मंदी और कुदरत के मारे जापान में ऐसा क्या है जो उसकी मुद्रा (येन) पहलवान हुई जा रही है ! चीन ने तो कमजोर युआन के सहारे ही दुनिया फतह की थी, वह अपनी इस ताकत को क्यों गंवाने जा रहा है ? और भारत में इतना बुरा क्या हो गया कि रुपये के घुटने जरा भी ताकत नहीं जुटा पा रहे हैं ? विदेशी मुद्रा बाजार के लिए 2012 की शुरुआत बला की रहस्यमय है। ऊपर से देखने में ऐसा लगता हे कि अमेरिका यूरोप और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में गिरावट का एक कोरस चल रहा है मगर भीतर कुछ दूसरी ही खिचड़ी पक रही है। एशिया तो मुद्राओं की अनोखी मुद्राओं का थियेटर बन गया है। संकटों की मारी सरकारें अप्रत्याशित तेजी से नीतियां बदल रही हैं इसलिए निवेशक भी व्यापक आर्थिक संकेतकों छोड़कर अलग-अलग बाजारों में सूक्ष्म बदलावों को पकड रहे हैं। कई ढपलियों और रागों वाला ताजा वित्तीय परिदृश्य अब दिलचस्प ढंग से पेचीदा हो चला है।
येन का रहस्य
जापानी येन की मजबूती विदेशी मुद्रा बाजार का सबसे ताजा रहस्य है। दिसंबर के अंत में येन डॉलर के मुकाबले बीस साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया है। जापान लंबी अर्से से गहरी मंदी (डिफ्लेशन) में है। सुनामी और भूकंप ने देश की अर्थव्यव्स्था को तोड दिया है। देशी कर्ज जीडीपी का 200 फीसदी है। यानी कि देश की मुद्रा को मजबूत नहीं बनाने वाला कुछ भी नहीं है। मगर जापान के केंद्रीय बैंक को पिछले साल तीन बार बाजार में दखल देकर मजबूती रोकनी पड़ी। दरअसल अस्थिर विश्व बाजारों के बीच जापान में निवेशकों को एक अनोखी सुरक्षा मिल गई हे। अमेरिकी व यूरोपीय बाजारों में निवेश पर रिटर्न घट रहा है तो जापान के सरकारी बांडों पर अमेरिका के मुकाबले करीब तीन फीसदी ज्यादा रिटर्न है। मुद्रास्फीति अच्छे रिटर्न की दुश्मन है, जो कि जापान में शून्य पर है। इसलिए जापान के बांडों में निवेश हो रहा है। यही निवेश येन की मजबूती की वजह है। मंदी और भारी कर्ज से अर्थव्यवस्था पर निवेशकों का ऐसा दुलार