नियति के देवता ने अमेरिका व यूरोप की किस्मत में शायद जब अमीरी के साथ कर्ज लिखा था या अफ्रीका को खनिजों के खजाने के साथ अराजकता की विपत्ति भी बख्शी थी तो ठीक उसी समय भारत की किस्मत में भी उद्यमिता के साथ ऊर्जा संकट दर्ज हो गया था। अचरज है कि पिछले दो दशक भारत के सभी प्रमुख आर्थिक भूकंपों का केंद्र ईंधन और बिजली की कमी में मिलता है। मसलन , महंगाई की जड़ में महंगी (पेट्रो उत्पाद व बिजली) ऊर्जा!, रुपये की तबाही की पीछे भारी ऊर्जा (पेट्रो कोयला) आयात ! बजटों की मुसीबत की वजह बिजली बोर्डों के घाटे!, बैंकों के संकट का कारण बिजली कंपनियों की देनदारी ! पर्यावरण के मरण की जिम्मेदार डीजली बिजली और अंतत: ऊर्जा की किल्लत की वजह से ग्रोथ की कुर्बानी!.... ऊर्जा संकट का बड़ा व खतरनाक भंवर अर्थव्यवस्था की सभी ताकतों को एक एक कर निगल रहा है। और कारणों की छोडि़ये, हम तो अब तो लक्षणों का इलाज भी नहीं कर पा रहे हैं।
कितने शिकार
2016 में कच्चा तेल ही नहीं बल्कि कोयले की दुनियावी कीमत बढ़ने पर भी हमारा दिल बैठने लगेगा। बारहवी पंचवर्षीय योजना का मसौदा व ताजा आर्थिक सर्वेक्षण कहता है कि चार साल बाद भारत (246 अरब टन के घरेलू भंडार के बावजूद) अपनी जरुरत का एक चौथाई (करीब 23 फीसद) कोयला आयात करेगा। तब तक 80 फीसद तेल और 28 फीसद गैस की जरुरत के लिए विदेश पर निर्भर हो चुके होंगे। इस कदर आयात के बाद रुपये के मजबूत होने का मुगालता पालना बेकार है। महंगाई का ताजा जिद्दी दौर भी बिजली कमी की पीठ