Monday, January 21, 2013

आपरेशन डीजल


भारत अपने सुधार इतिहास के सबसे दर्दनाक फैसले से मुकाबिल है। डीजल की कीमतों को बाजार के हवाले करना सुधारों का सबसे धारदार नश्‍तर है। तभी तो कड़वी गोली को खाने व खिलाने  की जुगत लगाते सुधारों 22 साल बीत गए। यह नश्‍तर पहले से मौजूद महंगाई, कमजोर रुपये के सानिध्‍य में दोगुने दर्द की शर्तिया गारंटी के साथ  अर्थव्‍यवस्‍था के शरीर में उतरा हैभारत डीजल पर चलने, चमकने, दौड़ने, उपजने व बढ़ने वाला मुल्‍क है। यहां गरीब गुरबा से लेकर अमीर उमरा तक हर व्‍यक्ति की जिंदगी में डीजल शामिल है। इसलिए भारत की डीजली अर्थव्‍यवस्‍था को एक साल तक महंगाई के अनोखे तेवरों के लिए तैयार हो जाना चाहिए। इस सुधार सरकार को शुक्रिया जरुर कहियेगा क्‍यों कि इस कदम के फायदे मिलेंगे लेकिन इससे पहले लोगों का तेल निकल जाएगा।
सरकार के आपरेशन डीजल का मर्म यह नहीं है कि पेट्रोल पंप पर डीजल हर माह पचास पैसे महंगा होगा। महंगाई का दैत्‍य तो डीजल पर दोहरी मूल्‍य प्रणाली से अपने नाखून तेज करेगा जिसके तहत थोक उपभोक्‍ताओं यानी रेलवे, बिजली घरों, मोबाइल कंपनियों को प्रति लीटर करीब दस रुपये ज्‍यादा देने होंगे। इस फैसले के बाद  डीजल को सब्सिडी के नजरिये के बजाय महंगाई के नजरिये
 से देखना होगा
क्‍यों कि भारत ऊर्जा के मामले में अनोखा देश है। यहां बिजली की कमी और ऊर्जा की कीमत तय करने की बेसिर पैर नीतियों ने डीजल को बहुआयामी ईंधन बना दिया है।
डीजल को लेकर सरकारों का असमंजस ऐतिहासिक है। मनमोहन सिंह का 1991 का सुधार भाषण इस ऊहापोह की शुरुआत था, जब पहली बार एलपीजी, पेट्रोल, यूरिया की कीमत बढी थी लेकिन आर्थिक सुधारक डीजल से डर  गए थे। तेज ग्रोथ के साथ यह ईंधन ऊर्जा क्षेत्र की सबसे जटिल ग्रंथि बन गया। हाईस्‍पीड डीजल को खेती का ईंधन मानने के पैमाने अब पुराने हुए हैं। डीजल भारत में लक्‍जरी (कार) और बिजली ईंधन है। आंकडे कुल डीजल खपत में खेती का हिस्‍स 16.8 फीसदी बताते हैं लेकिन यह खपत बडे किसानों तक सीमित है। खेती के बराबर अर्थात करीब 16 फीसदी सस्‍ता डीजल तो कारें पचाती हैं। पिछले दो साल में डीजल कारों की बिक्री दोगुनी हो गई है। इनमें शानदार लक्‍जरी कारें अगुआ हैं। मोबाइल टावर हर साल करीब दो अरब लीटर डीजल पी जाते हैं जो कुल खपत का लगभग चार फीसदी है।
पिछले साल एक बड़ी निजी बिजली कंपनी ने अपनी 360 मेगावाट की बिजली परियोजना की कुछ इकाइयों को डीजल से चलाने की इजाजत मांगी क्‍यों कि पर्याप्‍त गैस नहीं मिल पा रही थी। इसे मंजूरी नहीं मिली लेकिन हकीकत यही है कि भारत के आवासीय परिसर, शॉपिंग मॉल, अस्‍पताल और उद्योग डीजल से बनी बिजली से चलते हैं। बिजली कंपनियों ने भी फर्नेस ऑयल और नेप्‍था की जगह सस्‍ते डीजल को अपनाया है। सरकार कहती है कि बिजली बनाने में कुल खपत का केवल पांच फीसदी डीजल लगता है लेकिन इन आंकडों में झोल है। शहरों के आसपास बिजली के लिए अधिकतर डीजल पेट्रोल स्‍टेशनों से जाता है और परिवहन क्षेत्र की बिक्री में गिना जाता है। थोक में बड़े ग्राहक रेलवे या सेना हैं। डीजल का इस्‍तेमाल करने वाले क्षेत्र या तो उत्‍पादक हैं या सेवा प्रदाता। इसलिए यह फैसला शुरुआत में गहरी और व्‍यापक महंगाई का रास्‍ता खोलेगा। डीजल सभी थोक ग्राहक प्रति लीटर दस रुपये के इजाफे को उपभोक्‍ताओं के सर मढेंगे। जिसमें आवासीय इकाइयों के रखरखाव शुल्‍क से लेकर रेल के किराये तक सब शामिल होंगे।
देश के सबसे प्रमुख ईंधन की कीमत तय करने के नए फैसले का वक्‍त पेचीदा है। यह फैसला अगर दो तीन साल पहले मजबूत रुपये, नियंत्रित महंगाई और सस्‍ते कच्‍चे तेल के साथ होता तो शायद दर्द कम होता। आपरेशन डीजल का आयोजन 11 फीसदी की उपभोक्‍ता महंगाई दर के मौसम में हुआ है। डॉलर के मुकाबले रुपया सबसे निचले स्‍तर पर है। पिछले दो साल के दौरान कच्‍चे तेल की कीमत गिरावट के साथ 100-110 डॉलर आसपास रही लेकिन कमजोर रुपये के कारण फायदनहीं मिला। रिजर्व बैंक को रुपये में और गिरावट का डर है अर्थात अगले एक साल तक डीजल की कीमत कम होना मुश्किल है।
डीजल को बाजार के हवाले करने के पीछे सब्सिडी ही एक वजह नहीं है। आयात पर निर्भरता भी कम की जानी है जो कि मांग घटने से आएगी। पिछले साल सितंबर में डीजल की कीमत बढने के बाद डीजल की खपत वृद्धि दर औसतन 7.2 फीसदी पर आ गई जो इससे पहले 11 फीसदी थी। लेकिन यह समझना जरुरी है कि डीजल भारत में वैकल्पिक बिजली का ईंधन है। देश में बिजली उत्‍पादन क्षमता बढ़ाने की मंजिल पिछली पंचवर्षीय योजना में भी नहीं मिली। महंगा डीजल अचानक बिजली की कमी पैदा करेगा या महंगी बिजली का रास्‍ता खोलेगा। लगभग हर राज्‍य में बिजली की दरें पिछले एक साल में बढी हैं, इस फैसले को जोडने के बाद अगले कुछ माह में भारत सबसे महंगी ऊर्जा वाले देशों में शुमार होने लगेगा।
भारत में ग्रोथ व ऊर्जा और महंगाई व ईंधन के रिश्‍तों का बाजार बिगड़ा हुआ है। हमारे पास ऊर्जा क्षेत्र में गल‍त फैसलों का भरपूरा इतिहास भी है। एनरॉन, बिजली सुधारों की असफलता, से लेकर नई बिजली इकाइयों कोयला आपूर्ति तक ऐसा बहुत कुछ है जो निशाने पर सही नहीं बैठा। इसलिए डीजल की कीमत को बाजार के हवाले करने का असर देखना होगा। केरोसिन की दोहरी कीमत का तजुर्बा खराब रहा है। यह निर्णय अगर राह से भटका यानी कि डीजल की दोहरी कीमत कायदे से लागू नहीं हुई तो पेट्रोल पंप का सस्‍ता डीजल थोक वाले ले उड़ेंगे और फिर सबिसडी व महंगाई दोनों ही मारेंगी। अर्थशास्त्र पढ़ाता है कि कुछ गलत फैसले इतने बडे जटिल हो जाते हैं कि उनहें वापस लेने की लागत बहुत बडी होती है। आपरेशन डीजल पुरानी और बड़ी गलतियों का सुधार है। इसलिए इस सुधार का दर्द भी बड़ा होगा, जिसकी शुरुआत अब हो रही है। 
----

No comments: