Friday, September 4, 2020

पैरों तले ज़मीन है या आसमान है

 


अगर आप जीडीपी में -23.9 फीसद की गिरावट यानी अर्थव्यवस्था में 24 मील गहरे गर्त को समझ नहीं पा रहे हैं तो खुशकिस्मत हैं कि आपकी नौकरी या कारोबार कायम है. अगर आपके वेतन या टर्नओवर में 25-30 फीसद की कमी हुई है तो वह जीडीपी की टूट के तकरीबन बराबर है. लेकिन इससे ज्यादा संतुष्ट होना घातक है. इसके बजाए पाई-पाई सहेजने की जरूरत है.

दुनिया में कौन कितना गिरा, इसे छोड़ हम अपने फटे का हिसाब लगाते हैं. यह रहीं 2020-21 की पहली तिमाही के आंकड़े से निकलने वाली तीन सबसे बड़ी (अघोषि) सुर्खियां! इनमें अगले 12 से 24 महीनों का भविष्य निहित है.

अगर इस साल (2020-21) भारत की विकास दर 1.8 फीसद भी रहती तो भी देश का करीब 4 फीसद वास्तविक जीडीपी (महंगाई हटाकर) पूरी तरह खत्म (क्रिसिल मई 2020 रिपोर्ट) हो जाता. पहली तिमाही की तबाही के मद्देनजर यह साल शून्य से नीचे यानी -8 से -11 फीसद जीडीपी दर के साथ खत्म होगा. इस आंकडे़ के मुताबिक, करीब 15 लाख करोड़ रुपए का वास्तविक जीडीपी (6 से 8 फीसद) यानी उत्पादक गतिविधियां हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगी. 200 लाख करोड़ के जीडीपी की तुलना में यह नुक्सान बहुत बहुत गहरा है.

स्कूल, परिवहन, पर्यटन, मनोरंजन, होटल, रेस्तरां, निर्माण आदि  उद्योग और सेवाओं में बहुत से धंधे हमेशा लिए बंद हो रहे हैं. यही है बेकारी की वजह और इसके साथ खत्म हो रही है खपत. आपकी पगार या कारोबार जीडीपी के इस अभागे हिस्से से तो नहीं बधा है, जिसके जल्दी लौटने की उम्मीद नहीं है?

भारतीय अर्थव्यवस्था खपत का खेल है. जनसंख्या से उठने वाली मांग ही 60 फीसद जीडीपी बनाती है. तिमाही के आंकड़ों की रोशनी में इस साल भारत की 26 फीसद खपत या मांग पूरी तरह स्वाहा (एसबीआइ रिसर्च) हो जाएगी. बीते नौ साल में 12 फीसद सालाना की दर से बढ़ रही खपत 2020-21 में 14 फीसद की गिरावट दर्ज करेगी. यानी कि जो लोग बीते साल 100 रुपए खर्च कर रहे थे वे इस साल 80 रुपए ही खर्च कर पाएंगे.

जीडीपी के विनाश का करीब 73.8 फीसद हिस्सा दस राज्यों के खाते में जाएगा, जिनमें महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश बुरे हाल में होंगे. औसत प्रति व्यक्ति आय इस साल 27,000 रुपए कम होगी लेकिन बड़े राज्यों में प्रति व्यक्तिआय का नुक्सान 40,000 रुपए तक होगा.

केंद्र सरकार ने साल भर के घाटे का लक्ष्य अगस्त में ही हासिल कर लिया. सिकुड़ते जीडीपी के जरिए टैक्स तो आने से रहा, अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए सरकारें अब सिर्फ कर्ज ले सकती हैं या नोट छपवा सकती हैं. सरकारों का बढ़ता कर्ज महंगाई बढ़ाएगा, रुपया कमजोर होगा और घबराएंगे शेयर बाजार.

इन सुर्खियों का असर हमें तीन लोग समझा सकते हैंएक हैं रघुबर जो पलामू, झारखंड से बिजली की फिटिंग का काम करने दिल्ली आए थे. दूसरे, जिंदल साहब जिनकी रेडीमेड गारमेंट की छोटी फैक्ट्री है. तीसरे हैं रोहन जो वित्तीय कंपनी में काम करते हैं.

रघुबर जीडीपी के दिवंगत हो रहे हिस्से से जुड़े थे. अब उन्हें 300 रुपए की दिहाड़ी भी मुश्किल से मिलनी है (सरकारी रोजगार योजना की दिहाड़ी 150-180 रुपए). रघुबर भूखे नहीं मरेंगे लेकिन नई मांग के जरिए जीडीपी बढ़ाने में कोई योगदान भी नहीं कर पाएंगे.

सरकार ज्यादा कर्ज उठाएगी. नए टैक्स लगाएगी यानी अगर रोहन की नौकरी बची भी रही तो उनकी कटी हुई पगार जल्दी नहीं लौटेगी. टैक्स और महंगी जिंदगी के साथ रोहन नया क्या खरीदेंगे, उनका खर्च बीते साल के करीब एक-चौथाई कम हो जाएगा.

जिंदल साहब फैक्ट्री के कपड़े रोहन से लेकर रघुबर तक सैकड़ों लोग खरीदते थे, जिनकी मांग तो गई. फिर जिंदल साहब नए लोगों को काम पर लगाकर अपना उत्पादन क्यों बढ़ाने लगे

सरकार के केवल वही कदम कारगर होंगे जिनसे प्रत्यक्ष रूप से लोगों के हाथ में पैसा पहुंचे. खासतौर पर मध्य वर्ग के हाथ में जो अर्थव्यवस्था में मांग की रीढ़ है. इस एक साल में जितने उत्पादन, कमाई और खपत का विनाश हो रहा है उसके आधे हिस्से की भरपाई में भी सात-आठ तिमाही लगेंगी, बशर्ते लोगों की कमाई तेजी से बढे़ और तेल कीमतों में तेजी या सीमा पर कोई टकराव न टूट पड़े.

अगले महीनों में अगर यह सुनना पड़े कि अर्थव्यवस्था सुधर रही है तो प्रचार को एक चुटकी नमक के साथ ग्रहण करते हुए बीते साल के मुकाबले अपनी कमाई, खर्च या बचत का हिसाब देखिएगा.

लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था कोसिर के बल जमीन में धंसा दिया है और पैर आसमान की तरफ हैं. आने वाली प्रत्येक तिमाही में हमें सिर्फ यह बताएगी कि हम गड्ढा कितना भर पाए हैं. 5-6 फीसद की वास्तविक विकास दर लौटने के लिए 2022-23 तक इंतजार करना होगा.  

देखे हैं हमने दौर कई अब ख़बर नहीं

पैरों तले ज़मीन है या आसमान है

दुष्यंत


3 comments:

mayank said...

Sir,
Namskar aap jaise 2 ya 4 anshuman nahi ho sakte Jo, sarkar ko subh se sham isi bat ko samjhaya,
Ya sarkar samajh Kar bhi anjan bane rahna chahti hai.
Aapke mutabik Jo efforts GDP ke contraction ko rok sakte hai, vo agar sarkar nahi karti, jaisa ki lag hi Raha hai, to phir is financial year aur iske agle finance year ka Kya Hal ho sakta hai, sath mein ye bhi batayen ki Kya India mein civil war jisi condition a sakti hai, jaldi hi.

आर्यन पटेल said...

प्रणाम सर, आपका बहुत शुक्रिया, आपका ज्ञान हमारे अज्ञानता के गड्ढे को भरने का काम करता हैं। मैं भी अर्थशास्त्र का छात्र हूं, और आओ जैसे ज्ञान का आकांक्षी हो। कोशिश करता हूं कि आपके हर ब्लॉग को पढूं और हर ब्लॉग जो लल्लनटाप के साथ आता हैं उसे देखूं।

Deepak Chahal said...

बहुत बहुत आभार अंशुमन जी। कृपा करके मेरे प्रश्न का जवाब अगले अर्थात के संस्करण में जरूर दीजिएगा
प्रश्न:-कृषि क्षेत्र का योगदान GDP में 19% है और कृषि क्षेत्र 40% लोगों को काम देता है जबकि Budget में कृषि का योगदान 2.5% है। तो मेरा मानना है कि सरकार अगर कृषि क्षेत्र में दुसरी industry की तरह अगर अच्छा निवेश करे तो कृषि क्षेत्र और भी बेहतर काम कर सकता है।और देश को agriculture hub बनाने पर आपके क्या विचार हैं।हम हमेशा ही विदेशों की तरफ देखते हैं China की तरह manufacturing hub बनाने की बात करते हैं
लेकिन न हमारे पास बेहतर तकनिक है और न ही sources इसलिए मेरा मानना है कि हमारा जो क्षेत्र बेहतर है उसी पर बेहतर ढंग से काम किया जाए।