Monday, September 19, 2011

शुद्ध स्‍वदेशी संकट

क्या हमारी सरकार दीवालिया (जैसे यूरोप) हो रही है?  क्या हमारे बैंक (जैसे अमेरिका) डूब रहे हैं? क्या हमारा अचल संपत्ति बाजार ढह (जैसे चीन) रहा है?  क्या हम सूखा, बाढ़ या सुनामी (जैसे जापान) के मारे हैं ? इन सब सवालों का जवाब होगा एक जोरदार नहीं !! तो फिर हमारी ग्रोथ स्टोरी त्रासदी में क्यों बदलने जा रही है ? हम क्यों औद्योगिक उत्पाहदन में जबर्दस्त गिरावट, बेकारी और बजट घाटे की समस्याओं की तरफ बढ़ रहे हैं। हम तो दुनिया की ताजी वित्तीय तबाही से लगभग बच गए थे। हमें तो सिर्फ महंगाई का इलाज तलाशना था, मगर हमने मंदी को न्योत लिया। भारतीय अर्थव्यवस्था का ताजा संकट विदेश से नहीं आया है इसे देश के अंदाजिया आर्थिक प्रबंधन, सुधारों के शून्य और खराब गवर्नेंस ने तैयार किया है। हमारी की ग्रोथ का महल डोलने लगा है। नाव में डूबना इसी को कहते हैं।
महंगाई का हाथ
महंगाई का हाथ पिछले चार साल से आम आदमी के साथ है। इस मोर्चे पर सरकार की शर्मनाक हार काले अक्षरों में हर सप्ताह छपती है और सरकार अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतों के पीछे छिपकर भारतीयों को सब्सिडीखोर होने की शर्म से भर देती है। भारतीय महंगाई अंतरराष्ट्री य कारणों से सिर्फ आंशिक रुप से प्रेरित है। थोक कीमतों वाली (डब्लूपीआई) महंगाई में सभी ईंधनों (कोयला, पेट्रो उत्पाद और बिजली) का हिस्सां केवल

Saturday, September 17, 2011

भारत का चौथाई औद्योगिक उत्‍पादन चीन का मोहताज

विशेष पोस्‍ट

दैनिक जागरण में 16 सितंबर को प्रकाशित समाचार

चीन का खतरा अब देश की सीमाओं तक ही सीमित नहीं है। हमारी अर्थव्यवस्था के बड़े हिस्से पर भी उसका परोक्ष कब्जा हो गया है। लगभग 26 फीसदी औद्योगिक उत्पादन चीन से आयातित इनपुट या उत्पादों पर निर्भर है, यानी उसकी मुट्ठी में है। यह हैरतअंगेज निष्कर्ष राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) का है। एनएसए सचिवालय ने चीन पर हाल में सरकारी विभागों को एक रिपोर्ट दी है। इसके अनुसार चीन ने कई संवेदनशील क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता पर दांत गड़ा दिए हैं। बिजली, दवा, दूरसंचार और सूचना तकनीक के क्षेत्रों में उसका दखल खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। रिपोर्ट के बाद विदेश मंत्रालय व आर्थिक मंत्रालयों में हड़कंप है।
  करीब आठ पेज की यह गोपनीय रिपोर्ट बेहद सनसनीखेज है। एनएसए ने इस साल मार्च में योजना आयोग और अगस्त में आर्थिक मंत्रालयों के साथ बैठक की थी। इसके बाद यह रिपोर्ट तैयार की गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन की नीयत और नीतियां साफ नहीं है। चीन दूरसंचार और सूचना तकनीक के क्षेत्रों में अपने दखल का इस्तेमाल साइबर जासूसी के लिए कर सकता है। इस रहस्योद्घाटन ने सरकार के हाथों से तोते उड़ा दिए हैं कि अगले पांच साल में चीन हमारे 75 फीसदी मैन्यूफैक्चरिंग उत्पादन को नियंत्रित करने लगेगा। इस समय देश मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का करीब 26 फीसदी उत्पादन चीन से मिलने वाली आपूर्ति के भरोसे है। एक देश पर इतनी निर्भरता अर्थव्यवस्था को गहरे खतरे

Monday, September 12, 2011

महासंकट ! मेड इन चाइना

अंतरराष्ट्रीय वित्ती‍य संकट की डरावनी कथा अभी पूरी नहीं हुई है। इसका नया अध्याय ठीक पड़ोस में यानी चीन में लिखा जा रहा है। ग्रोथ की दंतकथायें बना चुका चीन का अचल संपत्ति बाजार बस फटने को तैयार है। अमेरिका, दुबई और आयरलैंड में प्रॉपर्टी बाजार में तबाही क्षत विक्षत हो चुके निवेशक अब आंखे फाड़े  ड्रैगन को देख रहे हैं। चीन की ग्रोथ में करीब पंद्रह फीसदी का हिस्सेदार भवन निर्माण क्षेत्र का डूबना विश्वेव्यापी मंदी की ताल ठोंक गारंटी होगी। विकीलीक्स के ताजे खुलासों ने चीन को लेकर पारदर्शिता के पुराने शक फिर उभर आऐ हैं। चीन के कुछ वरिष्ठ नेता अपने देश की शानदार ग्रोथ के आंकड़ों की प्रामाणिकता पर संदेह करते हुए पाए गए हैं। बदकिस्‍मती देखिये कि जब दुनिया मंदी से बचने के लिए चीन की ग्रोथ के कवच का इस्तेमाल करना चाहती है तो  ड्रैगन तो नए संकट की भयानक आग उगलने वाला है।
प्रॉपर्टी का भस्मा्सुर
चीन भवन निर्माण का महासागर है। चीन के उप नगरीय इलाकों की एक हालिया और चर्चित उपग्रह तस्वीर ने दुनिया को दिखाया कि ग्रोथ की झोंक में चीन किस तरह शहर पर शहर बसा रहा है। आकाश चूमती क्रेनें, विशालकाय भवन और निर्माण के करिश्में चीन के नगरों की पहचान हैं। दुनिया यह जानकर हैरत में हैं कि विश्‍व का सबसे जोखिम भरा कारोबार, दरअसल चीन की ग्रोथ में सबसे बड़ा

Monday, September 5, 2011

सोने का क्या होना है ?

सोने के सिक्‍कों का प्रचलन !! फिर से ??... अमेरिका के राज्य यूटॉ ने बीते माह एक कानून पारित कर सोने व चांदी के सिक्‍कों का इस्तेमाल कानूनी तौर पर वैध कर दिया !!! सरकारें यकीनन बदहवास हो चली हैं। मगर हमें बेचैन होने से पहले  दूसरी तस्वीर भी देख लेनी चाहिए। बीते सप्तांह सोना ऐतिहासिक ऊंचाई पर जाने के बाद ऐसा टूटा कि (तीन दिन में 200 डॉलर) कि नया इतिहास बन गया। निवेशक कराहते हुए नुकसान गिनते रह गए।... वित्तींय संकटों के तूफान में सोना अबूझ हो चला है। अनोखी तेजी व गिरावट, मांग व आपूर्ति की पेचीदा गणित और सरकारों की ऊहापोह ने सोने की गति को रोमांचक और रहस्‍यमय बना दिया है। डॉलर, यूरो, येन की साख घटते देख, निवेशक सोने पर दांव लगाये जा रहे हैं  और सोने का उत्पादन तलहटी पर है और यह धातु वर्तमान मौद्रिक प्रणाली फिट भी नहीं होती। इसलिए असमंजस चरम पर है। सोने का इतिहास जोखिम भरा है, भविष्‍य अनिश्चित है मगर संकटों का वर्तमान इसे चमका रहा है। दुनिया में सोना नहीं बल्कि यह सवाल ज्यादा चमक रहा हे कि सोने का अब क्या होना है ??
अतीत की परछाईं
सोने को अतीत की रोशनी में परखना जरुरी है। आधुनिक होती दुनिया सोने से दूरी बढ़ाती चली गई है। पंद्रह अगस्त 1971 को अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने अमेरिकी डॉलर सोने की करीब 2000 वर्ष पुरानी गुलामी से आजाद किया था। अमेरिका में गोल्ड स्टैंडर्ड खत्म होते सरकारों की गारंटी वाली बैंक मुद्रा का जमाना आ गया। गोल्ड स्टैंडर्ड का मतलब था कि कागज की मुद्रा के मूल्य के बराबर सोना लेने की छूट। जबकि इनकी जगह आए बैंकनोट (तकनीकी भाषा में फिएट करेंसी या लीगल टेंडर) सरकारी की गारंटी वाले दस्तावेज हैं, जिनको नकारना गैर कानूनी है। चीन के तांग व सोंग (607 से 1200 ईपू) शासनकालों के दौरान आई नोटों की यह सूझ

Monday, August 29, 2011

नेतृत्‍व का ग्‍लोबल संकट

राक ओबामा, एंजेला मर्केल, निकोलस सरकोजी, डेविड कैमरुन, नातो कान, मनमोहन सिंह, आंद्रे पापेद्रू (ग्रीस), बेंजामिन् नेतान्याहू, रो्ड्रियो जैप्टारो (स्पे न) आदि राष्ट्राध्यक्ष सामूहिक तौर पर इस समय दुनिया को क्या दे रहे हैं ??  केवल घटता भरोसा,  बढता डर और भयानक अनिश्चितता !!!!  सियासत की समझदारी ने बड़े कठिन मौके पर दुनिया का साथ छोड़ दिया है। हर जगह सरकारें अपनी राजनीतिक साख खो रही हैं। राजनीतिक अस्थिरता के कारण इस सप्‍ताह जापान की रेटिंग घट गई। दुनिया के कई प्रमुख देश राजनीतिक संकट के भंवर में है। भारत में अन्ना की जीत सुखद है मगर एक जनांदोलन के सामने सरकार का बिखर जाना फिक्र बढ़ाता है। मंदी तकरीबन आ पहुंची है। कर्ज का कीचड़ बाजारों को डुबाये दे रहा है। इस बेहद मुश्किल भरे दौर में पूरी दुनिया के पास एक भी ऐसा नेता नहीं है जिसके सहारे उबरने की उम्मीद बांधी जा सके। राजनीतिक नेतृत्व की ऐसी अंतरराष्ट्रीय किल्‍लत अनदेखी है। पूरी दुनिया नेतृत्व के संकट से तप रही है।
अमेरिकी साख का डबल डिप
ओबामा प्रशासन ने स्टैंडर्ड एंड पुअर के मुखिया देवेन शर्मा की बलि ले ली। अपना घर नहीं सुधरा तो चेतावनी देने वाले को सूली पर टांग दिया। मगर अब तो फेड रिजर्व के मुखिया बर्नांकी ने भी संकट की तोहमत अमेरिकी संसद पर डाल दी है। स्टैंडर्ड एंड पुअर ने दरअसल अमेरिका की वित्तींय साख नहीं बल्कि राजनीतिक साख घटाई थी। दुनिया का ताजी तबाही अमेरिका पर भारी कर्ज से नहीं निकली, बल्कि रिपब्लिकन व डेमोक्रेट के झगड़े