Monday, October 31, 2016

जीएसटी को बचाइए


जीएसटी में वही खोट भरे जाने लगे हैं जिन्‍हें दूर करने लिए इसे गढ़ा जा रहा था.
गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स से हमारा सम्‍मोहन उसी वक्त खत्म हो जाना चाहिए था जब सरकार ने तीन स्तरीय जीएसटी लाने का फैसला किया था. दकियानूसी जीएसटी मॉडल कानून देखने के बाद जीएसटी को लेकर उत्साह को नियंत्रित करने का दूसरा मौका आया था. ढीले-ढाले संविधान संशोधन विधेयक को संसद की मंजूरी के बाद तो जीएसटी को लेकर अपेक्षाएं तर्कसंगत हो ही जानी चाहिए थीं. लेकिन जीएसटी जैसे जटिल और संवेदनशील सुधार को लेकर रोमांटिक होना भारी पड़ रहा है. संसद की मंजूरी के तीन महीने के भीतर उस जीएसटी को बचाने की जरूरत आन पड़ी है जिसे हम भारत का सबसे महान सुधार मान रहे हैं.

संसद से निकलने के बाद जीएसटी में वही खोट पैवस्त होने लगे हैं जिन्‍हें ख त्‍म करने के लिए जीएसटी को गढ़ा जा रहा था. जीएसटी काउंसिल की दूसरी बैठक के बाद ही संदेह गहराने लगा था, क्योंकि इस बैठक में काउंसिल ने करदाताओं की राय लिए बिना जीएसटी में पंजीकरण व रिटर्न के नियम तय कर दिए जो पुराने ड्राफ्ट कानून की तर्ज पर हैं और करदाताओं की मुसीबत बनेंगे.

पिछले सप्ताह काउंसिल की तीसरी बैठक के बाद आशंकाओं का जिन्न बोतल से बाहर आ गया. जीएसटी में बहुत-सी दरों वाला टैक्स ढांचा थोपे जाने का डर पहले दिन से था. काउंसिल की ताजा बैठक में आशय का प्रस्ताव चर्चा के लिए आया है. केंद्र सरकार जीएसटी के ऊपर सेस यानी उपकर भी लगाना चाहती है, जीएसटी जैसे आधुनिक कर ढांचे में जिसकी उम्मीद कभी नहीं की जाती.
काउंसिल की तीन बैठकों के बाद जीएसटी का जो प्रारूप उभर रहा है वह उम्मीदों को नहीं, बल्कि आशंकाओं को बढ़ाने वाला हैः
  • केंद्र सरकार ने जीएसटी काउंसिल की बैठक में गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स के लिए चार दरों का प्रस्ताव रखा है. ये दरें 6, 12,18 और 26 फीसदी होंगी. सोने के लिए चार फीसदी की दर अलग से होगी. अर्थात् कुल पांच दरों का ढांचा सामने है.
  •   मौजूदा व्यवस्था में आम खपत के बहुत से सामान व उत्पाद वैट या एक्साइज ड्यूटी से मुक्त हैं. कुछ उत्पादों पर 3, 5 और 9 फीसदी वैट लगता है जबकि कुछ पर 6 फीसदी एक्साइज ड्यूटी है. जीएसटी कर प्रणाली के तहत 3 से 9 फीसदी वैट और 6 फीसदी एक्साइज वाले सभी उत्पाद 6 फीसदी की पहली जीएसटी दर के अंतर्गत होंगे. जीरो ड्यूटी सामान की प्रणाली शायद नहीं रहेगी इसलिए टैक्स की यह दर महंगाई बढ़ाने की तरफ झुकी हो सकती है.
  •   केंद्र सरकार ने जीएसटी के दो स्टैंडर्ड रेट प्रस्तावित किए हैं. यह अनोखा और अप्रत्याशित है. जीएसटी की पूरे देश में एक दर की उक्वमीद थी. यहां चार दरों का रखा जा रहा है, जिसमें दो स्टैंडर्ड रेट होंगे. बारह फीसदी के तहत कुछ जरूरी सामान रखे जा सकते हैं. यह जीएसटी में पेचीदगी का नया चरम है. 
  • यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि ज्यादातर उत्पाद और सेवाएं 18 फीसद दर के अंतर्गत होंगी क्योंकि अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के मुताबिक जीएसटी में गुड्स और सर्विसेज के लिए एक समान दर की प्रणाली है. इस व्यवस्था के तहत सेवाओं पर टैक्स दर वर्तमान के 15 फीसदी (सेस सहित) से बढ़कर 18 फीसदी हो जाएगी. यानी इन दरों के इस स्तर पर जीएसटी खासा महंगा पड़ सकता है.
  • चौथी दर 26 फीसदी की है जो तंबाकू, महंगी कारों, एयरेटेड ड्रिंक, लग्जरी सामान पर लगेगी. ऐश्वर्य पर लगने वाले इस कर को सिन टैक्स कहा जा रहा है. इस वर्ग के कई उत्पादों पर दरें 26 फीसदी से ऊंची हैं जबकि कुछ पर इसी स्तर से थोड़ा नीचे हैं. इस दर के तहत उपभोक्ता कीमतों पर असर कमोबेश सीमित रहेगा.
  •   समझना मुश्किल है कि सोने पर सिर्फ 4 फीसदी का टैक्स किस गरीब के फायदे के लिए है. इस समय पर सोने पर केवल एक फीसदी का वैट और ज्वेलरी पर एक फीसदी एक्साइज है, जिसे बढ़ाकर कम से कम से 6 फीसदी किया जा सकता था.   
  • किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि सरकार एक पारदर्शी कर ढांचे की वकालत करते हुए जीएसटी ला रही है, और पिछले दरवाजे से जीएसटी की पीक रेट (26 फीसदी) पर सेस लगाने का प्रस्ताव पेश कर देगी. सेस न केवल अपारदर्शी हैं बल्कि कोऑपरेटिव फेडरलिज्म के खिलाफ हैं क्योंकि राज्यों को इनमें हिस्सा नहीं मिलता है.

केंद्र सरकार सेस के जरिए राज्यों को जीएसटी के नुक्सान से भरपाई के लिए संसाधन जुटाना चाहती है. अलबत्ता राज्य यह चाहेंगे कि जीएसटी की पीक रेट 30 से 35 फीसदी कर दी जाए, जिसमें उन्हें ज्यादा संसाधन मिलेंगे. इसी सेस ने जीएसटी काउंसिल की पिछली बैठक को पटरी से उतार दिया और कोई फैसला नहीं हो सका.

अगर जीएसटी 4 या 5 कर दरों के ढांचे और सेस के साथ आता है तो यह इनपुट टैक्स क्रेडिट को बुरी तरह पेचीदा बना देगा जो कि जीएसटी सिस्टम की जान है. इस व्यवस्था में उत्पादन या आपूर्ति के दौरान कच्चे माल या सेवा पर चुकाए गए टैक्स की वापसी होती है. यही व्यवस्था एक उत्पादन या सेवा पर बार-बार टैक्स का असर खत्म करती है और महंगाई रोकती है.

केंद्र सरकार जीएसटी को लेकर कुछ ज्यादा ही जल्दी में है. जीएसटी से देश की सूरत और सीरत बदल जाने के प्रचार में इसके प्रावधानों पर विचार विमर्श और तैयारी खेत रही है. व्यापारी, उद्यमी, उपभोक्ता, कर प्रशासन जीएसटी गढऩे की प्रक्रिया से बाहर हैं. जीएसटी काउंसिल की बैठक में मौजूद राज्यों के मंत्री इसके प्रावधानों पर खुलकर सवाल नहीं उठा रहे हैं या फिर उनके सवाल शांत कर दिए गए हैं. 

जीएसटी काउंसिल की तीन बैठकों को देखते हुए लगता है कि मानो यह सुधार केवल केंद्र और राज्यों के राजस्व की चिंता तक सीमित हो गया है. करदाताओं के लिए कई पंजीकरण और कई रिटर्न भरने के नियम पहले ही मंजूर हो चुके हैं. अब बारी बहुत-सी टैक्स दरों की है जो जीएसटी को खामियों से भरे पुराने वैट जैसा बना देगी.

गुड्स एंड सर्विसेज टैक्‍स का वर्तमान ढांचा कारोबारी सहजता की अंत्‍येष्टि करने, कर नियमों के पालन की लागत (कंप्लायंस कॉस्ट) बढ़ाने और महंगाई को नए दांत देने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है. क्या हम जीएसटी बचा पाएंगे या फिर हम इस सुधार के बोझ तले दबा ही दिए जाएंगे?

1 comment:

Rajesh bhalla said...

सर,ये GST बहुत जलद ही लोगो के जी का जंजाल बन जायेगा। हमारे वित मनञी जी वकील तो अचछे है पर वितीय मामलों में बाबूओं से भी बुरे हैं।GSTएक अचछा कानून बनने की बजाय एक दुखदाय और इस सरकार का कफन का कील साबित होगा।