भारत की खर्च लक्ष्मी इस बार इतनी रुठी और अनमनी थी कि उपभोक्ता खर्च सबसे बड़ा भारतीय उत्सव, कंजूसी की अमावस बन कर गुजर गया।
इस दीवाली अधिकांश भारतीय जब गणेश लक्ष्मी को गुहार रहे थे
ठीक उस समय दुनिया की तमाम कंपनियां और निवेशक भारतीयों की खर्च लक्ष्मी को मनाने
में जुटे थे। इस दीप पर्व पर भारतीय उपभोक्ताओं ने जितनी बार जेब टटोल कर खरीद
रोकी या असली शॉपिंग को विंडो शॉपिंग में बदल दिया, उतनी बार निवेशकों के दिमाग
में यह पटाखा बजा कि आखिर भारतीयों की खरीदारी दिया बाती, गणेश लक्ष्मी, खील
बताशे से आगे क्यों नहीं बढ़ी ? कारपोरेट और निवेश
की दुनिया में इस सवाल की गूंज उस धूम धड़ाके से ज्यादा जोरदार है जो दीवाली के
ऐन पहले शेयरों में रिकार्ड तेजी बन कर नमूदार हुआ था। यह पिछले एक दशक की पहली
ऐसी दीपावली थी जब भारतीयों ने सबसे कम खर्च किया। भारी महंगाई व घटती कमाई के
कारण भारत की खर्च लक्ष्मी इस बार इतनी रुठी और अनमनी थी कि उपभोक्ता खर्च सबसे
बड़ा भारतीय उत्सव, कंजूसी की अमावस बन कर गुजर गया।
शेयरों में तेजी की ताजा फुलझड़ी तो विेदेशी
पूंजी के तात्कालिक प्रवाह और भारत में बुरी तरह गिर चुकी शेयरों की कीमत से
मिलकर बनी थी जो दीवाली साथ खतम हो गई। इसलिए
पटाखों का धुआं और शेयरों में तेजी की धमक बैठते ही निवेशक वापस भारत में उपभोग
खर्च कम होने के सच से