Saturday, July 1, 2017

जल्दी बड़े हो जाइये

जीएसटी आ गया है, छोटे रहना अब जोखिम भरा है...

जीएसटी का यह सबसे कीमती संदेश है जिसे लाखों छोटे उद्यमियों और व्यापारियों को पूरे ध्यान से सुनना चाहिएनहीं तो बड़ी गफलत हो सकती है. अब बड़े होने में पूरा जतन लगा देना होगा क्योंकि सरकार छोटे रहने और छोटा कारोबार करने के लिए ज्यादा सुविधाओं के हक में हरगिज नहीं है.
आप असहमत हो सकते हैं लेकिन जीएसटी लगा रही सरकार मुतमइन है कि ...
1. लघुअनौपचारिकअसंगठित कारोबारों में टैक्स चोरी होती है. छोटे रहना टैक्स चोरी को सुविधाजनक बनाता है.
2. छोटी इकाइयों से टैक्स कम मिलता है और उसे जुटाने की लागत बहुत ज्यादा है.
3. इन्हें टैक्स के अलावा सस्तेे कर्ज जैसी कई तरह की रियायतें मिलती हैं जिनकी लागत बड़ी है.
इसलिए जीएसटी ने देश के करीब पंद्रह करोड़ छोटे उद्योगों और व्या‍पारियों को एक झटके में बड़े उद्योगों के बराबर खड़ा कर दिया है. जीएसटी चर्चा से पहलेकुछ तथ्यों पर निगाह डाल लेना बेहतर होगा.
एडेलवाइस रिसर्च की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिकदेश में लगभग 17 उद्योगसेवाएं या कारोबार ऐसे हैं जो 30 फीसदी से लेकर 90 फीसदी तक असंगठित क्षेत्र में हैं. खुदरा (रिटेल)यार्न व फैब्रिक और परिधान में 90 से 70 फीसदी उत्पाद या व्यापार असंगठित क्षेत्र में है. डेयरीज्वेलरीप्लाइवुडएयर कूलरडाइज पिगमेंट्ससैनिटरीवेयरफुटवियर और  पैथोलॉजी सेवा का 50 से 70 फीसदी और लाइटिंगपंप्सबैटरीज में करीब 30 फीसदी उत्पादन छोटी इकाइयों में होता है.
आइएजीएसटी में छोटों के मतलब के तथ्य तलाशते हैं:
  - जीएसटी से पहले लागू व्यवस्था के तहत 1.5 करोड़ रु. तक के सालाना कारोबार वाली उत्पादन इकाइयां एक्साइज ड्यूटी से बाहर थीं जबकि 10 लाख रु. के सालाना कारोबार पर सर्विस टैक्स से छूट थी.
  - जीएसटी के तहत केवल 20 लाख रु. तक सालाना कारोबार करने वाली सेवा और उत्पादन इकाइयों को रजिस्ट्रेशन और रिटर्न से छूट मिलेगी.
  - 75 लाख रु. तक कारोबार करने वाले कंपोजिशन स्कीम का हिस्सा बन सकते हैंइसके तहत निर्माताओंव्यापारियों और रेस्तरांवालों को रियायती दर पर टैक्स देना होगा. तिमाही और सालाना रिटर्न भरने होंगे.
  - जीएसटी के तहत अगर कोई रजिस्टर्ड इकाईगैर रजिस्टर्ड इकाई से सामान लेती है तो उसका टैक्स और रिटर्न रजिस्टर्ड इकाई ही भरेगी.
जीएसटी के इन तीन प्रावधानों में छिपे संदेश को समझना जरूरी है.
- 20 लाख रु. की छूट सीमा के जरिए बहुत ही छोटे कारोबारी जीएसटी से बाहर रहेंगे. कस्बों या शहरों के औसत कारोबारियों को जीएसटी अपनाना होगा.
छूट और कंपोजिशन स्कीम का सबसे कीमती पहलू यह है कि इन्हें अपनाने वाले कारोबारियों को इनपुट टैक्स क्रेडिट की सुविधा नहीं मिलेगी यानी कि अपने उत्पादन के कच्चे माल या सेवा पर जो टैक्स उन्होंने चुकाया हैउसकी वापसी नहीं होगी.

 जीएसटी के तहतइनपुट टैक्स क्रेडिट कारोबारी सफलता की बुनियाद बनने वाला है. चुकाए गए टैक्स की वापसी कारोबार के फायदे और प्रतिस्पिर्धा में टिकने का आधार होगी. जो उद्यमी या व्यापारी जीएसटी से बाहर होंगे उनके उत्पाद या सेवाएंजीएसटी अपनाने वालों की तुलना में प्रतिस्पर्धात्मक नहीं रहेंगी. यह उम्‍मीद करना बेकार है कि बड़े टैक्सपेयर छोटी इकाइयों से माल खरीदकर उनका टैक्स (रिवर्स चार्ज) भरेंगे

हकीकत यह है कि जीएसटी के तहत पूरी उत्पाद चेन और वैल्यू एडिशन को संयोजित करने वाले ही फायदे में रहेंगेइसलिए बड़ी कंपनियां सब कुछ चाक-चौबंद कर चुकी हैं.

सरकार को अच्छी तरह से मालूम है कि छोटे कारोबारी तकनीकआदतों और सूचनाओं के नजरिए से जीएसटी के लिए तैयार नहीं हैं लेकिन आपकी दुकान तक पहुंचते-पहुंचते जीएसटी की परिभाषा बदल चुकी होगी. कारोबारी सहजता और मांग बढ़ाने के मकसद से शुरू हुआ यह सुधार टैक्स सतर्कता और चोरी रोकने की सबसे बड़ी कोशिश में बदल रहा है.

कोई फर्क नहीं पड़ता कि जो आप यह निष्कर्ष निकालें कि जीएसटी बड़ी कंपनियों के लिए सुविधाजनक और फायदेमंद है. सरकार चाहती भी यही है कि असंगठित और अनौपचारिक क्षेत्र सिकुड़े और बड़ा बाजार बड़ों के ही पास रहे.  
इसलिएजीएसटी को लेकर बिसू‍रना छोडि़ए.

जल्द बड़े हो जाने में ही समझदारी है! 

3 comments:

Anonymous said...

एक सामान्य नागरिक के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

Vijayrampatrika said...

अभी हल्ले की जरूरत नहीं शायद

MAYUR said...

बड़ी कंपनियां फायदे में ज़रूर रहने वाली हैं, और चूंकि यही कंपनियां उत्पादन के क्षेत्र में भी आगे हैं तो फायदा जनता तक भी पहुचेंगा

कंपोजिशन स्कीम वाले व्यापारी बहुत कम टैक्स चुकाएंगे,
और छोटे व्यापारी प्रतिदिन 5500 से कम व्यापार करने वालों के पास कुछ इनपुट लेने जैसा खास होता नहीं है, जबकि यहां बड़ी टेक्स चोरी होती है, तो इनको वो टेक्स मुनाफे की तरह मिलेगा।

भारत मे छोटी दुकानें कभी नुकसानदायक नहीं हो सकतीं।