Sunday, December 4, 2016

कैशलेस कतारों का ऑडिट

स्कीम का एक महीना बीतने से पहले ही टैक्‍स देकर काले धन को सफेद  
करने का मौका देने की जरूरत क्यों आन पड़ी
ह मजाक सिर्फ सरकारें ही कर सकती हैं कि काले धन को नेस्तनाबूद करने के मिशन के दौरान ही कालिख धोने का मौका भी दे दिया जाए. भारत दुनिया का शायद पहला देश होगा जो काला धन रखने वालों को बच निकलने के लिए दो माह में दूसरा मौका दे रहा है और वह भी काले धन की सफाई के नाम पर.

डिमॉनेटाइजेशन ने 8 नवंबर से अब तक इतने पहलू बदले हैं कि सरकार और रिजर्व बैंक भी भूल गए होंगे कि शुरुआत कहां से हुई थी. अलबत्ता टैक्स वाली कलाबाजी बेजोड़ है. स्कीम का एक महीना बीतने से पहले ही काले धन को सफेद (टैक्स चुकाकर) करने का मौका देने की जरूरत क्यों आन पड़ी

दरअसलनोटबंदी के पहले सप्ताह में जो सबसे बड़ी सफलता थीवही अगले कुछ दिनों में चुनौती और असफलता में बदलने लगी. डिमॉनेटाइजेशन के बाद बैंकों में डिपॉजिट की बाढ़ से काली नकदी का आकलन और नोटबंदी का मकसद ही पटरी से उतरने लगा है. रिजर्व बैंक के मुताबिक, 10 से 27 नवंबर तक डिपॉजिट और पुराने नोटों की अदला-बदली 8.44 लाख करोड़ रु. पर पहुंच गई. अपुष्ट आंकड़ों के अनुसार, 30 नवंबर तक डिपॉजिट 11 लाख करोड़ रु. हो गए थे.
  • ·    8 नवंबर को नोटबंदी से पहले बाजार में लगभग 14 लाख करोड़ रु. ऊंचे मूल्य (500/1000) के नोट सर्कुलेशन में थे. यानी कि 30 नवंबर तक 63 से 75 फीसदी नकदी बैंकों में लौट चुकी है.
  • ·        जमा करीब 49,000 करोड़ रु. प्रति दिन से बढ़े हैं. स्कीम 30 दिसंबर तक खुली है. आम लोगों के बीच हुए सर्वे बताते हैं कि अभी करीब 23 फीसदी लोगों ने अपने वैध पुराने नोट बैंकों में नहीं जमा कराए हैं.
  • ·        डिमॉनेटाइजेशन के बाद करीब 30 लाख नए बैंक खाते खुले हैं. 
  • ·        बैंकों से पुराने नोटों का एक्सचेंज बंद हो गया हैइसलिए अब डिपॉजिट ही होंगे. बैंकर मान रहे हैं कि करेंसी इन सर्कुलेशन का 90 फीसदी हिस्सा बैंकों में लौट सकता है.

डिपॉजिट की बाढ़ के दो निष्कर्ष हैः 
एकनकदी के रूप में काला धन था ही नहीं. आम लोगों की छोटी नकद बचत और खर्च का पैसा ही डिपॉजिट हुआ है. इसे बैंकों में लाना था तो इतनी तकलीफ बांटने की क्या जरूरत थी
अथवा
दोबैंकों की मिलीभगत से काला धन  खातों में पहुंच गया है. जन धन खातों के दुरुपयोग की खबरें इस की ताकीद करती हैं.

ध्यान रहे कि नोटबंदी की सफलता के दो पैमाने हैं. एककितना नकद बैंकों के पास आया और कितना बाहर रह कर बेकार हो गया. दोनोटबंदी से हुए नुक्सान के मुकाबले सरकार को कितनी राशि मिली है.
अब एक नजर नुक्सान के आंकड़ों परः
  •     सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसाररोजगारटोल की माफीकरेंसी की छपाई की लागत आदि के तौर पर 1.28 लाख करोड़ रु. का नुक्सान हो चुका है.
  •      इसमें जीडीपी का नुक्सान शामिल नहीं हैजो काफी बड़ा है.
  •      कंपनियों के मुनाफेशेयर बाजार में गिरावटबैंकों के नुक्सान अभी गिने जाने हैं.

प्रक्रिया पूरी होने के बाद रद्द हुई नकदी पर्याप्त मात्रा में नहीं होती है तो नुक्सान का आंकड़ाफायदों के आकलन पर भारी पड़ेगा.

डिपॉजिट की बाढ़ और नुक्सानों का ऊंचा आंकड़ा देखते हुए सरकार के पास पहलू बदलने के अलावा कोई रास्ता नहीं था. इसलिए काले धन को सफेद करने की नई खिड़की खोली गईजिसके तहत काला धन की घोषणा पर 50 फीसदी कर लगेगा और डिपॉजिट का 25 फीसदी चार साल तक सरकार के पास जमा रहेगा. पकड़े जाने के बाद टैक्स की दर ऊंची हो जाएगी.

इनकम टैक्स की नई कवायद के दो स्पष्ट लक्ष्य दिखते हैः

पहला— बेहिसाब डिपॉजिट पर भारी टैक्स से लोग हतोत्साहित हो जाएंगे और जमा में कमी आएगी. इससे कुछ नकदी बैंकिंग सिस्टम से बाहर रह जाएगी जो कामयाबी में दर्ज होगी.

दूसराअगर डिपॉजिट नहीं रुके तो जमा पर टैक्स और खातों में रोकी गई राशि सफलता का आंकड़ा होगी. 

डिमॉनेटाइजेशन आर्थिक फैसला हैजिसकी तात्कालिक सफलता आंकड़ों से ही साबित होगीवह चाहे नकदी को बैंकिंग से बाहर रखकर हासिल किया जाए या फिर टैक्स से. सरकार को काली नकदी के रद्द होने या टैक्स से मिली राशि का खासा बड़ा आंकड़ा दिखाना होगा जो इस प्रक्रिया से होने वाले ठोस नुन्न्सान (जीडीपी में गिरावटरोजगार में कमीबैंकों पर बोझ) पर भारी पड़ सके.

यह आंकड़ा आने में वक्त लगेगा लेकिन पहले बीस दिनों में नोटबंदी के खाते में कुछ अनोखे निष्कर्ष दर्ज हो गए हैंजिनकी संभावना नहीं थी.
  • ·        भारत का बैंकिंग सिस्टम बुरी तरह भ्रष्ट है. यह सिर्फ कर्ज देने में ही गंदा नहीं है बल्कि इसका इस्तेमाल काले धन की धुलाई में भी हो सकता है. सरकार इसे कब साफ करेगी?
  •    इनकम टैक्स का चाबुक तैयार है. टैक्स टेरर लौटने वाला है और साथ ही भ्रष्टाचार और टैक्स को लेकर कानूनी विवाद भी. 
  •       एक बेहद संवेदनशील सुधार को लागू करते हुए हर रोज होने वाले बदलावों ने लोगों में विश्वास के बजाए असुरक्षा बढ़ाई है.
  •     भारत के वित्तीय बाजार के पास बड़े बदलावों को संभालने की क्षमता नहीं है. नौ लाख करोड़ रु. बैंकों में सीआरआर बनकर बेकार पड़े हैंजिनके निवेश के लिए पर्याप्त बॉन्ड तक नहीं हैं और न ही कर्ज के लिए इसका इस्तेमाल हो सकता है. नई नकदी आने तक इसे लोगों को लौटाना भी संभव नहीं है. यह आम लोगों का उपभोग का खर्च हैअर्थव्यवस्था की मांग है जो बैंक खातों में बेकार पड़ी हैबैंक इसे संभालने की लागत से दोहरे हुए जा रहे हैं जबकि लोग अपनी बचत निकालने बैंकों की कतार में खड़े होकर लाठियां खा रहे हैं.

जरा सोचिएअगर डिमॉनेटाइजेशन न होता तो क्या हम सचाइयों से मुकाबिल हो पातेइसलिए इन तीन निष्कर्षों को नोटबंदी के मुनाफे के तौर पर दर्ज किया जा सकता है

बाकी हिसाब-किताब 30 दिसंबर के बाद.




Monday, November 28, 2016

मैले हाथों से सफाई!

इस स्‍वच्‍छता अभियान की लगाम जिनके हाथ हैपारदर्शिता के मामले में उनका रिकॉर्ड भारत में सबसे संदिग्ध है.
काला धन नकद में है या सोने मेंजमीन में बोया गया है या फिर इमारतें बनकर खड़ा हैनोटबंदी से कितनी कालिख बाहर आएगीइन कयासों के बीच इस पर भी चर्चा हो जानी चाहिए कि काला धन कहां बन रहा है और किस वजह से.
काली कमाई के मामले में हम निहायत दिलचस्प देश हो चले हैं. ईमानदार लोग अपनी बचत निकालने के लिए पुलिस से पिट रहे हैं जबकि दूसरी ओर सरकार के अभियान की लगाम जिनके हाथ हैपारदर्शिता के मामले में उनका रिकॉर्ड भारत में सबसे संदिग्ध है.
बैंक और टैक्स विभाग मोदी सरकार के स्वच्छता अभियान के शुभंकर हैंलेकिन काले धन की पैदावार में सबसे बड़ी भूमिका टैक्स सिस्टम की है और इसे छिपाने या धुलाने में बैंकिंग व वित्तीय तंत्र सबसे कारगर है और यही दोनों ईमानदारी के सर्टिफिकेट बांट रहे हैं
सभी अध्ययन और काले धन पर 2012 का सरकारी श्वेत पत्र मानते हैं कि भारत का टैक्स सिस्टम काले धन की बुनियादी वजह है. ज्यादातर टैक्स खपत पर लगते हैं जो व्यापार पर आधारित है इसलिए ट्रेड काले धन का निर्माता भी हैधारक भी और शिकार भी. भारत में व्यापार का बहुत बड़ा हिस्सा नकद पर आधारित हैइसलिए अधिकांश अनअकाउंटेड नकद (जो पूरी तरह काला धन नहीं है) ट्रेड में है.
कुछ आंकड़ों पर गौर फरमाना जरूरी हैः
  • व्यापार व उससे जुड़ी गतिविधियांमसलनट्रांसपोर्ट व विभिन्न वित्तीय सेवाएं जीडीपी में 30-35 फीसदी हिस्सा रखती हैं. यह जीडीपी में खेती के हिस्से का दोगुनाउद्योग के हिस्से से 10 फीसदी ज्यादा है.
  • 12 फीसदी अर्थव्यवस्था नकद पर चलती है. अधिकांश व्यापार नकद में है. कर्ज पर निर्भरता सीमित है इसलिए व्यापार का अपना क्रेडिट सिस्टम (उधारी) हैजिसमें थोक खरीद पहले होती है और भुगतान बाद में. इसके जरिए व्यापारी कैश फ्लो संतुलित करते हैं. 
  • राजस्व का बड़ा हिस्सा उपभोग पर लगने वाले टैक्सों से आता है. टैक्स की अधिकांश वसूली प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर व्यापार केंद्रित है.

भारत उपभोग पर सबसे अधिक टैक्स लगाने वाले देशों में है. आयकर की दरें भी ऊंची हैं. अधिकांश काला धन खपत यानी ट्रेड पर लगने वाले टैक्सों की चोरी से बनता है. व्यापारी टैक्स देना चाहते हैं लेकिन चोरी इसलिए होती है क्योंकि एककारोबारी लागत ऊंची हैटैक्स का बोझ लाभ के मार्जिन सीमित कर देता हैंदोखपत की विशालता के सामने टैक्स  सिस्टम की क्षमताएं बहुत सीमित हैं और तीनटैक्स नियमों के पालन की लागत यानी कंप्लाययंस कॉस्ट बहुत ज्यादा है. यही वजह है कि व्यापार का मुनाफा टैक्स चोरी से निकलता हैजिसमें भ्रष्ट टैक्स सिस्टम मददगार है. 

बैंक और वित्तीय सेवाएं भी पीछे नहीं हैं. बैंक न केवल आम लोगों की जमा पूंजी को बड़े कॉर्पोरेट कर्जों में डुबाने के लिए कुख्यात हैं बल्कि नोटबंदी के बाद इन बैंकों में काले धन की धुलाई से रिजर्व बैंक भी परेशान है.

बहुत बड़े पैमाने पर काला धन कानूनी गतिवधियों के जरिये बनता है. कॉर्पोरेटसेल्स और कारोबारी एकाउंटिंग में दर्जनों रास्ते छिपे हैं. कागजी कंपनियांआउट ऑफ बुक ट्रांजैक्शानकैश इन हैंडकई एकाउंट बुकउत्पादन कम दिखाकरखर्च में बढ़ोतरीबिक्री की रसीदों में हेरफेर करके बहुत-सा काला धन घुमायाखपाया और छिपाया जाता है. अकाउंटिंग का यह मकडज़ाल बैंकों की निगाह में है क्योंकि अधिकतर कारोबारी गतिविधियों का कोई न कोई हिस्सा बैंकों के नेटवर्क में है.

टैक्स चोरी और फर्जी अकाउंटिंग से बने काले धन के नेता व अधिकारियों तक पहुंचने की यात्रा दिलचस्प है. भारत का अधिकांश भ्रष्टाचार सेवाओं व सुविधाओं की कमी से उपजा है. उदारीकरण के बाद इनकी मांग बढ़ीआपूर्ति नहीं. रेलवे रिजर्वेशन से लेकर अनापत्ति प्रमाण पत्र तकस्कूल दाखिले से लेकर मकान बनाने तक हर जगह सेवाओं की मांग व आपूर्ति में भारी अंतर है. जहां यह अंतर घटावहां भ्रष्टाचार (टेलीफोनगैसकारें) खत्म हो गया.

इस किल्लत के बीच अफसर और नेताओं की एक छोटी-सी जमात के पास अकूत ताकत हैजो बेहद सामान्य सुविधाएं देने से लेकर हक और न्याय बांटने तक फैली है. 
भ्रष्टाचार पर कई सर्वे बताते रहे हैं कि भारत में 76 फीसदी रिश्वत 2.5 लाख रु. से कम की होती है. 77 फीसदी रिश्वत काम वक्त पर कराने या कारोबारी नुक्सान से बचने के लिए दी जाती है. कारोबारी हानि बचाने और प्रतिस्पर्धा में बढ़त लेने की सबसे ज्यादा नियमित जरूरत उद्योग व व्यापार को है. यही वजह है कि टैक्स चोरी से बना काला धन नेता-अधिकारियों तक पहुंचता हैजो अवसर बांटने के अधिकारों से लैस हैं. ईज आफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में 189 देशों के बीच भारत की रैंकिंग 130वीं है और टैक्स के मामले में 187वीं. यही कठिनाइयां रिश्वतों का आधार बनती हैं.

भारत में सरकारें बेतकल्लुफ खर्च करती हैं. उन्हें खूब ऊंची दर पर टैक्स और खूब कर्ज चाहिए. यही वजह है कि बैंक और टैक्स पूरे तंत्र की सबसे महत्वपूर्ण लेकिन घटिया कड़ी हैं.

बड़े नोट बंद करने से अर्थव्यवस्था इसलिए ठप है क्योंकि ट्रेड बंद है जो अर्थव्यवस्था का इंजन है और इस इंजन का ईंधन नकदी (कैश जीडीपी रेशियो) है. हमें पता नहीं कि भारत का विशाल व्यापार तंत्र जो बीजेपी का वोटर भी है वह सरकार के फैसले पर कैसी प्रतिक्रिया करेगा लेकिन इतना जरूर पता है कि
  • व्यापार अर्थव्यवस्था बुरी तरह टूट गई है. इसके कैश और क्रेडिट फ्लो को भारी नुक्सान हुआ है. 
  • इस फैसले के साथ आयकरउत्पाद शुल्क के छापे शुरू हो गए हैं. आने वाले वक्त में इंस्पेक्टर राज कई गुना बढ़ सकता है. 
  • कई टैक्स दरों और दर्जनों रजिस्ट्रेशन पंजीकरण से लैस जीएसटी आश्वस्त करने के बजाए डराने लगा है.

बड़े नोट बंद होने से काला धन घटने की गारंटी नहीं है. इसके लिए तो बैंकिंग सिस्टम की सफाई और टैक्स में कमी व सहजता जरूरी है. नहीं तो रिश्वतें चलती रहेंगी और काला धन बनता-खपता रहेगा. फिलहाल तो नोटबंदी ने सिर्फ व्यापारखपत और रोजगार को बुरी तरह भींच दिया है. मंदी दरवाजा खटखटा रही है.

Sunday, November 20, 2016

नोटबंदी की बैलेंस शीट


यह एक आर्थिक फैसला है इसेे तथ्‍यों में नापना चाहिए और फिलहाल तो इस फैसले के बाद भारत दुनिया की सबसे तेजी से थमती अर्थव्‍यवस्‍था में बदल गया है 

बड़े नोटों का चलन बंद करने के साथ सरकार ने क्‍या इतना बडा निवाला काट लिया है कि अब चबाना मुश्किल पड रहा है ?
क्या प्रधानमंत्री मोदी ने खासे लंबे वक्त में मिलने वाले अनजाने फायदों के बदले मंदी और आम लोगों के लिए मुसीबतें न्‍योत ली हैं?
नोट बंद होने से भारी अफरा तफरी के बाद सरकार भावनात्‍मक और रक्षात्‍मक है। संसद की बहसें हमेशा की तरह तथ्‍यहीन है। जबकि यह एक आर्थिक फैसला है इसेे तथ्‍यों में नापना जरुरी है बोदी बयानबाजियों में नहीं। अपना ही पैसा निकालने में लाइन में लगकर मौत को गले लगाते बदहवास लोग यह जरुर जानना चाहते होंगे कि इस विशाल मौद्रिक बदलाव के फायदेे और नुक्सान क्‍या हो सकते हैं

पहले, तथ्यों पर एक नजर डालते हैं

1. तमाम स्वतंत्र एजेंसियों के अनुसार तकरीबन 20 फीसदी काला धन नकदी में है जबकि बाकी जमीन-जायदाद और जेवर-गहनों की शक्ल में रखा गया है. हालांकि काली नकदी और कम भी हो सकती है
2.  बड़े नोटों का बंद होना केवल उन लोगों को नुक्सान पहुंचाता हे जिन्होंने इस फैसले के वक्त अपनी काली कमाई नकदी की शक्ल में जमा कर रखी थी.
3. देश में जितनी मुद्रा चलन में थी, उसका 80 फीसदी हिस्‍सा अब बेकार हो चुका है। भारत का ज्यादातर व्यापार और खर्च बड़े नोटों में ही होता है. इस लिए नोटों को बदलने के लिए बैंकों या दूसरे विनिमय केंद्रों पर आना होगा.
4. भारत की 11.8 फीसदी अर्थव्यवस्था नकदी के सहारे चलती है. भारत के जीडीपी में नकदी का अनुपात कमोबेश कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बराबर है. जर्मनी के जीडीपी में नकदी का अनुपात 8.7 फीसदी है जबकि फ्रांस में यह 9.4 फीसदी है. जापान में 20.7 फीसदी अर्थव्यवस्था नकदी है.
5. नकद अर्थव्यवस्था में काले और सफेद लेनदेन का जटिल घालमेल है। गैरकानूनी तरीकों से कमाई गई नकदी का इस्तेमाल भी उत्पादक संपत्तियां और मांग पैदा करने के लिए भी किया जाता है. इसलिए  नकद अर्थव्यवस्था दूसरे तरह से समझते हैं।
नकद अर्थव्यवस्था में दो किस्म की नकदी होती है. एक एकाउंटेड या घोषित और दूसरी अनअकाउंटेड। नियमों के तहत दो ही खाते अधिकृत है। नकदी केवल तभी कानूनी बन सकती है जब या तो टैक्स खाते में उसका लेखाजोखा हो या बैंक खाते में. जो भी नकदी इन दोनों खातों से बाहर है उसे अनअकाउंटेडड कहेंगे।
6. काले धन की अर्थव्यवस्था के आकार के बारे में चाहे जो अनुमान हों लेकिन जहां तक नकद अर्थव्यवस्था की बात है, इसे भारतीय रिज़र्व बैंक हरेक तिमाही में अच्छी तरह से मापता और दर्ज करता है. चूंकि आरबीआइ छापे गए हरेक करेंसी नोट का रिकॉर्ड रखता है, इसलिए मनी इन सर्कुलेशन का आंकड़ा, नकद अर्थव्यवस्था की गणना है।

अब करते हैं फायदों का हिसाब  
लगभग दस ग्‍यारह दिन के दर्द के बाद देश यह जानने को बेचैन है कि इस कुर्बानी के फायदे आखिर क्‍या होने वाले हैं। नकद अर्थव्यवस्था के कुछ आंकड़ों से फेंट कर संभावित फायदों का अंदाज लगाया जा सकता है।
 रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक मार्च 2016 तक भारत में 500 और 1000 के नोटों में करीब 14,180 अरब रुपए की नकदी प्रचलन में थी. इसमें से 30 फीसदी यानी 4,254 अरब रुपए की नकदी बैंकों और दूसरी सरकारी एजेंसियों के पास थी जबकि 70 फीसदी यानी 9,926 अरब रुपए आम जनता (मनी विद पब्लिक) के पास थे.

यह लेख लिखे जाने तक करीब 6 लाख करोड़ रुपये बैंकों के पास जमा हो चुके थे

पूरेे अभियान की सफलता इस तथ्‍य पर निर्भर है कि बड़े नोट बंद होने के बाद कितनी नकदी अदला-बदली के लिए वापस आएगी और कितनी नकदी व्यवस्था से गायब हो सकती है?

1978 में इसी तरह के फैसले के बाद 75 फीसदी रकम व्यवस्था में वापस आ गई थी, जबकि बाकी 25 फीसदी नकदी सिसटम से बाहर हो गई थी.

हमारे पास नकदी में काले और सफेद का कोई ठोस आंकड़ा नहीं है फिर भी तमाम आकलनों के मुताबिक 2,500 अरब से 3000 अरब रुपए की रकम शायद नोट बदली के लिए बैंकों तक नहीं आएगी अर्थात यह धन बैंकिंग सिस्‍टम से बाहर हो जाएगा। यह रकम जीडीपी के 2.4 से 3 फीसदी के बीच कहीं हो सकती है।

अलबत्‍ता इधर जब हम इन आंकड़ों से सर खपा रहे थे तभी रिजर्व बैंक ने सरकार को बताया है कि अगर सरकारी छापेखाने तय वक्त से ज्यादा काम करेंगे तब भी गैरकानूनी करार दिये गये 22 अरब नोटों को एक साल का वक्त लगेगा. ऐसे में सरकार को मजबूर होकर करेंसी नोटों के आयात का रास्ता अपनाना पड़ सकता है और पुराने नोटों को बदलने की मियाद को 50 दिनों से आगे बढ़ाना पड़ सकता है.

इसलिए तीन चार माह बाद ही हमें यह पता चलेगा कि आखिर मनी इन सर्कुलेशन का कितना हिस्‍सा बैंकों के पास आया और कितना खत्‍म हो गया। 

फिर भी हम मानकर चल सकते हैं कि:
1. लोगों के पास जो कुल 9.9 लाख करोड़ रुपए की नकदी है, उसमें 7 से 8 लाख करोड़ बैंकों के पास नकदी बदलने के लिए वापस आएंगे
2. चूंकि करेंसी इन सर्कुलेशन आरबीआइ की देनदारी है इसलिए जितना धन वापस नहीं लौटेगा वह रिजर्व बैंक की कमाई होगी।
3. आरबीआइ यह रकम सरकार को निवेश के लिए या लाभांश के तौर पर बांट सकता है या फिर स्वाहा हो चुकी रकम को बेकार मानकर नोटों की आपूर्ति में कमी कर सकता है, जैसा कि 1978 में किया गया था.

आइए अब नुकसानों की गिनती करें

नोट बंद होने से बाजार में मांग और पूरी तरह खत्‍म हो चुकी है। व्‍यापार सुन्‍न पड़ा है और तरलता संकट की वजह से वित्तीय बाजार गिरे हैं और रुपया टूट गया है। बैंकों के सामने रकम के लिए ज्यादा लंबी कतारों ने सरकार को धन निकालने और अदला-बदली के नियमों में ढील देने के लिए मजबूर किया है।

खपत/मांग/ जीडीपी 

1.सरकार के आंकड़ों के मुताबिक भारत के भारत में उपभोग खर्च प्रति माह 2,97,455 रुपए है. इस खर्च में खाना, किराना, ईंधन, बुनियादी सेवाएं, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स के सामान वगैरह सभी कुछ शामिल हैं. नोट बंद होने के बाद पूरी खरीदारी जरुरी चीजों तक सीमित है।

3. ध्‍यान रखें कि भारत में उपभोग खर्च जीडीपी का औसतन 60 फीसदी और है. चूंकि हिंदुस्तान की 11.8 फीसदी अर्थव्यवस्था नकदी के भरोसे चलती है, इसलिए नकदी पर आधारित खपत खत्‍म्‍ाा हो चुकी है. बाजार छह महीने लंबी मंदी और जीडीपी में 0.5 से द फीसदी तक गिरावट की अंदाज लगा रहा है।

कॉरपोरेट
1 उपभोक्‍ता उत्‍पादों कंपनियां अगले तीन से छह महीनों के दौरान बिक्री में जबरदस्त गिरावट से कांप रही हैं। उपभोक्‍ता खपत के सामान बनाने वाली 10 शीर्ष कंपनियां नोटबंदी के बाद से शेयर बाजार में 1.5 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का बाजार मूल्य गंवा चुकी हैं.
2. मांग लौटने तक नए निवेशों और मार्केटिंग के खर्चों की उम्‍मीद बेमानी है।

बैंकिंग व्यवस्था
1. नया जमा बैंकों के लिए हरगिज खुशखबरी नहीं है। आखिरी गिनती तक बैंकों ने रिवर्स रेपो विंडो के जरिए आरबीआइ में 6 लाख करोड़ रुपये जमा कराये हैं। जिस पर आरबीआइ को उन पर भारी ब्याज चुकाना पड़ेगा तकरीबन 6.2 फीसदी सालाना की दर से।

2. बैंकों ने जमा पर ब्याज दरों में कटौती करना पहले ही शुरू कर दिया है और वे चाहेंगे इस जमा रकमों को जल्दी ही निकाल लिया जाए, क्‍यों कि कर्ज बांटने का धंधा मंदा चल रहा है।

3.  बैंकों के कर्ज रिकवरी में सुस्‍ती आने की संभावना है। ग्रामीण और खुदरा कारोबार में गिरावट के कारण कुछ समय के लिए बैंकों के एनपीए बढ़ सकते हैं। बैंकों को अगले कुछ महीनों के लिए खुदरा/ग्रामीण कर्जों की अपनी अंडरराइटिंग प्रक्रियाओं पर नए सिरे से नजर डालनी होगी और नए कर्ज रोकने होंगे।

4. जब तक यह नकदी संकट खत्म नहीं होता, बैंकों को कर्ज बांटने, वसूली और अन्‍य कामकाज स्थगित रखने पड़ेंगे.

सरकार
1. स्वाहा हो चुके काले धन की शक्ल में कितना धन सरकार को मिलेगा यह अभी पता नहीं लेकिन सरकार को नई मुद्रा की छपाई की लागत के लिए 11,000 करोड़ रुपए की चपत सहनी होगी.

2. राज्य सरकारें जमीन की रजिस्ट्रियों और वैट के संग्रह में कमी आने की वजह से कर संग्रह में गिरावट के लिए कमर कस रही हैं. उत्पादन और बिक्री में ठहराव की वजह से केंद्र को सेवा कर और उत्पाद शुल्क से हाथ धोना पड़ सकता है.

राजनेता हमेशा चौंकाना चाहते हैं लेकिन अर्थव्यवस्था का तकाजा है स्थिरता, ताकि लंबे समय के लिए निवेश किया जा सके। सरकार के फैसलों का सियासी फायदा नुकसान तो चुनावी आंकडों से ही पता चलता है अलबत्‍ता आर्थिक आंकड़े रोज आते हैं और राजनीतिक फैसलों पर फैसला सुनाते हैं। फिलहाल तो नकदी की कमी ने भारत को दुनिया की सबसे तेजी से सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था में बदल दिया है, हालांकि आखिरी निर्णय अभी आना बाकी है। 
भूल चूक लेनी देनी !





Monday, November 14, 2016

काले धन की नसबंदी

बड़े नोट बंद करने का फैसला फिलहाल मुश्किलों से भरा है, लेकिन इसी कोलाहल में पुननिर्माण के संकेत भी हैं.

कुछ फैसलों का फैसला समय पर छोड़ देना चाहिए 2016 में एक औसत पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी मानेगा कि छोटा परिवार सुखी होता है लेकिन 70 के दशक के शुरुआती वर्षों में जब इंदिरा और संजय गांधी नसबंदी थोप रहे थेतब तस्वीर शायद नोट बंद होने की अफरातफरी जैसी ही रही होगी. इतिहास ने इंदिरा-संजय को खलनायक दर्ज किया लेकिन परिवार नियोजन जरूरी माना गया. काला धन रोकने के लिए अर्थव्यवस्था को कुछ समय के लिए विकलांग बना देने के फैसले पर अंतिम निर्णय तो समय को देना है लेकिन फिलहाल यह फैसला बिखराव और अराजकता से भरपूर हैहालांकि इसी कोलाहल में पुनर्निर्माण के संकेत भी मिल जाते हैं.

फिलहाल भारत किसी वित्तीय आपदा या बैंकों की तबाही से प्रभावित देश (हाल में ग्रीस) की तरह नजर आने लगा हैजहां बैंक व एटीएम बंद हैंलंबी कतारे हैं और लोग सीमित मात्रा में नकद लेने और खर्च करने को मजबूर हैं. ऐसे मुल्क में जहां बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था नकदी पर चलती हो, 50 फीसदी वयस्क लोगों का बैंकों से कोई लेना-देना न हो और बड़े नोट नकद विनिमय में 80 फीसदी का हिस्सा रखते हों वहां सबसे ज्यादा इस्तेमाल वाले नोटों को कुछ समय के लिए अचानक बंद करना विध्वंस ही होगा न! खास तौर पर तब जबकि रिजर्व बैंक की नोट मुद्रण क्षमताएं सीमित और आयातित साधनों पर निर्भर हैं.

वैसे इस अफरातफरी का कुल किस्सा यह है कि सरकार को नए डिजाइन के नोट जारी करने थे. नकली नोट रोकने की कोशिशों पर अंतरराष्ट्रीय सहमतियों के तहत रिजर्व बैंक ने सुरक्षित डिजाइन (ब्लीड लाइंसनंबर छापने का नया तरीका) की मंजूरी लेकर तकनीक जुटाने का काम पिछले साल के अंत तक पूरा कर लिया था. नए नोटों को रिजर्व बैंक के नए गवर्नर (राजन के बाद) के हस्ताक्षर के साथ नवंबर 2016 में जारी किया जाना था. इसमें 2,000 रु. का नया नोट भी था. इसी क्रम में नकली नोटों में पाकिस्तानी हाथ होने की पुष्टि के बाद सरकार ने करेंसी को सुरक्षित बनाने की तकनीक व साजो-सामान को लेकर आयात पर निर्भरता तीन साल में 50 फीसदी घटाने का निर्णय भी किया था. 

नए डिजाइन के नोट जारी करने के लिए पुरानी करेंसी को बंद (डिमॉनेटाइज) नहीं किया जाताबस नए नोट क्रमश: सिस्टम में उतार दिए जाते हैं. लेकिन सरकार ने नोट बंद कर दिएजिसके कई नतीजों का अंदाज उसे खुद भी नहीं था.

मुसीबतों का हिसाब-किताब
1. बड़े नोट बंद होने से कुल नकदी (16 लाख करोड़ रु.) में लगभग 14 लाख करोड़ रु. कम हो गए यानी कि एक झटके में अधिकांश मांग को रोककर सरकार ने तात्कालिक मंदी को न्योता दे दिया. करेंसी की आपूर्ति सामान्य होने में लंबा वक्त लगता हैइसलिए मंदी व बेकारी से उबरने में और ज्यादा वक्त लगेगा.

2. कोई भी देश सामान्य स्थिति में अपनी करेंसी (लीगल टेंडर) के इस्तेमाल पर शर्तें नहीं लगातामसलनदवा खरीद सकते हैं पर रोटी नहीं. यह करेंसी संचालन के सिद्धांत के खिलाफ है. ऐसा तभी होता है जब देश की साख डूब रही हो. इसलिए विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया कमजोर हुआ है.

3. करेंसी का प्रबंधन और निर्णय रिजर्व बैंक करता हैइस फैसले से रिजर्व बैंक की स्वायत्तता बाधित हुई है.

इस फैसले के तरीके और तैयारियों को बेशक बिसूरिए लेकिन काले धन की ताकत को कमतर मत आंकिए. देखा नहीं कि घोषणा के बाद लोगों को बमुश्किल दो घंटे मिले थे लेकिन उसी दौरान सोने की दुकानों पर कतारें लग गईं. नोट बंद होने के बावजूद हवाला बाजार में अभूतपूर्व ऊंची कीमतों पर सोने और डॉलर के सौदे होते रहेजिन्हें रोकने के लिए आयकर विभाग को छापेमारी करनी पड़ी.

काले धन को रोकने की ताजा कोशिशों का रिकॉर्ड बहुत सफल नहीं रहा है. बैंकोंप्रॉपर्टी व ज्यूलरी पर नकद लेन-देन में पैन नंबर की अनिवार्यता से बैंकों में जमा कम हो गया और बाजार में नकदी बढ़ गई. काला धन घोषणा माफी स्कीमें बहुत उत्साही नतीजे लेकर नहीं आईं. अंतत: सरकार ने अप्रत्याशित विकल्प का इस्तेमाल कियाजिससे करीब तीन लाख करोड़ रु. की काली नकदी खत्म होने का अनुमान है. इसके साथ ही नए नोट लेने के लिए नकदी लेकर बैंक जा रहे लोगों पर आयकर विभाग की निगरानी हमेशा रहेगी.

बहरहालएटीएम पर धक्के खाने और पैसे होते हुए उधार पर सब्जी लेने के दर्द के बावजूद इस फैसले से उठी गर्द के पार देखने की कोशिश भी करनी चाहिएजहां पुनर्निर्माण की उम्मीद दिखती है.

यह रही पुनर्निर्माण की सूची

1. बैंकों के लिए पहले आफतफिर राहत है. फैसला लागू होने के बाद बैंक संचालन शुरू होने के पहले दो दिन में अकेले स्टेट बैंक में ही 55,000 करोड़ रु. जमा हुएजबकि पूरी एक तिमाही में स्टेट बैंक का कुल जमा 76,000 करोड़ रु. होता है.

2. बकाया कर्जों से कराहते बैंकों के पास डिपॉजिट लौटेंगे और पूंजी की कमी पूरी करेंगे. सरकार की चिंता घटेगी और ब्याज दरें कम होने की उम्मीदें बंधेंगी.

3. प्रॉपर्टीनकदी और काले धन का गढ़ है. वहां कीमतें औसतन 30 फीसदी टूट सकती हैं. सस्ता कर्ज और सस्ती प्रॉपर्टी वास्तविक ग्राहकों को मकानों के करीब लाकर मांग का पहिया फिर से घुमा सकते हैं.

लेकिन ध्यान रखिएवित्तीय मामलों में ध्वंस तेज और निर्माण धीमा होता हैइसलिए राजनैतिक-आर्थिक कीमत चुकानी होगी.

फिर भी अगर तकलीफ है तो मोदी सरकार से यह सवाल पूछकर अपनी खीझ मिटाइए:

¢ नकद राजनैतिक चंदे पर पूर्ण पाबंदी कब तक लगेगी?
¢बड़े नोट आने के बाद नकदी लेन-देन की सीमा तय करने में देरी तो नहीं होगी?
¢सोने की खरीद-जमाखोरी को कैसे रोकेंगे?
¢खेती की कमाई के जरिए काले धन की धुलाई रोकने की क्या योजना है?


विपक्ष को अपनी ऊर्जा उत्तर प्रदेश व पंजाब के चुनावों का लिए बचानी चाहिएक्योंकि अगर यहां बीजेपी भारी धन बल और भव्य प्रचार के साथ उतरी तो फिर मान लीजिएगा भारत के राजनेता आम लोगों की कीमत पर किसी भी तरह की सियासत कर सकते हैं.

काले धन की नसबंदी

बड़े नोट बंद करने का फैसला फिलहाल मुश्किलों से भरा है, लेकिन इसी कोलाहल में पुननिर्माण के संकेत भी हैं.

कुछ फैसलों का फैसला समय पर छोड़ देना चाहिए 2016 में एक औसत पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी मानेगा कि छोटा परिवार सुखी होता है लेकिन 70 के दशक के शुरुआती वर्षों में जब इंदिरा और संजय गांधी नसबंदी थोप रहे थे, तब तस्वीर शायद नोट बंद होने की अफरातफरी जैसी ही रही होगी. इतिहास ने इंदिरा-संजय को खलनायक दर्ज किया लेकिन परिवार नियोजन जरूरी माना गया. काला धन रोकने के लिए अर्थव्यवस्था को कुछ समय के लिए विकलांग बना देने के फैसले पर अंतिम निर्णय तो समय को देना है लेकिन फिलहाल यह फैसला बिखराव और अराजकता से भरपूर है, हालांकि इसी कोलाहल में पुनर्निर्माण के संकेत भी मिल जाते हैं.

फिलहाल भारत किसी वित्तीय आपदा या बैंकों की तबाही से प्रभावित देश (हाल में ग्रीस) की तरह नजर आने लगा है, जहां बैंक व एटीएम बंद हैं, लंबी कतारे हैं और लोग सीमित मात्रा में नकद लेने और खर्च करने को मजबूर हैं. ऐसे मुल्क में जहां बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था नकदी पर चलती हो, 50 फीसदी वयस्क लोगों का बैंकों से कोई लेना-देना न हो और बड़े नोट नकद विनिमय में 80 फीसदी का हिस्सा रखते हों वहां सबसे ज्यादा इस्तेमाल वाले नोटों को कुछ समय के लिए अचानक बंद करना विध्वंस ही होगा न! खास तौर पर तब जबकि रिजर्व बैंक की नोट मुद्रण क्षमताएं सीमित और आयातित साधनों पर निर्भर हैं.

वैसे इस अफरातफरी का कुल किस्सा यह है कि सरकार को नए डिजाइन के नोट जारी करने थे. नकली नोट रोकने की कोशिशों पर अंतरराष्ट्रीय सहमतियों के तहत रिजर्व बैंक ने सुरक्षित डिजाइन (ब्लीड लाइंस, नंबर छापने का नया तरीका) की मंजूरी लेकर तकनीक जुटाने का काम पिछले साल के अंत तक पूरा कर लिया था. नए नोटों को रिजर्व बैंक के नए गवर्नर (राजन के बाद) के हस्ताक्षर के साथ नवंबर 2016 में जारी किया जाना था. इसमें 2,000 रु. का नया नोट भी था. इसी क्रम में नकली नोटों में पाकिस्तानी हाथ होने की पुष्टि के बाद सरकार ने करेंसी को सुरक्षित बनाने की तकनीक व साजो-सामान को लेकर आयात पर निर्भरता तीन साल में 50 फीसदी घटाने का निर्णय भी किया था. 

नए डिजाइन के नोट जारी करने के लिए पुरानी करेंसी को बंद (डिमॉनेटाइज) नहीं किया जाता, बस नए नोट क्रमश: सिस्टम में उतार दिए जाते हैं. लेकिन सरकार ने नोट बंद कर दिए, जिसके कई नतीजों का अंदाज उसे खुद भी नहीं था.

मुसीबतों का हिसाब-किताब
1. बड़े नोट बंद होने से कुल नकदी (16 लाख करोड़ रु.) में लगभग 14 लाख करोड़ रु. कम हो गए यानी कि एक झटके में अधिकांश मांग को रोककर सरकार ने तात्कालिक मंदी को न्योता दे दिया. करेंसी की आपूर्ति सामान्य होने में लंबा वक्त लगता है, इसलिए मंदी व बेकारी से उबरने में और ज्यादा वक्त लगेगा.

2. कोई भी देश सामान्य स्थिति में अपनी करेंसी (लीगल टेंडर) के इस्तेमाल पर शर्तें नहीं लगाता, मसलन, दवा खरीद सकते हैं पर रोटी नहीं. यह करेंसी संचालन के सिद्धांत के खिलाफ है. ऐसा तभी होता है जब देश की साख डूब रही हो. इसलिए विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया कमजोर हुआ है.

3. करेंसी का प्रबंधन और निर्णय रिजर्व बैंक करता है, इस फैसले से रिजर्व बैंक की स्वायत्तता बाधित हुई है.

इस फैसले के तरीके और तैयारियों को बेशक बिसूरिए लेकिन काले धन की ताकत को कमतर मत आंकिए. देखा नहीं कि घोषणा के बाद लोगों को बमुश्किल दो घंटे मिले थे लेकिन उसी दौरान सोने की दुकानों पर कतारें लग गईं. नोट बंद होने के बावजूद हवाला बाजार में अभूतपूर्व ऊंची कीमतों पर सोने और डॉलर के सौदे होते रहे, जिन्हें रोकने के लिए आयकर विभाग को छापेमारी करनी पड़ी.

काले धन को रोकने की ताजा कोशिशों का रिकॉर्ड बहुत सफल नहीं रहा है. बैंकों, प्रॉपर्टी व ज्यूलरी पर नकद लेन-देन में पैन नंबर की अनिवार्यता से बैंकों में जमा कम हो गया और बाजार में नकदी बढ़ गई. काला धन घोषणा माफी स्कीमें बहुत उत्साही नतीजे लेकर नहीं आईं. अंतत: सरकार ने अप्रत्याशित विकल्प का इस्तेमाल किया, जिससे करीब तीन लाख करोड़ रु. की काली नकदी खत्म होने का अनुमान है. इसके साथ ही नए नोट लेने के लिए नकदी लेकर बैंक जा रहे लोगों पर आयकर विभाग की निगरानी हमेशा रहेगी.

बहरहाल, एटीएम पर धक्के खाने और पैसे होते हुए उधार पर सब्जी लेने के दर्द के बावजूद इस फैसले से उठी गर्द के पार देखने की कोशिश भी करनी चाहिए, जहां पुनर्निर्माण की उम्मीद दिखती है.

यह रही पुनर्निर्माण की सूची

1. बैंकों के लिए पहले आफत, फिर राहत है. फैसला लागू होने के बाद बैंक संचालन शुरू होने के पहले दो दिन में अकेले स्टेट बैंक में ही 55,000 करोड़ रु. जमा हुए, जबकि पूरी एक तिमाही में स्टेट बैंक का कुल जमा 76,000 करोड़ रु. होता है.

2. बकाया कर्जों से कराहते बैंकों के पास डिपॉजिट लौटेंगे और पूंजी की कमी पूरी करेंगे. सरकार की चिंता घटेगी और ब्याज दरें कम होने की उम्मीदें बंधेंगी.

3. प्रॉपर्टी, नकदी और काले धन का गढ़ है. वहां कीमतें औसतन 30 फीसदी टूट सकती हैं. सस्ता कर्ज और सस्ती प्रॉपर्टी वास्तविक ग्राहकों को मकानों के करीब लाकर मांग का पहिया फिर से घुमा सकते हैं.

लेकिन ध्यान रखिए, वित्तीय मामलों में ध्वंस तेज और निर्माण धीमा होता है, इसलिए राजनैतिक-आर्थिक कीमत चुकानी होगी.

फिर भी अगर तकलीफ है तो मोदी सरकार से यह सवाल पूछकर अपनी खीझ मिटाइए:

¢ नकद राजनैतिक चंदे पर पूर्ण पाबंदी कब तक लगेगी?
¢बड़े नोट आने के बाद नकदी लेन-देन की सीमा तय करने में देरी तो नहीं होगी?
¢सोने की खरीद-जमाखोरी को कैसे रोकेंगे?
¢खेती की कमाई के जरिए काले धन की धुलाई रोकने की क्या योजना है?


विपक्ष को अपनी ऊर्जा उत्तर प्रदेश व पंजाब के चुनावों का लिए बचानी चाहिए, क्योंकि अगर यहां बीजेपी भारी धन बल और भव्य प्रचार के साथ उतरी तो फिर मान लीजिएगा भारत के राजनेता आम लोगों की कीमत पर किसी भी तरह की सियासत कर सकते हैं.