Monday, March 28, 2011

सेंडाई का साया

ह दूसरी सुनामी थी जो सेंडाई में जमीन डोलने और पगलाये समुद्र की प्रलय लीला के ठीक सात दिन बाद उठी। क्षत विक्षत और तबाह जापान की मुद्रा येन पर वित्ती य बाजारों के सट्टेबाज सुनामी की मानिंद चढ़ दौड़े। जबर्दस्त मांग से येन रिकार्ड ऊंचाई पर यानी जापान के निर्यात को गहरा धक्का , त्रासदी से उबरने की संभावनाओं पर ग्रहण और शेयर बाजार जमीन पर। अंतत: ग्याकरह साल बाद वित्तीय बाजारों में एक अनोखी घटना घटी। सात सबसे अमीर देशों (जी 7) के बैंकों को 25 अरब येन बेचकर जापानी मुद्रा को उबारना पड़ा। ... इस एकजुटता को सलाम! मगर वित्ती़य बाजारों ने अपने इरादों का इशारा कर दिया है। लंबी मंदी, बुढ़ाती आबादी और लंबी राजनीतिक अस्थिरता (चार साल में पांच प्रधानमंत्री) वाले जापान को लेकर बाजार बुरी तरह बेचैन है। हादसे के बाद उभरे तथ्यों और नाभिकीय संयंत्रों की हालत देखने के बाद ऐसा मानने वाले बहुत हैं कि सब कुछ ठीक होने के अति आत्मोविश्वास में जापान ने अपनी सचाई दुनिया से छिपाई है। आधुनिक तकनीक से लदे फंदे देश की इस लाचारी पर दुनिया का झुंझलाना लाजिमी है क्यों कि पूरा विश्‍व अपनी वर्तमान और भविष्यअ में कई बेहद जरुरी चीजों के लिए जापान पर निर्भर है। त्रासदी से उबरने की दंतकथायें बना चुके जापान की जिजीविषा में इस बार दुनिया का भरोसा जम नहीं रहा है।
नियति या नियत
भरोसा हिलने की जायज वजह है, फटी हुई धरती ( भूगर्भीय दरारें), ज्वालामुखियों की कॉलोनी और भूकंपों की प्रयोगशाला वाले जापान में 55 न्यूक्लियर रिएक्टर होना आसानी से निगला नहीं जा सकता। तेल व गैस पर निर्भरता सीमित रखने और ऊर्जा की लागत घटाने के लिए जापान ने नाभिकीय ऊर्जा पर दांव लगाया था। लेकिन 1995 में करीब बीस हजार इमारतों और 6000 से जयादा लोगों को निगल जाने वाले कोबे के भयानक भूकंप के बाद भी जापान अगर अपने नाभिकीय संयंत्रों की भूकंपीय सुरक्षा को
 लेकर नहीं चेता तो इसे सिर्फ जिद ही कहा जाएगी। विश्‍व को हैरत इसलिए भी है क्यों कि तकनीक के शिखर पर बैठे जापान में फुकुशिमा संयंत्र की तकनीक पुरानी व दोयम दर्जें की पाई गई। और जब परमाणु ईंधन को ठंडा करने के लिए संयंत्र पर हेलीकॉप्टयर से पानी गिराने जैसे अनगढ़ तरीके इस्तेकमाल होने लगे तो दुनिया को यह भरोसा हो गया कि तकनीक का सूरमा जापान इस हादसे के लिए तैयार नहीं था। जापान का तैयार न होना बहुत मायने रखता है क्यों कि भूकंप वहां की जीवन पद्धति का हिस्सा हैं। बताते चलें कि फुकुशिमा संयंत्र की मालिक टोकियो पॉवर कंपनी सुरक्षा नियमों के उल्लंघन और अपारदर्शिता के लिए कुख्यात है। जापान के परमाणु नियामकों ने संयंत्रों के कूलिंग सिस्ट‍म के पुराने होने चेतावनी दी थी जो नहीं सुनी गई। विशेषज्ञ जापान के भूकंप व सुनामी से नहीं परमाणु संयंत्रों की हालत देख डर रहे हैं, क्यों कि भ्रष्टा चार व अपारदर्शिता जापान में भी कम नहीं है। दरअसल जापान की तकनीक पर रीझे विश्‍व को वहां कम से कम परमाणु हादसे की आशंका तो कभी नहीं थी लेकिन सेंडाई को देखकर यह भरोसा डर में बदल गया है।
संकट का विकिरण
जापान में भूकंप का असर अमेरिका के कार संयंत्रो से लेकर बंगलादेश के पुराने कार बाजार तक दिख रहा है। इलेक्ट्रानिक्स बाजार में महंगाई के धमाके होने लगे हैं। जापान दुनिया की सप्लाई चेन का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सां है। इसलिए सेंडाई में भूकंप के बाद जैसे ही सेंडाई के निकट सेमीकंडक्टर संयंत्र बंद हुआ चीन व ताईवान से लेकर अमेरिका तक तमाम कंपनियों की रीढ़ में ठंड दौड़ गई। चीन करीब 13 फीसदी इलेक्ट्रानिक आयात के लिए जापान पर निर्भर है, ताईवान के इलेक्ट्रानिक्स उद्योग के लिए तो यह अभूतपूर्व संकट है। दुनिया अपनी करीब 30 फीसदी फ्लैश मेमोरी ( समार्ट फोन, डिजिटल कैमरे में इस्तेमाल होने वाली) और 15 फीसदी डी रैम मेमोरी (पर्सनल कंप्यू्टर का महत्वपूर्ण हिस्सा) के लिए जापान से लेती है। करीब 14 फीसदी आटो पुर्जे, दस फीसदी इंटीग्रेटेड सर्किट(आईसी), करीब दस फीसदी अन्य मशीनरी और तमाम तरह के अन्य सामान जापान से मिलते हैं। इसलिए संकट अंतरराष्ट्रीय हो गया है। पुर्जों की आपूर्ति में कमी के कारण टोयोटा अमेरिका में अपने संयंत्रों में उत्‍पादन रोक रही है। दुनिया की अलग-अलग हिस्सों में फैली लगभग सभी प्रमुख कार व इलेक्ट्रानिक कंपनियों में उत्पादन बंद होने की नौबत है। दुनिया के लिए यह जहां सप्लाई रुकना है वहीं जापान के लिए तो धड़कन रुकना है। मंदी से बुरी तरह परेशान एक देश का इससे बड़ा दुर्भाग्यं क्या होगा कि उसका उत्पादन ठप है और पुनर्निर्माण का भारी खर्च सर पर है।
उबरने की आस
जापान की साख से खेलने वाले वित्तीय बाजार की निर्ममता को कोसना जरुरी है मगर जापान की ताजी हकीकत कुछ ज्यादा ही तल्ख है। दरअसल 1992 के वित्तीय संकट के बाद जापान वापस खड़ा नहीं हो पाया है। पिछले करीब दो दशक के प्रयासों के बावजूद जापान की अर्थव्य़वस्था पटरी पर नहीं लौटी है। ताजे बैंकिंग संकट ने जापान के घायल वित्तीय तंत्र को नई चोट दी है। जीडीपी के अनुपात में करीब 226 फीसदी सरकारी कर्ज वाले जापान में मंदी की संभावनायें मुखर होने लगी हैं। सेंडाई की तबाही के बाद पुनर्निर्माण की लागत करीब 309 अरब डॉलर होगी। अगर जापान सरकार इसे बजट से भरती है तो वित्तीय संकट और गहरायेगा। जापान का विदेशी मुद्रा भंडार इस संकट में काम आ सकता है लेकिन निर्यात में कमी के बीच मुद्रा भंडा कम होना साख को प्रभावित करेगा। जापान की बदकिस्मकती यह है कि पिछले दो दशक में इसे प्रकृति ( 1995 कोबे का भूकंप) से लेकर बाजार ( ताजा बैंकिंग संकट) तक सबने लगातार झटके दिये हैं। ऊपर से राजनीतिक अस्थिरता ने उलझन दोगुनी कर दी है। इसलिए जापानी जिजीविषा के पुराने उदाहरणों के बावजूद दुनिया कुछ ज्यादा सशंकित है।
 स्व केंद्रित, राजनीतिक तौर पर सुस्त और सरकारों में आस्था रखने वाला अनुशासित जापानी समाज इस समय गहरे सवालों से दो चार है। डर भूकंप का नहीं बल्कि नाभिकीय संकट का है। भूकंपीय इलाकों में नाभिकीय रिएक्टरों पर जापान में बहुत सवाल इसलिए नहीं उठे क्यों कि नाभिकीय आतंक के अतीत वाले जापानियों को अपनी तकनीकों व सरकारों पर गहरा भरोसा था। सेंडाई इस विश्वास को दरका दिया है। ठीक इसी तरह 1995 में हजारों इमारतें, दर्जनों पुल व सड़कें निगलने वाले कोबे के भूकंप ने जापान की इंजीनियरिंग पर भरोसे को हिला दिया था। महंगे पुननिर्माण के बावजूद यह कारोबारी शहर व बंदरगाह अपनी पुरानी स्थिति में नहीं लौटा।         इलेक्टा्निक्स की आपूर्ति से लेकर नाभिकीय ऊर्जा के भविष्य तक, सेंडाई का साया दुनिया को तरह-तरह से डरा रहा है। पहली बार जापानी तकनीक की साख और दुनिया पर जापान का भरोसा दांव पर है। दुआ कीजिये कि सूर्योदय और संभावनाओं के इस देश का यह दुर्भाग्य जल्द दूर हो क्यों कि प्रगति की मुख्यधारा में जापान की वापसी जितनी देर से होगी तकनीकी प्रगति की अगली मंजिल हमें उतनी ही देर से मिलेगी।
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