Thursday, September 9, 2021

ये दाग़ दाग़ उजाला

दिसंबर 2019 में संदीप के पास तीन टैक्सी थीं, दो पर ड्राइवर रखे थे, एक खुद चलाते थे. लॉकडाउन के बाद जून 2020 में तीनों कारें कर्जदारों ने उठा ली. अब वे दिहाड़ी पर कार चलाने के लिए अपना मोबाइल नंबर बताते हुए मिल जाते हैं. स्कूल टीचर सुधा की नौकरी गई और दो महीने की तनख्वाह भी. कोविड के डर से ट्यूशन भी मुश्किल हो गया. सुमित की फाइनेंस कंपनी ने तो हिसाब भी नहीं किया, बस नौकरी से निकाल दिया. गुड़गांव की बड़ी मॉल के सामने पार्किंग चलाने वाला रवि अब मध्य प्रदेश के दतिया में रिक्शा चला रहा है.

क्या भारत में कोविड पूर्व के दिन लौट आए हैं? क्या जीडीपी का ताजे आंकड़े (अप्रैल-जून 2021 में 20.1 फीसद की विकास दर बनाम -24.4 फीसद की सिकुड़न) की बधाई में संदीप, सुधा, सुमित और रवि के चेहरे नजर आते हैं? 

मंदी होती ही है ऐसी. डूबते सब एक साथ हैं लेकिन एक साथ उबरते नहीं हैं. मंदी आंकड़ों की समझ को सिकोड़ देती है. इसलिए  प्रतिशत ग्रोथ के बजाए उत्पादन की ठोस कीमत को पढ़ना चाहिए. कोविड से पहले अप्रैल-जून 2019 में अर्थव्यवस्था उत्पादन 35.85 लाख करोड़ रुपए था जो 2020 में इसी दौरान टूट रु. 26.95 लाख करोड़ रुपए रह गया. इस साल यह 32.38 लाख करोड़ रुपए रहा है. 2019-20 की पहली तिमाही में छह साल की सबसे कमजोर विकास दर दर्ज हुई थी. यानी कि कोविड से पहले का स्तर अभी नहीं आया जो तब छह साल की सबसे खराब विकास दर दर्ज हुई थी.

तो सुमित, सुधा या रवि जैसे लाखों लोगों की मंदी का अपडेट कहां मिलेगी?  इन्हें तलाशने के लिए कुछ दूसरी संख्याएं खंगालनी होंगी.

अप्रैल-जून 2021 की 'शानदारतिमाही में मन्नपूरम फाइनेंस ने 1,500 करोड़ रुपए के जेवरात नीलाम किए जो इसके पास गिरवी रखे थे. इससे पहले के तीन माह में 404 करोड़ रुपए के गहने बिके थे. 2020 के पहले नौ माह में यह नीलामी केवल 8 करोड़ रुपए रही थी. देश की प्रमुख गोल्ड लोन मन्नपुरम फाइनेंस के पास गिरवी यह संपत्ति निम्न आय वालों की थी, कारोबार-रोजगार टूटने की वजह से वे कर्ज नहीं चुका सके.

 सोना ही नहीं बैंकों ने लोन के बदले गिरवी रखे मकानों की भी नीलामी की. तिमाही के नतीजों के दौरान स्टेट बैंक ने करीब 5 लाख करोड़ रुपए के कर्ज बकाया होने और डिफॉल्ट बढ़ने की सूचना दी थी. नेशनल पेमेंट कॉर्पोरेशन के मुताबिक, बैंकों में ऑटो डेबिट अस्वीकृत होने का औसत वित्त वर्ष 2021 में 39 फीसद हो गया जो 2019 में 23.3 फीसद था. 

जीडीपी की छलांग के साये में छिपा एक आंकड़ा सच के करीब ले जाता है. अप्रैल-जून 2021 में निजी उपभोग खपत केवल 18 लाख करोड़ रुपए रही. यह स्तर 2019 की इसी तिमाही से लगभग 12 फीसद कम है. भारत की 60 फीसद जीडीपी इसी से बनती है. इसके डूबने का मतलब निवेश और रोजगार की उम्मीद टूटना.

रिजर्व बैंक के ओबिकस सर्वे (2020-21) ने बताया कि मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां अभी उत्पादन क्षमता का 70 फीसद प्रयोग भी नहीं कर पाई हैं. तो नया निवेश कहां से होगा? तभी तो जब अगस्त के महीने में मंदी दूर होने का जश्न मन रहा था, उसी महीने में करीब 15 लाख रोजगार गंवाए गए. अगस्त में बेकारी दर 8.32 फीसद हो गई जो जुलाई में 6.95 फीसद थी.

ऑटो उद्योग की मंदी खासतौर पर दुपहिया वाहनों की बिक्री दर और रिजर्व बैंक सीएमआइई के उपभोक्ता विश्वास उम्मीद के सूचकांक भी, कोविड से पहले का माहौल लौटने की गवाही नहीं दे रहे हैं.

अगर कोविड वाली मंदी आई होती और अर्थव्यवस्था केवल पांच फीसद की दर से बढ़ रही होती तो वित्त वर्ष 2022 में अर्थव्यवस्था का आकार 160.59 लाख करोड़ रुपए होता. अब इसे हासिल करने के लिए इस पूरे 2022  में करीब 20 फीसद की विकास दर चाहिए, केवल एक तिमाही में नहीं.

अक्सर आंकड़े सब कुछ नहीं समेट पाते. रॉबर्ट मैकनमारा (वियतनाम युद्ध के दौरान अमेरिका के रक्षा मंत्री) संख्याओं के महारथी थे, उद्योगपति हेनरी फोर्ड द्वितीय के साथ काम कर चुके थे. मैकनमारा ने वियतनाम युद्ध में अमेरिका की जीत की संभावनाओं का आकलन चार्ट एडवर्ड लैंसडेल को दिखाया, जो पेंटागन के स्पेशल ऑपरेशंस प्रमुख थे.

लैंसडेल ने कहा कि इसमें कुछ कमी है.

मैकनमारा ने पूछा, क्या?

लैंसडेल ने कहा कि वियतनाम के लोगों के भावनाएं कहां हैं, उन्हें आंकड़ों में कैसे बांधेंगे.

युद्ध का नतीजा सबको पता है.

भारत में जीडीपी सच बताता नहीं, छिपाता है. यहां ग्रोथ की पैमाइश उत्पादन बढ़ने से होती है, लोगों की कमाई में बढ़त से नहीं, इसलिए मंदी ने भारत को दो हिस्सों में बांट दिया है. बड़ी कंपनियां पहले वर्ग में हैं, जिनके वित्तीय नतीजे बताते हैं कि वे टैक्स कटौती, रोजगारों की छंटनी या कीमत बढ़ाकर अपने नुक्सान वसूल रही हैं जबकि दूसरी तरफ सुधा, रवि, सुमित जैसों लाखों लोगों के लिए जीडीपी टूटा नहीं, डूब गया है. मंदी से जीतने के इनका उबरना जरूरी है.


2 comments:

SHUBHAM MISHRA said...

salute to you
sir
your blog = my inspiration in Hindi journalism

Unknown said...

Dear Sir
please write or speak on Export from India in last 5 years and specially post covid

thanks

sundip