Monday, July 11, 2011

जमीन से जुड़े सवाल

धिग्रहण पीडि़त ग्रेटर नोएडा के किसानों का दर्द बड़ा है या कर्ज लेकर छत जुगाड़ रहे लोगों की पीड़ा, अदालत के फैसले के बाद जिनके आशियाने की उम्मी़द ध्वस्त हो गई। फैलते शहरों के लिए जमीन की जरुरत ज्यादा बड़ी है या सिकुड़ते गांवों के लिए।...विकास की गणित में इन सवालों दो टूक जवाब लगभग असंभव हैं। भारत की आर्थिक प्रगति का कारवां अब अपनी सबसे जटिल चुनौती से मुकाबिल है। हम प्राकृतिक संसाधनों पर हक की कठिन गुत्थी से गुंथ गए हैं। जमीनों के मामले में कानूनों का अंधेरा, चरम मुकदमेबाजी और कीर्तिमानी भ्रष्टाचार पहले ही में निचोड़ रहे थे अब अदूरदर्शी सरकारों व नौदौलतिये निवेशकों ने संपत्ति के अधिकारों के सवाल को हमलावर कर दिया है। विकास की जरुरतें जब मुंह बाये जमीन मांग रही हैं तो भू प्रबंधन पर लापरवाह सरकारों ने हमें अभूतपूर्व संकट में फंसा दिया है। हमने अपने सबसे कीमती संसाधन, यानी जमीन को कभी कायदे से नहीं संभाला जिसकी जरुरत गरीबी मिटाने से लेकर विकास और अमीरी लाने तक हर जगह है। हमारे विकास का रथ विवादों की जमीन में धंस सकता है।
कुप्रबंध की जमीन
भू संसाधन की दुर्व्यवस्था रिकार्डतोड़ हैं। करीब 80.76 करोड़ एकड़ जमीन वाला यह मुल्क सैटेलाइट व टेराबाइट के जमाने में भू संसाधन को ब्रितानी कानूनों ( रजिस्ट्री की व्यावस्था 1882 से और भूमि अधिग्रहण कानून 1894 का) से संभाल रहा है। अंग्रेज हमें राजस्व विभाग और भू पंजीकरण की दोहरी व्यणस्था देकर गए थे जिसका मकसद राजस्व जुटाना था। तमाम खामियों से भरा यह तंत्र अब बोझ बन गया है। भू उपयोग के वर्गीकरण का फार्मूला भी 1950 के बाद नहीं बदला। इसलिए भारत जमीन के मुकदमों का महासागर
 बन गया है। करीब 11 लाख एकड़ जमीन मुकदमों (सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च, कोच्चि का अध्ययन) में उलझी है जो कुल जमीन का करीब 0.14 फीसदी है। बड़े शहरों के सीमांत की तो करीब 28 फीसदी जमीन मुकदमेबाजी में है। पश्चिम बंगाल, बिहार, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक में प्रति राज्य डेढ़ से दो लाख एकड़ भूमि कानूनी झगड़े में फंसी है। मुकदमों में फंसी 50 फीसदी जमीन भी मिल जाए तो आवास व बुनियादी ढांचे की खुराक पूरी हो जाएगी। लेकिन मिले कैसे ? भारत का भू प्रबंधन घटिया नक्शों , हस्त लिखित भू रिकार्ड व खसरा खतौनी में फैला है जो कानूनी विवादों व भ्रष्टाचार की जड़ है। तभी भारत के भू प्रशासन महकमे सालान 70 करोड़ डॉलर की रिश्व़त ( ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल रिपोर्ट) बटोरते हैं। भू प्रबंधन की फिक्र किसे होगी जब राज्यों के पास सरकारी जमीन का लैंड बैंक तक नहीं है और केंद्र सरकार व सेना को घोटालों के बाद अपनी जमीन का ब्योरा जुटाने की सुध आई है। इसलिए जमीन के रिकार्डों का कंप्यूयटरीकरण भी तदर्थ ही है। दूसरी तरफ घाना, नामीबिया, तंजानिया जैसे अफ्रीकी देश दुनिया को भू प्रबंधन की नई रा‍ह दिखा रहे हैं। भारत में जमीनों के मुकदमे और भ्रष्टाचार जमीन की कृत्रिम किल्लत उपजाते हैं और सरकारों का मनमाना अधिग्रहण जमीनों को बारुदी बना देता है।
विवादों की जमीन
पिछले एक दशक में, निजी निवेशकों को सबसे बड़ी मात्रा में जमीनें सरकारी एजेंसियों के जरिये मिली हैं। लोगों को पता ही नहीं चला और विकास के तर्क के सहारे सरकार निजी निवेशकों के लिए प्रॉपर्टी डीलर बन गई। शहरों के करीब जमीन की किल्लत ज्यांदा है और ऐसे ही इलाकों में निजी निवेशकों के हक में सरकारी ताकत के बेजा इस्तेमाल के मामले सामने आ रहे हैं। एक ईमानदार जांच यह बता देगी कि आवास विकास परिषदों, विकास प्राधिकरणों, इंडस्ट्रियल जोन और एसईजेड किस तरह जमीनें लेकर किन लोगों को दी हैं। हैरत यह है कि जमींदारी व नक्सल के अतीत से वाकिफ भारतीय राजनेता भी यह भूल गए संपत्ति का अधिकार लोगों की जिंदगी से जुड़ा है। वे यह भी भूल गए भारत में 60 फीसदी खेतिहर जमीन 20 फीसदी लोगों के पास है,  यानी  असमानता का दर्द पुराना है। दरअसल जमीन के आपात अधिग्रहण का सरकारी अधिकार पूरी दुनिया में विवादित है। संपत्ति पर हक मानवाधिकार (अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार घोषणा) की श्रेणी में आता है और गरीबी हटाने का प्रभावी माध्यम मानते हुए संयुक्‍त राष्ट्रण ने इसे अपने सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्योंय से जोड़ा है। यूएन हैबिटेट व संयुक्त राष्ट्र खाद्य संगठन नागरिकों के लिए संपत्ति के अधिकारों को पुख्ता करने की मुहिम चलाते हैं लेकिन भारत में मुआवजे व पारदर्शिता की अनदेखी करते हुए सरकारें यह अधिकार छीन लेती हैं। दुनिया की कई सरकारें आपात अधिग्रहण को लेकर ग्लानि में भरी हैं और खुद को तरह तरह की शर्तों में बांध रही हैं। दक्षिण अफ्रीका व पोलैंड अधिक से अधिक मुआवजे को कानूनी शक्ल दे दी है जबकि ब्रिटेन व कॉमनवेल्थं देश संपत्ति के साथ जीविका का मुआवजा भी दे रहे हैं।
संकट की जमीन
जमीनों को लेकर ताजा संकट विचित्र है। ग्रेटर नोएडा में किसानों को मिला न्याय, आवास परियोजनाओं में मकान खरीदने वालों के लिए आफत बन गया है। यह एक अप्रत्याशित संकट की शुरुआत है। सरकारी मुहर के साथ मिली जमीन निवेश या कर्ज की गारंटी बन जाती है लेकिन जब सरकार के फैसले ही गैरकानूनी हों तो व्यवस्था ही ध्वस्त हो जाती है। भारत के तेज विकास को बहुत बड़ी मात्रा में भू संसाधन चाहिए। 2030 तक देश की 41 फीसदी आबादी शहरों में रहेगी, जिसे हर पांच साल में करीब ढाई करोड़ मकान देने होंगे। नए औद्योगिक निवेश की तामीर भी जमीन पर ही होगी और सिकुड़ती खेती को भी भरपूर जमीन चाहिए। जमीन की जरुरत में कई गुना बढ़ोत्तरी के बीच सरकारों की गलतियों ने इसी की आपूर्ति को पेचीदा विवादों में फंसा दिया है। आने वाले वर्षो में हमें महंगी अचल संपत्ति और जटिल विवादों के लिए तैयार रहना चाहिए।
जमीन का सवाल बेहद संवेदनशील है। अफ्रीका में रवांडा से चीन तक ( जमीन को लेकर दर्जनों दंगे) संपत्ति के अधिकारों का विवाद हर जगह उबल रहा है। असमानताओं चलते लोग बुनियादी आर्थिक हक के लिए उग्र हो रहे हैं। हमारे पास जमीन कम नहीं है, मगर हमें उसे संभालना नहीं आता। इसलिए हमारी जमीनों विकास कम विवाद और भ्रष्टा चार ज्यादा उगा हैं। जमीन को लेकर संपत्ति के हक और विकास की जरुरत का संतुलन बहुत नाजुक है, जिसे साधने के लिए नीतियों में पारदर्शी बदलाव जरुरी हैं। भू संसाधन का न्यायसंगत इस्तेमाल न हुआ तो विकास के पैरों तले जमीन खिसक जाएगी। सरकारों की समझदारी का सबसे बड़ा इम्‍तहान अब शुरु हो रहा है।
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13 comments:

Unknown said...

38.5

Unknown said...

सरकारी भूमि पर जो भी अवैध कब्जे किए गए हैं उन पर जल्द से जल्द तारा ना किया गया तो गांव में अति संकट का प्रभाव दिखाई दे रहा है

Unknown said...

Niji jameen se dusre ka jameen mein rasta nahi dene par hum kya Karen

Unknown said...

एक खाता संख्या में दो नाम है,क्या उसमें से एक अपने हिस्से की जमीन बेंच सकता है

Unknown said...

Jamin me paak nikalne ke liye rasta na mile to kya kare

हिंदूराष्ट्र सेना पश्चिम मिदनापुर जिला अध्यक्ष said...

2001 ka land market value kaise pata karen

chetan said...


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Unknown said...

मेरे दादा जी के समय से जो जमीन हम कमा रहे है पर वह जमीन दूसरे के नाम पर सेटलमेंट में है पर वह कभी नहीं खेती किये है वह जमीन हम लोगो का कैसे होगा उपाय बताएं

Unknown said...

Kya baap ki jasmin pe beta stay kha sakta h.

Unknown said...

Kya baap ki jasmin pe beta stay kha sakta h.

Unknown said...

Agar bete ko stay lgi jamin baap sale kr deta h to khariddar kya kre

Unknown said...

Hello sir ek problem thi

Unknown said...

Private property ke samne govt kuch bhi nirman kar sakti he Kya Jo road or private property ke bich kuch Khali jamin rehti he