भारत की कितनी मूल्य वृद्धि ऐसी है जो केवल भ्रष्टाचार की गोद में पल रही है ?
भारत में कितने उत्पाद इसलिए महंगे हैं कि क्यों
कि उनकी कीमत में कट- कमीशन का खर्च शामिल होता है ? बिजली
को महंगा करने में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का भ्रष्टाचार कितना जिम्मेदार है ? कितने स्कूल सिर्फ इसलिए महंगे हैं क्यों कि
उन्हें खोलने चलाने की एक अवैध लागत है ? कितनी महंगाई सरकारी
स्कीमों भ्रष्ट तंत्र पर खर्च के कारण बढी है जिसके लिए सरकार कर्ज लेती है और रिजर्व
बैंक से करेंसी छापता है।.... पता नहीं भारत
की कितनी मूल्य वृद्धि ऐसी है जो केवल भ्रष्टाचार की गोद में पल रही है ? ताजा आर्थिक-राजनीतिक बहसों से यह सवाल इसलिए
नदारद हैं क्यों कि भ्रष्टाचार व महंगाई का सीधा रिश्ता स्थापित होते ही राजनीति
के हमाम में हड़बोंग और तेज हो जाएगी। अलबत्ता सियासी दलों की ताल ठोंक रैलियों के
बीच जनता ने भ्रष्टाचार व महंगाई के रिश्ते को जोड़ना शुरु कर दिया है।
महंगाई एक मौद्रिक समस्या है, जो मांग आपूर्ति के
असंतुलन से उपजती है जबकि भ्रष्टाचार निजी फायदे के लिए सरकारी ताकत का दुरुपयोग
है। दोनों के बीच सीधे रिश्ते का रसायन जटिल है लेकिन अर्थविद इस समझने पर, काम
कर रहे हैं। इस रिश्ते को परखने वाले कुछ ग्लोबल पैमानों की रोशनी में भारत की जिद्दी
महंगाई की जड़