Monday, June 20, 2011

विश्‍वत्रासदी का ग्रीक थियेटर

दीवालियेपन के प्रेतों की बारात ग्रीस में उतर आई है। पंद्रहवीं सदी का फ्रांस, अठारहवीं सदी का स्पेन और पिछली सदी के अर्जेंटीना, मेक्सिको व उरुग्वे आदि एथेंस के मशहूर हेरोडियन थियेटर में खास मेहमान बन कर बैठे हैं और ग्रीस की कर्ज त्रासदी देखने को बेताब है। ग्रीक ट्रेजडी का कोरस ( पूर्व गान) शुरु हो गया है। थियेटर में रह रह कर संवाद गूंज रहा है कि उम्मीद व ग्रीस अब एक दूसरे के विलोम हैं !!!! ... बड़ा भयानक सपना था।...जापानी निवेशक आधी रात में डर कर जग गया।  एक संप्रभु मुल्क. का दीवालिया होना यानी कर्ज चुकाने में चूकना ! देश की साख खत्म होना अर्थात बैंकों और मुद्रा का डूबना ! वित्तीय जगत की सबसे बड़ी विपत्ति अर्थात जनता के लिए एक लंबी दर्दनाक त्रासदी !! .... निवेशक का खौफ जायज है ग्रीस की महात्रासदी अब शुरु ही होने वाली है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद पहली बार कोई अमीर मुल्क डूबने वाला है। राजनीतिक व वित्तील समाधान ढह रहे हैं निवेशकों ने अपना जी कड़ा कर लिया है, ग्रीस की साख का सूर्य डूबते ही बाजार ग्रीस में निवेश करने वाले बैंकों, कंपनियों को सूली पर टांगने लगेगा। ...बात यहां से निकल कर दूर तलक जाएगी क्यों कि ग्रीस अकेले नहीं डूबेगा। इस त्रासदी के साथ बहुत कुछ गर्त हो सकता है।
डूबने को तैयार
ग्रीस फिर अपनी हैसियत से बड़ा इतिहास रचने (एक यूरोपीय कहावत) को तैयार है कयों कि सॉवरिन डिफाल्ट या देश का दीवालियापन छोटी विपत्ति नहीं है। ग्रीस का संकट देश के वित्तीय हिसाब में सरकारी फर्जीवाड़े से निकला है। घाटा छिपाकर कर्ज लेते रहे ग्रीस का सच (जीडीपी के अनुपात में अब 180 फीसदी कर्ज) 2009 में अंत यूरोपीय समुदाय की वित्ती‍य पड़ताल में खुला था। 110 अरब यूरो के पैकेज और यूरोपीय केंद्रीय बैंक की तरफ से ग्रीस के बांडों की खरीद के साथ ग्रीस को बचने के लिए जो एक साल मिला था
वह अब पूरा हो गया। ग्रीस सुधरने के बजाय बिगड़ गया और नतीजतन दो सप्ताह पहले आईएमएफ व यूरोपीय समुदाय ने मदद की आखिरी किश्त रोक ली और तब से ग्रीस की सांसे उखड़ने लगी हैं। राजनीतिक संकट ने मुश्किलों के दांत पैने कर दिये हैं। राष्ट्पति जॉर्ज पपांद्रेयू को पहले विश्वांस मत के लिए और फिर खर्च रोकने के लिए विपक्ष की मदद चाहिए। ग्रीस को 29 जून तक सहायता पैकेज के 12 अरब यूरो चाहिए मगर उसके बदले ग्रीस को यह दिखाना होगा कि उसके पास अगले एक साल का खर्च चलाने के संसाधन हैं या नया कर्ज लेने की हैसियत है। इन दोनों ही पैमानों पर ग्रीस कंगाल है। ग्रीस की मुक्ति के लिए डिफॉल्ट ( कर्ज चुकाने से इंकार) ही एक रास्तां है।
डूब कर ही उद्धार
वैसे यूरोपीय समुदाय ग्रीस की मुकित को रोकने की कवायद में लगा है, अलबत्ता यूरोप की अर्थव्यरवस्था यें बजट से ग्रीस का कर्ज कीचड़ साफ नहीं करने को तैयार नहीं है, इसलिए दूसरा सहायता पैकेज अधर में लटका है। दरअसल गड्ढे में गिरने के बाद उसे खोदना बंद कर देना ही समझदारी है मगर ग्रीस ने पिछले एक साल में इसका उलटा करते हुए आईएमएफ आदि की सहयता पैकेज से कर्ज बढ़ा लिया। ग्रीस का ताजा घाटा 10.28 अरब यूरो है। मंदी भरपूर है और राजस्वप शून्य। ग्रीस को 2012 तक बाजार से करीब 30 अरब यूरो जुटाने हैं लेकिन ग्रीस की साख को कचरे (जंक) की रेटिंग दे चुका बाजार ग्रीस से पहले ही हाथ जोड़ चुका है। ग्रीस पर कुल कर्ज 327 अरब यूरो के करीब है। इतनी बड़ी देनदारी के लिए कोई मदद नहीं आने वाली। कर्ज इतना ज्यादा है कि ग्रीस को डूब कर यानी कर्जदारों के सामने रो गिडिगिड़ाकर ही राह मिलेगी। वित्ती‍य निवेशक कह रहे हैं कि ग्रीस को डूबने दो ताकि वह कर्ज का हेयरकट ( कर्ज और ब्याज माफी) करा सके। यूरोपीय समुदाय को डर है कि ग्रीस को भी अर्जेंटीना की राह जा सकता है। कर्ज चुकाने में असफल रहे अर्जेंटीना को आठ साल से वित्तीय बाजार में प्रवेश नहीं मिला है। लेकिन कर्ज की माफी कराये बिना ग्रीस का उद्धार भी तो नहीं है।
डुबाने को तैयार
ग्रीस के लिए डूब कर मुक्ति पाना भी बहुत नहीं है, नतीजे बड़े भयानक हैं। ग्रीस के बैंकों का बर्बाद होना उनका राष्ट्रीयकरण, यूरो जोन से ग्रीस की, पुरानी मुद्रा (ड्राच्मा) की वापसी, अशांति अस्थिरता आदि बहुत कुछ नतीजों में शामिल है। डूबता ग्रीस एक नया अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट होगा। ग्रीस के बांडों में जापानी बैंक 500 मिलियन डॉलर, स्पेनिश बैंक 600 मिलियन डॉलर, अमेरिकी बैंक 1.8 अरब डॉलर, इतालवी बैंक 2.6 अरब डॉलर, ब्रिटेन 3.2 अरब, फ्रेंच 19.8 अरब, जर्मन बैंक 26.2 अरब और अन्य यूरोपीय बैंक करीब 15.7 अरब डॉलर लगाये बैठे हैं। ग्रीस के डूबते ही इन बैंकों की साख पर निवेशक टनों कीचड़ उलीच देंगे। ग्रीस में सबसे बड़े निवेशक फ्रांस के तीनों प्रमुख बैंकों बीएनपी पारिबा, क्रेडिट एग्रीकोल और सोसाइटी जनरल की रेटिंग घट गई है। बात दूर तक जाएगी क्यों कि आयरिश, स्पेन व पुर्तगाल में कर्ज का हाल ग्रीस से जयादा बेहतर नहीं है। ग्रीस का हादसा देखने के बाद वित्तीय बाजार इन देशों से बहुत बुरा व्यवहार करेगा। सबसे बडी बात कि डूबता ग्रीस यूरोपीय मौद्रिक एकता यानी यूरो के भविष्य को भी ले डूबेगा।
 महात्रासदी का ग्रीक थियेटर तैयार है। वित्ती्य बाजार हांफ रहे हैं, एथेंस की सड़कों पर हिंसा का थियेटर चल रहा है। राजनीतिक गुत्थियां उलझ रही हैं। अरस्तू ने कहा था कि ट्रेजडी जटिल नाटकीय विधा है जो पल पल पर भय व दया उपजाती है। ग्रीस का सूरते हाल, सौ टंच क्लासिकल ट्रेजडी है। मगर बात यहीं पूरी नहीं होती। ग्रीस का संकट बाजार ने नहीं बल्कि वहां की सरकार ने बनाया है। ग्रीस भ्रष्टाचार का स्वर्ग है। पूरी सरकार दागी है और आम लोग हर साल लाखों यूरो की रिश्वत देते हैं। सरकार ने खर्च छिपाने के लिए आंकड़ो में हेरफेर के जरिये घाटे का सच ढंका था, जिसका खुलासा होते ही ग्रीस की तबाही शुरु हो गई और दुनिया एक नई आपदा के मुहाने पर खड़ी है। अरस्तू ने यह भी लिखा था कि त्रासदी के नायक का दुर्भाग्य किसी  दैवी सत्ता के श्राप से नहीं बल्कि उसकी अपनी गलती से जन्मता है। ग्रीस की सड़कों पर जलती आग यह बता रही है कि ग्रीस के लोगों के दुर्भाग्यन उनके अपारदर्शी और भ्रष्टं नायकों (सरकार) ने लिखा है। ग्रीस के लोगों की त्रासदी का उनकी सरकार बनाई है। हम को ग्रीस को सहानुभूति देकर बदले में ढेर सारी नसीहतें ले सकते हैं।

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अर्थार्थ दो साल से ग्रीस पीछा कर रहा है। संकट चरण दर चरण ..............

डूबे तो उबरेंगे ... यूरोप और यूरो के डूबने की बात अप्रैल में .. साल बीतते आशंकायें असलियत में तब्दील हो गईं
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ऐसा भी हो सकता है .... अमेरिका और ब्रिटेन में ऋण संकट के पसरने का आकलन मई में। वक्त उसी तरफ ले जा रहा है1
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महात्रासदी का ग्रीक कोरस... डूबने की तैयारी में ग्रीस
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संकटों के नए संसकरण ... ग्रीस से बात खत्म- नहीं हुई। नई संकट कथाओं का खुलासा।  आयरलैंड में ट्रेजडी का शो शुरु।

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शाएलाकों से सौदेबाजी ... संप्रभु कर्ज संकट यानी देशों के दीवालिया होने की विभीषिका। दर्द भरा इतिहास और जटिल वर्तमान
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पछतावे की परियोजनायें ... संकटों का प्रायश्चित। सरकारी संपत्तियों की बिक्री। नए टैक्सों से जनता की आफत
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सिद्धांतों का शीर्षासन ... एक संकट और कई सिद्धांत सर के बल। यूरोप लोक कल्या.णकारी राज्ये धराशायी
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घट घट में घाटा ... घाटों का अभूतपूर्व जमघट। पूरी दुनिया की सरकारों के बजटों में भयानक घाटे।
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मुद्रास्फीति की महादशा ... अमेरिका में डॉलर छपाई मशीन के खतरे। हाइपरइन्फ्लेशन का डर
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साख नहीं तो माफ करो .... महाबलशाली बांड बाजार की यूरोप व अमेरिका को घुड़की
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