Monday, January 28, 2013

सोने का फंदा


चेन्नई एयरपोर्ट पर कस्टम के हाथ लगा वह गुमनाम कूरियर, कीमती ही नहीं था करामाती भी था। पैकेट के खुलते ही दिल्ली को अलर्ट जारी करना पड़ा। कूरियर से सोने की तस्करी प्रमाण मिलने के बाद कस्टम अधिकारी, अब देश भर में पार्सल पैकेट खंगाल रहे हैं। घटना कुछ सप्ताह पहले की है। उस पैकेट में 3.8 करोड़ का सोना मिला जो अपने तरह की सबसे बड़ी ताजी बरामदगी थी। सोना सरकार की ताजा मुसीबत है जो उदार बाजार व ऊंची आय वाले नए भारत में पेचीदा और बहुआयामी होकर लौटी है। वित्तीय असुरक्षा व आर्थिक कुप्रबंध से घिरा देश अपनी बचत को बचाने के लिए सोने पर पिल पड़ा है। सोने का आयात विदेशी मुद्रा के मोर्चे पर समस्‍या बनने लगा तो सरकार ने एक साल के भीतर सोने पर सीमा शुल्क छह गुना कर दिया। इसके बाद से सोने की दुनिया की उलटी घूम गई है। देश के आधुनिक हवाई अड्डे व बंदरगाह अचानक अस्सी का दशक जीने लगे हैं। अब आतंकियों से ज्यादा बडी फिक्र सोने के तस्करों की है। सोने की महंगाई, इसकी दीवानगी के आगे पानी भर रही है। सोने की ललक को संतुलित करने के लिए सरकार के पास फिलहाल कोई नई सूझ भी नहीं है।
सोने की मायावी मांग का मिजाज अस्सी के दशक जैसा ही है लेकिन असर व आयाम ज्यादा  व्यापक हैं। आठवें दशक में लोग निवेश के विकल्प न होने की वजह से सोने पर रीझते थे। तब सोने के आयात पर पाबंदी के कारण तस्करी की दंतकथायें
बनी थीं। आज निवेश के विकल्प कम नहीं है लेकिन महंगाई सारे रिटर्न चाट गई है। रुपये की कमजोरी के कारण आर्थिक असुरक्षा गहरी है नतीजन सोने का नशा सर चढ़ कर बोल रहा है। नया भारत ज्यादा अमीर है, सोने का आयात मुक्त है इसलिए खूब सोना खरीदा जा रहा है। देश अब इतना सोना आयात कर रहा है कि विदेशी मुद्रा सुरक्षा ही खतरे में पड़ गई है।
भारत की सबसे संवेदनशील ताजा समस्या की जड में सोना ही चमक रहा है। निर्यात बढता और   आयात है कि बढे ही जाता है। विदेशी मुद्रा की आवक और निकासी का अंतर दिखाने वाला चालू खाते का घाटा जीडीपी के अनुपात में 4.6 फीसदी पर है जो 1991 के संकट काल से भी ज्यादा ऊंचा है। यह घाटा डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी स्थायी वजह है जिससे पूरा विदेशी मुद्रा प्रबंधन गहरे जोखिम में है। सोने की अभूतपूर्व मांग इस उलझन की बुनियाद है। दुनिया में सोने की आपूर्ति पिछले कई सालों से 4000 टन सालाना पर स्थिर है अलबत्ता भारत 2012 में करीब 1080 टन सोना पचा गया। यह मांग 2006 में 707 टन थी। दिसंबर तक 900 टन सोना आयात हुआ जिसकी कीमत 60 अरब डॉलर (करीब 32000 करोड़ रुपये) से ज्यामदा है। भारत का सोना आयात जीडीपी के अनुपात में 2.7 फीसद है जो विदेश व्याकपार घाटे में 20 फीसद का हिस्सेयदार है। यह स्वरर्ण प्रेम रुपये की जमीन खोखली कर रहा है।
सोना अनोखा है। बढ़ती कीमत इसकी मांग बढ़ाती है। 2008 से 2012 के बीच सोने की कीमत ने 12000 से 30,000 (प्रति दस ग्राम) की रिकार्ड उछाल भरी लेकिन इस दौरान मांग 400 टन बढ गई। सोना महंगाई से बचाव में इस्तेमाल हो रहा है। बैंक जमा और जमीन जायदाद में रिटर्न महंगाई से हार चुका है इसलिए निवेशक सोना जुटा रहे हैं। 2006-07 से 2010-11 के बीच थोक मुद्रास्फीसति की दर औसत सात फीसद रही जबकि सोने की कीमत करीब 24 फीसद बढ़ी। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल की मानें तो 2011-12 की आखिरी तिमाही में 56 टन सोना केवल निवेश के लिए खरीदा गया। भारत में पहले की तुलना में जयादा कमाने वाला नया मध्य वर्ग सोने का कद्रदान है। सरकार के कदम उलटे पड़ रहे हैं। एक साल में सीमा शुल्क एक से छह फीसद पर पहुंचने के बावजूद सोने का आयात 1000 टन का आंकड़ा छू रहा है।
सोने की मांग महंगाई व आर्थिक कुप्रबंध की देन है जिसे संभालने में सरकार बुरी तरह उलझ गई है। सीमा शुल्का में ताजी बढ़ोत्तकरी से सरकार को केवल 300 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व मिलेगा क्योंम कि सोना आयात से मिलने वाला राजस्व कुल सीमा शुलक संग्रह का दो फीसद भी नहीं है। अलबत्ता भारत में नीतिगत असफलतायें अंतत: कानून व्‍यवस्था की समस्या बन जाती है और सोना भी उसी दिशा में बढ़ चला है। आयात शुल्क बढ़ने के बाद विदेशी व देशी कीमतों में अंतर सात फीसदी हो गया है। तस्करी पर 2000 रुपये प्रति दस ग्राम की कमाई हो रही है। जिसका नतीजा सामने है कि पिछले साल अप्रैल से जुलाई के बीच विभिन्नी सीमाओं पर 942 करोड रुपये का अवैध सोना पकड़ा गया। यह बरामदगी 2011 के मुकाबले 272 फीसद ज्यादा है। सोने की तस्करी अब केवल दुबई से नहीं बल्कि अब श्रीलंका, सिंगापुर, थाईलैंड के जरिये भी हो रही है और कूरियर पैकेट इसका नया रास्ता हैं।
कस्टम अधिकारी दयाशंकर ने पिछले साल अगस्त में मेलबर्न में अंतिम सांस ली। आठवें दशक में मुंबई व गुजरात के सोना तस्किरी सिंडीकेट से जूझने की दंतकथायें बनाने वाले दयाशंकर का हथियार गोल्ड कंट्रोल कानून था जो अब नहीं है। इस कानून के हटने के बाद तस्कंरी का खेल खत्म हो गया था। सरकार के पास आज अगर दूसरे दयाशंकर हों भी तो सख्त कानून नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट के एक ताजे आदेश के बाद सीमा शुल्क अपराधों को संज्ञेय बनाने को लेकर भी असमंजस है। लेकिन नीति‍यों में गफलत के कारण तस्करी का दौर लौट आया है। सोने की ललक को निवेश के का नए रास्ते चाहिए। सोना आधारित वित्तीय उपकरण इसका रास्ता हो सकते हैं जिनमें निवेश से सोने की प्रत्यंक्ष खरीद व आयात घटेगा। बजट बतायेगा कि काबिल वित्‍त मंत्री सोने के इस आदिम लोभ और नई आर्थिक मुसीबत का क्या इलाज करते हैं। भारत में  अस्सी के फिल्मी दृश्य जीवंत होने में अब ज्यादा देर नहीं है जब लोग रुपयों भरे बैग देकर सोने से भरे बैग लेते थे।
----------------

No comments: