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Sunday, March 19, 2023

भव‍िष्‍य की वापसी


 

क्‍या आपको 1980 की प्रस‍िद्ध विज्ञान फंतासी फिल्‍म बैक टु द फ्युचर याद है. रॉबर्ट जेम‍िक्‍स के न‍िर्देशन वाली यह फिल्‍म  कैलीफोर्नि‍या के कस्‍बाई क‍िशोर मार्टी मैकफ्लाई की कहानी है, जि‍सका  वैज्ञाानिक दोस्‍त डॉक्‍टर ब्राउन गलती से एक डेलॉरयेन कार को टाइम मशीन में बदल देता है. इसमें बैठकर मार्टी 50 साल पहले के युग में चला जाता है जहां उसे अपने युवा मां बाप मिलते हैं

यदि आपको यह फिल्‍म याद है तो याद होगा मिस्‍टर फ्यूजन भी. एक छोटा सा न्‍यूक्‍लि‍यर एनर्जी रिएक्‍टर, पुराने जमाने के लालटेन और आज के इमर्जेंसी लाइट जैसा एक उपकरण जिसकी मदद से मार्टी की डे लॉरेयन कार को 1.21 गीगावाट की ऊर्जा की ताकत मिलती है और यह कार समय और स्‍थान से परे पचास साल पीछे चली जाती है. डॉ ब्राउन के इस  न्‍यूक्‍ल‍ियर रिएक्‍टर में प्‍लूटोनियम का नहीं बल्‍क‍ि घरेलू कचरे का इस्‍तेमाल होता है.

वह अस्‍सी के दशक का मध्‍य था एक तरफ लोग इस फ‍िल्‍म से  न्‍यूक्‍लियर फ्यूजन तकनीक का फंतासी कर‍िश्‍मा देख रहे थे तो दूसरी तरफ 1985 में अमेरिका और रुस मिलकर न्‍यूक्‍ल‍ियर  फ्यूजन के परीक्षण की तैयारी कर रहे थे. तब से लंबा वक्‍त बीत गया. वैज्ञानिकों ने प्रयोग पर प्रयोग कर डाले लेक‍िन न्‍यूक्‍ल‍ियर  फ्यूजन की कामयाबी मिलने में 20 वीं और 21 वीं सदी के करीब तीन दशक बीत गए.

 

2022 का साल बीतते बीतते विज्ञान के एक बड़े सपने के सच होने की उम्‍मीद को जगा गया. कैलफोर्न‍िया फेडरल लॉरेंस ल‍िवरमोर लैबरोटरी ने हाइड्रोजन प्‍लाजा और लेजर की मदद से फ्यूजन तकनीक से ऊजा प्राप्‍त करने का सफल परीक्षण कर लिया. विज्ञान की दुनिया इस सफलता से झूम उठी. न्‍यूक्‍ल‍ियर ऊर्जा  मौजूदा तकनीक फ‍िजन पर आधार‍ित है जिसे रेड‍ियोधीर्मी तत्‍वों का इस्‍तेमाल होता है न्‍यूक्‍ल‍ियर फ्यूजन की दीवानगी इसलिए है क्‍यों कि इसके जरिये हाइड्रोजन हीलियम जैसे तत्‍वों के साथ फ‍िजन की तुलना में कई गुना ज्‍यादा ऊर्जा प्राप्‍त की जा सकती है. इससे न तो रेडियोएक्‍ट‍िवटी का डर है और न कार्बन उत्‍सर्जन का. पर्यावरण के सुरक्ष‍ित ऊर्जा को लेकर बदहवास दुनिया के यह खोज किसी वैक्‍सीन से कम नहीं है. 

 

आप कहेंगे कि इकोनॉमिकम में हम न्‍यूक्‍ल‍ियर तकनीक का यह आल्‍हा पंवारा क्‍यों ले आए लेक‍िन दरअसल यह युगबदल खोज ऊर्जा बाजार में एक नई करवट की अगवानी का गीत जैसा है.

रुस के राष्‍ट्रपति की युद्ध लिप्‍सा से ऊर्जा बाजार में जो बडे बदलाव कर रही है उसका एक और नया पन्‍ना जापान में खुल रहा है  

 

लौटने लगी हिम्‍मत

वाकया इस साल सितंबर का है. सुर्ख‍ियों में रुस और यूक्रेन का युद्ध था इस बीच जापान के प्रधानमंत्री फुइमो कशिदा ने चौंका दिया. उन्‍होंने ऐलान किया कि जापान नाभिकीय या परमाणु ऊर्जा में फ‍िर से निवेश करेगा. परमाणु संयत्र शुरु किये जाएंगे नए परमाणु रिएक्‍टर भी लगाये जाएंगे. यह घोषणा होने तक दुनिया में तेल की कीमतें खौल रही थीं. कोयले के भाव तपने लगे थे. ऊर्जा की आपूर्ति के लिए रुस पर निर्भर जापान की इस करवट से ऊर्जा की दुनिया में उलट फेर शुरु हो गया.

बात सिर्फ यही नहीं थी कि जापान की सरकार नाभ‍िकीय ऊर्जा की तरफ लौट रही थी बल्‍क‍ि एनएचके सर्वेक्षण के अनुसार जापान के करीब 48 फीसदी लोग नाभ‍िकीय ऊर्जा के पक्ष में थे. यह घोषणा होते ही यूरेन‍ियम बाजार के तेजड़‍िये अपने अपने टर्मिनल के आगे आ जमे.

नाभ‍िकीय ईंधन के बाद बाजार में मंदी का मौसम हवा हो गया. सितंबर में यूर‍ेन‍ियम की कीमत ने ऊंची उडान भरी. जनवरी 2021 में इसकी कीमत 30 डॉलर प्रत‍ि पौंड थी जो इस साल 64 डॉलर तक दौड़ गई. तब से यूरेन‍ियम 50 डॉलर के आसपास है. क्‍यों कि जापान ही नहीं बल्‍क‍ि यूरोप के मुल्‍क भी न्‍यूक्‍ल‍ियर ऊर्जा की तरफ लौटने वाले हैं

 

हम भी इन तैयार‍ियों की चर्चा पर लौटेंगे लेक‍िन पहले कुछ पीछे चलते हैं और समझते हैं कि नाभ‍िकी ऊर्जा की करवट में जापान की हृदय परिवर्तन इतना महत्‍वपूर्ण क्‍यों है

 

सेंडाई का साया

सेंडाई 2011 - ह दूसरी सुनामी थी जो सेंडाई में जमीन डोलने और पगलाये समुद्र की प्रलय लीला के ठीक सात दिन बाद उठी थी. फुकुश‍िमा के नाभिकीय बिजली संयत्र में आग लग गई. जलते संयंत्र पर हेलीकॉप्‍टर से पानी गिराने के दृश्‍य दुनिया को दहलाने लगे. फटी हुई धरती ( भूगर्भीय दरारें), ज्वालामुखियों की कॉलोनी और भूकंपों की प्रयोगशाला वाले जापान में तब तक  55 न्यूक्लियर रिएक्टर थे यानी जोखिम के बावजूद तेल व गैस पर निर्भरता सीमित रखने और ऊर्जा की लागत घटाने के लिए जापान ने नाभिकीय ऊर्जा पर दांव लगाया था

फुकुश‍िमा के धमाके साथ न्‍यूक्‍ल‍ियर ऊर्जा से दुनिया का विश्‍वास भी हिल गया. लगभग पूरे विश्‍व में परमाणु ऊर्जा की योजनायें फाइलों में बंद हो गईं. पुराने संयंत्रों में उत्‍पादन सीमित कर दिया गया. 1986 में रुस के चेर्नोब‍ेल हादसे के बाद

यूरेन‍ियम का बाजार करीब दस साल लंबी मंदी में चला गया. पूरी दुनिया में ऊर्जा की ले दे मची थी लेक‍िन फुकुश‍िमा के खौफ से सहमी दुनिया ने नाभ‍िकीय ऊर्जा से तौबा कर ली. सनद रहे कि इस हादसे से पहले भारत ने अमेरिका के साथ न्‍यूक्‍ल‍ियर समझौते के साथ बड़ी कूटनीतिक जीत हासिल की थी. मगर 2011 के बाद इस बाजार में अचानक सब कुछ  बदल गया था

 

सेंडाई के हादसे का साया इतना लंबा था कि दुनिया की ऊर्जा में न्‍यूक्‍ल‍ियर बिजली का हिस्‍सा कम होने लगा. वल्‍ड न्‍यूक्‍ल‍ियर एनर्जी स्‍टेटस रिपोर्ट 2022 बताती है कि 2021 में विश्‍व ऊर्जा उत्‍पादन ने नाभि‍कीय ऊर्जा हिस्‍सा चार दशकों पहली बार दस फीसदी से नीचे आ गया. 1996 में यह करीब 18 फीसदी की ऊंचाई पर था.

 

 

इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के आंकड़ो में गोता लगाने पर पता चलता है कि दुनिया के करीब 449 सक्रिय रिएक्‍टर या बिजल घरों ने 2018 में अपनी अध‍िकतम क्षमता छू ली थी जो 397 गीगावाट थी इसके बाद न क्षमता बढी और न रिएक्‍टर. 2010 के बाद अगले तीन साल में 23 रिएक्‍टर में उत्‍पादन बंद हो गया. 2022 के मध्‍य तक बिजली बना रहे रिएक्‍टर की संख्‍या घटकर 411 रह गई थी. 2018 के बाद चीन को छोड़ कर ज्‍यादातर विश्‍व में रिएक्‍टर बंद होने की संख्‍या बढती गई है.

 

 

सेंडाई की दुर्घटना का असर इतना गहरा था कि दुनिया में क्रमश: न्‍यूक्‍ल‍ियर पॉवर प्रोग्राम धीमे पड़ने लगे. न्‍यूक्‍ल‍ियर स्‍टेटस रिपोर्ट बताती है कि 2021 में 33 देशों नाभिकीय ऊर्जा प्रोग्राम थे जिनमें तीन बंद हो चुके हैं. 8 को सीम‍ित कर दिय गया. 10 पर काम रोक दिया गया. केवल 15 कार्यक्रम सक्रिय हैं. नाभिकीय ऊर्जा से किनारा करने के कारण पुराने रिएक्‍टरों का आधुनिकीकरण भी नहीं हुआ और न नई तकनीकों का इस्‍तेमाल किया गया. 

 

नाभ‍िकीय ऊर्जा से इस मोहभंग के बीच केवल चीन सक्रिय ऊर्जा कार्यक्रपर आएगे बढता रहा. 2021 में दुनिया नाभिकीय ऊर्जा का उत्‍पादन 3.9 फीसदी बढा लेक‍िन चीन 11.1 फीसदी. चीन से बाहर नाभिकीय ऊर्जा के उत्‍पादन में बढ़त केवल 2.8 फीसदी थी.

 

अगर युद्ध न होता ..

सितंबर 2022 से अचानक दुनिया में ना‍भि‍कीय ऊर्जा को लेकर होड़ जैसी शुरु हो गई. कोयला, गैस और पेट्रोल की महंगाई से बचने के लिए ही तो इस ऊर्जा का आव‍िष्‍कार हुआ था अलबत्‍ता हादसों और खतरों के कारण इसेस किनारा करना पड़ा. करीब 55 रिएकक्‍टर के सथ  ऊर्जा की बड़ी ताकत रहे जापान ने नए रिएक्‍टर लगाने का एलान किया तो यूरेनियम ऊर्जा की उभरती ताकत चीन ने अगले 15 साल में 150 नए रिएक्‍टर बनाने का एलान कर दिया.

नाभि‍कीय ऊर्जा की नई होड शुरु होने से पहले निमाणाधीान रिएक्‍टर में चीन पहले नंबर पर था.

 

 

 

 

गैस की महंगाई से तप रहे यूरोप ने भी अब नाभिकीय ऊर्जा की वापसी का खाका बनाना शुरु कर दिया है. फ्रांस अपने सभी रिएक्‍टर दोबारा शुरु करने वाला है. जर्मनी जिसने 2011 के बाद नाभिकीय ऊर्जा का उत्‍पादन पूरी तरह बंद करने का निर्णय लिया था वह भी प्रत‍िबंध हटाकर नए सिरे यह सस्‍ती ऊर्जा बनाने के संकेत दे रहा है.

सत्‍ता से बाहर से होने से पहले ब्रिटेन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसान ने न्‍यूक्‍ल‍ियर ऊर्जा की फाइल फिर खोल दी थी. पिछली सरकारों को इस ऊर्जा कार्यक्रम को विकालांग बना देने का आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री जॉनसन से साइजवेल 810 मिलियन डॉलर सरकारी निवेश का वादा भी किया था.

अमेरिका की रुस वाली ऊर्जा

नाभ‍िकीय ऊर्जा का ताजा होड में अमेरिका का मामला गजब का दिलचस्‍प है. अमेरिका अपने ऊर्जा कार्यक्रम के तहत कार्बन उत्‍सर्जन रोकने के लिए नाभिकीय ऊर्जा का उत्‍पादन दोगुना करने की योजना पर काम कर रहा है. रुस यूक्रेन युद्ध के कारण इस कार्यक्रम को बड़ा झटका लगा है.

अमेरिका के रिएक्‍टर जिस यूरेनियम का इस्‍तेमाल करते हैं वह दुनिया में केवल एक कंपनी बेचती है और वह रुस की सरकारी कंपनी रोसाटोप यानी रश‍ियन स्‍टेट अटॉमिक एनर्जी कार्पोरेशन. हैरत होगी जानकर कि इस कंपनी पर प्रतिबंध नहीं लगाये गए हैं क्‍यों कि यह ग्‍लोबल न्‍यूक्‍ल‍ियर सप्‍लाई चेन का हिस्‍सा है

नए हलेयू (हाई एसे लो इनर‍िच्‍ड यूरेनियम) रिएक्‍टर अमेरिका के ऊर्जा कार्यक्रम की नई पीढी का सबसे बड़ा किरदार हैं. बिडेन प्रशासन इन नए रिएकटरों रुस पर निर्भरता खत्‍म करना चाहता है वह यूरेनियम नए सप्‍लायर की तलाश में हैं.

 

 

खतरों को सीमित कर लिय जाए तो न्‍यूक्‍ल‍ियर दुनिया का सबसे अनोखा ऊर्जा संसाधन है. यह पर्यावरण के लिए सुरक्षि‍त है और इससे बहुत बड़ी क्षमता के बिजली घर लगाये जा सकते हैं.  तो अब हम वापस लौटते हैं मि. फ्यूजन की तरफ यानी बैक टु फ्यूचर वाली कार की तरफ. यह संयोग ही कि पूरी दुनिया जब नाभ‍िकीय ऊर्जा की तरफ लौटने को मजबूर हुई तो इसी बीच आणव‍िक ऊर्जा उद्योग की सबसे बडी तकनीकी तलाश भी पूरी हो रही है. फ्यूजन रिएक्‍टर बनने में समय लगेगा अब परमाणुओं का जटिल विज्ञान नई तकनीकों के साथ वापसी को तैयार है. मर्चेंट बैंकरों और निवेशक नाभि‍कीय ऊर्जा को अगले कुछ वर्षों का सबसे बड़ा निवेश मौका मान रहे हैं

 

एक युद्ध ने कितना कुछ बदला दि‍या है 

 

 

 

चीन का सबसे सीक्रेट प्‍लान


 

 

चीन ने अपनी नई बिसात पर पहला मोहरा तो इस सितंबर में ही चल दिया था, उज्‍बेकिस्‍तान के समरकंद में शंघाई कोआपरेशन ऑर्गनाइजेशन की बैठक की छाया में चीन, ईरान और रुस ने अपनी मुद्राओं में कारोबार का एक अनोखा त्र‍िपक्षीय समझौता किया.  यह  अमेरिकी  डॉलर के वर्चस्‍व को  चुनौती देने के लिए यह पहली सामूहिक शुरुआत थी. इस पेशबंदी की धुरी है  चीन की मुद्रा यानी युआन.

नवंबर में जब पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ के बीज‍िंग में थे चीन और पाकिस्‍तान के केंद्रीय बैंकों ने युआन में कारोबार और क्‍ल‍ियर‍िंग के लिए संध‍ि पर दस्‍तखत किये. पाकिस्‍तान को चीन का युआन  कर्ज और निवेश के तौर पर मिल रहा है. पाक सरकार इसके इस्‍तेमाल से  रुस से तेल इंपोर्ट करेगी.

द‍िसंबर के दूसरे सप्‍ताह में शी जिनप‍िंग सऊदी अरब की यात्रा पर थे. चीन, सऊदी का अरब का सबसे बडा ग्राहक भी है सप्‍लायर भी. दोनों देश युआन में तेल की खरीद‍ बिक्री पर राजी हो गए. इसके तत्‍काल बाद जिनपिंग न गल्‍फ कोआपरेशन काउंस‍िल की बैठक में शामिल हुए  जहां उन्‍होंने शंघाई पेट्रोलियम और गैस एक्‍सचेंज में युआन में तेल कारोबार खोलने का एलान कर दिया.

डॉलर के मुकाबिल कौन

डॉलर को चुनौती देने के लिए युआन की तैयार‍ियां सात आठ सालह पहले शुरु हुई थीं केंद्रीय बैंक के तहत  युआन इंटरनेशनाइलेजेशन का एक विभाग है. जिसने 2025 चीनी हार्ब‍िन बैंक और रुस के साबेर बैंक से वित्‍तीय सहयोग समझौते के साथ युआन के इंटरनेशनलाइजेशन की मुहिम शुरु की थी. इस समझौते के बाद दुनिया की दो बड़ी अर्थव्‍यवस्थाओं यानी रुस और चीन के बीच रुबल-युआन कारोबार शुरु हो गया. इस ट्रेड के लिए हांगकांग में युआन का एक क्‍ल‍ियर‍िंग सेंटर बनाया गया था.

2016 आईएमएफ ने युआन को इस सबसे विदेशी मुद्राओं प्रीम‍ियम क्‍लब एसडीआर में शामिल कर ल‍िया.  अमेरिकी डॉलर, यूरो, येन और पाउंड इसमें पहले से शामिल हैं. आईएमएफ के सदस्‍य एसडीआर का इस्‍तेमाल करेंसी के तौर पर करते हैं.

चीन की करेंसी व्‍यवस्‍था की साख पर गहरे सवाल रहे हैं  लेक‍िन कारोबारी ताकत के बल पर एसडीआर  टोकरी में चीन का हिस्‍सा, 2022 तक छह साल में करीब 11 फीसदी बढ़कर 12.28  फीसदी हो गया.

कोविड के दौरान जनवरी 2021 में चीन के केंद्रीय बैंक ने ग्‍लोबल इंटरबैंक मैसेजिंग प्‍लेटफार्म स्‍व‍िफ्ट से करार किया. बेल्‍ज‍ियम का यह संगठन दुनिया के बैंकों के बीच सूचनाओं का तंत्र संचालित करता है  इसके बाद चीन में स्‍व‍िफ्ट का डाटा सेंटर बनाया गया.

चीन ने  बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेटलमेंट के लिक्‍व‍िड‍िटी कार्यक्रम के तहत इंडोन‍िश‍िया, मलेश‍िया, हांगकांग , सिंगापुर और चिली के साथ मिलकर 75 अरब युआन का फंड भी बनाया है जिसका इस्‍तेमाल कर्ज परेशान देशों की मदद के लिए  के लिए होगा.

ड‍ि‍ज‍िटल युआन का ग्‍लोबल प्‍लान

इस साल जुलाई में चीन शंघाई, गुएनडांग, शांक्‍सी, बीजिंग, झेजियांग, शेनजेन, क्‍व‍िंगादो और निंग्‍बो सेंट्रल बैंक डि‍ज‍िटल युआन पर केंद्र‍ित एक पेमेंट सिस्‍टम की परीक्षण भी शुरु कर दिया. यह सभी शहर चीन उद्योग और व्‍यापार‍ के केंद्र हैं. इस प्रणाली से विदेशी कंपनियां को युआन में भुगतान और निवेश की सुपिवधा देंगी. यह अपनी तरह की पहला ड‍ि‍ज‍िटल करेंसी क्‍ल‍ियरिंग सिस्‍टम है हाल में ही बीजिंग ने ने हांगकांग, थाईलैंड और अमीरात के साथ  डिजिटल करेंसी में लेन देन के परीक्षण शुरु कर दिये हैं.

पुतिन भी चाहते थे मगर ...

2014 में यूक्रेन पर शुरुआती हमले के बाद जब अमेरिका ने प्रतिबंध  लगाये थे तब रुस ने डॉलर से अलग रुबल में कारोबार बढाने के प्रयास शुरु किये थे. और 2020 तक अपने विदेशी मुद्रा भंडार में अमेरिकी डॉलर का हिस्‍सा आधा घटा दिया. जुलाई 2021 में रुस के वित्‍त मंत्री ने एलान किया कि डॉलर आधार‍ित विदेशी कर्ज को पूरी तरह खत्‍म किया जाएगा. उस वक्‍त तक यह कर्ज करीब 185 अरब डॉलर था.

रुस ने 2015 में अपना क्‍लियरिंग सिस्‍टम मीर बनाया.  यूरोप के स्‍व‍िफ्ट के जवाब मे रुस ने System for Transfer of Financial Messages (SPFS) बनाया है जिसे दुनि‍या के 23 बैंक जुड़े हैं.

अलबत्‍ता युद्ध और कड़े प्रतिबंधों से रुबल की आर्थि‍क ताकत खत्‍म हो गई. रुस अब युआन की जकड़ में है. ताजा आंकडे बताते हैं कि रुस के विदेशी मुद्रा भंडार में युआन का हिस्‍सा करीब 17 फीसदी है. चीन फ‍िलहाल रुस का सबसे बड़ा तेल गैस ग्राहक और संकटमोचक है.

यूरोप की कंपनियों की वि‍दाई के बाद चीन की कंपनियां रुस में सस्‍ती दर पर खन‍िज संपत्‍त‍ियां खरीद रही हैं.रुस का युआनाइेजशन शुरु हो चुका है.

भारत तीसरी अर्थव्‍यवस्‍था है जिसने अपनी मुद्रा यानी रुपये में कारोबार भूम‍िका बना रहा है. रुस पर प्रतिबंधों के कारण  भारतीय बैंक दुव‍िधा में हैं. भारत सबसे बड़े आयातक (तेल गैस कोयला इलेक्‍ट्रानिक्‍स) जिन देशों से होते हैं वहां भुगतान अमेरिकी डॉलर में ही होता है.

 

युआन की ताकत

 युआन ग्‍लोबल करेंसी बनने की शर्ते पूरी नहीं करता. लेक‍िन यह  चीन की मुद्रा कई देशों के लिए वैकल्पि‍क भुगतान का माध्‍यम बन रही है. चीन के पास दो बडी ताकते हैं. एक सबसे बडा आयात और निर्यात और दूसरा गरीब देशों को देने के लिए कर्ज. इन्‍ही के जरिये युआन का दबदबा बढा है. 

चीन के केंद्रीय बैंक का आंकड़ा बताता है कि युआन में व्‍यापार भुगतानों में सालाना 15 फीसदी की बढ़ोत्‍तरी हो रही है. 2021 में युआन में गैर वित्‍तीय लेन देन करीब 3.91 ट्र‍िल‍ियन डॉलर पर पहुंचा गए हैं. 2017 से युआन के बांड ग्‍लोबल बांड इंडेक्‍स का हिस्‍सा हैं. प्रतिभूत‍ियों में निवेश में युआन का हिस्‍सा 2017 के मुकाबले दोगुना हो कर 20021 में 60 फीसदी हो गया है.

दूसरे विश्‍व युद्ध के बाद से अमेर‍िकी डॉलर व्‍यापार और निवेश दोनों की केंद्रीय करेंसी रही है. अब चीन दुन‍िया का सबसे बड़ा व्‍यापारी है इसलिए बीते दो बरस में चीन के केंद्रीय बैंक ने यूरोपीय सेंट्रल बैंक, बैंक ऑफ इंग्‍लैंड, सिंगापुर मॉनेटरी अथॉरिटी, जापान, इंडोनेश‍िया, कनाडा, लाओस, कजाकस्‍तान आद‍ि देशों के साथ युआन में क्‍ल‍िर‍िंग और स्‍वैप के करार किये हैं.दुनिया के केंद्रीय बैकों के रिजर्व में युआन का हिस्‍सा बढ़ रहा है.

इस सभी तैयार‍ियों के बावजूद चीन की करेंसी व्‍यवस्‍था तो निरी अपारदर्शी है फिर भी क्‍या दुनिया चीन की मुद्रा प्रणाली पर भरोसे को तैयार है? करेंसी की बिसात युआन चालें दिलचस्‍प होने वाली हैं

Friday, December 23, 2022

ये नहीं तो कुछ नहीं


 

 

यूरोप के देश कई हफ्तों से यही तो सुनने के लिए व्‍याकुल थे. अगस्‍त के आख‍िरी सप्‍ताह में जर्मनी ने एलान क‍र दिया कि पुतिन का ब्‍लैकमेल नहीं चलेगा. जर्मनी में गैस के 80 फीसदी भंडार भर चुके हैं. अगले साल तक रुस निर्भरता और खत्‍म हो जाएगी.

इस एलान के वक्‍त रुस ने जर्मनी को गैस ले जाने वाली नॉर्डस्‍ट्रीम पाइपलाइन से तीन दिन तक सप्‍लाई बंद कर दी थी. सितंबर के पहले सप्‍ताह में यह आपूर्ति पूरी तरह रोक दी गई. लेक‍िन इस बीच जर्मनी ने न केवल छह माह में अपनी ऊर्जा सुरक्षा का बंदोबस्त कर ल‍िया बल्‍क‍ि महंगाई थामने के लिए महंगी बिजली के बदलने लोगों को राहत देने का पैकेज भी तैयार कर लिया.

यूक्रेन पर रुस के हमले के बाद यूरोप ने रिपॉवर ईयू कार्यक्रम प्रारंभ किया था. जिसका मकसद 2027 तक रुस पर ऊर्जा निर्भरता खत्‍म करना था. एलएनजी का आयात इस कार्यक्रम का आधार था. ाीजभी जर्मनी के द बंदरगाहों विलहेल्‍मसहैवेन और ब्रूंसबुटल, यूरोप की इस नई ताकत का आधार हैं.

विलहेल्‍मसहैवेन यह शहर नॉर्थ सी खाड़ी में जर्मनी का प्रमुख डीप वाटर बंदरगाह है जो एम्‍स और वीजर नदियों की बीच जेड डेल्‍टा में स्‍थ‍ित है ब्रूंसबुटेल भी नॉर्थ सी में एल्‍ब नदी के मुहाने पर स्‍थित है. कील नहर दुनिया का सबसे व्‍यस्‍त मानवन‍िर्मित वाटरवे यानी जलमार्ग है.

यह दोनों ही जर्मनी में आयात‍ित एलएनजी के नए केंद्र हैं. यहां जर्मनी ने चार  floating storage and regasification units (FSRUs) लगाये हैं. इन्‍हे तैरते हुए गैस टर्मिनल समझ‍िये जहां तरल एलएएनजी जमा होती है और  उसे गैस में बदला जाता है. बूंसबुटेल के दूसरी तरफ यानी एल्‍ब नदी के पास हैम्‍बर्ग के करीब पोर्ट ऑफ स्‍टेड में भी ठीक इसी तरह के टर्मिनल बन रहे हैं .बाल्‍ट‍िक तट पर ल्‍युबम‍िन में भी तैरते हुए गैस टर्मिनल एलएनजी जमा करेंगे.

एलएनजी आयात की क्षमतायें बढ़ाकर जर्मनल ने रिपॉवर ईयू

2021 में जर्मनी की जरुरत की 55 फीसदी गैस रुस से आती थी जो इस साल जून में घटकर 26 फीसदी रह गया. अब जर्मनी अगले साल तक रुस पर निर्भरता पूरी तरह खत्‍म करने की तरफ बढ़ गया है.

यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था जर्मनी की गैस में बढ़ती आत्‍मनिर्भरता यूरोप के लिए ठीक वैसा ही अवसर है जैसा कि 1970 में अमेरिका में हुआ था जब इजरायल अरब युद्ध में, इज़रायल के समर्थन पर अरब देशों ने अमेरिका का तेल का निर्यात बंद कर दिया था. इसके बाद अमेरिका ने नए ऊर्जा स्रोतों, शेल और गैस में निवेश किया. यही गैस आज पुतिन के ब्‍लैकमेल को जवाब देने के लिए यूरोप के काम भी आ रही है.

 

भारत की ऊर्जा पहेली

लौटते हैं अपने मुल्‍क की तरफ

यूरोप पूरा घटनाक्रम भारत के लिए कई जरुरी नसीहतों से लबरेज़ है. प्रधानमंत्री ने इस साल स्‍वाधीनता दिवस पर अपने संबोधन में ऊर्जा आत्‍मनिर्भरता की हुंकार लगाई. हालांकि बात उन्‍होंने इलेक्‍ट्र‍िक वाहनों के संदर्भ में की थी. इससे ज्‍यादा कुछ कहना मुश्‍कि‍ल भी था क्‍यों कि 2022 भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए सबसे निराशाजनक या कहें कि अपशकुनी साल बन गया है.

यह साल ऊर्जा की संसाधनों की खौलती कीमतों के बीच  भारत ऊर्जा सुरक्षा के कमजोर होते जाने का है. सैकड़ों सुर्ख‍ियों के बीच क्‍या हमें याद है कि 2015 में सरकार ने तय किया था आयात‍ित कच्‍चे तेल पर निर्भरता को 2022 में दस फीसदी घटा दिया जाएगा. 2022 की वह साल भी है जब भारत थर्मल कोल यानी बिजली के लिए कोयले के आयात बंद करने का एलान कर चुका था. यह एलान बीते बरस कोयला मंत्रालय के एक चिंतन श‍िविर में हुआ था, जो गुजरात के केवड़‍िया में आयोजित किया गया था.

कोयले और तेल के साथ नेचुरल गैस की आपूर्ति भी घट रही है.

सनद रहे कि भारत की ऊर्जा सुरक्षा केवल रुस यूक्रेन युद्ध के कारण मुश्‍क‍िल में नहीं आई यहां तो मुसीबत पुरानी है और लंबी लंबी बातों के बीच उत्‍पादन में गिरावट बढ़ती गई है इधर लीथि‍यम, बैटरी, तकनीक, सोलर सेल्‍स और हाइड्रोजन फ्यूल के आयात पर निर्भरता के बाद पूरा ऊर्जा क्षेत्र भी आयात का मोहताज हो गया है जो विदेशी मुद्रा भंडार के ल‍िए किसी संकट की पदचाप है.

 

सबसे पहले देखते हैं कच्‍चे तेल की तरफ .. जहां कुछ चाहते थे कुछ और ही हो गया है.

 

तेल में यह क्‍या हुआ

इस साल अप्रैल से अगस्‍त के बीच भारत में कच्‍चे तेल के आयात का बिल करीब 99 अरब डॉलर पर पहुंच गया. इससे पहले मार्च 2022 तक भारत का तेल आयात 2021 के मुकाबले दोगुना बढ़कर 119 अरब डॉलर हो गया था.

यदि हम इसे रुस यूक्रेन युद्ध के कारण तेल की कीमतों में लगी का आग का असर मानते हैं तो दरसअल यह रेत में सर डाल देने जैसा है.

2015 में सरकार ने लक्ष्‍य रखा था कि 2022 तक तेल आयात पर भारत की निर्भरता 87 फीसदी से घटाकर 77 फीसदी और 2030 तक 50 फीसदी कर दी जाएगी. लेक‍िन हुआ इसका उलटा. 2015 से तेल आयात पर भारत की निर्भरता बढ़ने लगी. सरकार के पेट्रोल‍ियम प्‍लानिंग एंड एनाल‍िसिस सेल के आंकड़ो के अनुसार जून 2022 में भारत अपनी जरुरत का  87 फीसदी तेल आयात करने लगा. वह भी इतनी ऊंची कीमतों पर .

 

अब आइये आपको भारत की ऊर्जा सुरक्षा के खलनायक से मिलवाते हैं. भारत में कच्‍चे तेल का घरेलू उत्‍पादन वित्‍त वर्ष 2022 में 28 साल के न्‍यूनतम स्‍तर पर आ गया.

भारत में बुनियादी उद्योगों का एक सूचकांक है जिसमें मासिक आधार पर तेल, कोयला, स्‍टील, बिजली आदि उद्योगों के उत्‍पादन वृद्धि का आकलन किया जाता है. इस सूचकांक के आधार पर बीते चार बरस से भारत का कच्‍चा तेल उत्‍पादन लगातार गिर रहा है.

ओएनजीसी सबसे बड़ा खलनायक है. दूसरी सरकारी कंपनी ऑयर इंडिया है. इन दोनों पर घरेलू उत्‍पादन का दारोमदार है. इनका उत्‍पादन लगातार गिर रहा है. ओएनजीसी में तेल उत्‍पादन का बुरा हाल है.  कंपनी का तेल उत्‍पादन बीते चार साल में करीब 10 से 16 फीसदी गिरा है. नए रिजर्व जोड़ने की रफ्तार करीब 35 फीसदी टूटी है. देश की शीर्ष तेल खोज कंपनी अपने पूंजी खर्च का इस्‍तेमाल भी नहीं कर पा रही है.

 

सरकार कंपन‍ियां ही नहीं निजी क्षेत्र के घरेलू कच्‍चे तेल उत्‍पादन में भी गिरावट आ रही है. भारत के तेल कुएं सूख रहे हैं. ड्राइ वेल्‍स सबसे बड़ी समस्‍या हैं. तेल की खोज में निवेश नहीं हुआ है इसलिए जितने भंडार थे वह निचोड़े जा चुके हैं. नए भंडार उपलब्‍ध नहीं हैं. अगर आप अपने ज़हन पर जोर डालकर बीते वर्षों में आई तेल खोज नीति यानी एनईएलपी और एचईएलपी की याद कर पूछना चाहते हैं कि उनसे क्‍या नए स्रोत नहीं मिले? तो आपको पता चले कि यह नीतियां असफलता का सबसे बड़ा स्‍मारक बन चुकी हैं

1999 से 2016 तक तेल ब्‍लॉक आवंटन की कोश‍िशें लगभग असफल रहीं. कोई बड़ी विदेशी कंपनी आई नहीं और जिन कंपन‍ियों ने लाइसेंस ल‍िये भी वह ब्‍लॉक छोड़कर निकल गईं. 2018 की तेल खोज लाइसेंस नीति में 127 ब्‍लॉक आवंट‍ित हुए हैं उत्‍पादन किसी में नहीं हो रहा है.

इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी का आकलन है कि इलेक्‍ट्रि‍क वाहनों के आने बावजूद 2040 तक भारत में क्रूड ऑयल की मांग कम से 7 मिल‍ियन बैरल प्रत‍िद‍िन के हिसाब से बढ़ेगी.

आप खुद अंदाज लगा सकते हैं कि लगातार महंगे कच्‍चे तेल की बीत भारत की तेल आत्‍मनिर्भरता का क्‍या हश्र होने वाला है.

 

कोयले की ट्रेजडी

भारत इस साल करीब 76 मिल‍ियन टन कोयला आयात करेगा. जो बीते कई वर्षों का रिकार्ड है. भारत की 90 फीसदी बिजली थर्मल यानी कोयला आधारित है. इस साल कोयले का आयात करीब 40 फीसदी बढ़ा है. यह आयात बीते कई बरसों में कोयले की सबसे महंगी कीमत पर होगा. 

कोयले की त्रासदी, क्रूड ऑयल से ज्‍यादा दर्दनाक है. भारत दुनिया का दूसरा सबसे कोयला खनन वाला देश है. पांचवा सबसे बड़ा कोयला भंडार है. बीते साल अक्‍टूबर में सरकार ने दावा किया कि कोयला उत्‍पादन बढ़ रहा है. इस साल यानी 2022 से थर्मल कोल का आयात बंद हो जाएगा लेक‍िन इस साल पूरी आपूर्ति चरमरा गई. जनवरी के बाद बिजली घर बंद होने लगे. सरकार को न केवल कोयला आयात को बढ़ावा  देना पड़ा बल्‍क‍ि देश की सबसे बड़ी कोयला उत्‍पादक कंपनी कोल इंड‍िया खुद ही इंपोर्टर होगई.

कोयले में समस्‍या उत्‍पादन की ही नहीं बल्‍क‍ि आपूर्ति और ि‍बजली घरों तक कोयला पहुंचाने की भी है. कोल इंडिया को अगले एक साल कोयला ढुलाई की क्षमताओं मसलन रेल लाइन, ढुलाई तकनीक में करीब 14000 करोड़ रुपये का निवेश करना होगा

कोल इंडिया मांग का 80 फीसदी कोयला उत्‍पादन करती है लेक‍िन कंपनी का निवेश नहीं बढ़ा है. नई खदानों को खोलने का काम पिछड़ा है. करीब 39 खदानें लंबित मंजूर‍ियों की वजह से अधर में हैं. बीते पांच बरस में कोयला खदानों के निजीकरण कोश‍िश भी सफल नहीं हुई. कोयला नीति में बड़े बदलावों के बाद 2020 में करीब 40 खदानों को निजी क्षेत्र के लिए खोला गया था मगर नि‍वेश नहीं आया. हाल के कोयला संकट के बाद कोल इंड‍िया ने बंद पड़ी खदानों के निजीकरण की तैयारी की थी मगर बाजार से कोई उत्‍सुकता नहीं दिखी.

गैस तो है ही नहीं

पूरी दुनिया में नेचुरल गैस की ले दे मची है. रुस यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोप से लेकर चीन तक गैस की आपूर्ति बढ़ाने के नए उपायों की होड़ है. नेचुरल गैस भविष्‍य का ईंधन है सुरक्षि‍त और सस्‍ता. रिकार्ड तेजी है कीमतों में.

भारत में ऊर्जा की चर्चायें तेल से आगे नहीं निकलती,  नेचुरल गैस पर चर्चा केवल सीएनजी की कीमतें बढ़ने की वजह से होती है.

नेचुरल गैस भी सरकारों के कुछ कहने और कुछ होने का प्रमाण है. सरकार ने यह लक्ष्‍य रखा था कि भारत की ऊर्जा आपूर्ति में गैस का हिस्‍सा 2030 तक आज के 6.4 फीसदी  से बढ़ाकर 15% किया जाएगा.

अलबत्‍ता बीते एक दशक में भारत में नेचुरल गैस का उत्‍पादन लगातार गिर रहा है. 2013 में यह 39 एमएमएससीएम था जो अब 33 एमएमएससीएम है जबकि मांग दोगुानी बढ़कर 63MMSCM पर पहुंच गई. यहां भी उत्‍पादन की खलनायक ओनएनजीसी है जो करीब 61 फीसदी उत्‍पादन करती है.

आयात पर निर्भरता बढ़ रही है क्‍यों कि उर्वरक, बिजली, परिवहन और घरेलू आपूर्ति की मांग सालाना करीब 10 फीसदी की गति से बढ रही है. मांग की आधी गैस आयात होती है. रुस यूक्रेन युद्ध और दुनिया में गैस की कीमतें बढ़ने के बाद भारत की प्रमुख गैस कंपनी को आयात में दिक्‍कत होने लगी. रुस की कंपनी गैजप्रॉम आपूर्ति का प्रमुख स्रोत थी जिस पर प्रत‍िबंध लगा हुआ है.

भारत में एलएनजी टर्मिनल हैं लेक‍िन गैस नहीं है. बीते बरस इन टर्मिनल की केवल 59 फीसदी क्षमता का उपयोग हो सका था. एलएनजी आयात की लागत बढ़ रही है. कीमतों को लेकर तस्‍वीर साफ नहीं होती क्‍येां कि सरकार हर छह माह में कीमतों पर फैसला करती है इसलिए आयात भी कम है.

 

भारत में नए एलएनजी टर्म‍िनल बन रहे हैं. जिनमें बैकों का बड़ा निवेश फंसा है लेक‍िन गैस कहां से आएगी इसकी यह पता नहीं है. यूरोप में गैस की मांग बढ़ने के बाद मध्‍य पूर्व ने अपनी आपूर्ति यूरोप की तरफ मोड़ दी है, भारत को नए स्रोत नहीं मिल रहे हैं

 

नए चुनौतियां

भारत की इलेक्‍ट्र‍िक वाहनों की फैशनेबल चर्चाओं से गुलजार है. हाइड्रोजन और सोलर ऊर्जा की उडाने हैं. बैटरी को लेकर भारत के पास कच्‍चा माल और तकनीक दोनों नहीं है. जबकि बैटरी के ईंधन जैसे लीथि‍यम, कोबाल्‍ट की कीमतें बढ रही हैं. बैटरी तकनीक का आयात ही एक रास्‍ता है. भारत इस साल करीब 13000 करोड़ रुपये के लीथियम का इंपोर्ट करेगा.

यह है सबसे कठिन पहेली

अगले 25 वर्षों में विकस‍ित देश बनने के लक्ष्‍य रखने वाले शायद ऊर्जा सुरक्षा पर बात करने से कतराते हैं. यह भारत की विकास की कोश‍िशों का सबसे बड़ा गर्त है.

ऊर्जा के आइने में आत्‍मनिर्भरता को तो छोड़ि‍ये और छोड़‍िये ग्रोथ की छलांग को यहां तो एक कामचलाऊ विकास दर के लिए भी सस्‍ती ऊर्जा का टोटा होने वाला है.

भारत  दो राहे पर है.

लाख कोश‍िशों के बावजूद भौगोलिक तौर पर भारत के पास बड़े ऊर्जा स्रोत नहीं हैं, चाहे तेल गैस हो या बैटरी खनिज. इसे आयात से ही काम चलेगा. जहां कीमतें नई ऊंचाई पर हैं. कार्टेल हैं और सस्‍ता होने की गुंजायश नहीं है. ऊपर से टूटता घरेलू मुद्रा आयात महंगा करती जाएगाी

दूसरी तरफ बिजल और बिजली चलित वाहनों के लिए कोयला है लेक‍िन तो उसकी निकासी, आपूर्ति पर भारी निवेश चाहिए. इसके बाद पर्यावरण के ल‍िए सुरक्ष‍ित बनाना होगा जो बहुत महंगा सौदा है.

भारत की सरकारें फिलहाल तात्‍कालिक उपायों या सपनों उड़ान में लगी हैं. ऊर्जा सुरक्षा की पूरी नीति पर नये सिरे से तैयारी चाहिए. हम आज के यूरोप या 1970 के अमेरिका से सीख सकते हैं सनद रहे भारत के आर्थ‍िक विकास की गति में स्‍थायी ऊर्जा महंगाई का पत्‍थर बंध चुका है. यह हमें दौड़ने तो दूर तेज चलने भी नहीं देगा.

Friday, October 21, 2022

क‍िंग कोल की वापसी


साल 1306 ब्रिटेन की गर्म‍ियां. नाइट्स, बैरन्‍स बिशप्‍स
यानी ब्रिटेन के सामंत गांवों में मौजूद अपनी रियासत और किलों से दूर लंदन आए थे. जहां संसद का पहला प्रयोग हो रहा था.

सामंतों का स्‍वागत किया लंदन की आबोहवा में घुली एक अजीब सी गंध ने. एक तीखी चटपटी सी महक जो नाक से होकर गले तक जा रही थी

यह गंध कोयले की थी.

उस वक्‍त तक लंदन के कारीगर लकड़ी छोड़ कर एक काले पत्‍थर को जलाने लगे थे.

सामंतों ने  धुआं धक्‍कड़ का विरोध व‍िरोध किया तो सम्राट एडवर्ड कोयले इस्‍तेमाल रोक दिया. पाबंदी ने बहुत असर नहीं कि‍या. तो सख्‍ती हुई जुर्माने लगे, फर्नेस तोड़ दी गईं.

 

मगर वक्‍त कोयले के साथ था. 1500 में ब्रिटेन में ऊर्जा की क‍िल्‍लत हो गई. ब्रिटेन दुनिया का पहला देश हो गया जहां कोयले का संगठित और व्‍यापक खनन शुरु हुआ. पहली औद्योगिक क्रांति कोयले के धुंए में लिपट धरती पर आई.

करीब 521 साल बाद दुनिया को फिर कोयले के धुएं से तकलीफ महसूस हुई. धुआं-धुआं आबोहवा पृथ्‍वी का तापमान बढ़ाकर विनाश कर रही थी.  

नवंबर 2021 में ग्‍लासगो में दुनिया की जुटान में तय हुआ कि 2030 तक विकस‍ित देश और 2040 तक विकासशील देश कोयले का इस्‍तेमाल बंद कर देंगे. इसके बाद थर्मल पॉवर यानी कोयले वाली बिजली नहीं होगी.

भारत-चीन राजी नहीं थे मगर 40 देशों ने कोयले से तौबा कर ली. 20 देशों ने यह भी तय किया कि 2022 के अंत से कोयले से बिजली वाली परियोजनाओं वित्‍त पोषण यानी कर्ज आदि बंद हो जाएगा. बैंकरों में  मुनादी पिट गई. नई खदानों पर काम रुक गया.

एंग्‍लो आस्‍ट्रेल‍ियन माइन‍िंग दिग्‍गज रिओ टिंटो ने आस्‍ट्रेल‍िया की अपनी खदान में 80 फीसदी हिस्‍सेदार बेच कर कोयले को श्रद्धांजलि की कारोबारी रजिस्‍ट्री कर दी थी.

लौट आया काला सम्राट  

कोयला मरा नहीं.

फंतासी नायक या भारतीय दोपहर‍िया टीवी सीरियलों के हीरो के तरह वापस लौट आया. पुतिन ने यूक्रेन पर हमला कर दुनिया की ऊर्जा योजनाओं को काले सागर में डुबा दिया. पर्यावरण की सुरक्षा के वादे और दावे पीछे छूट गए. पूरी दुनिया कोयला लेने दौड़ पड़ी है. सबसे आगे वे ही हैं जो कोयले का युग बीतने की दावत बांट रहे थे

दुनिया की करीब 37 फीसदी बिजली कोयले से आती है इस‍का क्षमता का अध‍िकांश हिस्‍सा यूरोप से बाहर स्‍थापित था. यूरोस्‍टैट के आंकड़ों के मुताबिक 2019 तक यूरोप की अपनी केवल 20 फीसदी ऊर्जा के लिए कोयले का मोहताज था. बाकी ऊर्जा सुरक्षित स्रोतों और गैस से आती थी.

यूरोप 2025 तक अपने अध‍िकांश कोयला बिजली संयंत्र खत्‍म करने वाला था लेक‍िन अब रुस की गैस न मिलने के बाद बाद आस्‍ट्र‍िया जर्मनी इटली और नीदरलैंड ने अपने पुराने कोयला संयंत्र शुरु करने का एलान किया है.

इंटरनेशनल इनर्जी एजेंसी (आईईए)  ने बताया है कि यूरोपीय समुदाय में कोयले की खपत 2022 में करीब 7 फीसदी बढ़ेगी जो 2021 में 14 फीसदी बढ़ चुकी है. पूरी दुनिया में कोयले की खपत इस साल यानी 2022 में 8 बिल‍ियन टन हो जाएगी जो 2013 की रिकार्ड खपत के बराबर है.

कोयले की कीमत भी चमक उठी है. इस मई में यह 400 डॉलर प्रति टन के रिकार्ड स्‍तर पर को छू गई.

माइन‍िंग डॉट कॉम और इन्‍फोरिसोर्स ने बताया कि विश्‍व के ताजा खनन न‍िवेश में कोयले अब तांबे से आगे है 2022-23 में करीब 81 अरब डॉलर की 1863 कोयला परियोजनायें सक्रिय हैं 2022 के जून तक दुनिया की कोल सप्‍लाई चेन में निवेश रिकार्ड 115 अरब डॉलर पर पहुंच गया था इसके बड़ा हिस्‍सा चीन का है.

दुनिया के बैंकर और कंपन‍ियां कोयले को पूंजी दे रहे हैं. इंडोनेश‍िया दुनिया सबसे बड़ा न‍िर्यातक और पांचवा सबसे बड़ा कोयला उत्‍पादक है यहां के माइनिंग उद्योग को सिटी ग्रुप, बीएनपी पारिबा, स्‍टैंडर्ड एंड चार्टर्ड का कर्ज जनवरी 2022 में 27 फीसदी बढ़ा है. एश‍िया की कोयला जरुरतों के लि‍हाज से इंडोनेश‍िया सबसे बड़ा सप्‍लायर है.

अमेरिका कोयले का स्‍व‍िंग उत्‍पादक है. बीते बरस चीन ने आस्‍ट्रेल‍िया से कोयला आयात पर रोक लगाई थी उसके बाद अमेरिका का कोयला निर्यात करीब 26 फीसदी बढ़ा है..

 

भारत और चीन की बेचैनी

 

रुस, इंडोनेशिया और आस्‍ट्रेल‍िया कोयले सबसे बड़े निर्यातक है इनके बाद दक्षि‍ण अफ्रीका और कनाडा आते हैं. चीन, जापान और भारत से सबसे बड़े आयातक हैं अब यूरोप भी इस कतार में शामिल होने जा रहा है. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी बता रही है भारत और चीन की मांग ने बाजार को हिला दिया है. इनकी कोयला खपत पूरी दुनिया कुल खपत की दोगुनी है.

दुनिया की आधी कोयला मांग तो केवल चीन से निकलती है.चीन की 65 फीसदी बिजली कोयले से आती है. उसके पास कोयले का अपना भी भारी भंडार है. गैस की महंगाई और कि‍ल्‍लत के कारण यहां नई खनन परियोजनाओ में निवेश बढ़ाया जा रहा

भारत में इस साल फरवरी में कोयले का संकट आया. महाकाय सरकारी कोल कंपनी कोल इंड‍िया आपूर्तिकर्ता की जगह आयातक बन गई. इस साल भारत का कोयला आयात बीते साल के मुकाबले तीन गुना हो गया है..ईआईए का अनुमान है कि भारत में कोयले की मांग इस साल 7 से 10 फीसदी तक बढ़ेगी.

सब कुछ उलट पलट

ग्रीनहाउस गैस रोकने वाले इस साल कोयले से रिकार्ड बिजली बनायेंगे. नौ फीसदी की बढ़त के साथ यह उत्‍पादन इस साल 10350 टेरावाट पर पहुंच जाएगा.

कोयला दुनिया का सबसे अध‍िक कार्बन गहन जीवाश्‍म ईंधन है. पेरिस समझौते का लक्ष्‍य था इसकी खपत घटाकर ग्‍लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्‍स‍ियस कम किया जाएगा.

2040 तक कोयले को दुनिया से विदा हो जाना था. लेक‍िन तमाम हिकारत, लानत मलामत के बाद भी कोयला लौट आया है. अब अगर  दुनिया को धुंआ रहित कोयला चाहिए एक टन कोयले को साफ करने यानी सीओ2 कैच का खर्चा 100 से 150 डॉलर प्रति टन हो सकता है. बकौल ग्‍लोबल कॉर्बन कैप्‍चर एंड रिसोर्स इंस्‍टीट्यूट के मुताबिक दुनिया को हर साल करीब 100 अरब डॉलर लगाने होंगे यानी अगले बीच साल में 650 बिल‍ियन से 1.5 ट्रि‍ल‍ियन डॉलर का निवेश.

यानी धुआं या महंगी बिजली दो बीच एक को चुनना होगा ..

और यह चुनाव आसान नहीं होने वाला.