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Friday, June 10, 2022

असली ताकत तो इधर है




अमेरिकी राष्‍ट्रपतियों के इतिहास में, जो बाइडेन को क्‍या जगह मिलेगी, यह वक्‍त पर छोड़‍िये फिलहाल तो ब्‍लादीम‍िर पुतिन  की युद्ध लोलुपता से अमेरिका को वह एक ध्रुवीय दुनिया गढ़ने का मौका मिल गया है जिसकी कोश‍िश में बीते 75 बरस में. अमेरिका के 13 राष्‍ट्रपति इतिहास बन गए.

आप यह मान सकते हैं क‍ि युद्ध के मैदान में रुस का खेल अभी खत्‍म नहीं हुआ है लेक‍िन युद्ध के करण बढी महंगाई के बाद ग्‍लोबल मुद्रा बाजार में अमेरिकी डॉलर अब अद्व‍ितीय है. मुद्रा बाजार में अन्‍य करेंसी के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की ताकत बताने वाला डॉलर इंडेक्‍स 20 साल के सर्वोच्‍च स्‍तर पर है.

अमेरिका ने फ‍िएट करेंसी (व्‍यापार की आधारभूत मुद्रा) की ताकत के दम पर रुस के विदेशी मुद्रा भंडार को (630 अरब अमेर‍िकी डॉलर) को बेकार कर दिया है. पुतिन का मुल्‍क ग्‍लोबल व‍ित्‍तीय तंत्र से बाहर है. इसके बाद तो चीन भी लड़खड़ा गया है.

विश्‍व बाजार में अमेरिकी डॉलर की यह ताकत निर्मम है और चिंताजनक है.

एसे आई ताकत

अमेर‍िकी डॉलर का प्रभुत्‍व जिस इतिहास की देन है अब फिर वह नई करवट ले रहा है.

दूसरे विश्‍व युद्ध में पर्ल हार्बर पर जापानी हमले ने दुनिया की मौद्रिक व्‍यवस्‍था की बाजी पलट दी थी. इससे पहले तक अमेरिका दूसरी बड़ी जंग में  सीधी दखल से दूर था. जापान की बमबारी के बाद, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्‍टन चर्चिल जंगी जहाज लेकर अमेरिका पहुंच गए और तीन हफ्ते के भीतर अमेरिका को युद्ध में दाख‍िल हो गया. यह न होता तो हिटलर शायद ब्रिटेन को भी निगल चुका होता.

जुलाई 1944 में ब्रेटन वुड्स समझौता हुआ. गोल्‍ड स्‍टैंडर्ड के साथ (अमेरिकी डॉलर और सोने की विन‍िमय दर) आया. दुनिया के देशों ने अमेरिकी डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडान बनाना शुरु कर दिया. 1945 में हिटलर की मौत और दूसरे विश्‍व युद्ध की समाप्‍त‍ि से पहले ही अमेरिकी डॉलर का डंका बजने लगा था.

अमेरिकी में आर्थि‍क चुनौतियों और फ्रांस के राष्‍ट्रपत‍ि चार्ल्‍स ड‍ि गॉल के कूटनीतिक वार के बाद अमेरिकी राष्‍ट्रपत‍ि रिचर्ड निक्‍सन ने 1971 में गोल्‍ड स्‍टैंडर्ड तो खत्‍म कर दिया लेक‍िन तब तक अमेरिकी डॉलर दुनिया की जरुरत बन चुका था. 

डॉलर कितना ताकतवर

अमेरिकी डॉलर की ताकत है कितनी? बकौल फेड रिजर्व ग्‍लोबल जीडीपी में अमेरिका का हिस्‍सा 20 फीसदी है मगर मुद्रा की ताकत देख‍िये क‍ि दुनिया में विदेशी मुद्रा भंडारों में अमेरिकी डॉलर का हिस्‍सा (2021) करीब 60 फीसदी था.

डॉलर, अमेरिका की दोहरी ताकत है. व्‍यापार व निवेश के जरिये विदेशी मुद्रा भंडारों में पहुंचे अमेरिकी डॉलरों का का निवेश अमेरिकी बांड में होता है. अमेरिकी फेडरल रिजर्व की तरफ से जारी कुल बांड में विदेशी निवेशकों का हिस्‍सा 33 फीसदी है. यूरो, ब्रिटिश पौंड और जापानी येन के बांड में निवेश से कहीं ज्‍यादा.  मौद्रिक साख और ताकत का यह मजबूत चक्र टूटना  मुश्‍क‍िल है.

 नकदी के तौर पर भी डॉलर खूब इस्‍तेमाल होता है 2021 की पहली ति‍माही में करीब 950 अरब अमेरिकी डॉलर के बैंकनोट दुनिया विदेश में थे यह बाजार में उपलब्‍ध कुल नकद अमेरिकी डॉलर का लगभग आधा है.

विश्‍व के लगभग 80% निर्यात इनवॉयस, 60% विदेशी मुद्रा बांड और ग्‍लोबल बैंकिंग की करीब 60% देनदारियां भी अमेरिकी डॉलर में हैं.

विकल्‍प क्‍या 

दुनिया के देश एक दूसरे अपनी मुद्राओं में विनिमय क्‍यों नहीं करते ? क्‍यों क‍ि दुनिया की कोई अमेरिकी डॉलर नहीं हो सकती.

पहली शर्त है मुद्रा की साख-  करेंसी के की पीछे मजबूत राजकोषीय व्‍यवस्‍था ही करेंसी स्‍टोर वैल्‍यू बनाती है . एक दशक पहले तक यूरो को अमेरिकी डॉलर का प्रतिद्वंद्वी माना गया था लेकि‍न यूरो के पीछे कई छोटे देशों की अर्थव्‍यवस्‍थायें हैं. किसी भी एक देश में उथल पुथल से यूरो लड़खड़ा जाता है.

विदेशी मुद्रा भंडारों में यूरो का हिस्‍सा केवल 21 फीसदी है.  ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन, युआन का हिस्‍सा और भी कम है. 

मुद्रा का मुक्‍त रुप से ट्रेडेबल या व्‍यापार योग्‍य दूसरी शर्त है इसी से  करेंसी की करेंसी यानी गति तय होती है. चीन का युआन दावेदार नहीं बन पाता.  दुनिया का सबसे बडा निर्यातक अपनी करेंसी को कमजोर रखता है, मुद्रा संचालन साफ सुथरे नहीं हैं. इसलिए युआन को विदेश्‍ी मुद्रा भंडारों में दो फीसदी जगह भी नहीं मिली है.

मुद्रा की स्‍थ‍िरता सबसे जरुरी शर्त है. 2008 के वित्‍तीय संकट के बाद मुद्रा स्‍थ‍िरता सूचकांक में अमेरिकी डॉलर करीब 70 फीसदी स्‍थिर रहा है, यूरो 20 फीसदी पर है. येन और युआन काफी नीचे हैं. स्‍थ‍िरता अमेरिकी डॉलर बडी ताकत है.

क्रिप्‍टोकरेंसी के साथ डॉलर के विकल्‍प की कुछ बहसें शुरु हुईं थीं. अलबत्‍ता कोविड के बाद  क्रिप्‍टोकरेंसी बुलबुला फूट गया और रुस पर प्रतिबंधों से डॉलर की क्रूर रणनीतिक ताकत भी सामने आ गई.

इतिहास की वापसी 

अमेरिकी डॉलर का प्रभुत्‍व दूसरे विश्‍व के बाद पूरी तरह स्‍थाप‍ित हो गया था.  डॉलर की ताकत के दम पर यूरोप की मदद के लिए 1948 में अमेरिका ने 13 अरब डॉलर का मार्शल प्‍लान (वि‍देश मंत्री जॉर्ज सी मार्शल)   लागू किया था. युद्ध से तबाह यूरोप के करीब 18 देशों को इसका बड़ा लाभ मिला. हालांक‍ि यही प्‍लान शीत युद्ध की शुरुआत भी था. यूरोप में रुस व अमेरिकी खेमों में नाटो (1948-49) और वारसा संधि (1955) में बंट गया.

अब फिर महामारी और युद्ध का मारा यूरोप अमेरिका ऊर्जा व रक्षा जरुरतों के लिए अमेरिका पर निर्भर हो रहा है डॉलर की इस नई ताकत के सहारे अमेरिकी राष्‍ट्रपति जो बाइडेन एक तरफ यूरोप को रुस के हिटलरनुमा खतरे बचने की गारंटी दे रहे है तो दूसरी तरफ एश‍िया में चीन डरे देशों नई छतरी के नीचे जुटा रहे हैं.  अमेरिकी डॉलर की बादशाहत इन्‍हीं हालात से निकली थी.  महंगा होता अमेरिकी कर्ज डॉलर को नई मौद्रिक ताकत दे रहा है. इसलिए यूरो, युआन,रुपया सबकी हालत पतली है.

विदेशी मुद्रा बाजार वाले कहते हैं डॉलर अमेरिका का सबसे मजबूत सैन‍िक है. यह कभी नहीं हारता. दूसरी करेंसी को बंधक बनाकर वापस अमेरिका के पास लौट आता है


Saturday, July 24, 2021

पर्दा जो उठ गया तो...

 


 दुनिया के लोग जब उस ताकत के बारे में जानना चाहते थे जो केवल सरकारों के लिए सुरक्षित सैन्य जासूसी वाला कंप्यूटर प्रोग्राम खरीदकर नेताओं, पत्रकारों, अफसरों की जासूसी कर रही है तब सरकार संसद मेंनिजी सूचनाओं की गोपनीयता के लिए कानून का मसौदा पेश करने की तैयारी में थी. इसी तरह जब जोमाटो (फूड डिलिवरी स्टार्ट-अप) के पब्लिक इश्यू की बधाई बज रही थी तब डिजिटल कारोबार में एकाधिकार खत्म करने पर बनी समिति अपनी पहली बैठक कर रही थी.

यह गुजरते दौर के तात्कालिक अंतरविरोध ही नहीं हैं. इनमें छिपे बिंदुओं को मिलाने पर आने वाली दुनिया की सबसे बड़ी उलझन का नक्शा उभरता है जो जिंदगी और कई कारोबारों का पूरा ढांचा ही बदल देंगी. अब एक तरफ होगी निजताओं को बचाने की जद्दोजहद, जो जासूसियों की धुंध उठने से पहले ही शुरू हो चुकी थी और दूसरी तरफ होंगे डिजिटल इकोनॉमी के नए अमीर, जो हमारी निजता यानी व्यक्तिगत सूचनाओं का ही धंधा कर रहे हैं और जिनमें अरबों डॉलर की रकम लगी है.

इन उलटबांसियों के सुलझाने से पहले एक बार चीन की तरफ घूम कर आते हैं.

दीदी को आप चीन की उबर मान सकते हैं. मोबाइल ऐप आधारित, यह टैक्सी कंपनी चीन के 90 फीसद बाजार पर काबिज है. दीदी ने करीब 4 अरब डॉलर जुटाकर, इसी जून में अमेरिकी शेयर बाजार में शानदार आगाज किया. शुरुआत को दो दिन ही बीते थे, कंपनी का बाजार मूल्य (मार्केट कैपिटलाइजेशन) 100 अरब डॉलर की तरफ बढ़ रहा था कि अचानक चीन की सरकार ने दीदी के खिलाफ बड़ी कार्रवाई शुरू कर दी. कंपनी पर चीन के लोगों की निजी सूचनाएं  चुराने का आरोप लगा है. वहां के ऐप स्टोर से दीदी को हटा दिया गया.

चीन की सरकार जैक मा वाले अलीबाबा समूह की कंपनी ऐंट फाइनेंशियल पर चाबुक चला चुकी है. ऐंट फाइनेंशियल यानी अमेजन और बजाज फाइनेंस एक साथ. इसका पब्लिक इश्यू भी फंस गया. चीन में निजता का क्या मतलब है, इस पर मीम्स बनाए जा सकते हैं लेकिन बीजिंग अपने डिजिटल दिग्गजों के पर कतर रहा है.

लगे हाथ अमेरिका में झांक लेना भी ठीक रहेगा. जुलाई के पहले हफ्ते में बाइडेन साहब ने मोनोपली रोकने का अभूतपूर्व आदेश पारित किया. करीब 72 प्रावधानों से लैस इस आदेश से बड़ी टेक कंपनियों (गूगल, फेसबुक, अमेजन) के एकाधिकारों पर निर्णायक कार्रवाई शुरू होगी. निजी सूचनाओं के बेजा कारोबारी इस्तेमाल को लेकर टेक दिग्गज (गूगल, फेसबुक, अमेजन) पर ऐंटी ट्रस्ट कानून के तहत कार्रवाई शुरू हो चुकी है.

चीन और अमेरिका, दोनों ने ऐलान कर दिया है कि उसकी डिजिटल कंपनियां कितनी भी नामी-गिरामी क्यों हों लेकिन ग्राहकों की सूचना (डेटा) आधारित एकाधिकार चलने नहीं दिए जाएंगे.

भारत में अगर कोई स्टार्ट-अप क्रांति की थाप पर नाच रहा है तो वह गफलत में है. बदलाव भारत में भी शुरू हो चुका है. डिजिटल क्रांति के भविष्य को इनकी रोशनी में देखना जरूरी है ताकि आपकी उंगलियां जल जाएं.

■ डिजिटल एकाधिकारों को तोडऩे के रास्ते वाली समिति काम शुरू कर चुकी है. इसे कॉमर्स के लिए सूचनाओं का ओपन नेटवर्क बनाना है. यह बन जाने के बाद पेटीएम, जोमाटो जैसों की बढ़त का क्या होगा जो केवल हमारी आदतों-व्यवहारों की सूचनाओं पर धंधा कर रहे हैं?

■  कॉमर्स के नए नियम यह निर्धारित करेंगे कि कंपनियां माल बनाने से लेकर पहुंचाने तक पूरा (जैसे जिओ मार्ट या अमेजन की गारमेंट फैक्ट्री या जोमाटो का रेस्तरां) धंधा कब्जा लें. स्टार्ट-अप कंपनियां कारोबार फैलाने के लिए प्रतिस्पर्धा या सहायक कारोबारों को निगल कर आगे बढ़ी हैं. नए नियमों के तहत यह मुश्किल हो रहा है.

■ सरकारों को अपनी जनता की जासूसी कितनी भी पसंद हो लेकिन लोग अब इसे स्वीकार नहीं करेंगे. निजता की सुरक्षा नई आजादी (सुप्रीम कोर्ट का निर्णय) है, जो एक ग्लोबल मुहिम में बदल चुकी है. निजता का धंधा करने वाली कंपनियां भी वैश्विक हैं इसलिए उन्हें सभी बाजारों में एक जैसा आचरण करना होगा. भारत सरकार को भी आखिरनिजी सूचनाओं की गोपनीयता (डेटा प्रोटेक्शन) का कानून लाना पड़ रहा है.

डिजिटल सेवाओं कॉमर्स एकाधिकारों पर रोक और वृहत डिजिटल निजता सुरक्षित करने के कानून न्यू इकोनॉमी की चूलें हिलाने वाले हैं. इस अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा हिस्सा तो हमारे खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने, खरीदने-बेचने, तलाशने-मिटाने, सुनने-कहने की खरबों की सूचनाओं पर केंद्रित है. इन्हीं को बेचकर तो अमेजन, गूगल, जोमाटो, पेटीएम, फेसबुक हमें उस लोक में ले जाते हैं जहां सेवा तो मुफ्त है लेकिन हम बेचे जा रहे हैं.

अरबों लोगों की निजताएं टिकेंगी या निजी सूचनाओं का व्यापार! अगर कंपनियों की चली तो हम पूरी तरह उधड़ जाएंगे लेकिन लोग अगर निजताओं पर अड़े तो न्यू इकोनॉमी के तौर-तरीके पूरी तरह बदल जाएंगे.

राजनैतिक और कारोबारी दुनिया की सबसे बड़ी जद्दोजहद शुरू हो रही है. दम साध कर देखिए, इसमें रोमांच की पूरी गारंटी है.