Monday, October 3, 2011

पलटती बाजी

ह यूरोप और अमेरिका के संकटों का पहला भूमंडलीय तकाजा था, जो बीते सपताह भारत, ब्राजील, कोरिया यानी उभरती अर्थव्‍यवस्‍थाओं के दरवाजे पर पहुंचा। इस जोर के झटके में रुपया, वॉन (कोरिया), रिएल (ब्राजील), रुबल, जॉल्‍टी(पोलिश), रैंड (द.अफ्रीका) जमीन चाट गए। यह 2008 के लीमैन संकट के बाद दुनिया के नए पहलवानों की मुद्राओं का सबसे तेज अवमूल्‍यन था। दिल्‍ली, सिओल, मासको,डरबन को पहली बार यह अहसास हुआ कि अमेरिका व यूरोप की मुश्किलों का असर केवल शेयर बाजार की सांप सीढ़ी तक सीमित नहीं है। वक्‍त उनसे कुछ ज्‍यादा ही बडी कीमत वसूलने वाला है। निवेशक उभरती अर्थव्‍यवस्‍थाओं में उम्‍मीदों की उड़ान पर सवार होने को तैयार नहीं हैं। शेयर बाजारों में टूट कर बरसी विदेशी पूंजी अब वापस लौटने लगी है। शेयर बाजारों से लेकर व्‍यापारियों तक सबको यह नई हकीकत को स्‍वीकारना जरुरी है कि उभरती अर्थव्‍यवस्‍थाओं के लिए बाजी पलट रही है। सुरक्षा और रिर्टन की गारंटी देने वाले इन बाजारों में जोखिम का सूचकांक शिखर पर है।
कमजोरी की मुद्रा
बाजारों की यह करवट अप्रत्याशित थी, एक साल पहले तक उभरते बाजार अपनी अपनी मुद्राओं की मजबूती से परेशान थे और विदशी पूंजी की आवक पर सख्‍ती की बात कर रहे थे। ले‍किन अमेरिकी फेड रिजर्व की गुगली ने उभरते बाजारों की गिल्लियां बिखेर दीं। फेड  का ऑपरेशन ट्विस्‍ट, तीसरी दुनिया के मुद्रा बाजार में कोहराम की वजह बन गया। अमेरिका के केंद्रीय बैंक ने देश को मंदी से उबारने के लिए में छोटी अवधि के बांड बेचकर लंबी अवधि के बांड खरीदने का फैसला किया। यह फैसला बाजार में डॉलर छोडकर मुद्रा प्रवाह बढाने की उम्‍मीदों से ठीक उलटा था। जिसका असर डॉलर को मजबूती की रुप में सामने आया। अमेरिकी मुद्रा की नई मांग निकली और भारत, कोरिया, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील के केद्रीय बैंक जब तक बाजार का बदला मिजाज समझ पाते तब तक इनकी मुद्रायें डॉलर के मुकाबले चारो खाने चित्‍त

Monday, September 26, 2011

वो रही मंदी !

डा नाज था हमें अपने विश्‍व बैंकों, आईएमएफों, जी 20, जी 8, आसियान, यूरोपीय समुदाय, संयुक्‍त राष्‍ट्र की ताकत पर !! बड़ा भरोसा था अपने ओबामाओं, कैमरुनों, मर्केलों, सरकोजी, जिंताओ, पुतिन, नाडा, मनमोहनों की समझ पर !!..मगर किसी ने कुछ भी नहीं किया। सबकी आंखों के सामने मंदी दुनिया का दरवाजा सूंघने लगी है। उत्‍पादन में चौतरफा गिरावट, सरकारों की साख का जुलूस, डूबते बैंक और वित्‍तीय तंत्र की पेचीदा समस्‍यायें ! विश्‍वव्‍यापी मंदी के हरकारे जगह जगह दौड़ गए हैं। ... मंदी के डर से ज्‍यादा बड़ा खौफ यह है कि बहुपक्षीय संस्‍थाओं और कद्दावर नेताओं से सजी दुनिया का राजनीतिक व आर्थिक नेतृत्‍व उपायों में दीवालिया है। यह पहला मौका है जब इतने भयानक संकट को से निबटने के लिए रणनीति बनाना तो दूर  दुनिया के नेता साझा साहस भी नहीं दिखा रहे हैं। यह अभूतपूर्व विवशता, दुनिया को दूसरे विश्‍व युद्ध के बाद सबसे भयानक आर्थिक भविष्‍य की तरफ और तेजी से धकेल रही है।
मंदी पर मंदी
मंदी की आमद भांपने के लिए ज्‍योतिषी होने की जरुरत नहीं है। आईएमएफ बता रहा है कि दुनिया की विकास दर कम से कम आधा फीसदी घटेगी। अमेरिका में बमुश्किल 1.5 फीसदी की ग्रोथ रहेगी जो अमेरिकी पैमानों पर शत प्रतिशत मंदी है। पूरा यूरो क्षेत्र अगर मिलकर 1.6 फीसदी की रफ्तार दिखा सके तो अचरज होगा। जापान में उत्‍पादन की विकास दर शून्‍य हो सकती है। यूरो जोन में कंपनियों के लिए ऑर्डर करीब 2.1 फीसदी घट गए हैं। यूरो मु्द्रा का इस्‍तेमाल करने वाले 17 देशों में सेवा व मैन्‍युफैक्‍चरिंग सूचकांक दो साल के न्‍यूनतम

Monday, September 19, 2011

शुद्ध स्‍वदेशी संकट

क्या हमारी सरकार दीवालिया (जैसे यूरोप) हो रही है?  क्या हमारे बैंक (जैसे अमेरिका) डूब रहे हैं? क्या हमारा अचल संपत्ति बाजार ढह (जैसे चीन) रहा है?  क्या हम सूखा, बाढ़ या सुनामी (जैसे जापान) के मारे हैं ? इन सब सवालों का जवाब होगा एक जोरदार नहीं !! तो फिर हमारी ग्रोथ स्टोरी त्रासदी में क्यों बदलने जा रही है ? हम क्यों औद्योगिक उत्पाहदन में जबर्दस्त गिरावट, बेकारी और बजट घाटे की समस्याओं की तरफ बढ़ रहे हैं। हम तो दुनिया की ताजी वित्तीय तबाही से लगभग बच गए थे। हमें तो सिर्फ महंगाई का इलाज तलाशना था, मगर हमने मंदी को न्योत लिया। भारतीय अर्थव्यवस्था का ताजा संकट विदेश से नहीं आया है इसे देश के अंदाजिया आर्थिक प्रबंधन, सुधारों के शून्य और खराब गवर्नेंस ने तैयार किया है। हमारी की ग्रोथ का महल डोलने लगा है। नाव में डूबना इसी को कहते हैं।
महंगाई का हाथ
महंगाई का हाथ पिछले चार साल से आम आदमी के साथ है। इस मोर्चे पर सरकार की शर्मनाक हार काले अक्षरों में हर सप्ताह छपती है और सरकार अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतों के पीछे छिपकर भारतीयों को सब्सिडीखोर होने की शर्म से भर देती है। भारतीय महंगाई अंतरराष्ट्री य कारणों से सिर्फ आंशिक रुप से प्रेरित है। थोक कीमतों वाली (डब्लूपीआई) महंगाई में सभी ईंधनों (कोयला, पेट्रो उत्पाद और बिजली) का हिस्सां केवल

Saturday, September 17, 2011

भारत का चौथाई औद्योगिक उत्‍पादन चीन का मोहताज

विशेष पोस्‍ट

दैनिक जागरण में 16 सितंबर को प्रकाशित समाचार

चीन का खतरा अब देश की सीमाओं तक ही सीमित नहीं है। हमारी अर्थव्यवस्था के बड़े हिस्से पर भी उसका परोक्ष कब्जा हो गया है। लगभग 26 फीसदी औद्योगिक उत्पादन चीन से आयातित इनपुट या उत्पादों पर निर्भर है, यानी उसकी मुट्ठी में है। यह हैरतअंगेज निष्कर्ष राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) का है। एनएसए सचिवालय ने चीन पर हाल में सरकारी विभागों को एक रिपोर्ट दी है। इसके अनुसार चीन ने कई संवेदनशील क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता पर दांत गड़ा दिए हैं। बिजली, दवा, दूरसंचार और सूचना तकनीक के क्षेत्रों में उसका दखल खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। रिपोर्ट के बाद विदेश मंत्रालय व आर्थिक मंत्रालयों में हड़कंप है।
  करीब आठ पेज की यह गोपनीय रिपोर्ट बेहद सनसनीखेज है। एनएसए ने इस साल मार्च में योजना आयोग और अगस्त में आर्थिक मंत्रालयों के साथ बैठक की थी। इसके बाद यह रिपोर्ट तैयार की गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन की नीयत और नीतियां साफ नहीं है। चीन दूरसंचार और सूचना तकनीक के क्षेत्रों में अपने दखल का इस्तेमाल साइबर जासूसी के लिए कर सकता है। इस रहस्योद्घाटन ने सरकार के हाथों से तोते उड़ा दिए हैं कि अगले पांच साल में चीन हमारे 75 फीसदी मैन्यूफैक्चरिंग उत्पादन को नियंत्रित करने लगेगा। इस समय देश मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का करीब 26 फीसदी उत्पादन चीन से मिलने वाली आपूर्ति के भरोसे है। एक देश पर इतनी निर्भरता अर्थव्यवस्था को गहरे खतरे

Monday, September 12, 2011

महासंकट ! मेड इन चाइना

अंतरराष्ट्रीय वित्ती‍य संकट की डरावनी कथा अभी पूरी नहीं हुई है। इसका नया अध्याय ठीक पड़ोस में यानी चीन में लिखा जा रहा है। ग्रोथ की दंतकथायें बना चुका चीन का अचल संपत्ति बाजार बस फटने को तैयार है। अमेरिका, दुबई और आयरलैंड में प्रॉपर्टी बाजार में तबाही क्षत विक्षत हो चुके निवेशक अब आंखे फाड़े  ड्रैगन को देख रहे हैं। चीन की ग्रोथ में करीब पंद्रह फीसदी का हिस्सेदार भवन निर्माण क्षेत्र का डूबना विश्वेव्यापी मंदी की ताल ठोंक गारंटी होगी। विकीलीक्स के ताजे खुलासों ने चीन को लेकर पारदर्शिता के पुराने शक फिर उभर आऐ हैं। चीन के कुछ वरिष्ठ नेता अपने देश की शानदार ग्रोथ के आंकड़ों की प्रामाणिकता पर संदेह करते हुए पाए गए हैं। बदकिस्‍मती देखिये कि जब दुनिया मंदी से बचने के लिए चीन की ग्रोथ के कवच का इस्तेमाल करना चाहती है तो  ड्रैगन तो नए संकट की भयानक आग उगलने वाला है।
प्रॉपर्टी का भस्मा्सुर
चीन भवन निर्माण का महासागर है। चीन के उप नगरीय इलाकों की एक हालिया और चर्चित उपग्रह तस्वीर ने दुनिया को दिखाया कि ग्रोथ की झोंक में चीन किस तरह शहर पर शहर बसा रहा है। आकाश चूमती क्रेनें, विशालकाय भवन और निर्माण के करिश्में चीन के नगरों की पहचान हैं। दुनिया यह जानकर हैरत में हैं कि विश्‍व का सबसे जोखिम भरा कारोबार, दरअसल चीन की ग्रोथ में सबसे बड़ा