Monday, October 29, 2012

अमेरिका की संकट मशीन


मेरिका भीतर से बेचैन और डरा हुआ है। इसलिए नहीं कि उसकी सियासत  उसे कौन सा रहनुमा देगी बल्कि इसलिए कि अमेरिका की वित्‍तीय संकट मशीन पूरी रफ्तार से काम रही है और राजनीति के पास इसे रोकने की कोई जुगत नहीं है।  दुनिया की महाशक्ति एक अभूतपूर्व वित्‍तीय संकट से कुछ कदम दूर है। अमेरिका में कर्ज और घाटे से जुड़ी मुसीबतों का टाइम बम दिसंबर मे फटने वाला है और अमेरिका के पांव में सबका पांव है सो टाइम बम की टिक टिक वित्‍तीय दुनिया के लिए मुसीबत के ढोल से कम नही है। घाटे को कम करने के राजनीतिक कोशिशों की अं‍तिम समय सीमा दिसंबर में ख्‍त्‍म हो रही है। एक जनवरी 2013 को अमेरिका का आटोमेटिक संवैधानिक सिस्‍टम सरकारी खर्च में कमी भारी कमी व टैक्‍स में जोरदार बढ़ोत्‍तरी का बटन दबा देगा। इस संकट से बचना अमेरिकी सियासत की असली अग्नि परीक्षा है। यह सिथति अमेरिका को सुनिश्‍चत मंदी और विश्‍व को नए तरह की मुसीबत में झोंक देगी।
फिस्‍कल क्लिफ
अमेरिका एक बडे संकट की कगार पर टंगा है। वित्‍तीय दुनिया इस स्थि‍ति को फिस्‍कल क्लिफ के नाम से बुला रही है। अमेरिका की सरकारों ने पिछले वर्षों में जो तरह तरह की कर रियायतें दी थीं उनके कारण घाटा बुरी तरह बढ़ा है। इन रियायतों को वापस लेने का वक्‍त आ गया है। अमेरिकी बजटीय कानून घाटा कम करने लिए सरकार के राजस्‍व में बढोत्‍तरी और खर्च में कमी की सीमायें तय करता है, जैसा कि भारत के राजकोषीय उत्‍तरदायित्‍व कानून में प्रावधान किया गया है। इस कानून के मुताबिक अमेरिकी सरकार को 2013 के लिए प्रस्‍तावित  घाटे को आधा कम करना है। जो सरकार के कुल राजसव में चार से पांच फीसदी की बढ़त और खर्च में एक फीसदी कमी के जरिये हो सकेगा। मतलब यह कि अमेरिका को 665 अरब डॉलर की
बचत या अतिरिक्‍त राजस्‍व का जुगाड करना होगा यह राशि अमेरिका की राष्‍ट्रीय आय के करीब पांच फीसदी हिस्‍से के बराबर है और ग्रीस व आयरलैंड को मिले वित्‍तीय पैकेज या ब्रिटेन के खर्च कटौती कार्यक्रम से भी जयादा है।
टैक्‍स में वृद्धि और खर्च में कमी के असर के आकलन शुरु हो गए हैं। अमेरिकी कांग्रेस का बजट ऑफिस मान रहा है कि यदि राजकोषीय समायोजन का पूरी तरह   लागू हुआ तो राष्‍ट्रीय आय में करीब एक फीसदी की कमी होगी और बेकारी दस फीसदी बढ जाएगी। यानी कि अगले साल अमेरिका में बेकारों की संख्या 20 से 25 लाख तक बढ सकती है। खर्च में कटौती सरकार के कई सामा‍जिक कार्यक्रमों और रक्षा पर खर्च को प्रभावित करेगी। टैक्‍स में बढ़ोत्‍तरी के असर और भी गहरे हैं। राजकोषीय सुधार के लिए अमेरिका में फेडरल टैक्‍स की दर औसत पांच फीसदी बढेगी। जिससे अमेरिका की आर्थिक विकास दर घटकर 0.6 फीसद रह जाएगी जो अगले साल के लिए 2.5 फीसद आंकी जा रही है। अमेरिकी सरकार की उलझन का दूसरा पहलू यह है कि अमेरिकी सरकार के कर्ज की संवैधानिक सीमा भी चुकने वाली है। राजस्‍व में कमी और भारी खर्च के कारण सरकार से भारी कर्ज लिया है। यह कर्ज नवंबर से जनवरी के बीच अपनी अधिकतम सीमा को छू लेगा। यह परिदृश्‍य जनवरी की शुरुआत से अमेरिका में मंदी का नया दौर शुरु होने का संकेत दे रहा है।
सियासत की परीक्षा 
चुनाव में मसरुफ अमेरिकी सियासत इस बडी विपत्ति से आंख मिलाने का साहस नहीं जुटा पाती। पूरे चुनाव प्रचार अभियान में रिपब्लिकन और डेमाक्रेट ने फिस्‍कल क्लिफ के सवाल की अनदेखी की। लेकिन हकीकत यह है अमेरिकी उद्योग टैक्‍स में बढ़ोत्‍तरी व खर्च में कमी तैयारी शुरु कर चुका है। नेशनल मैन्‍युफैक्‍चरिंग एसोसिएशन की एक ताजी रिपोर्ट के मुताबिक राजकोषीय समायोजन से करीब 60 लाख रोजगार कम होंगे और कंपनियों ने इसकी योजना बनानी शुरु कर दी है।
अमेरिका का फिस्‍कल क्लिफ से बचना मुश्किल है। बस इसका असर कम से कम रखने की कोशिश की जा सकती है। विशेषज्ञ मान रहे हैं कि राजकोषीय समायोजन को सी‍मित करते हुए इसे मिनी क्लिफ में बदला जा सकता है यानी धीरे धीरे सख्‍ती। लेकिन इसके लिए अमेरिकी सियासत में बडी सहमति चाहिए यानी अमेरिकी जबान मे ग्रैंड बारगेन। जिसके तहत खर्च को सी‍मित करने की सीमायें तय करनी होंगी और गहरे राजकोषीय सुधार जरुरी होंगे।
बुरी तरह विभा‍जित अमेरिकी राजनीति में आर्थिक नीतियों पर गहरे मतभेद हैं। रिपब्लिकन रोमनी खर्च में कमी चाहते हैं मगर टैक्‍स भी घटाना चाहते हैं जबकि ओबामा सामाजिक कार्यक्रमों के खर्च पर कैंची नही चलाना चाहते है और अमीरों पर टैक्‍स बढ़ाने के हक में हैं। घाटा कम करने की पिछली कोशिश के दौरान अमेरिकी सियासत का मतभेद सामने आ चुके हैं जब कर्ज घटाने की समय सीमा पार हो गई और अमेरिका को वित्‍तीय साख में कमी का मुंह देखना पड़ा। चुनौती यह है कि अमेरिका को इस मुश्किल का हल राजनीति संक्रमण के बीच तलाशना होगा। नए राष्‍ट्रपति के जनवरी में कुर्सी संभालने से पहले ही यह तय हो करना होगा कि इस संकट से बचने की कोई सूरत है भी या नहीं है।
अमेरिका के ताजा इतिहास का सबसे बड़ा राजकोषीय तकाजा दरवाजे पर खडा है, यह तकाजा इस सवाल से भी बड़ा है कि व्‍हाइट हाउस में कौन बैठेगा। दरअसल अमे‍रिकी सियासत की सूझबूझ का इम्‍तहान तो चुनाव के बाद शुरु होगा। अमेरिका के लोग और शेष दुनिया यह जानना चाहती है कि 2013 की पहली सुबह अमेरिका में मंदी और मुसीबत लेकर आएगी या राहत और संतुलन। यदि अमेरिकी सियासत के मतभेद और अमेरिकी कांग्रेस में शक्ति संतुलन देखा जाए तो चिंता बढ़ती है लेकिन विंस्‍टन चर्चिल की बात ढाढ़स बंधाती है कि अमेरिका तमाम गलतियां करने के बाद अंतत: सही कदम उठाता है। .. दुआ कीजिये कि चर्चिल सही सा‍बित हों। 

1 comment:

raghav said...

Very informative. Its so amazing that an economy that drives the world seems so feeble. Surprising is that America is a technology driven economy that is generating newer markets so very often but still struggles to survive the recession.