Monday, January 23, 2012

यूरोप करे, दुनिया भरे

मीर और खुशहाल यूरोप 2012 में दुनिया की सबसे बड़ी साझा मुसीबत बनने वाला है। अमेरिका  अपनी सियासत, मध्‍य पूर्व अपनी खींचतान और एशिया अपनी अफरा तफरी से मुक्‍त होकर जब विश्‍व की तरफ मुखातिब होंगे तब तक यूरोप दुनिया के पैर में बंधे सबसे बड़े पत्‍थर में तब्‍दील हो चुका होगा। दुनिया की दहलीज पर यूरोपीय संकट की दूसरी किश्‍त पहुंच गई है। 2012 में एक फीसदी से कम ग्रोथ वाला यूरोप दुनिया की मंदी का जन्‍मदाता होगा। कर्ज संकट का ताजा धुंआ अब जर्मनी के पश्चिम व पूरब से उठ रहा है। ग्रीस की आग बुझाने निकले फ्रांस के फायर टेंडर जलने लगे हैं। आस्ट्रिया की वित्‍तीय साख भी लपेट में आ गई है। कर्ज के अंगारों पर बैठे स्‍पेन, इटली पुर्तगाल, आयरलैंड की जलन दोगुनी हो गई है। इन सबके साथ यूरोप के सात छोटे देश भी बाजार में रुतबा गंवा बैठे हैं। रहा ग्रीस तो, वहां से तो अब सिर्फ दीवालियेपन की अधिकृत खबर का इंतजार है। यूरोप के कर्जमारों को  उबारने की पूरी योजना इन सारी मुसीबतों का एक मुश्‍त शिकार होने वाली है। यूरोप के पास मुश्किलों से उबरने के लिए पूंजी व संसाधनों की जबर्दस्‍त किल्‍लत होगी यानी  यूरोप का कर्ज इस साल दुनिया की देनदारी बन जाएगा।
मदद मशीन की मुश्किल
नए साल के पहले पखवाड़े में ही दुनिया की पांचवीं और यूरोप की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्‍यव्‍सथा अपनी साख गंवा बैठी। अमेरिका में राजनीतिक विरोध के बावजूद रेटिंग एजेंसी स्‍टैंडर्ड एंड पुअर ने बेखौफ होकर फ्रांस ट्रिपल ए रेटिंग छीन ली। यानी कि फ्रांस भी अब निवेशकों के लिए पूरी तरह सुरक्षित नहीं रहा। ऑस्ट्रिया ने भी अपनी तीन इक्‍कों वाली साख गंवा दी। फ्रांस व आस्ट्रिया की साख गिरने से कर्जमारे पिग्‍स (पुर्तगाल, इटली,ग्रीस, आयरलैंड, स्‍पेन) को उबारने वाली मशीन संकट में फंस गई है। एस एंड पी ने सबको चौंकाते हुए यूरोपियन फाइनेंशियल स्‍टेबिलिटी फैसिलिटी (ईएफएसएफ) का साख भी घटा दी। यह संस्‍था यूरोजोन के संकट निवारण तंत्र का
आधार है। इसे यूरोजोन के ट्रिपल ए रेटिंग वाले देश अपनी गारंटी देते हैं जिसके आधार पर यह बांड जारी कर बाजार से पूंजी जुटाती है और कर्ज से परेशान देशों को मदद देती है। ईएफएसएफ को असली ताकत (सबसे मजबूत गारंटी) ट्रिपल ए रेटिंगल वाले छह देशों, जर्मनी, फ्रांस, फिनलैंड, आस्ट्रिया, नीदरलैंड व लक्‍जमबर्ग से मिलती है। इस संस्‍था के पास 440 अरब यूरो के आकार वाले इस फंड में फ्रांस व आस्ट्रिया की गारंटी क्रमश: 158 अरब और 22 अरब यूरो की हैं। इन दोनों देशों की साख गिरने इस वित्‍तीय संस्‍था के लिए बाजार से पैसा जुटाना मुश्किल हो जाएगा। ताजे आकलन के मुताबिक पुर्तगाल व आयरलैंड  को मदद देने के बाद फंड के पास 250 अरब यूरो बचेंगे जबकि स्‍पेन व इटली कतार में खड़े हैं। यूरोप की राजनीति उलझी है  कर्ज प्रभावित देशों की मदद के लिए हाथ बढ़ने की उम्‍मीद नहीं है। यूरोजोन के बचाने का बहुत बड़ा दारोमदार यूरोपियन फाइनेंशियल स्‍टेबिलिटी फैसिलिटी पर था जिसके मुश्किल में फंसने से बात बिगड़ गई है।
कर्ज नहीं नकद
यूरोपीय केंद्रीय बैंक में यूरोप भर के बैंकों का नकद जमा 528 अरब यूरो पर पहुंच गया है। यह अभूतपूर्व नकदी सबूत है कि यूरोप का वित्‍तीय तंत्र किसी अनहोनी की तैयारी में जुटा है। इसलिए कर्ज रोककर नकदी सुरक्षित की जा रही है। इससे पहले 2008 लीमैन संकट के मौके पर ही बैंक इस कदर नकद जुटाते दिखे थे। इस साल करीब 650 अरब यूरो का अंतरबैंक कर्ज इस साल चुकाया जाना है। जिसमें 40 फीसदी की देनदारी मार्च के अंत में निकल आएगी। बैंकों को कर्ज डूबने का खतरा है, नए निवेशक मिलना दूभर है इसलिए अब नकदी जुटाकर देनदारियां सुरक्षित की जा रही हैं। यूरोप का डर जायज है। ग्रीस का दीवालियापन करीब है। ग्रीस की सरकार कर्जधारकों वह 60 फीसदी तक बकाया गंवाने के लिए मना रही है। कानून के जरिये कर्जदाताओं को वसूली छोड़ने पर बाध्‍य करने के संकेत भी दिये जा रहे हैं। मगर ऐसा होने पर बाजार में और ज्‍यादा डर फैलेगा जिसका असर यूरोप की संकट में घिरी अन्‍य अर्थव्‍यव्‍स्‍थाओं पर भी पड़ेगा। ग्रीस के लिए मार्च के तीसरे सप्‍ताह में 14.5 अरब यूरो की देनदारी निकल रही है। यदि निवेशक नहीं माने तो 20 मार्च को ग्रीस  में संप्रभु दीवालियेपन की तबाही तय है।
ग्रोथ तो गई
यूरोजोन में ग्रोथ के मोर्चे पर नीम अंधेरा है। अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष का ताजा आकलन दो टूक निराशा से भरा है। मुद्रा कोष के मुता‍बिक इस साल यूरोजोन अधिकृत रुप से मंदी में घिर जाएगा। यूरोजोन की ग्रोथ इस साल एक फीसदी से कम (0.5 फीसदी) रहने की आशंका है। इटली, स्‍पेन की विकास दर नकारात्‍मक रहेगी। फ्रांस की विकास दर भी गिरेगी  मगर दुनिया को सबसे ज्‍यादा डराने वाले तस्‍वीर जर्मनी से मिल रही। आईएमएफ ने जर्मनी की ग्रोथ इस साल एक फीसदी से कम आंकी है। पिछले दो साल साल की मुसीबतों में यूरोप को जर्मनी की अर्थव्‍यवस्‍था का सहारा था, उसका सुस्‍त होना न केवल यूरोजोन की ग्रोथ को गिरायेगा बलिक संकट में फंसे देशों की वित्‍तीय मदद में भी कमी करेगा। यूरोजोन पूरी दुनिया की ग्रोथ की टांग खींच रहा है इसलिए 2012 में दुनिया की ग्रोथ केवल 3.2 फीसदी रहेगी, जो 4 फीसदी के पिछले आकलन से बहुत कम है।
यूरोजोन के लिए 2012 की शुरुआत अच्‍छी नहीं होनी थी मगर यह इतनी बुरी होगी इसका अंदाज नहीं था। नए साल की शुरुआत में जहां अमेरिका व एशिया में ग्रोथ को उम्‍मीदों की थोड़ी रोशनी मिली वहीं यूरोजोन और गहरी खाई में लुढ़क गया है। यूरोजोन में मंदी, कर्ज, घाटे और दीवालियापन एक साथ मौजूद हैं। आबादी बुढ़ा रही है, इसलिए औद्योगिक उत्‍पादकता व लोगों की बचत बढ़ने की उम्‍मीद नहीं है इसके विपरीत सरकारों को बुजुर्ग आबादी पर ज्‍यादा खर्च करना होगा। अचरज नहीं यूरोजोन के कई देशों में जापान जैसी हालत की तरफ बढ़ चले हैं। लंबी मंदी, मांग में कमी, कर्ज और वृद्ध आबादी के कारण दुनिया में ग्रोथ की गाड़ी की से उतरकर, जापान दुनिया के फुटपाथ पर खड़ा है। यूरोप की हालत अनोखी है यहां अर्थव्‍यवस्‍थायें दौड़ रही हैं, जबकि कुछ जापान जैसी हालत में हैं। रफ्तारों का यह अंतर यूरोजोन को दो हिस्‍सों में बांट रहा है। 2012 यह तय कर देगा कि यूरो (मुद्रा) रहेगा या फिर यूरोप के दिलचस्‍प इतिहास का हिस्‍सा बन जाएगा।
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