Wednesday, April 21, 2010

चीन है तो चैन कहां रे?

यह अखाड़ा कुछ फर्क किस्म का है। यहां कमजोर भी जीतते हैं, वह भी सीना ठोंक कर। यह लड़ाई बाजार की है जिसमें कमजोर होना एक बड़ा रणनीतिक दांव है। देखते नहीं कि महाकाय, बाजारबली चीन ने अपनी मुद्रा युआन (आरएमबी) की कमजोरी के सहारे चचा सैम के मुल्क सहित दुनिया के बाजार पर इस तरह कब्जा कर लिया कि अब नौबत अमेरिका व चीन के बीच ट्रेड वार की है। अमेरिका चीन को आधिकारिक रूप से धोखेबाज यानी (करेंसी मैन्युपुलेटर) घोषित करते-करते रुक गया है। चीनी युआन का तूफान इतना विनाशक है कि उसने अमेरिकी बाजार से रोजगार खींचकर अमेरिका के खातों में भारी व्यापार घाटा भर दिया है। पाल क्रुगमैन जैसे अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि दुनिया के बाजार में छाया 'मेड इन चाइना' चीन की मौद्रिक धोखेबाजी का उत्पाद है। सस्ते युआन के सहारे चीन दुनिया के अन्य व्यापारियों को बाजार से दूर खदेड़ रहा है। अमेरिकी संसद में चीन के इस मौद्रिक खेल के खिलाफ कानून लाने की तैयारी चल रही है। अमेरिका के वित्त मंत्री गेटनर, हू जिंताओ को समझाने की कोशिश में हैं। क्योंकि करेंसी मैन्युपुलेटर के खिताब से नवाजे जाने के बाद चीन के लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी। वैसे बाजार को महक लग रही है कि शायद चीन अपनी इस मारक कमजोरी को कुछ हद तक दूर करने पर मान भी सकता है।
बाजारबली की मारक दुर्बलता
चीन को यह बात दशकों पहले समझ में आ गई थी कि कूटनीति और समरनीति की दुनिया भले ही ताकत की हो, लेकिन बाजार की दुनिया में कमजोर रहकर ही दबदबा कायम होता है। यानी कि निर्यात करना है और दुनिया के बाजारों को अपने माल से पाट कर अमीर बनना है तो अपनी मुद्रा का अवमूल्यन ही अमूल्य मंत्र है। 1978 में अपने आर्थिक सुधारों की शुरुआत से ही चीन ने निर्यात का मैदान मारने के लिए मुद्रा अवमूल्यन के प्रयोग शुरू कर दिए थे। आठवें दशक में चीन का निर्यात बुरी तरह कमजोर था। सस्ती मुद्रा का विटामिन मिलने के बाद यह चढ़ने और बढ़ने लगा। इसे देख कर अंतत: 1994 में एक व्यापक बदलाव के तरह चीन ने डालर व युआन की विनिमय दर को स्थिर कर दिया, जो कि इस समय 6.82 युआन प्रति डालर पर है। चीन का युआन, डालर व यूरो की तरह मुक्त बाजार की मुद्रा नहीं है। इसकी कीमत चीन के व्यापार की स्थिति या मांग-आपूर्ति पर ऊपर नीचे नहीं होती, बल्कि चीन सरकार इसका मूल्य तय करती है, जिसके पीछे एक जटिल पैमाना है। चीन की सरकार बाजार में डालरों की आपूर्ति को बढ़ने नहीं देती। चीनी निर्यातक जो डालर चीन में लाते हैं उन्हें चीन का केंद्रीय बैंक खरीद लेता है, जिससे युआन डालर के मुकाबले कम कीमत पर बना रहता है। अमेरिका का आरोप है कि चीन अपने यहां उपभोग को रोकता और बचत को बढ़ावा देता है, जिससे चीन के बाजारों में अमेरिकी माल की मांग नहीं होती, लेकिन अमेरिकी बाजार में सब कुछ मेड इन चाइना नजर आता है। अमेरिका का यह निष्कर्ष उसके व्यापार के आंकड़ों में दिखता है। पिछले साल चीन के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा 227 अरब डालर था, जो अभूतपूर्व है। चीन ने अमेरिका को 296 अरब डालर का निर्यात किया, जबकि अमेरिका से चीन को केवल 70 अरब डालर का निर्यात हो सका। चीन का विदेशी मुद्रा भंडार भी इसका सबूत है कि जो पिछले एक दशक में पूरी दुनिया में जबर्दस्त निर्यात के सहारे 2,500 अरब डालर बढ़ चुका है और चीन के सकल घरेलू उत्पादन का 50 फीसदी है। दुनिया के सबसे बडे़ बाजार अमेरिका से साथ व्यापार संतुलन पक्ष में, इतना विशाल विदेशी मुद्रा भंडार और दुनिया एक तरफ मगर युआन की दर एक तरफ वाली नीति। छोटे निर्यात प्रतिस्पर्धी युआन की आंधी में कहां टिकेंगे? ....चीन ने दुर्बल मुद्रा से दुनिया के बाजारों को रौंद डाला है।
महाबली की बेजोड़ विवशता
महाबली इस समय ड्रैगन के जादू में बुरी तरह उलझ गया है। चीन इस महाबली को कर्ज से भी मार रहा और व्यापार से भी। अमेरिका के अर्थशास्त्री क्रुगमैन का हिसाब कहता है कि चीन के मौद्रिक खेल के कारण हाल के कुछ वषरे में अमेरिका करीब 14 लाख नौकरियां गंवा चुका है। उनके मुताबिक चीन अगर युआन को लेकर ईमानदारी दिखाता तो दुनिया की विकास दर पिछले पांच छह सालों में औसतन डेढ़ फीसदी ज्यादा होती। चीन ने सस्तंी मुद्रा से अन्य देशों की विकास दर निगल ली। अमेरिकी सीनेटर शुमर व कुछ अन्य सांसद चीन को मौद्रिक धोखेबाज घोषित करने और व्यापार प्रतिबंधों का विधेयक ला रहे हैं। अमेरिका के वित्त विभाग को बीते सप्ताह अपनी रिपोर्ट जारी करनी थी जिसमें चीन को मौद्रिक धोखेबाज का दर्जा मिलने वाला था, लेकिन अंतिम मौके पर रिपोर्ट टल गई। .. टल इसलिए गई क्योंकि महाबली बुरी तरह विवश है। चीनी युआन की कमजोर ताकत बढ़ाने में अमेरिका की बड़ी भूमिका है। चीन जो डालर एकत्र कर रहा है, उनका निवेश वह अमेरिका के बांडों व ट्रेजरी बिलों में करता है। यह निवेश इस समय 789 अरब डालर है, जो कि अमेरिकी सरकार के बांडों का 33 फीसदी है। दरअसल अमेरिका के लोगों ने बचत की आदत छोड़ दी है। सरकार कर्ज पर चलती है जो कि बांडों में चीन के निवेश के जरिए आता है। अगर चीन निवेश न करे तो अमेरिका में ब्याज दरें आसमान छूने लगेंगी। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मौद्रिक प्रवाह का पहिया इस समय चीन से घूमता है। अमेरिका के वित्तीय ढांचे में चीन के इस निवेश के अपने खतरे हैं, सो अलग लेकिन अगर मौद्रिक धोखेबाजी की डिग्री मिलने के बाद चीन ने निवेश रोक दिया तो चचा सैम के लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी। लेकिन अगर अमेरिका युआन की कमजोरी को चलने देता है तो अमेरिका के उद्योग ध्वस्त हो जाएंगे। ... अमेरिका के लिए कुएं और खाई के बीच एक को चुनना है।
दुनिया में दोहरा असमंजस
पांच छह साल पहले मुद्राओं की कीमतों को मोटे पर अंदाजने के लिए एक बिग मैक थ्योरी चलती थी, जिसमें दुनिया के प्रमुख शहरों में बर्गर की तुलनात्मक कीमत को डालर में नापा जाता था। तब भी युआन सबसे अवमूल्यित और स्विस फ्रैंक अधिमूल्यित मुद्रा थी। लेकिन अब बात बर्गर के हिसाब जितनी आसान नहीं है, बल्कि ज्यादा पेचीदा है। चीन के लिए दस फीसदी व्यापार बढ़ने का मतलब है कि अमेरिका के रोजगारों में दस फीसदी की कमी, लेकिन अगर चीन अपने युआन या आरएमबी को 25 फीसदी महंगा करता है तो उसे अपनी 2.15 फीसदी जीडीपी वृद्घि दर गंवानी होगी। दुनिया को उबारने में चीन का बड़ा हाथ है, इसलिए यह गिरावट उन देशों को भारी पड़ेगी जो मंदी से परेशान हैं और चीन उनका बड़ा बाजार है। इन देशों में आस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड प्रमुख होंगे। इस सबके बाद भी दुनिया में यह मानने वाले बहुत नहीं है कि ताकतवर युआन महाबली की समस्याएं हल कर देगा। अमेरिका में बचत शून्य है और निर्यात ध्वस्त। जिसे ठीक करने में युआन की कीमत की मामूली भूमिका होगी। अलबत्ता इतना जरूर है कि भारत, ताईवान, कोरिया, मलेशिया जैसों को बाजारबली चीन की प्रतिस्पर्धा से कुछ राहत मिल जाएगी।
दुनिया का सबसे सफल युद्ध वह है, जिसमें शत्रु को बिना लड़े पराजित कर दिया जाता है। ..यही तो कहा था ढाई हजार साल पहले चीन के प्रख्यात रणनीतिकार सुन त्जू ने। चीन ने दुनिया के बाजार को बड़ी सफाई के साथ बिना लड़े जीत कर सुन त्जू को सही साबित कर दिया। पूरी दुनिया युआन की खींचतान का नतीजा जानने को बेचैन है। नतीजा वक्त बताएगा, लेकिन दिख यह ही रहा है कि बाजार में खेल के नियम फिलहाल बीजिंग से तय होंगे। चीन अपनी शर्तो पर ही युआन के तूफान पर लगाम लगाएगा, क्योंकि भारी कर्ज और ध्वस्त वित्तीय तंत्र के कारण दुनिया के महाबलियों की तिजोरियां तली तक खाली हैं, जबकि चीन अपनी कमजोर मुद्रा के साथ इस समय महाशक्तिशाली है। दुनिया का ताजा आर्थिक विकास मेड इन चाइना है, जबकि दुनिया का ताजा आर्थिक विनाश मेड इन अमेरिका और यूरोप।.. जाहिर है कि दुनिया मूर्ख नहीं है अर्थात वह विकास को ही चुनेगी, यानी चीन की ही शर्ते सुनेगी।
http://jagranjunction.com/ (बिजनेस कोच, सातोरी)

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