Monday, October 12, 2009

बैसाखियों पर बहस

क्या बैसाखियां हटा ली जानी चाहिए? कौन सी बैसाखियां? अरे वही, जो दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों और सरकारों ने मंदी से लड़खड़ाती अपनी अर्थव्यवस्थाओं के कंधे तले लगाईं थीं।.. तो क्या मंदी गुजर गई?...शायद..पता नहीं.कह नहीं सकते..लगता तो है। .. दुनिया जब मंदी जाने के सवाल पर नाखून चबा रही हो तो बैसाखियों को हटाने और बनाऐ रखने पर विकट असमंजस लाजिमी है। बैसाखियां मतलब दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों की बाजार में पैसा छोड़ो नीतियां और सरकारों के भारी खर्च कार्यक्रम। किसी को लगता है कि अब बैसाखियां आदत बिगाड़ेंगी तो कुछ डरते हैं कि बैसाखियां अचानक हटने से अर्थव्यवस्थाएं फिर औंध जाएंगी। इसलिए कुछ देश मंदी को अब गुजर गया मान बैठे हैं जबकि कुछ देश और मुतमइन होना चाहते हैं।
किस मुर्गे की बांग सुनें?
मंदी की रात बीतने की बांग कौन लगाता है? कोई तो होगा जो मंदी समाप्त होने का सार्टिफिकेट देता होगा? वैसे दुनिया के पास इसका इंतजाम है, भरोसा करना आपकी मर्जी। बांग लगाने वाले कई हैं, अलबत्ता आवाजें एक जैसी नहीं हैं। चचा सैम के मुल्क में नेशनल ब्यूरो आफ इकोनामिकरिसर्च नामक एजेंसी है जो मंदी आने या जाने का आधिकारिक ऐलान करती है, लेकिन यह गजब की कंजूस और धीमी है। इसने पिछले साल दिसंबर में माना कि मंदी आ गई। जो इसी एजेंसी के मुताबिक एक साल पहले यानी दिसंबर 2007 में शुरू हुई थी। इसलिए पता नहीं कब यह मंदी खत्म होने की बांग देगी? लेकिन विकसित देशों का मशहूर संगठन ओईसीडी बोल पड़ा है कि मंदी गई। अमेरिका के फेड रिजर्व के मुखिया बेन बर्नाके को लगता है ''मंदी के खत्म होने की संभावनाएं बहुत ज्यादा हैं।'' आईएमएफ भी इसी तरह संभल कर बोला है। इसके बाद तो आगे जितनी मुंह उतनी बातें।
मंदी थमी या तेजी लौटी
यह वाक् चातुर्य नहीं है। मंदी का थमना एक अलग बात है और ग्रोथ यानी अर्थव्यवस्था का रफ्तार पकड़ना एक दूसरी बात। इस पैमाने पर बड़ा दिलचस्प नजारा है। अमेरिकी विशेषज्ञ मान रहे हैं कि मंदी थम गई है, मगर तेजी नहीं लौटी क्योंकि आवास, श्रम व उपभोक्ता बाजार उठा नहीं है। दो साल में करीब 65 लाख रोजगार गंवाने वाली और 1930 के बाद सबसे तेज बेरोजगारी वृद्धि दर वाले अमेरिका को मंदी जाने का ऐलान करने के लिए काफी हिम्मत चाहिए। इसीलिए फेड रिजर्व भी सतर्क है। मगर ओईसीडी का दावा है कि दुनिया की ग्यारह बड़ी (अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी जापान आदि) और चार सबसे तेज (ब्राजील, रूस, भारत, चीन) अर्थव्यवस्थाओं में सुधार शुरू हो गया है। शेयर बाजार तो हद के मजेदार हैं। अमेरिकी शेयर बाजार मार्च के बाद से अब तक 44 फीसदी बढ़े हैं, जबकि भारतीय बाजार 20 फीसदी। मंदी जाने के गुण गाने वालों के लिए तर्क मौजूद हैं मगर अमेरिकियों से पूछिए! वह तो इसमें उलझे हैं कि मंदी जाने की उम्मीद में बाजार बढ़ रहा है या फिर मंदी वास्तव में चली गई है इसलिए कि बाजार तेज है??? दोनों बातों में फर्क है मगर आप मत उलझिए। इनकी भी सुनिए जो कहते हैं बस अर्थव्यवस्थाओं में गिरावट थमी है, इससे ज्यादा कुछ नहीं। दरअसल इस बात के कद्रदान तो कई हैं मंदी थमी है मगर रफ्तार की वापसी को स्वीकार करने में हिचक है क्योंकि उसके बाद तो बैसाखियां हटानी पड़ जाएंगी।
और सहारा कब तक?
उदार मौद्रिक नीति और घाटे के जोखिम पर अर्थव्यवस्था में पैसा झोंकने की बैसाखियां हटाने की बहस इस समय की सबसे बड़ी बहस है। बाजार में मुद्रा का प्रवाह मुद्रास्फीति को ईधन दे रहा है और प्रोत्साहन पैकेजों का खर्च सरकारी खजानों को खोखला कर रहा है, इसलिए हर देश 'एक्जिट स्ट्रेटजी' की बात करने लगा है। यानी उदार मौद्रिक नीति खत्म करने की तैयारी। मगर दुनिया में बहुत से देश डरे हैं इसलिए इंतजार करना चाहते हैं। अमेरिका इनमें शामिल है। नतीजतन बर्नाके हिचक रहे हैं, जापान भी सुस्त है, लेकिन आस्ट्रेलिया ने मंदी खत्म करने का ऐलान करते हुए ब्याज दर 25 प्रतिशतांक तक बढ़ा दी है। दक्षिण कोरिया ने ब्याज दरों में कमी रोक दी है। यूरोजोन की अर्थव्यवस्थाओं में भी अब यह मान लिया गया है कि ब्याज दरों में कमी का दौर खत्म हो गया। बहुसंख्यक देशों के केंद्रीय बैंक आस्ट्रेलिया का रास्ता भले ही न पकड़ें मगर ब्याज दरों में कमी को अब अलविदा कहा जा रहा है। बस जरा सा कर्ज कार्यक्रम पूरा हो जाए, भारतीय रिजर्व बैंक भी यही करेगा क्योंकि मुद्रास्फीति से दुनिया का हर केंद्रीय बैंक डरता है।
बैसाखियां हटने की बहस शुरू है और दुनिया का मुद्रा बाजार मचलने लगा है। आस्ट्रेलियाई डालर फूल गया है। रुपया भी ताकत दिखा रहा है। फिर भी यह एक सामान्य मनोविज्ञान है कि आर्थिक संकट के आने का अहसास जितनी जल्दी होता है, उसके जाने पर भरोसा करने में उतना ही वक्त लगता है। दरअसल पूरी दुनिया अपने-अपने मुर्गो की बांग पर जगना चाहती है। क्योंकि कोई यह नहीं जानता कि बैसाखियां हटने के बाद क्या होगा? इसलिए कुछ बेहतर होते माहौल का आनंद लीजिए मगर सतर्कता के साथ क्योंकि बाजार और अर्थव्यवस्थाओं के मामले में पिछला प्रदर्शन भविष्य की गारंटी नहीं होता।

और अन्‍यर्थ ( the other meaning ) के लिए स्‍वागत है
http://jagranjunction.com/ (बिजनेस कोच) पर

No comments: