Friday, August 2, 2019

क्या होगा, कौन से पल में!


आर्थिक नीतियों की अनिश्चितता सबसे बड़ी मुसीबत हैयह पूंजी और कारोबार की लागत बढ़ाती हैखराब व उलझन भरे कानूनरोज-रोज के बदलावमनचाही रियायतेंनियमों की असंगत व्याख्याएं और कानूनी विवाद...इसके बाद नया निवेश तो क्या आएगामौजूदा निवेश ही फंस जाता है.


गर आपको लगता है कि यह सरकार से नाराज किसी उद्यमी का दर्द है या किसी दिलजले अर्थशास्त्री की नसीहत है तो संभलिए...ऊपर लिखे शब्द ताजा आर्थिक समीक्षा (2018-19) में छपे हैं जो भारत को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का ख्वाब दिखाती हैसमीक्षा भी उसी टकसाल का उत्पाद है जहां से इस साल का बजट निकला है.

आर्थिक समीक्षा फैसलों में अनिश्चितता के बुरे असर को तफसील से समझाती है तो फिर बजट ऐसा क्यों है जिसके बाद हर तरफ मंदी के झटके कुछ ज्यादा ही बढ़ गए हैं?
क्या यह कहा जाए कि सरकार के एक हाथ को दूसरे की खबर नहीं हैया इस पर संतोष किया जाए कि सरकार का एक हाथ कम से कम यह तो जानता है कि अजब-गजब फैसले और नीतियों की उठापटक से किस तरह की मुसीबतें आती हैं.

चंद उदाहरण पेश हैं:

ऑटोमोबाइल उद्योग जब अपने ताजा इतिहास की सबसे भयानक मंदी से उबरने के लिए मदद मांग रहा है तब सरकार ने पुर्जों के आयात पर भारी कस्टम ड‍्यूटी लगा दीपेट्रोल-डीजल पर सेस बढ़ गयापुरानी गाडि़यां बंद करने के नए नियम और प्रदूषण को लेकर नए मानक लागू हो गएगाडि़यों के रजिस्ट्रेशन की फीस बढ़ाने का प्रस्ताव है और उन इलेक्ट्रिक वाहनों को टैक्स में रियायत दी गई जो अभी बनना भी नहीं शुरू हुए यानी पुर्जे-बैटरी चीन से आयात होंगे.

नीतियों में उठापटक उद्योग पर कुछ इस तरह भारी पड़ी कि गाड़ियां गोदामों में जमा हैंडीलरशिप बंद हो रही हैंऑटोमोबाइल संगठित उद्योग क्षेत्र का करीब 40 फीसद हैजिससे वित्तीय सेवाएं (लोन), सहयोगी उद्योग (ऑटो कंपोनेंटऔर सर्विस जैसे रोजगार गहन उद्योग जुड़े हैंइस उद्योग में भारी बेकारी की शुरुआत हो चुकी है.

अब मकानों की तरफ चलते हैं

इस उद्योग को मंदी नोटबंदी से पहले ही घेर चुकी थीमांग में कमी और कर्ज के बोझ से फंसा यह उद्योगजैसे ही नोटबंदी के भूकंप से उबरा कि इसे रेरा (नए रियल एस्टेट कानूनसे निबटना पड़ारेरा एक बड़ा सुधार था लेकिन इससे कई कंपनियां बंद हुईंबैंकों का कर्ज और ग्राहकों की उम्मीदें डूबीं.

इस बीच भवन निर्माण के कच्चे माल और मकानों की बिक्री पर भारी जीएसटी लग गयाजिसे ठीक होने में दो साल लगेजीएसटी के सुधरते ही कर्ज की पाइपलाइन सूखने (एनबीएफसी संकटलगी और अब सरकार ने वह सुविधा भी वापस ले ली जिसके तहत बिल्डरमकान की डिलीवरी तक ग्राहकों के बदले कर्ज पर ब्याज चुकाते थेआम्रपाली पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश (सरकारी कंपनी अधूरे मकान बनाएगीपूरे उद्योग में नई उठापटक की शुरुआत करेगा.

निर्माणखेती के बाद रोजगार का सबसे बड़ा स्रोत हैउद्योग में चरम मंदी है. 30 शहरों में करीब 13 लाख मकान बने खड़े हैं और लाखों अधूरे हैंनीतियों की अनिश्चितता ने इस उद्योग को भी तोड़ दिया है.

नमूने और भी हैंएक साल पहले तक सरकार सोने की खरीद को हतोत्साहित (गोल्ड मॉनेटाइजेशन-नकदीकरणकर रही थी और इसमें काले धन के इस्तेमाल को रोक रही थीअब अचानक बजट में सोने पर आयात शुल्क बढ़ा दिया गयाजिससे अवैध कारोबार और तस्करी बढ़ेगीआभूषण निर्यात (रोजगार देने वाला एक प्रमुख उद्योगप्रतिस्पर्धा से बाहर हो रहा है.

आम लोगों की बचत जब 20 साल और बैंक जमा दर दस साल के न्यूनतम स्तर पर हैतब बचत स्कीमों पर ब्याज दर घटा दी गईबैंक डिपॅाजिट पर भी ब्याज दर घट गईकेवल एक शेयर बाजार था जो निवेशकों को रिटर्न दे रहा थाउस पर भी नियम व टैक्स थोप (बाइबैक पर टैक्सनए पब्लिक शेयर होल्डिंग नियमदिए गएबजट के बाद से बाजार लगातार गिर रहा है और निवेशकों को 149 अरब डॉलर का नुक्सान हो चुका है.

आकस्मिक व लक्ष्य विहीन नोटबंदी, 300 से अधिक बदलावों वाले (असफलबकौल सीएजीजीएसटी और तीन साल के भीतर एक दर्जन से ज्यादा संशोधनों से गुजरने वाले दिवालियापन (आइबीसीकानून 2016 को नहीं भूलना चाहिए और न ही टैक्सों के ताजे बोझ को जिसने मंदी से कराहती अर्थव्यवसथा को सकते में डाल दिया है.

अनिश्चितता का अपशकुनी गिद्ध (ब्लैक स्वानभारत की अर्थव्यवस्था के सिर पर बैठ गया हैसरकार की आर्थिक समीक्षा ठीक कहती है कि ‘‘अप्रत्याशित फैसलों और नीतिगत उठापटक का वक्त गयाअगर निवेश चाहिए तो नीति बनाते समय उसकी निरंतरता की गारंटी देनी होगी.’’


3 comments:

Sarabjeetandherworld.com said...

So well written and rightly said sir ...now its time to implement things in right way...was waiting for your write up...thanks

DC Star said...

👍

प्रणीत रावत said...

मान्यवर नमस्कार, आपने लिखा है आम लोगों की बचत 20 साल और बैंक जमा दर दस साल के न्यूनतम स्तर पर है। यानी बचत के लिये लोगों के पास पैसा बच नहीं रहा है, यानी खर्च हो रहा है। दूसरी ओर आप ये भी कह रहे हैं कि मकान, गाड़ियाँ बिक नहीं रही हैं।.... तो फिर सवाल ये उठता है कि जब मकान, गाड़ियाँ नहीं बिक रही हैं और लोगों का पैसा खर्च भी हो रहा है तो वो खर्च हो कहां रहा है?

आपका इस बारे में क्या कहना है?