दस वर्ष की सबसे कमजोर विकास दर के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था अब विशुद्ध स्टैगफ्लेशन में है। इस माहौल में भारत निर्माण का प्रचार, तरक्की के खात्मे पर खलनायकी ठहाके जैसा लगता है।
भारत के
पास अगर बेरोजगारी नापने का भरोसेमंद पैमाना होता या हम जिंदगी जीने की लागत को
संख्याओं में बांध पाते तो दुनिया भारत का वह असली चेहरा देख रही होती जो विकास
दर के आंकडों में नजर नहीं आता। पिछले कई दशकों में सबसे ज्यादा रोजगार, आय, निवेश, खपत, राजस्व, तकनीक व खुशहाली
देने वाली ग्रोथ फैक्ट्री के ठप होने के बाद भारत अब रोजगार व आय में साठ सत्तर
के दशक और आर्थिक संकटों में इक्यानवे जैसा हो गया है। दस वर्ष की सबसे कमजोर
विकास दर के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था अब विशुद्ध स्टैगफ्लेशन में है। जहां मंदी
व महंगाई एक साथ आ बैठती हैं। बदहवास सरकार के सिर्फ किस्मत के सहारे आर्थिक सूरत
बदलने का इंतजार कर रही है। इस माहौल में भारत निर्माण का प्रचार, तरक्की के खात्मे पर खलनायकी ठहाके जैसा लगता है।
आर्थिक
विकास के ताजे आंकडे़ बेबाक हैं। इनमें ग्रोथ के टूटने का विस्तार व गहराई दिखती
है। संकट पूरी दुनिया में था, लेकिन हमारा ढहना सबसे विचित्र है। सभी क्षेत्रों में ग्रोथ माह दर माह
लगातार