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Saturday, October 12, 2019

उलटा तीर


वक्त बड़ा निर्मम हैअगर सब कुछ ठीक होता तो निर्मला सीतारमण भारत के सबसे विराट ड्रीम बजट की प्रणेता बन जातीं. 20 सितंबर को कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती के साथ निर्मला ने पीचिदंबरम (1997-98 कॉर्पोरेटव्यक्तिगत इनकम टैक्सएक्साइजकस्टम में भारी कटौतीसे बड़ा इतिहास बनायालेकिन यह अर्थव्यवस्था है और इसमें इस बात की कोई गांरटी नहीं होती कि एक जैसे फैसले एक जैसे नतीजे लेकर आएंगे.

1.5 लाख करोड़ रुपए के तोहफे (कंपनियों की कमाई पर टैक्स में अभूतपूर्व कमीकी आतिशबाजी खत्म हो चुकी हैजिन चुनिंदा कंपनियों तो यह तोहफा मिला हैउनमें अधिकांश इसे ग्राहकों से नहीं बांटेंगी बल्कि पचा जाएंगीशेयर बाजार के चतुर-सुजान ढहते सूचकांकों से अपनी बचत बचाते हुए इस विटामिन के उलटे असर का मीजान लगाने लगे हैंक्योंकि इस खुराक के बाद भी कंपनियों की कमाई घटने का डर है क्योंकि बाजार में मांग नहीं है

कंपनियों पर टैक्स को लेकर सरकार के काम करने का तरीका अनोखा हैमोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में कंपनियों पर जमकर टैक्स थोपाशेयर बाजार में सूचीबद्ध शीर्ष कंपनियों की कमाई पर टैक्स की प्रभावी दर (रियायतें आदि काटकर) 2014 में 27 फीसद थी जो बढ़ते हुए 2019 में 33 फीसद पर आईअब इसे  घटाकर 27.6 फीसद किया गया है.

कौन जवाब देगा कि औद्योगिक निवेश तो 2014 से गिर रहा है तो टैक्स क्यों बढ़ा या नए बजट में कंपनियों की कमाई पर सरचार्ज क्यों बढ़ाया गयालेकिन हमें यह पता है कि ताजा टैक्स रियायत भारत के इतिहास का सबसे बड़ा कॉर्पोरेट तोहफा है

·       क्रिसिल ने बताया कि 1,074 बड़ी कंपनियों (2018 में कारोबार 1,000 करोड़ रुपए से ऊपरको इस रियायत से सबसे ज्यादा यानी 37,000 करोड़ रुपए का सीधा फायदा पहुंचेगाजो कुल कॉर्पोरेट टैक्स संग्रह में 40 फीसद हिस्सा रखती हैंइन पर लगने वाला टैक्स अन्य कंपनियों से ज्यादा था.

·       ये कंपनियां करीब 80 उद्योगों में फैली हैंऔर नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के बाजार पूंजीकरण में 70 फीसद की हिस्सेदार हैंइसलिए शेयर बाजार में तेजी का बुलबुला बना था.

·       2018 में करीब 25,000 कंपनियों ने मुनाफा कमाया जो सरकार के कुल टैक्स संग्रह में 60 फीसद योगदान करती हैं.

अर्थव्यवस्था के कुछ बुनियादी तथ्यों की रोशनी में बाजार और निवेश खुद से ही यह पूछ रहे हैं कि 1,000 कंपनियों को टैक्स में छूट से मांग कैसे लौटेगी और मंदी कैसे दूर होगी?

घरेलू बचत का आंकड़ा कंपनियों को इस रियायत की प्रासंगिकता पर सबसे बड़ा सवाल उठाता हैपिछले वर्षों में निवेश या मांग घटने से कंपनियों की बचत पर कोई फर्क नहीं पड़ा. 2019 में प्राइवेट कॉर्पोरेट सेविंग जीडीपी के अनुपात में कई दशकों की ऊंचाई (12 फीसदपर थी

दूसरी तरफआम लोगों की बचत (हाउसहोल्ड सेविंग्सकई दशक के सबसे निचले स्तर (3 फीसदपर हैआम लोगों की आय घटने से बचत और खपत ढही हैरियायत की तो जरूरत इन्हें थीदिग्गज कंपनियों के पास निवेश के लायक संसाधनों की कमी नहीं हैटैक्स घटने और कर्ज पर ब्याज दर कम होने से बड़ी कंपनियों की बचत बढ़ेगीबाजार में खपत नहीं

भारत की मंदी पूंजी गहन के बजाए श्रम गहन उद्योगों में ज्यादा गहरी है जो सबसे ज्यादा रोजगार देते हैंकंपनियों की कमाई से मिलने वाले टैक्स का 55 फीसद हिस्सा तेल गैसउपभोक्ता सामाननिर्यात (सूचना तकनीकफार्मारत्नाभूषणआदि उद्योगों से आता है जबकि रोजगार देने वाले निर्माण या भारी निवेश वाले क्षेत्र टैक्स में केवल दस फीसद का हिस्सा रखते हैंइन्हें इस रियायत से कोई बड़ा लाभ नहीं मिलने वाला.

कॉर्पोरेट के इस तोहफे का बिल खासा भारी हैटैक्स संग्रह की टूटती रफ्तार और मुनाफों पर दबाव को देखते हुए सरकार की यह कृपा खजाने पर 2.1 लाख करोड़ रुपए का बोझ डालेगी जो जीडीपी के अनुपात में 1.2 फीसद तक हैइसका ज्यादा नुक्सान राज्य उठाएंगेकेंद्रीय करों में सूबों का हिस्सा करीब 40 फीसद घट जाएगाकेंद्र सरकार वित्त आयोग की मार्फतराज्यों को केंद्र से मिलने वाले संसाधनों में कटौती भी कराना चाहती हैअगर ऐसा हुआ तो राज्यों में खर्च में जबरदस्त कटौती तय हैसनद रहे कि राज्यों का खर्च ही स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं में मांग का सबसे बड़ा ईंधन है.

कंपनियों की कमाई पर टैक्स रियायत को लेकर अमेरिका का ताजा तजुर्बा नसीहत हैडोनाल्ड ट्रंप ने कॉर्पोरेट टैक्स में भारी (35 से 21 फीसदकटौती की थीवह भी उस वक्त जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी से उबर चुकी थीब्याज दर न्यूनतम थी और शेयर बाजार गुलजार थाटैक्स घटने के बाद अमेरिकी शेयर बाजार ने छलांगें लगाईंकंपनियों की कमाई बढ़ी लेकिन 21 माह बाद अमेरिका का जीडीपी अपने शिखर से एक फीसद लुढ़क चुका हैशेयर बाजार तब की तुलना में केवल 5 फीसद ऊपर हैनिवेश की रफ्तार सुस्त हो गईउपभोक्ताओं का मूड उदास है और घाटा बढ़ा हुआ है.

मिल्टन फ्रीडमैन फिर सही साबित होने जा रहे हैं कि सरकारों के समाधान अक्सर समस्याओं को और बढ़ा देते हैं!   


Monday, January 22, 2018

भारत, एक नई होड़



तकरीबन डेढ़ दशक बाद भारत को लेकर दुनिया में एक नई होड़ फिर शुरू हो रही है. पूरी दुनिया में मंदी से उबरने के संकेत और यूरोप में राजनैतिक स्थिरता के साथ अटलांटिक के दोनों किनारों पर छाई कूटनीतिक धुंध छंटने लगी है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कूटनीतिक चश्मा कमोबेश साफ हो गया है. ब्रिटेन की विदाई (ब्रेग्जिट) के बाद इमैनुअल मैकरॉन और एंजेला मर्केल के नेतृत्व में यूरोपीय समुदाय आर्थिक एजेंडे पर लौटना चाहते हैं. एशिया के भीतर भी दोस्तों-दुश्मनों के खेमों को लेकर असमंजस खत्‍म हो रहा है.  


मुक्त व्यापार कूटनीति के केंद्र में वापस लौट रहा है, जिसकी शुरुआत अमेरिका ने की है. पाकिस्तान को अमेरिकी सहायता पर ट्रंप के गुस्से के करीब एक सप्ताह बाद अमेरिका ने भारत के सामने आर्थिक- रणनीतिक रिश्तों का खाका पेश कर दिया. ट्रंप के पाकिस्तान वाले ट्वीट पर भारत में पूरे दिन तालियां गडग़ड़ाती रहीं थी लेकिन जब भारत में अमेरिकी राजदूत केनेथ जस्टर ने दिल्ली में एक पॉलिसी स्पीच दी तो दिल्ली के कूटनीतिक खेमों में सन्नाटा तैर गया, जबकि यह हाल के वर्षों में भारत से रिश्तों के लिए अमेरिका की सबसे दो टूक पेशकश थी.

दिल्ली में तैनाती से पहले राष्ट्रपति ट्रंप के उप आर्थिक सलाहकार रहे राजदूत जस्टर ने कहा कि भारत को अमेरिकी कारोबारी गतिविधियों का केंद्र बनने की तैयारी करनी चाहिए, ता‍कि भारत को चीन पर बढ़त मिल सके. अमेरिकी कंपनियों को चीन में संचालन में दिक्कत हो रही है. वे अपने क्षेत्रीय कारोबार के लिए दूसरा केंद्र तलाश रही हैं. भारत, एशिया प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी कारोबारी हितों का केंद्र बन सकता है.

व्हाइट हाउस, भारत व अमेरिका के बीच मुक्त व्यापार संधि (एफटीए) चाहता है, यह संधि व्यापार के मंचों पर चर्चा में रही है लेकिन यह पहला मौका है जब अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर दुनिया की पहली और तीसरी शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं के बीच एफटीए की पेश की है. ये वही ट्रंप हैं जो दुनिया की सबसे महत्वाकांक्षी व्यापार संधि, ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) को रद्दी का टोकरा दिखा चुके हैं.

अमेरिका और भारत के बीच व्यापार ब्ल्यूटीओ नियमों के तहत होता है. दुनिया में केवल 20 देशों (प्रमुख देश—कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, इज्राएल, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, मेक्सिको) के साथ अमेरिका के एफटीए हैं. इस संधि का मतलब है कि दो देशों के बीच निवेश और आयात-निर्यात को हर तरह की वरीयता और निर्बाध आवाजाही. 

ट्रंप अकेले नहीं हैं. मोदी के नए दोस्त बेंजामिन नेतन्याहू भी भारत के साथ मुक्त व्यापार संधि चाहते हैं. गणतंत्र दिवस पर आसियान (दक्षिण पूर्व एशिया) के राष्ट्राध्यक्ष भी कुछ इसी तरह का एजेंडा लेकर आने वाले हैं. भारत-आसियान मुक्त व्यापार संधि पिछले दो दशक का सबसे सफल प्रयोग रही है.

मार्च में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैकरॉन भी भारत आएंगे. भारत और यूरोपीय समुदाय के बीच एफटीए पर चर्चा कुछ कदम आगे बढ़कर ठहर गई है. यूरोपीय समुदाय से अलग होने के बाद ब्रिटेन को भारत से ऐसी ही संधि चाहिए. प्रधानमंत्री थेरेसा मे इस साल दिल्ली आएंगी तो व्यापारिक रिश्ते ही उनकी वरीयता पर होंगे.

पिछली कई सदियों का इतिहास गवाह है कि दुनिया जब भी आर्थिक तरक्की के सफर पर निकली है, उसे भारत की तरफ देखना पड़ा है. पिछले दस-बारह साल की मंदी के कारण बाजारों का उदारीकरण जहां का तहां ठहर गया और भारत का ग्रोथ इंजन भी ठंडा पड़ गया. कूटनीतिक स्थिरता और ग्लोबल मंदी के ढलने के साथ व्यापार समझौते वापसी करने को तैयार हैं और भारत इस व्यापार कूटनीति का नया आकर्षण है.

अलबत्ता इस बदलते मौसम पर सरकार के कूटनीतिक हलकों में रहस्यमय सन्नाटा पसरा है. शायद इसलिए कि उदार व्यापार को लेकर मोदी सरकार का नजरिया बेतरह रूढ़िवादी रहा है. विदेश व्यापार नीति दकियानूसी स्वदेशी आग्रहों की बंधक है. पिछले तीन साल में एक भी मुक्त व्यापार संधि नहीं हुई है. यहां तक कि निवेश संधियों का नवीनीकरण तक लंबित है. स्वदेशी और संरक्षणवाद के दबावों में सिमटा वणिज्य मंत्रालय मुक्त व्यापार संधियों की आहट पर सिहर उठता है.


ध्यान रखना जरूरी है कि भारत की अर्थव्यवस्था के सबसे अच्छे दिन भारतीय अर्थव्यवस्था के ग्लोबलाइजेशन के समकालीन हैं. दुनिया से जुड़कर ही भारत को विकास की उड़ान मिली है. थकी और घिसटती अर्थव्यवस्था को निवेश व तकनीक की नई हवा की जरूरत है. भारतीय बाजार के आक्रामक उदारीकरण के अलावा इसका कोई और रास्ता नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय कूटनीति में क्रांतिकारी बदलाव के एक बड़े मौके के बिल्कुल करीब खड़े हैं. 

Monday, February 6, 2017

ट्रंप बिगाड़ देंगे बजट

पिछले दो दशक में दुनिया के सभी आर्थिक उथल पुथल की तुलना में ट्रंप भारत की ग्‍लोबल सफलताओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन रहे हैं

सात-आठ साल पहले अटलांटा (जॉर्जियाअमेरिका) में कोका कोला के मुख्यालय की यात्रा के दौरान मेरे लिए सबसे ज्यादा अचरज वाला तथ्य यह था कि इस ग्लोबल अमेरिकी दिग्गज की करीब पंद्रह सदस्यीय ग्लोबल शीर्ष प्रबंधन टीम में छह लोग भारतीय थे. तब कोका कोला की भारत में वापसी को डेढ़ दशक ही बीता था और सिलिकॉन वैली में भारतीय दक्षता की कथाएं बनना शुरू ही हुई थीं. इसके बाद अगले एक दशक में दुनिया के प्रत्येक बड़े शहर के सेंट्रल बिजनेस डिस्ट्रिक्टयुवा भारतीय प्रोफेशनल्स की मौजूदगी से चहकने लगे क्योंकि भारत के दूरदराज के इलाकों में सामान्य परिवारों के युवा भी दुनिया में बड़ी कंपनियों में जगह बनाने लगे थे.
भारत की यह उड़ान उस ग्लोबलाइजेशन का हिस्सा है जिस पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मंडराने लगे हैं.
बजटोत्तर अंक में ट्रंप की चर्चा पर चौंकिए नहीं!
बजट तो खर्च हो गया. कभी-कभी सरकार कुछ न करे तो ज्यादा बेहतर होता है. इस बजट में सरकार ने कुछ भी नहीं कियाकोई पॉलिसी एडवेंचरिज्म (नीतिगत रोमांच) नहीं. नोटबंदी के घावों को वक्त के साथ भरने के लिए छोड़ दिया गया है. इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था की बड़ी चिंता फीका बजट नहीं बल्कि एक अति आक्रामक अमेरिकी राष्ट्रपति है जो भारत की सफलताओं पर भारीबहुत भारी पडऩे वाला है.
पिछले 25 साल के आंकड़े गवाह हैं कि अगर भारत ग्लोबल अर्थव्यवस्था से न जुड़ा होता तो शायद विकास दर चार-पांच फीसद से ऊपर न निकलती. ग्लोबलाइजेशन भारतीय ग्रोथ में लगभग एक-तिहाई हिस्सा रखता है.
भारत की ग्रोथ के तीन बड़े हिस्से अंतरराष्ट्रीय हैं. 
पहलाः भारत में विदेशी निवेशजो बड़ी कंपनियांतकनीकइनोवेशन और रोजगार लेकर आया है.
दूसराः भारतवंशियों को ग्लोबल कंपनियों में रोजगार और सूचना तकनीक निर्यात.
तीसराः ारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों का भरपूर निवेश.
डोनाल्ड ट्रंप इन तीनों के लिए ही खतरा हैं. 
विदेशी निवेश (डिग्लोबलाइजेशन)
दुनिया की दिग्गज कंपनियों का 85 फीसदी ग्लोबल निवेश 1990 के बाद हुआ. इसमें नए संयंत्रों की स्थापनानए बाजारों को निर्यातमेजबान देशों की कंपनियों का अधिग्रहण शामिल था. भारत सहित उभरती अर्थव्यवस्थाएं इस निवेश की मेजबान थीं. इसलिए 1995 के बाद से दुनिया के निर्यात में उभरती अर्थव्यवस्थाओं का हिस्सा और चीन-भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ता चला गया. बहुराष्ट्रीय निवेश का यह विस्तार और भारत का उदारीकरण एक तरह से सहोदर थे इसलिए दुनिया की हर बड़ी कंपनी ने भारतीय बाजार में निवेश किया.
ट्रंप डिग्लोबलाइजेशन के नए पुरोधा हैं. उनकी धमक से बाद भारत में सक्रिय बहुराष्ट्रीय कंपनियों की विस्तार योजनाएं व नए निवेश टल रहे हैं. अमेरिका अगर अपना बाजार बंद करेगा तो दुनिया के अन्य देश भी ऐसी ही प्रतिक्रिया करेंगे. अर्थव्यवस्थाएं संरक्षणवाद की राह पकड़ लेंगी और संरक्षणवाद की नीति युद्ध नीति जैसी होती हैजैसा कि ऑस्ट्रियन अर्थशास्त्री लुडविग वॉन मिसेस मानते थे. सरकार की ताजा आर्थिक समीक्षा भी ट्रेड वार के खतरे की घंटी बजा रही है.
रोजगार (संरक्षणवाद)
भारत के नए मध्यवर्ग की अगुआई सूचना तकनीक ने की है. कंप्यूटरों ने न केवल जिंदगी बदली बल्कि नई पीढ़ी को रोजगार भी दिया. आउटसोर्सिंग पर ट्रंप का नजला गिरने और नए वीजा नियमों के बाद भारत के हजारों मध्यमवर्गीय परिवारों में चिंता गहरा गई है. अमेरिकी वीजा दोबारा मिलना और वहां नौकरी मिलना तो मुश्किल है हीवीजा रहने तक भारत आकर वापस अमेरिका लौटना भी मुश्किल होने वाला है.
सूचना तकनीक व फार्मा भारत की सबसे बड़ी ग्लोबल सफलताएं हैंजो न केवल भारत में विदेशी निवेश लाईं बल्कि बड़े पैमाने पर प्रोफेशनल की कमाई (रेमिटेंस) भी भारत आई जो बाजार में मांग का आधार है. अगले दो साल के भीतर प्रशिक्षित मगर बेकार लोगों की जो भीड़ विदेश से वापस लौटेगी उसके लिए नौकरियां कहां होंगी?
मजबूत डॉलर (शेयर बाजार)
कमजोर डॉलर और सस्ते कर्ज ने भारत के शेयर बाजार को दुनिया भर के निवेशकों का दुलारा बना दिया. सन् 2000 के बाद भारत के वित्तीय बाजार में करीब दस लाख करोड़ रु. का विदेशी निवेश आया. लेकिन ट्रंप के आगमन के साथ ही अमेरिका में ब्याज दरें बढऩे लगीं. ट्रंप की व्यापार व बजट नीतियां डॉलर की मजबूती की तरफ इशारा करते हैं जो रुपए की कमजोरी की वजह बनेगा और भारत के वित्तीय निवेश पर असर डालेगा. यही वजह है कि इस बार शेयर बाजार मोदी के बजट के बजाए ट्रंप के फैसलों को लेकर ज्यादा फिक्रमंद थे.
भारत के लिए जब आक्रामक उदारीकरण के जरिए ग्लोबलाइजेशन के बचे-खुचे मौके समेटने की जरूरत थी तब वित्त मंत्री एक रक्षात्मक बजट लेकर आए हैं जो ग्लोबल चुनौतियों को पीठ दिखाता लग रहा है.