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Wednesday, January 12, 2022

असंभव मुद्रा !


 




कभी कभी ही होता है एसा, जब पूरी दुनिया महीनों की मगजमारी के बावजूद किसी सवाल का जवाब न तलाश पाए.

आप समझ रहे हैं कि हमारा इशारा किस तरफ है ? वैक्‍सीन, वायरस, ब्‍याज दर,जीडीपी, महंगाई !! कतई नहीं.. इनके जवाब तो मिल गए हैं, सबके बारे में कुछ न कुछ पता है 

पता नहीं है तो बस इतना ही क‍ि क्र‍िप्‍टोकरेंसी, तेरा क्‍या होगा

क्र‍िप्‍टोकरेंसी और डिजिटल मुद्रा का भविष्‍य का सवाल बीते 24 महीनों से हमें छका रहा है. अब यह सवाल तैर कर 2022 में पहुंच गया है और मुसीबत यह है कि वक्‍त बीतने के साथ सवालों की गांठ खुलने के बजाय कसती जा रही है

अगर क्र‍िप्‍टो दीवाने नहीं है तो जरा ध्‍यान से देखि‍ये किप्‍टो और डिजिटल मुद्राओं के सवाल अब ब्‍लॉकचेन से ज्‍यादा जट‍िल हो चले हैं मसलन 

-         नई तकनीकों को लपक कर अपना लेने वाली दुन‍िया डिज‍िटल करेंसी पर इतनी सशंक‍ित क्‍यों है?

-         मुद्रा के संचालन को संभालने वाले विश्‍व के केंद्रीय बैंक करेंसी के इस तकनीकी अवतार पर रह रह कर खतरे के अलार्म क्‍यों बजा रहे हैं?

-         केंद्रीय बैंकों की खुली चेतावन‍ियों के बावजूद सरकारें डिजिटल और क्रिप्‍टोकरेंसी को लेकर असंमजस के आसमानी झूले में क्‍यों सवार हैं?

दुनिया में बहुत से आश्‍चर्य हुए हैं लेकिन क्रिप्‍टो जैसा तमाश वित्‍तीय दुनिया में दुर्लभ है. कहते हैं लोग पैसा सोच समझ कर लगाते हैं. दूध के जले लस्‍सी भी रखकर पीते हैं लेक‍िन यहां तो नियामकों न‍िवेशकों के बीच एक जंग छिड़ी है. न‍ियामक कह रहे हैं यह खतरनाक है और निवेशक पैसा झोंकते जा रहे है यह मानकर क‍ि सरकारें चाहे जो पहलू बदलें, लेकिन क्रिप्‍टो को कानूनी बनाना ही होगा. यही तो वजह है कि  इतनी चेतावन‍ियो के बावजूद 2022 का पहला सूर्य उगने से पहले तक क्रिप्‍टो में निवेश 2 ट्रि‍ल‍ि‍यन डॉलर तक पहुंच गया था यानी 2020 से दस गुना ज्‍यादा.

डिजट‍िल करेंसी भी मुश्‍कि‍ल

अगर किसी को लगता है क्रिप्‍टो दीवानों की चिल्‍ल पों के बाद  दुन‍िया के बैंक तेजी से डिजिटल करेंसी लाने जा रहे हैं तो उसे ठहर कर आईएमएफ की बात सुननी चाह‍िए. अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष कह रहा है  कि रुपया डॉलर युआन या यूरो के डिजिटल अवतार ही नामुमक‍िन हैं यानी इनके डि‍ज‍िटल संस्‍करणों को कानूनी टेंडर का दर्जा ही मिलना असंभव है.

आईएमएफ ने अपने 174 सदस्‍य देशों के मौद्रिक कानूनों का अध्‍ययन करने के बाद यह संप्रभु मुद्राओं के ड‍िजिटल अवतारों की संभावना को खार‍िज किया है. मुद्रा कोष की निष्‍कर्ष जानने से पहले कुछ तकनीकी बातें जानना जरुरी है.

व्‍यवहार‍िकता का सवाल

मुद्रा जारी करना केंद्रीय बैंकों जैसे भारतीय रिजर्व बैंक या फेडरल रिजर्व का बुनियादी दाय‍ित्‍व है. मौद्रिक कानूनों में मनी या धन जारी करना एक तरह से कर्ज है जो केंद्रीय बैंकों सरकार को देते हैं. इसल‍िए बेहद मजबूत कानूनी ढांचे के साथ यह काम केवल केंद्रीय बैंकों को दिया जाता है. सेंट्रल या फेडरल बैंकिंग को इसी मकसद से तैयार किया गया था. सनद रहे कि 17 वीं सदी का एक्‍सचेंज बैंक ऑफ एम्‍सटर्डम आज के केंद्रीय बैंकों का पुरखा है.

अगर करेंसी जारी करना केंद्रीय बैंकों का काम है तो फिर डि‍ज‍िटल करेंसी में क्‍या दिक्‍कत है.  इस सवाल के जवाब केइ लिए आईएमएफ ने दुनिया भर मौद्र‍िक प्रणाल‍ियों की पड़ताल की.  किसी करेंसी को लीगल टेंडर इसलिए कहा जाता है कि इसके जरिये कर्ज लेने वाला कर्जदाता को अपने कर्ज चुका जा सकता है. नतीजतन करेंसी का दर्जा केवल उसी उपकरण को मिलता है जो सबको सुलभ हो. यही वजह है कि रुपये और सिक्‍के सबसे प्रचल‍ित करेंसी हैं.

डिजिटल करेंसी के लिए डिज‍िटल साधन ( कंप्‍यूटर, इंटरनेट) जरुरी है. कोई भी सरकार अपने नागरिकों को यह सब रखने के लिए बाध्‍य नहीं कर सकती.  इसल‍िए संप्रभु मुद्राओं का  डिजिटल करेंसी अवतार मुश्‍कि‍ल है. आईएमएफ के विशेषज्ञ मानते हैं कि भुगतान के ल‍िए कई तरह के उपकरणों (मसलन फूड कोर्ट में मि‍लने वाले टोकेन) का प्रयोग हो सकता है लेकिन वे करेंसी या लीगल टेंडर नहीं है

कैसी चलेगी यह ड‍िज‍िटल करेंसी

केंद्रीय बैंकों की उलझन एक और बड़ा पहलू है कि डिजिटल करेंसी का कानूनी स्‍वरुप क्‍या होगा. क्‍या रिजर्व बैंकों जैसों के खातों में मौजूद धन का डि‍ज‍िटाइजेशन होगा या फिर अलग समानांतर डि‍ज‍िटल टोकेन जारी होंगे. ड‍िजिटल टोकेन के लिए कानूनी ढांचा उपलब्‍ध नहीं है. केंद्रीय बैंकों को यह पता भी नहीं है कि इस पर भरोसा बनेगा या नहीं.

डिजिटल करेंसी थोक संचालनों में काम आएगी या आम लोगों के ल‍िए भी होगी? आईएमएफ का कहना है कि केंद्रीय बैंकों के संचालन वाण‍िज्‍य‍िक बैंकों के साथ होते हैं. ग्राहक इन बैंकों के साथ संचालन करते हैं, डिजिटल करेंसी की स्‍थि‍त‍ि में क्‍या आम लोग सीधे केंद्रीय बैंक से लेन देन करेंगे. इस तरह की  व्‍यवस्‍था के ल‍िए पूरा कानूनी ढांचा नए सिरे से तैयार करना होगा. 

डिजिटल करेंसी को लेकर अभी टैक्‍स, प्रॉपर्टी, अनुबंध, दीवाल‍ियापन, भुगतान प्रणाली, साइबर सुरक्षा जैसे और भी जटिल  कानूनी सवालों  पर चर्चा भी नहीं शुरु हुई है. अभी तो बैंकिंग व मुद्रा प्रणाला का बुन‍ियादी स्‍वरुप ही इसके लिए तैयार नहीं दि‍खता.

भारत में रिजर्व बैंक भले ही सेंट्रल बैंक डि‍ज‍िटल करेंसी (सीबडीसी) की चर्चा कर रहा हो लेकिन मुद्रा कोष का अध्‍ययन कहता है कि विश्‍व के 174 प्रमुख देशों के 131 केंद्रीय बैंकों के कानून उन्‍हें केवल नोट और सिक्‍के जारी करने की छूट देते हैं, ड‍िज‍िटल करेंसी की कोई व्‍यवस्‍था ही नहीं है.

सबसे बडा सवाल यह है कि यदि लीगल टेंडर के दर्जे, भुगतान की सुव‍िधा और अन्‍य प्रामाणि‍कताओं के साथ डिजिटल करेंसी अपनाई जानी है तो यह काम पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंकों व सरकारों को एक साथ करना होगा क्‍यों संप्रभु मुद्रायें अंतरराष्‍ट्रीय एक्‍सचेंज  का हिस्‍सा होती हैं. यद‍ि सभी देश एक साथ अपने कानून नहीं बदलते यह प्रणाली शुरु ही नहीं हो पाएगी.

अब समझा सकता है कि आखि‍र विश्‍व के केंद्रीय बैंक, क्र‍िप्‍टोकरेंसी पर इतने  सवाल क्‍यों उठा रहे हैं. क्रि‍प्‍टो को करेंसी का दर्जा मिलना तो खैर लगभग असंभव ही है यहां तो रुपया, डॉलर, येन, युआन, लीरा, पाउंड के डि‍ज‍िटल संस्‍करण भी असंभव लगते हैं. पुरानी कहावत है कि विश्‍वास या साख सबसे ज्‍यादा मूल्‍यवान है, यही साख या भरोसा सभी मुद्राओं यानी करेंसी का जनक है. विश्‍व के बैंक अपनी मुद्राओं के ड‍िजिटलावतार में इसी साख के टूटने का खतरा देख कर दुबले हो रहे हैं.  

 

Friday, August 13, 2021

आएगा आने वाला


अगर आपने बीते एक साल के दौरान यूपीआइ (यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस) का इस्तेमाल किया है या मोबाइल वालेट से भुगतान किया है तो आप  प्रसिद्ध जर्मन भौतिकीविद मैक्स प्लैंक को सही सिद्ध कर रहे हैं जो कहते थे कि विज्ञान और तकनीक से लोगों की सोच नहीं बदलती. बड़े परिवर्तन इसलिए होते हैं क्योंकि बदलावों का प्रतिरोध मर चुका होता है और नई पीढ़ी इन नए उपायों के अलावा और कुछ नहीं जानती.

भारतीय बैंकों के निजीकरण का तो पता नहीं लेकिन बैंकिंग बदल चुकी है. ओपन बैंकिंग या निओ बैंकिंग का आगाज हो चुका है. बात इतनी ही नहीं कि 2017 से 2021 बीच भारत में यूपीआइ के जरिए पेमेंट 388 फीसद सालाना की दर से बढ़ा है, या भारत में डिजिटल पेमेंट सालाना बीते एक दशक में 55 (संख्या) और 43 (विनिमय का मूल्य) फीसद की गति से बढ़े हैं बल्कि भारत की समग्र बैंकिंग ही पुराने कूल-किनारे तोड़ कर बहने को तैयार है.

तकनीकें अपने लिए माहौल खुद बना लेती हैं. जब बैंकों के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए 'सहमति’ (ओपन फाइनेंशियल डेटा नेटवर्क), कैशलेस भुगतानों के लिए यूपीआइ, आइएमपीएस, मोबाइल वालेट जैसी नए प्रयोग हो रहे थे या कि आधार के जरिए ऑनलाइन प्रमाणन की प्रणाली बनाई जा रही थी तब यह नहीं सोचा गया था कि यह भविष्य की बैंकिंग की बुनियाद होगी. बाजार जरूरतें बदलीं, ग्राहकों की विविध जरूरतों के लिए नए उत्पादों का अवसर बना तो नए उद्यमियों (स्टार्ट-अप) ने 'सहमति, यूपीआइ, ईआधारकी मदर फिनटेक पर केंद्रित ओपन बैंकिंग का बिगुल बजा दिया.

बदलाव का नक्शा

कारोबारी रिश्तों के मामले में भारतीय बैंकिंग, बैंकों के झुंड से बाहर नहीं निकलने के हक में नहीं रही है लेकिन मामला कारोबार बढ़ाने का था तो उन्हें ऐप्लिकेशन परफॉर्मिंग इंटरफेस (एपीआइ) के बाजार में कूदना पड़ा. इसके जरिए बैंकिंग सेवाएं और ग्राहकों की सूचनाएं उन कंपनियों के लिए खुल गईं जिनके इतिहास में बैंकिंग का कोई तजुर्बा दर्ज नहीं है. यही फिनटेक है जिसके जरिए कोई कंपनी, बैंकों के समानांतर ही उनकी सेवाएं (जमा, लोन, कार्ड भुगतान आदि) ग्राहकों दे सकती है.

इस बदलाव ने भारतीय बैंकिंग को अचानक अमेरिका, यूरोप, जैसे आधुनिक बैंकिंग मुल्कों की पांत में खड़ा कर दिया. कोटक, आइसीआइसीआइ, एपडीएफसी और येस बैंक ने नए तकनीक प्लेटफॉर्म बनाकर फिनटेक कंपनियों को नए अवसर दिए. सनद रहे कि यूपीआइ में सरकारी बैंक आगे आए हैं लेकिन एपीआइ मे सरकारी बैंक पिछड़ गए हैं क्योंकि इसके लिए कोर बैंकिंग ढांचे में व्यापक और महंगे तकनीकी बदलावों की जरूरत है.

मंदी के बीच भारत में आई स्टार्ट-अप की नई खेप फिनटेक पर केंद्रित है. यह बाजार करीब 15,000 करोड़ रुपए का है. डिजिटल फिफ्थ की रिपोर्ट बताती है कि 2020-21 में  112 स्टार्ट-अप को करीब 1.4 अरब डॉलर का निवेश मिला. फिनटेक स्टार्ट-अप 2016 से अब तक 10 अरब डॉलर उठा चुके हैं. आठ कंपनियां यूनीकॉर्न (एक अरब डॉलर) बन चुकी हैं. बीते एक वित्त वर्ष में इस बाजार में करीब नौ बड़े अधिग्रहण हो चुके हैं. फ्लिपकार्ट वाले सचि बंसल के नवी (वित्त वर्ष 2020 में 221 करोड़ का कारोबार) का डीएचएफएल जनरल इंश्योरेंस को लपक लेना खासा चर्चि रहा है.

दो दर्जन इंस्टा लोन और डिस्काउंट ब्रोकिंग स्टार्ट-अप चुके हैं. अब ऑनलाइन बीमा बेचने और उद्योग को कर्ज बांटने की बारी है.

बाजार बदला तो नियामक भी जागे. रिजर्व बैंक ने पेमेंट और डिजिटल सेवाओं के लिए बैंकों को नियम नीति बनाने को कहा है. वालेट बैंक पर एनईएफटी/आरटीजीएस की इजाजत दे दी गई है. बीमा नियामक (इरडा) और रिजर्व बैंक, दोनों ही वीडियो आधारित केवाइसी की छूट देने लगे हैं. पब्लि क्रेडिट रजिस्ट्री बनने वाली है जो कर्ज लेने वालों की पूरी सूचना एक जगह रखेगी.

खतरों भरा खालीपन

इस संभावनामय क्रांति के बीच एक खतरनाक खालीपन हमें डराता है. चाइनीज ऐप लोन घोटाले ने बताया है कि फिनटेक और ओपन बैंकिंग आने के बावजूद सूचनाओं की सुरक्षा (डेटा प्रोटेक्शन) को लेकर सरकार की नींद नहीं टूटी है. नया कानून अधर में है. डेटा इंपावरमेंट और प्रोटेक्शन आर्किटेक्चर  (दीपा) पर नीति आयोग की सिफारिश मंत्रालयों के बीच अब भी भटक रही है.

तकनीकें सुविधा और सहजता लाती हैं, इसलि वे बेहद खामोशी के साथ संस्कृतियां बदल देती हैं. या कि 2020 में भारत डिजिटल लेनदेन के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा देश (25.5 अरब विनिमय) देश हो गया है. चीन भारत से पीछे है

तकनीकें, जैविक विकास जैसी होती हैं, मनुष्य का वापस वानर बन जाना असंभव है. पुरानी बैंकिंग की वापसी भी अब नामुमकिन है लेकिन भारत के लोग इस क्रांति का लाभ लेने से पहले निजता और सूचनाएं गंवाकर लुट पिट जाएं, इसके लिए राजनीति पर निर्णायक दबाव बनाना होगा. नहीं तो ओपन बैंकिंग हमारी वित्तीय निजता लूट में भी बदल सकती है.