टैक्स का चाबुक तैयार है. टैक्स टेरर लौटने वाला है और साथ ही भ्रष्टाचार और टैक्स को लेकर कानूनी विवाद भी. 
  •       एक बेहद संवेदनशील सुधार को लागू करते हुए हर रोज होने वाले बदलावों ने लोगों में विश्वास के बजाए असुरक्षा बढ़ाई है.
  •     भारत के वित्तीय बाजार के पास बड़े बदलावों को संभालने की क्षमता नहीं है. नौ लाख करोड़ रु. बैंकों में सीआरआर बनकर बेकार पड़े हैंजिनके निवेश के लिए पर्याप्त बॉन्ड तक नहीं हैं और न ही कर्ज के लिए इसका इस्तेमाल हो सकता है. नई नकदी आने तक इसे लोगों को लौटाना भी संभव नहीं है. यह आम लोगों का उपभोग का खर्च हैअर्थव्यवस्था की मांग है जो बैंक खातों में बेकार पड़ी हैबैंक इसे संभालने की लागत से दोहरे हुए जा रहे हैं जबकि लोग अपनी बचत निकालने बैंकों की कतार में खड़े होकर लाठियां खा रहे हैं.

जरा सोचिएअगर डिमॉनेटाइजेशन न होता तो क्या हम सचाइयों से मुकाबिल हो पातेइसलिए इन तीन निष्कर्षों को नोटबंदी के मुनाफे के तौर पर दर्ज किया जा सकता है

बाकी हिसाब-किताब 30 दिसंबर के बाद.