Monday, May 14, 2012

डरे कोई भरे कोई


णनीति बन चुकी थी। मोर्चा तैयार था। फौजी कमर कस चुके थे। अचानक बहादुर सेनापति (वित् मंत्री) ने ऐलान किया कि मोर्चा वापस ! अब हम एक साल बाद लड़ेंगे ! सब चौंक उठे। सेनापति  बोला यह मत समझना कि हम डर गए हैं ! हमें किसी परिणाम की चिंता नहीं है!  बस, हम  बाद में लड़ेंगे !!.... यह कालेधन खिलाफ भारत की लड़ाई की कॉमेडी थी जो बीते सप्ताह लोकसभा से प्रसारित हुई। इनकम टैक् के जनरल एंटी अवाइंडेस रुल् (गार) , पर अमल रोक दिया गया। इन नियमों से देशी विदेशी कंपनियों के लिए भारती टैकस कानूनों से बचने के मौके बंद हो रहे थे, इसलिए अभूतपूर्व लामबंदी हुई। डरना तो टैक्‍स चोरों को था मगर डर गई सरकार। वित् मंत्री झुके और टैक्  चोरी काली कमाई रोकने की एक दूरगामी और हिम्मती पहल बड़े औचकसंदिग् तरीके से वापस हो गई।  पूरी दुनिया ने देखा कि टैकस चोरी रोकने की कोशिश करने पर भारत को शर्मिंदा होना पड़ सकता है। गार की वापसी से देश के टैक्‍स कानून की साख को मजबूत करने की एक बड़ी कोशिश भी खत्‍म हो गई। आयकर विभाग अब दीन हीन छोटे टैकसपेयर पर अपनी बहादुरी दिखायेगा।
रीढ़ कहां है
 टैक्स कानूनों की कसौटी पर कसे जाने के बाद च्छे कारोबार के भीतर आर्थिक जरायम और टैक्‍स चोरी निकलती हैं। टैकस कानूनों ने तमाम कथित साफ सुथरे कारोबारों के पीछे कालेधन के गोदाम पकड़े हैं, जिन की सड़कें टैक् हैवेन तक जाती हैं। जनरल एंटी अवाइंडेस रुल् यानी गार की रोशनी दरअसल इन्हीं अंधेरे कोनों के लिए थी। भारत में टैक् चोरी को साबित करने के तरीके पुराने हैं। आयकर विभाग को टैक् चोरी से निबटने के लिए अदालत का सहारा लेना पड़ता है। जनरल एंटी अवाइंडेस रुल् कानूनों की नई पीढ़ी है। यदि किसी कंपनी या निवेशक ने कोई ऐसी प्रक्रिया अपनाई है जिसका मकसद सिर्फ टैकस बचाना है, उससे कोई कारोबारी लाभ नहीं है तो आयकर विभाग खुद खुद इन नियमों को अमल में लाकर कंपनी पर शिकंजा कस सकता है। भारत में तो गार और जरुरी है क्यों कि ज्यादातर विदेशी निवेश
मारीशस ब्रांड संधियों के जरिये आता हैजिनका मकसद ही कर बचाना है। जनरल एंटी अवाइंडेस रुल् कर चोरी के मामले में अदालतों के लिए भी नियमों की तस्वीर साफ करते हैं। अदालतें जानना चाहती हैं कि आखिर कौन सी टैक् प्लानिंग जायज है और कौन सी गलत, ताकि विवाद के वक् सही फैसले (वोडाफोन पर सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसला)  हो सकें। भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आए करीब दो दशक बीतने के बाद सरकार ने यह हिम्मत जुटाई कि टैकस कानूनों को नख दंत दिेये जाएं। 2009 में डायरेक् टैक् कोड के मसौदे में पहली बार जनरल एंटी अवाइंडेस रुल् शामिल हुए थे। तीन साल तक बहस चली।  इस बजट के जरिये जब इन नियमों को (गार का दुरुपयोग रोकने के प्रावधान सहित) का ऐलान किया गया तो यह महसूस हुआ कि सरकार के पास एक रीढ़ है और वह कुछ कुछ बदलना चाहती है। मगर विरोध और पर्दे के पीदे के खेल भारी पड़े  एक संप्रभु देश का टैक्  कानून खौफजदा हो गर घुटनों के बल बैठ गया। गार खेत रहा। ... अपने इर्द गिर्द फैले कुछ ताजे बडे घोटालों की सुर्खियां दोहराइये। मारीशस का रास्ता, कंपनियों का मकड़जाल, निवेश के पेंचदार तरीके, दोहरा कराधान टालने की संधियों का इस्तेमाल। हर घोटाले की कहानी में यह हथकंडे जरुर मिलेंगे। जनरल एंटी अवाइंडेस रुल् (गार) का जाल इन्हीं के लिए था। अब टैक् चोरी और काला धन रोकने की सख्ती का अध्याय बंद हो गया है। कम से 2014 (नई सरकार आने) तक तो कुछ नहीं होना।
दुनिया से उलटे
दुनिया इतनी रीढ़ विहीन नहीं है। गार जैसे प्रावधान अब आधुनिक टैक् प्रणालियों का हिस्सा बन चुके हैं क्यों कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने साथ टैक् बचाने और वित्तीय प्रबंधन की अंतरराष्ट्रीय चालाकी लेकर आती हैं। यह चतुर टैकस प्रबंधन (टैकस की जबान में एग्रेसिव टैकस मैनेजमेंट) किसी देश के राजसव का नुकसान करता है इसलिए हर बड़ा मुल् इस टैकस प्रबंधन को सख् नियमों के शीशे में उतारता है। अमेरिका और ब्रिटेन खासतौर पर इस तरह के खेल रोकने के लिए अपने कर कानूनों के साथ अदालतों में लड़ रहे हैं। अमेरिका के राजस् विभाग ने पाया है कि उनके बैंकों ने  ट्रस् प्रतिभूतियों की एक जटिल प्रक्रिया (स्टार्सस्ट्रक्चर्ड ट्रस् एडवांटेज रिपैकेज् सिक्यूरिटीज) के जरिये अपने निवेश को घुमाकर पिछले एक दशक में अमेरिका को एक अरब डॉलर के टैकस का चूना लगाया है। फाइनेंशियल टाइम् और प्रो पब्लिका (स्वयंसेवी खोजी पत्रकारिता संगठन) की एक ताजी पड़ताल के बाद स्टार्स को लेकर अमेरिका का कर प्रशासन बेहद सक्रिय है। बड़ी कंपनियां अकूत ताकत से लैस होती हैं। उन पर शिकंजा कसना आसान नहीं है इसलिए जनरल एंटी अवाइंडेस रुल् (गार) कनाडा, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड में भी विरोध का निशाना बने थे। निवेश घटने डर दिखाये गए मगर कुछ वक् बाद सब खत् हो गया। रकारों की रीढ़ मजबूत थी और इसलिए तो चीन ने 2007 में जनरल एंटी अवाइंडेस रुल् ही नहीं बल्कि सीएफसी (कंट्रोल् फॉरेन कार्पोरेशन) नियम भी लागू कर दिये थे जो टैक् बचाने के लिए मारीशस जैसे रासतों का इस्तेमाल सीमित करते हैं। गार लागू करने वाले देशों में विदेशी निवेश पर कोई फर्क नहीं पड़ा और सरकार का राजसव बढ़ा क्यों कि पारदर्शिता ही अंतत: सबसे माफिक  कारोबारी माहौल बनाती है।
भारत कोई टैक् हैवेन नहीं है। हमें मालूम है कि टैक् देनदारी से बचने के लिए कंपनियां दोहरा कराधान टालने की संधियों का इस्तेमाल करती हैं। क्या हमें इसे नहीं रोकना चाहिए .... वित् मंत्री का यह साहस  27 मार्च को बजट पर चर्चा के दौरान लोकसभा में गूंजा था मगर इसी संसद में सात मई को वितत मंत्री बुदबुदाये कि किसी कर डर नहीं है। मुझे किसी परिणाम की फिक्र नहीं है  और जनरल एंटी अवाइंडेस रुल्स पर अमलएक साल (वस्तुत: ठंडे बस्ते में) के लिए  टल गया लंबी तैयारी के बाद गार का आना और डर परिणामों के जिक्र के साथ अचानक चले जाना बड़ा रहस्यमय है। गार की हार के बाद यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि एक आम करदाता के लिए टैक्‍स प्रशासन साक्षात खौफ है मगर बहुराष्ट्रीय कंपनियां और बड़े निवेशक सरकारी गारंटी पर टैक् चोरी के लिए आजाद हैं। वित् मंत्री जी ठीक कहते हैं भारत टैक् हैवेन, यकीनन,  नहीं है क्यों कि काला धन छिपाने वाली व्यवस्थायें तो बहुत कठोर नियमों पर चलती हैं। भारत में तो मरियल टैक् कानूनों का राज है। यहां के काले कारोबारी नाहक ही टैक् हैवेन में छिपते हैं। भारत में अराजकता तो दरअसल कानूनन वैध है।
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1 comment:

Anonymous said...

apke lekh se hame behad sargarbhit jankari milti hai