Monday, July 25, 2011

साख की राख

याद नहीं पड़ता कि इतिहास को इस कदर तेजी से पहले कब देखा था। आर्थिक दुनिया में पत्थर की लकीरों का इस रफ्तार से मिटना अभूतपूर्व है। तारीख दर्ज कर रही है कि अब वित्‍तीय दुनिया अमेरिका की साख की कसम अब कभी नहीं खायेगी। इतिहास यह भी लिख रहा है कि ग्रीस वसतुत: दीवालिया हो गया है और समृद्ध और ताकतवर यूरोप में कर्ज संकटों का सीरियल शुरु हो रहा है। अटलांटिक के दोनों किनारे कर्ज के महामर्ज से तप रहे हैं। अमेरिकी सरकार कर्ज के गंभीर संकट में है। ओबामा कर्ज की सीमा बढ़ाने के लिए दुनिया को डराते हुए अपने विपक्ष को पटा रहे हैं, दो अगस्त के बाद अमेरिका सरकार के खजाने खाली हो जाएंगे। यूरोपीय समुदाय ने ग्रीस के इलाज ( सहायता पैकेज) से मुश्किलों का नया पाठ खोल दिया है। कर्ज के संकट से बचने के‍ लिए अमेरिका और यूरोप ने शुतुरमुर्ग की तरह अपने सर संकट की रेत में और गहरे धंसा दिये हैं। जबकि संप्रभु कर्ज संकटों का अतीत बताता हैं कि आग के इस दरिया में डूब कर ही उबरा जा सकता है। दिग्गज देशों की साख, राख बनकर उड़ रही है और वित्तीय बाजारों आंखों के सामने अंधेरा छा रहा है।
दीवालियेपन का अरमेगडॉन
...यानी वित्तीय महाप्रलय। राष्ट्रपति ओबामा ने अमेरिका के संभावित डिफॉल्ट ( यानी और कर्ज लेने पर पाबंदी) को यही नाम दिया है। अमेरिकी संविधान के मौजूदा सीमा के मुताबिक देश का सार्वजनिक (सरकारी) कर्ज 14.29 ट्रिलियन डॉलर से ऊपर नहीं जा सकता। कर्ज का यह घड़ा इस साल मई में भर गया था। अमेरिका में सार्वजनिक कर्ज जीडीपी का 70 फीसदी है। संसद से कर्ज की सीमा बढ़वाये बिना, अमेरिकी सरकार एक पाई का कर्ज भी नहीं ले पाएगी। ओबामा विपक्ष को डरा व पटा रहे हैं और पहले दौर कोशिश खाली गई है। विपक्षी कर्ज की सीमा बढ़ाने के लिए कर बढ़ाने व खर्च काटने ( करीब 2.4 ट्रिलियन डॉलर का पैकेज) की शर्त लगा रहे है। घटती लोकप्रियता के बीच चुनाव की तैयारी में लगे ओबामा यह राजनीतिक जोखिम नहीं ले सकते। अमेरिका का डिफॉल्‍ट होना आशंकाओं भयानक चरम
 है। मगर निर्मम वित्तीय दुनिया में यह मुमकिन है। मूडीज अमेरिका की रेटिंग ( साख के गुंबद में छेद- इसी स्तंभ में 25 अप्रैल को) घटा चुका है। मई में कर्ज की सीमा पार होने के बाद अमेरिका ने कई पेंशन स्कीमों का भुगतान रोक दिया है। दो अगस्त को अमेरिकी खजाने खाली हो जाएंगे और पेंशन, चिकित्सा , वेतन भुगतान रुक जाएंगे। अमेरिका में आशंकाओं के कैटरीना चल रहे हैं। उम्मीद है कि राष्ट्रपति ओबामा विपक्ष को राजी कर लेंगे, मगर कर्ज की सीमा बढ़ा कर संकट के दलदल में कुछ और गहरा धंस जाएगा क्यों कि साख तो चौपट हो गई है।
डिफॉल्ट का धारावाहिक
ग्रीस हकीकत में दीवालिया है। लेकिन ओबामा की तर्ज पर ही, जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ग्रीस ने अनमने यूरोपीय नेताओं को भयानक संकट का डर दिखाया था इसलिए सो ग्रीस (जीडीपी के अनुपात में 170 फीसदी कर्ज) को 159 डॉलर का पैकेज मिल गया जिसमें कुछ ऋणों का भुगतान टाल दिया गया। ग्रीस के बांड खरीद चुके निजी निवेशक करीब 37 अरब यूरो के हेयरकट पर राजी हुए हैं, यानी कि इतना कर्ज ग्रीस नहीं चुका पाएगा। यह दीवालिया होने का प्रमाण है। अलबत्ताी ग्रीस इस मदद के बाद भी खड़ा नहीं हो सकेगा। ग्रीस की अर्थव्यावस्था बदहाल है और आर्थिक क्षमता टूट चुकी है। खर्च में कटौती और नए कर बहुत मदद नहीं कर सकते। लैटिन अमेरिका में संप्रभु कर्ज संकटों और उन्हें उबारने के लिए बने बार्डी पलान की याद की जा रही है। जिसका मतलब है कि दीवालियापन, फिर कर्ज माफी और फिर उबरने की शुरुआत। यानी कि ग्रीस दीवालियेपन के बाद ही सुधरेगा।
आग का दरिया
अमेरिका और यूरोप में संकटों के बाद घटनाओं का चक्र बहुत तेजी से घूमने वाला है। संसद से मोहलत लेकर भी ओबामा देश की वित्तीय साख नहीं बचा सकते। रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर कह चुकी है कि नए पैकेज के बाद अमेरिका के बांडों में निवेश को अति सुरक्षित बताने वाली वाली ट्रिपल ए रेटिंग बदलनी होगी। कहना मुश्किल है कि इस अनदेखे कदम के बाद बाजार कहां जाकर सर फोड़ेगा। ले‍किन इतना सबको मालूम है कि कर्ज की सीमा बढ़ते ही अमेरिका को और डॉलर छापेगा जो दुनिया के सरदार को हाइपर इन्फ्लेशन यानी मुद्रास्फीति की महादशा की तरफ ले जा सकती है। यूरोप के नेताओं ने ग्रीस मदद देकर दरसअल स्पेन, इटली, पुर्तगाल व आयरलैंड की तबाही टाली है। बांड बाजार की धड़कनें इन यूरोपीय देशों में संकट का ऐलान हैं। कर्ज से हलाकान देशों की घटती रेटिंग से निवेशक बिदक रहे हैं। पुर्तगाल अगर डूबा तो स्पेन के बैंक दीवालिया हो जाएंगे और स्पेन डूबा तो इटली भी लुढ़क जाएगा। यूरोपीय संघ में वित्तीवय दुर्भाग्य आपस में गुंथे हुए हैं। कर्ज पीडि़त इन देशों लिए भी सहायता पैकेज की बात चल निकली है। मगर विरोध भारी है। यूरोप में दीवालिया देशों के पास तो कर्ज के बदले जमानत भी नहीं है। यूरोपीय केंद्रीय बैंक कह चुका है डिफॉल्ट देशों के बांड जमानत नहीं बन सकते। ... यूरोप का इलाज उसे और बीमार कर रहा है।
कर्ज और शुतुरमुर्ग बड़ा करीबी रिश्ता है। शुतुरमुर्ग कभी कर्ज नहीं लेते मगर सरकारें जब कर्ज में डूबती हैं तो शुतुरमुर्ग हो जाती हैं। झूठ की रेत में धंसे हुए उनके सरों को आमतौर बेल आउट या कर्ज से बचाव की सूझ कहा जाता हैं। अटलांटिक के इस और उस पार यही शुतुरमुर्ग लीला चल रही है। मगर कर्ज का खेल बड़ा निर्मम है। इसमें किसी को माफी नहीं मिलती। यहां उबरने के लिए डूबना जरुरी है। इसलिए अमेरिका को अपने कर्ज का पुनर्गठन करना होगा और यूरोप के पिग्स डिफॉल्ट की कोठरी से गुजर कर ही खड़े हो सकेंगे। दरअसल दुनिया को अब दीवालियापन रोकने की नहीं बल्कि डिफॉल्ट के असर से निबटने की तैयारी करनी चाहिए। कर्ज संकट के बाद दुनिया शाय एक नई अंतरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था लेकर उभरेगी। लेकिन फिलहाल तो कर्ज की आग का दरिया तैयार है, दुनिया को इसमें डूब कर जाना है।
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अर्थार्थ पर यह भी

साख के गुंबद में छेद


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