Showing posts with label bad bank. Show all posts
Showing posts with label bad bank. Show all posts

Saturday, September 25, 2021

बुरा न मानो बैंक है !


देश के लोग बैंकिंग और मौद्रिक प्रणाली को नहीं समझते क्योंकि अगर ऐसा हो जाए तो कल ही लोग सड़कों पर होंगे, बगावत हो जाएगी. अमेरिका के उद्योगपति हेनरी फोर्ड की यह मशहूर चुहल भारतीयों के बड़े काम की है जिन्हें सरकार ने एक बुरा बैंक (बैड बैंक) भेंट किया है. आप भी मजाक कर सकते हैं कि अच्छे बैंकों के निजीकरण का रास्ता बुहारने के लिए सरकार की गारंटी पर एक बैड बैंक बनाया गया है.

बैड बैंक या नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी कुछ ऐसे प्रकट की गई है कि जैसे कर्ज-कीचड़ में डूबे भारतीय सरकारी बैंकों को पाप-ताप से मोक्ष देने वाला अवतार या मसीहा गया है. बैड बैंक के बाद शेयर बाजार में सरकारी बैंक के शेयरों की ऊंची कूद पर बहुत से लोग न्योछावर हो रहे हैं. अलबत्ता किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले जरा ठहरिए, अगर आपको लगता है कि बुरा बैंक भारत के अच्छे बैंकों के सभी बकाया कर्ज (एनपीए) वसूली का जादू कर देगा, तो फोर्ड कंपनी के संस्थापक हेनरी फोर्ड पूरी तरह सही हैं. क्योंकि सरकारें चाहती ही नहीं कि हम बैंकिंग समझ सकें.

क्या बैड बैंक, सरकारी और निजी बैंकों के सभी बकाया या डूबे कर्ज (कुल एनपीए 8.34 लाख करोड़ रुपए, 31 मार्च, 2021 तक) खरीद लेगा? हरगिज नहीं. बैड बैंक, दरअसल, बैंकिंग उद्योग का कबाड़ी है. बैंकों का काफी कर्ज डूब चुका है. इसे डूबे कर्ज के भूतों की लंगोटी जुटाने के लिए बनाया गया है. बैड बैंक को वे कर्ज दिए जाएंगे जिनकी वसूली की उम्मीद खत्म हो चुकी है. बैंकों के लिए यह कर्ज डूब चुके हैं, उन्होंने अपने मुनाफे झोंक (प्रॉविजनिंग) कर इसकी भरपाई भी कर दी है. बस अभी तक यह कर्ज बट्टे खाते में (राइट ऑफ) नहीं डाले गए हैं.

सरकार तो बैड बैंक को पहले चरण में दो लाख करोड़ रुपए के कर्ज वसूलने के लिए इसे दे रही है. इतना पैसा बैंकों को मिलेगा? हरगिज नहीं. बैड बैंक, इसे मिलने वाले कर्ज की कीमत लगाएगा जो सौंपे गए कर्ज का केवल 10-15 फीसद हो सकती है. बस इतनी ही रकम बैंकों को मिलेगी. इसमें 15 फीसद नकद में दिया जाएगा और 85 फीसद सरकारी गारंटी वाले बॉन्ड के तौर पर. अगर बैड बैंक आगे कुछ वसूल पाया तो इसी (15:85) के अनुपात में बैंकों को पैसा वापस होगा.

बैड बैंक यह 15 फीसदी नकद कहां से देगा? देश के 16 बैंक इस (12 सरकारी और चार निजी) बुरे बैंक के प्रवर्तक हैं. इन्होंने जो पूंजी इसमें लगाई है उससे यह नकद भुगतान होगा. यानी कि बैंक अपना ही पैसा खुद को देंगे. बचे हुए 85 फीसद के बॉन्ड भी इन्हीं बैंकों के बीच में आपस में खरीदे-बेचे जाएंगे.

बैड बैंक डूबा हुआ कितना कर्ज वसूल पाएगा? विशाल कर्ज के बदले सरकार की छोटी सी गारंटी देखिए, समझ में जाएगा. सरकार को ही केवल (कर्ज-2 लाख करोड़ रुपए, वसूली लायक कर्ज का अनुमानित मूल्य 36,000 करोड़ रुपए, 85 फीसद बॉन्ड 30,000 करोड़ रुपए की गारंटी) 18 फीसद कर्ज वसूली की उम्मीद है. वैसे, तजुर्बे बताते हैं कि बट्टे खाते में गए बैंक कर्ज का 10 फीसद मुश्किल से वसूल हो पाता है

इतनी कम वसूली होनी है तो फिर बैड बैंक क्यों? वजह यह कि बैंक अपने डूबे हुए पैसे डूबा घोषित नहीं कर सकते. उनके लिए इसकी कीमत शून्य है. बैड बैंक अगर इनके बदले कुछ भी देगा तो वह बैंकों मुनाफा ही होगा जो उनकी पूंजी का हिस्सा बनेगा. यही वजह है कि शेयर बाजार में सरकारी बैंकों के शेयर तेजी खींचे हुए हैं

दरअसल, डूबे और फंसे बैंक कर्ज में जो मिल जाए उसे जुटाने की यह तीसरी कोशिश है. पहली कोशिश में इस बैड बैंक के पूर्वज यानी एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियां आती हैं. ऐसी 28 कंपनियां पहले से हैं जो रिजर्व बैंक के मुताबिक, बकाए की 26 फीसद वसूली कर सकीं.

दूसरी कोशिश बैंकरप्टसी कानून के जरिए हुई, जिसमें बैंकों के बकाया कर्ज का जमकर मुंडन हुआ. औसत वसूली 21 फीसद (जुलाई-सितंबर 2020) रही है.

बैड बैंक का हिसाब बता रहा है कि इससे तो उम्मीद और भी कम है यानी डूबे कर्ज का 20 फीसदी तक लौटना कठिन है. हालांकि बैड बैंक के साथ दुनिया के तजुर्बे इतने भी खराब नहीं रहे हैं. 1992 से 97 तक सक्रिय रहे स्वीडन के बैड बैंक सेक्यूरम ने करीब 86 फीसद फंसे कर्ज वसूल लिए थे. एशियाई मुद्रा संकट के बाद मलेशिया का बैड बैंक दानहर्ता करीब 58 फीसद वसूली कर लाया. कोरिया (60 फीसद वसूली) थाईलैंड (46 फीसद) और इंडोनेशिया (23 फीसद) के प्रयोग सफल रहे हैं लेकिन भारत में डूबा कर्ज डूब ही जाता है. यही वजह है कि जहरीले कर्ज के मामले में भारत ने बीते एक दशक में खुद को दुनिया की तीसरी सबसे खतरनाक बैंकिंग में बदल लिया है. यूनान (जो दीवालिया है) और रूस के बाद भारत कुल कर्ज के अनुपात में फंसे हुए कर्ज में तीसरे नंबर पर है.

बैड बैंक मसीहा नहीं है. भारत के बैंकों के अधिकांश डूबे कर्ज वसूल होने की संभावना भी नहीं है. यह सरकारी बैंकों की सफाई की व्यवस्था है. डूबा कर्ज इसे सौंपने के बाद इन बैंकों की बैलेंस शीट चमक जाएगी जो निजीकरण के बाजार में बेहतर कीमत के लिए जरूरी है. किस्सा बस इतना ही है कि सरकार बैंकों में नई पूंजी डालने के हालत में नहीं है, इसलिए वह बैड बैंक की पूंछ पकड़ कर बैंकिंग के भवसमुद्र से पार हो जाना चाहती है.