Friday, March 26, 2021

कानूनों की अराजकता !

 


भारत में कानून का राज है या नियमों की अराजकता? 

क्या सरकारी नीतियां और नियम अदूरदर्शि‍ता के कारण नौकरशाहों के मनमानेपन का अभयारण्य बन चुके हैं.

क्या कारोबारी अनि‍श्चितता और संकट के बीच कानून हमारी मदद की बजाए उत्पीड़न का जरिया बन जाते हैं?

अगर अभी तक आप इन सवलों को पूछने से डरते थे तो अब जरूर पूछि‍ए क्योंकि सरकार खुद इससे सहमत हो रही है, हालांकि कर कुछ नहीं रही है.

आर्थि‍क समीक्षा (2020-21) ने पूरा अध्याय छापकर यह बताया है कि भारत में कानूनों का पालन समस्या नहीं है मुसीबत तो कानूनों की अति यानी ओवर रेगुलेशन है. सनद रहे कि यह समीक्षा कोरोना काल के बाद आई है, जिसमें सरकार ने प्लेग काल (1897) के महामारी कानून तहत कई आपातकालीन अधि‍कार समेट लिए.

यदि आप ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (कारोबारी सहजता) की रैंकिंग में भारत की तरक्की पर लहालोट हो जाते हों, तो अब आपकी भावनाएं आहत हो सकती हैं. कारोबारी सहजता के समानांतर एक और सूचकांक है जिसे वर्ल्ड रूल ऑफ लॉ इंडेक्स (वर्ल्ड जस्टि‍स प्रोजेक्ट) कहते हैं जो सरकारी नियम-कानूनों के प्रभावी पालन की पैमाइश करता है; इसके तहत बगैर दबाव के नियमों के पालन, प्रशासनिक देरी और लंबी प्रक्रियाओं के आधार पर वि‍भि‍न्न देशों की रैंकिंग की जाती है.

नियमों के पालन में 128 देशों के बीच भारत, खासी ऊंची रैंकिंग (45—रिपोर्ट 2020) रखता है यानी कि दुष्प्रचार के विपरीत भारत में नियमों का अनुपालन बेहतर है. अलबत्ता कानूनों को लागू करने में नौकरशाही की बेजा दखल के मामले में भारत की रैंकिंग बेहद घटि‍या है. इसलिए कानून या नियमों के असर यानी उनसे होने वाले फायदे सीमित हैं.

वर्ल्ड रूल ऑफ लॉ इंडेक्स की रोशनी में ही यह स्पष्ट होता है कि कारोबारी सहजता के सूचकांक के तहत नया कारोबार शुरू करने और जमीन के पंजीकरण जैसे पैमानों पर भारत की साख की इतनी दुर्दशा (रैंकिंग 136 और 154—2020) क्यों है.

भारत को निवेशक क्यों बिसूरते हैं और दावों के उलटे जमीन पर हालात कैसे हैं, इसे मापने के लिए आर्थि‍क समीक्षा ने क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया के एक अध्ययन का हवाला दिया है. अध्ययन बताता है कि भारत में सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद भी एक कंपनी को बंद करने 1,570 दिन लगते हैं. आप कारोबार बंद के करने के पांच साल बाद ही मुतमइन हो सकते हैं कि अब कोई सरकारी नोटिस नहीं आएगा.

आर्थि‍क समीक्षा इतिहास बने इससे पहले हमें समझना होगा कि नियम और कानूनों का होना, उसे मानने की प्रक्रियाएं निर्धारित करना एक बात है और उन कानूनों का प्रभावी होना बि‍ल्कुल दूसरी बात.

भारत में कानून इस तरह गढ़े जाते हैं कि जैसे बनाने वालों ने भविष्य देख रखा है. नीति बनाने वाले कभी यह मानते नहीं कि भविष्य अनि‍श्चित है. जीएसटी ताजा उदाहरण है जो छह माह में औंधे मुंह जा गिरा. दीवालियापन कानून में एक साल के भीतर अध्यादेश लाकर बदलाव करना पड़ा.

कानून या नियम कभी संपूर्ण या स्थायी नहीं होते. वक्त अपनी तरह से बदलता है और अनिश्चितता के बीच जब नियम छोटे या अधूरे पड़ते हैं तो अफसरों की पौ बारह हो जाती है. उनके विवेकाधि‍कार ही नियम बन जाते हैं. वे कानून का पालन करते हुए इसे तोड़ने के तरीके बताते हैं. मसलन, भारत में ऐप बेस्ड टैक्सी (ओला-उबर) लंबे समय तक गैर वाणि‍ज्यि‍क लाइसेंस पर चलती रहीं. या बुखार की सस्ती और जेनरि‍क दवा, एक दवा जोड़कर महंगी कर दी जाती है.

वित्त मंत्रालय में बनी आर्थि‍क समीक्षा कहती है कि भारत के नीति निर्माता (सांसद, विधायक और अफसर) निरीक्षण या पर्यवेक्षण (सुपरविजन) और नियमन (रेगुलेशन) का फर्क नहीं समझ पाते.

नियम ठोस हैं, उन्हें समझा जा सकता है जबकि सुपरिवजन अदृश्य है. लचर और अदूरदर्शी कानूनों की मदद से नौकरशाही सुपरविजन को नए अलि‍खि‍त नियमों बदल देती है और भ्रष्टाचार व मनमानापन लहलहाने लगता है.

जीएसटी से लेकर खेती के ताजा कानूनों तक हमें बार-बार यह पता चला है कि सरकारें, उनसे संवाद ही नहीं करतीं जिनके लिए कानून बनाए जाते हैं. नीतियां बनाने में संवाद, शोध बहस नदारद है. दंभ व तदर्थवाद से निकल रहे नियम व कानून, वक्त के तेज बदलाव के सामने ढह जाते हैं और अफसरों को मनमानी ताकत सौंप देते हैं. हम नियम-कानून मानते हैं लेकिन वे प्रभावी नहीं हैं. उनसे हमारी जिंदगी बेहतर नहीं होती.

आर्थि‍क समीक्षा ने भारत में बढ़ती कारोबारी सहजता के प्रचार का नगाड़ा फोड़ दिया है. इसलिए सरकार बहादुर अगर ऐसा कोई दावा करें तो उन्हें इस समीक्षा की याद जरूर दिलाइएगा. और हां, खुद को कोसना बंद कीजिए, हम कानून पालन करने वाला समाज हैं, खोट तो कानूनों में है, उन्हें बनाने और लागू करने वालों में है, हम सब में नहीं. हम तो कानूनों की अराजकता के शि‍कार हैं!

3 comments:

Ambrish Pandey said...

Lallan top par aapke aane se pahle yaha padh leta hu kafi sugam ho jata hai samajhna... Aapko janmdin ki dher sari shubhkamnaye.. ishwar se yahi prarthna hai aap ki study aur manan chalta rahe taki hum sudhi pathako ke vicharo me ek achha aayam judta rahe... Dhanyawad.

Ajinkya said...

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Mayukh Srivastava said...

He is MA in Hindi