Monday, May 2, 2011

तख्ता पलट महंगाई !

क सरकार ने दूसरी से खुसफुसाकर पूछा क्या इजिप्ट की बगावत यकीनन खाद्य उत्पादों की महंगाई से शुरु हुई थी? मुद्रा कोष (आईएमएफ) तो कह रहा है कि यमन व ट्यूनीशिया की चिंगारी भी महंगाई से भड़की थी।.. जरा देखो तो, महंगे ईंधन के कारण गुस्साये शंघाई के हड़ताली ट्रक वालों को सख्त चीन ने कैसे पुचकार कर शांत किया।... महंगाई के असर से तख्ता पलट ?? सरकारों में खौफ और बेचैनी उफान पर है। लाजिमी भी है, एक तरफ ताजे जन विप्ल‍वों की जड़ें महंगाई में मिल रही हैं तो दूसरी तरफ बढ़ती कीमतों का नया प्रकोप आस्ट्रेलिया से लेकर अमेरिका तक, चिली से चीन तक और रुस से चीन से अफ्रीका तक पूरी दुनिया को लपेट रहा है। पिछले छह माह में महंगाई एक अभूतपूर्व सार्वभौमिक आपदा बन गई है। मुद्रास्फीति से डरे अमेरिकी फेड रिजर्व के मुखिया बेन बर्नांके (सौ साल पुरानी परंपरा तोड़ कर) को बीते सप्ताह मीडिया को सफाई देने आना पड़ा। यूरोप में सस्‍ते कर्ज की दुकानें बंद हो गईं और चीन कीमतों महंगाई रोकने के लिए ग्रोथ गंवाने को तैयार है। भारत तो अब महंगाई की आदत पड़ गई है। भूमंडलीय महंगाई की यह हाल फिलहाल में यह सबसे डरावनी नुमाइश है। बढ़ती कीमतें यूरोप व अमेरिका में बेहतरी की उम्मीदों की बलि मांग रही हैं जबकि उभरती अर्थव्यवस्थाओं अपनी तेज ग्रोथ का एक हिस्सा इसे भेंट करना होगा। फिर भी राजनीतिक खतरे टलने की गारंटी नहीं है।
सबकी जेब में छेद
मंदी व संकटों से छिली दुनिया के जख्मों पर महंगाई का अभूतपूर्व नमक बरसने लगा है। महंगाई अब अंतरराष्ट्रीय मुसीबत है। पूरा आसियान क्षेत्र मूल्य वृद्धि से तप रहा है। वियतनाम, थाइलैंड, इंडोनेशिया, सिंगापुर में महंगाई तीन से दस फीसदी तक है। चीन में जब उपभोक्ता उत्पाद पांच फीसदी से ज्यादा महंगे हुए तो सरकार ने कीमतें बढ़ाने पर पाबंदी लगा दी। महंगाई से डरा चीन अपने युआन को मजबूत करने अर्थात निर्यात वृद्धि से समझौते को तैयार है। भारत दो साल 13 फीसदी महंगाई जूझ रहा है। रुस आठ फीसदी, यूरोजोन दो फीसदी, ब्रिटेन 3.3 फीसदी, पोलैंड तीन फीसदी
की महंगाई के साथ मुश्किलों के नए दौर से मुकाबिल हैं। सरकारी घाटे और ऋण संकट के बाद मुद्रास्फीति पूरे यूरोप का बेहद बुरा हाल कर सकती है। दक्षिण अमेरिका में ब्राजील, मैक्सिको और चिली महंगाई से झुलस रहे हैं। ब्राजील शेयर बाजारों में विदेशी निवेश पर रोक कर और बैंकों पर सख्ती कर मुद्रा आपूर्ति रोक रहा है। अमेरिकी फेड रिजर्व के मुखिया बेन बर्नांके पिछले सौ साल के इतिहास में पहली बार बीते सप्ताह प्रेस से मुखातिब हुए तो यह बताने के लिए अगले साल तक अमेरिका में महंगाई की दर तीन फीसदी हो जाएगी। अमेरिका में तीन फीसदी की महंगाई भारत की तेरह फीसदी के बराबर है। मुद्रास्फीति इतना व्यापक भौगोलिक विस्तार अनोखा पेचीदगी से भरा है।
सभी मोर्चे एक साथ
महंगाई बढ़ाने वाले सभी कारक में मानो एक दूसरे से होड़ कर रहे हैं। खाद्य उत्पादो की कीमतें विस्फोटक हैं। एशिया में पिछले पांच छह माह में खाद्य उत्पाद दस फीसदी महंगे हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र खाद्य व कृषि संगठन (एफएओ) के मुताबिक अनाजों के अंतरराष्ट्रीय दाम पिछले एक साल में 70 फीसदी बढ़ चुके हैं। खाने की चीजों में तेजी की वजहों में मौसम के असर से लेकर सट्टेबाजी और बढ़ती मांग सभी तक कुछ शामिल हैं। अन्य जिंसों की कीमतों में (आईएमएफ के मुताबि‍क) 33 फीसदी का उछाल आया है। धातुएं 40 फीसदी, ऊर्जा 30 फीसदी, और कच्चा तेल 40 फीसदी बढ़ा है। अरब देशों में राजनीतिक संकट के कारण महंगा कच्चा तेल अब नियति बन गया है। जापान में सुनामी के कारण इलेक्ट्रानिक पुर्जों की सप्लाई में कमी ने बची हुई कसर पूरी कर दी है। अर्थात आपूर्ति के मोर्चे से महंगाई को भरपूर ऊर्जा मिल रही है। इधर भारत, चीन, ब्राजील में बढ़ती मांग, आपूर्ति में कमी से मिलकर महंगाई की कॉकटेल बना रही है। मौद्रिक मोर्चा भी महंगाई की पीठ थपथपा रहा है। 2008 की मंदी के बाद यूरोप व अमेरिका ने अपनी अर्थव्यवस्था्ओं में सस्ते कर्ज का पाइप खोल दिया था। अमेरिकी फेडरल रिजर्व का 600 अरब डॉलर मुद्रा प्रवाह कार्यक्रम (क्वांटीटिव ईजिंग) इस साल जून में पूरा होगा। यानी कि आपूर्ति के कमी और बाजार में भरपूर पैसा, महंगाई के लिए इससे अच्छा माहौल और कौन सा होगा।
सबके इलाज एक जैसे
सार्वभौमिक मुद्रास्फीति अजीब किस्म की समस्या है। मुद्रास्फीति के इलाजों की एक ही किताब सबसे पास है। महंगाई अगर अलग देशों में अलग अलग मौके पर आए तो आयात निर्यात के जरिये मांग व आपूर्ति संभल जाती है और पूंजी के प्रवाह के जरिये वित्तीय तंत्र समायोजित हो जाता है लेकिन अब सब जगह एक साथ  ब्याज दरें बढ़ने से इलाज बीमारी बन रहा है। भारत में ब्याज दरें दो साल बढ़त पर हैं। महंगाई की चपेट के बाद चीन में बैंकों का रिजर्व रेशियो (सीआरआर) करीब तीन फीसदी बढ़ने से कर्ज महंगे हो गए। यूरोपीय सेंट्रल बैंक ने भी उदार मौद्रिक नीति से तौबा करते हुए ब्याज दर बढ़ा दी। अर्थात दुनिया के तीन बड़े आर्थिक केंद्र मुद्रा प्रवाह रोककर और महंगे कर्ज से महंगाई का इलाज कर रहे हैं। घरेलू मुद्रा को मजबूत करते हुए सस्ते आयात का नुस्खा भी आजमाया जाएगा जो खासतौर पर चीन को महंगा करेगा। चीन में उत्पादन महंगा होना दुनिया के लिए खतरनाक है क्यों चीन की फैक्ट्रियों पर दुनिया के बाजार चलते हैं। एशिया विकास बैंक कहता है कि महंगाई एशिया में कम से कम डेढ़ फीसदी आर्थिक विकास दर चाट जाएगी। भारत को भी अपनी कम से कम दो फीसदी की वृद्धि नजराने में देनी होगी। जबकि यूरोप व अमेरिका के लिए यह आपत्ति पर विपत्ति है। पूरी दुनिया ब्याज दरों कें तेज बढ़ोततरी, महंगी पूंजी, शेयर बाजारों में स्थिरता, डॉलर पर दबाव जैसी चुनौतियों की आहट सुन रही है।
 दुनिया देर से यह जान पाई कि इजिप्ट ट्यूनीशिया और यमन की राजनीतिक बगावतें दरअसल महंगे खाद्य उत्पादों के खिलाफ लोगों के गुस्से से शुरु हुई थीं। मुद्रा कोष के कुछ अर्थशास्त्रियों की पड़ताल ने तो यह भी बता दिया कि कम आय वाले देशों में खाद्य उत्पाद अगर दस फीसदी महंगे होते हैं तो उसके अगले साल वहां राजनीतिक आंदोलन करीब 0.5 फीसदी बढ़ जाते हैं। यकीनन महंगाई के इस मारक प्रभाव से सरकारें कुछ बेफिक्र थीं। चीन की हवा में जास्मिन (इजिप्ट की तर्ज पर आंदोलन की कोशिश) की गंध अभी भी तैर रही है। अरब देशों में आंदोलनों की लपटें बुझी नहीं है। सख्त वित्तीय अनुशासन लागू कर रही यूरोपीय सरकारें जनता के गुस्से से हलाकान हैं। आंदोलनों के इस मौसम महंगाई की धमक बहुत जोखिम भरी है। और जब महंगाई का नया मतलब या बगावत या तख्ता पलट भी हो तो  सरकारों के लिए महंगाई से डरना बहुत जरुरी है।
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