Sunday, July 21, 2019

अभिशप्त समृद्धि


भारत दुनिया के सोने-चांदी की भट्टी बन गया हैसारी रोमन संपत्ति खिंच कर वहां जा रही है.’’—प्लिनी द एल्डर (77 ईस्वीयह लिखने से पहले मुजरिस (कोचीन के निकटमें भारतीय समृद्धि का जलवा देखकर लौटा थाअगले दशकों में रोम की इतनी संपत्ति भारत आ गई कि शक सम्राट कनिष्क ने रोमन सिक्कों को ढाल कर अपनी मुद्राएं चला दींअंततरोमन सम्राट सेप्टिमस (193-211 .) ने अपने सिक्कों में सोने की मात्रा कम कर दीयह इतिहास में मुद्रा के आधार मूल्य में कमी (डिबेसमेंटका पहला उदाहरण था.

प्लिनी जैसी ही शिकायत 16वीं सदी में पुर्तगालियों को और 17वीं सदी में अंग्रेजों को हुई थी कि भारत दुनिया भर की समृद्धि खींच लेता है.

अलबत्ता प्लिनी के 2000 साल बादभारत में संपत्ति की आवाजाही का ताजा इतिहास लिखने वाला यह बताने को मजबूर होगा कि 21वीं सदी में भारत की समृद्धि खिंच कर अमेरिकायूरोप और ऑस्ट्रेलिया जाने लगीयह काला धन नहीं था जो अवैध रास्तों से विदेश जाता थायह तो उद्यमियों की जायज संपत्ति या मुनाफा था जो उन्होंने भारत में कारोबार से कमाया था लेकिन वे इसका संग्रह दुनिया के दूसरे देशों में कर रहे थे.

इस बजट में सुपर रिच यानी दो करोड़ से पांच करोड़ रुपए से अधिक ऊपर की आय वालों पर 42.7 फीसद टैक्स के बाद हमारे वामपंथी कलेजों पर भले ही ठंडक पड़ गई होहम यह कह सकते हों कि चीनजापानकनाडाफ्रांसयूके की तरह हम भी अपने अमीरों पर भरपूर टैक्स लगा रहे हैंदरअसलहमने अपने पैर पर ‘बजट’ मार लिया है.

हमारी टैक्स नीति का दकियानूसीपन अमीरों पर ज्यादा टैक्स वाले देशों से काफी फर्क रखता हैइस टैक्स से सरकार को एक साल में बमुश्किल 8,000 करोड़ रुपए मिलेंगे लेकिन कहीं ज्यादा संपत्ति इसके कारण उन देशों में चली जाएगी जहां टैक्स की दर कम है यानी औसतन 20 फीसदइस अहम फैसले से संपत्ति को वैध ढंग से भी भारत से बाहर ले जाने की होड़ बढ़ेगीअवैध रास्ते तो पहले से ही खुले थे.

एफ्रेशिया बैंक के ग्लोबल माइग्रेशन रिव्यू  2018 के मुताबिकबीते बरस दुनिया में करीब 1.08 लाख अमीरों ने अपने पते बदले यानी कि वह जिन देशों में थेउन्हें छोड़ गए. 2017 की तुलना में यह संख्या 14 फीसदी ज्यादा हैकरीब 12,000 अमीरों ने ऑस्ट्रेलिया और 10,000 ने अमेरिका को ठिकाना बनाया. 4,000 के करीब कनाडा मेंदो हजार स्विट‍्जरलैंड और अमीरात (प्रत्येकऔर एक हजारन्यूजीलैंडग्रीसइज्राएलपुर्तगाल और स्पेन (प्रत्येकमें बस गए. 

समृद्धि गंवाने वाले मुल्कों में भारत तीसरे नंबर पर हैकरीब 5,000 धनाड्य बीते बरस भारत छोड़ गए. 15,000 चीनियों और 12,000 रूसियों ने अपने वतन को अलविदा कहा. 2018 में तुर्कीफ्रांसयूके और ब्राजील से 2,000 से 4,000 सुपर रिच बोरिया-बिस्तर बांधकर उड़ गए.

इससे पहले 2017 में करीब 7,000 भारतीय सुपर रिच विदेश में बस गए थेमोर्गन स्टेनले ने बीते बरस अपने एक अध्ययन में बताया था कि 2014 के बाद करीब 23,000 समृद्ध लोग या परिवार भारत छोड़कर विदेश में जा बसे.

यानी कि ताजा बजट में नए टैक्स का कहर टूटने से पहले ही औसतन 7,000-8,000 सुपर रिच हर साल भारत छोड़ रहे थे.

यह नीरव मोदीविजय माल्या या मेहुल चोकसी जैसा आपराधिक पलायन नहीं है बल्कि वैध समृद्धि का सुविचारित प्रवास हैअमीरी के प्रति पूर्वाग्रह छोड़कर इसे समझना जरूरी है.

  भारत छोड़कर जाने वाले सुपर रिच अपना कारोबार बंद नहीं कर रहे हैंवे यहीं से संपत्ति कमाएंगेअपने कारोबार पर टैक्स भी देंगे लेकिन निजी संपत्ति को किसी ऐसे देश में एकत्र करेंगे जहां टैक्स कम है या संपत्ति के निवेश के वैध रास्ते उपलब्ध हैं.

कोई बहुराष्ट्रीय कंपनी भी ऐसा ही करती हैजैसे कि अमेजन का भारतीय कारोबार करीब 16 अरब डॉलर का है लेकिन इसके मालिक और दुनिया के सबसे अमीर उद्यमीजेफ बेजोस की संपत्ति से भारत को कुछ नहीं मिलता.

  भारत के सुपर रिच आमतौर पर अपने कारोबार से खूब कमाते हैं क्योंकि रिटर्न काफी अच्छे हैंअजीम प्रेम जी जैसे कुछ एक को छोड़कर कोई बहुत बड़ा जन कल्याण नहीं करतेउन्हें लोककल्याण में लगाने के लिए सरकार को कानूनी और प्रोत्साहनपरक उपाय करने होते हैं.

 टैक्स की मार के कारण इनका देश छोड़ना नीतिगत विफलता हैसरकार इनकी संपत्ति को संजोनेनिवेश करने या उपभोग के अवसर ही नहीं बना पाती ताकि भारत से कमाया पैसा भारत में ही रहे. 

भारत की संस्कृति समृद्धि को अभिशाप नहीं मानती बल्कि इसकी आराधना करती हैचाणक्य बताकर गए हैं कि संपत्ति के बिना संपत्ति प्राप्त करना असंभव हैचाहे जितना प्रयास कर लिया जाएजैसे हाथी को खींचने के लिए हाथी की जरूरत होती है ठीक उसी तरह संपत्ति अर्जित करने के लिए संपत्ति चाहिए.

क्या हम समृद्धि गंवाकर समृद्ध होना चाहते हैं?  


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