Monday, August 1, 2011

महाबली का महामर्ज

दो अगस्त को आप किस तरह याद करते हैं, जर्मनी में हिटलर की ताजपोशी की तारीख के तौर या फिर भारत में कंपनी राज की जगह ब्रिटिश राज की शुरुआत के तौर पर। .... इस सप्ताह से दो अगस्त को वित्तीय दुनिया में एक नई ऐतिहासिक करवट के लिए भी याद कीजियेगा। दो अगस्त को अमेरिका डिफाल्ट ( कर्ज चुकाने में चूक) ????  शायद नहीं होगा क्यों कि सरकार के पास दसियों जुगाड़ हैं। मगर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। महाबली का यह मर्ज इतिहास बनाने की तरफ बढ़ चुका है। अमेरिका सरकार के लिए कर्ज की सीमा बढ़ने की आखिरी तारीख दो अगस्त है। रिपब्लिकन व डेमोक्रेट चाहे जो इलाज निकालें यानी कि अमेरिका डिफॉल्ट हो या फिर बचने के लिए टैक्स लगाये मगर विश्व के सबसे बड़े निवेशक और सबसे बड़े बाजार की सबसे ऊंची साख का कीमा बन चुका है। रेटिंग एजेंसियों, बैंकों, हेज फंड, शेयर निवेशकों के विश्वव्यापी समुद्राय ने भविष्य को भांप लिया है और अपनी मान्यताओं, सिद्धांतों, रणनीतियों और लक्ष्यों को नए तरह से लिखना शुरु कर दिया है। सुरक्षा के लिए सोने ( रिकार्ड तेजी) से लेकर स्विस फ्रैंक (इकलौती मजबूत मुद्रा) तक बदहवास भागते निवेशक बता रहे हैं कि वित्तीय दुनिया अब अपने भगवान की गलतियों की कीमत चुकाने को तैयार हो रही है।
डूबने की आजादी
अमेरिका की परंपराओं ने उसे अनोखी आजादी और अजीब संकट दिये हैं। अमेरिका में सरकार का बजट और कर्ज अलग-अलग व्यवस्थायें हैं। हर साल बजट के साथ कर्ज की सीमा बढ़ाने के लिए संसद की मंजूरी, जरुरी नहीं है। इस साल अमेरिका की सीनेट ने बजट खारिज कर दिया तो ओबामा ने उसे वापस मंजूर कराने को भाव ही नहीं दिया। क्यों कि कर्ज में डूबकर खर्च करने की छूट उनके पास थी। 1990 के दशक के बाद से अमेरिका ने अपने बजट व कर्ज में संतुलन बनाने की कोशिश की थी जो इस साल टूट गई और मई में 14 खरब डॉलर के सरकारी कर्ज की संवैधानिक सीमा भी पार हो गई। अब दो अगस्ते को खजाने खाली हो जाएंगे और वेतन पेंशन देने के लिए पैसा नहीं बचेगा। तकनीकी तौर पर यह डिफॉल्ट की स्थिति है। अमेरिका कर्ज पर संसद के नियंत्रण की तारीफ की जाती है मगर यही प्रावधान अमेरिकी संसद में ताकतवर विपक्ष
 का हथियार बन गया है। ओबामा सर के बल खड़े हैं। अमेरिका में 1960 से अब तक 78 बार ( 49 बार रिपलबिकन राष्ट्रपति और 29 बार डेमोक्रेट)  कर्ज की सीमा बढ़ चुकी है। लेकिन इस बार मामला फर्क है कर्ज का पहाड़ बहुत ऊंचा ( जीडीपी के अनुपात में 75 फीसदी) है। वित्तीय तंत्र घायल है। कई सांसद यह शपथ लेकर संसद पहुंचे हैं कि वह कर्ज की सीमा नहीं बढ़ने देंगे यानी कि कर्ज भावनात्मक व राजनीतिक मुद्दा है। ओबामा के पास न खर्च घटाने योजना है और न राजनीतिक ताकत। इसलिए बात उलझ गई है। राष्ट्रपति थॉमस जैफरसन ने इतिहासकार सैमुअल केर्शवेल को लिखा (1816) था कि सतर्क रहना, कहीं हमारे शासक हमें पीढि़यों तक चलने वाले कर्ज से न लाद दें। .. जेफरसन का डर सच हो रहा है।
असंभव वापसी
संसद से कर्ज की सीमा बढ़ने से समस्याओं का समाधान नहीं बल्कि शुरुआत होनी है। बात बकाया कर्ज का ब्याज चुकाने की नहीं है, मूल भी गले में फंसा है। अमेरिकी सरकार का घरेलू कर्ज इतना ज्या‍दा है कि हर सप्ताह करीब 90 अरब डॉलर की देनदारी (अगस्त में 500 अरब डॉलर) निकल रही है। अमेरिका को अपने जीडीपी के अनुपात में करीब 18 फीसदी राशि, बकाया कर्ज के पुनर्वित्‍त (रिफाइनेंस) के लिए चाहिए। यानी कि अमेरिका क्लासिक ऋण जाल (डेट ट्रैप) में फंस चुका है। बैंकरों, निवेशकों व रेटिंग एजेंसियों को अमेरिका के कर्ज का राई रत्ती मालूम है। अमेरिका के लिए वापसी अब नामुमकिन है और उबरने का हर इलाज महाबली को कमजोर ही करेगा। विपक्ष की चली तो ओबामा खर्च घटायेंगे और टैक्स बढ़ायेंगे। जो सुस्त अमेकिरी अर्थव्यवस्था के लिए दमघोंट साबित होगी। कर्ज की सीमा बढ़े या अमेरिका चूके, दोनों ही हालत में अमेरिका की चट्टानी ट्रिपल ए रेटिंग घट जाएगी। अमेरिका की रेटिंग में कमी एक ऐतिहासिक फैसला होगा क्योंन कि अमेरिकी बांड कर्ज के बाजार में सोने से ज्यादा खरे और सबसे मजबूत जमानत माने जाते हैं। रेटिंग घटते ही अमेरिका में ब्यानज दर बढ़ेंगे जो कर्ज के पहाड़ को काटने की राह और मुश्किल कर देंगी। किसी देश के लिए भारी राष्ट्री य कर्ज और ऊंचे टैक्सप से ज्यादा नपी तुली त्रासदी और कोई नहीं हो सकती। अंग्रेज पत्रकार विलियम कोबेट की 200 साल पुरानी यह बात अब अमेरिका का वर्तमान बन गई है।
सामूहिक त्रासदी
वित्तीय बाजारों पर दुहरी तिहरी आपदा है। अमेरिका की बैंकिंग विफलता (लेहमैन संकट) अरबों ले डूबी। यूरोप का संप्रभु कर्ज संकट तेल निकाल ही रहा है और अब अमेरिका भी डूब रहा है। निवेशकों के लिए सर फोड़ने का ठिकाना भी नहीं बचा है। प्रलय का हिसाब रखने वालों ने भी कभी यह नहीं सोचा होगा कि अमेरिका डिफॉल्ट होने की कगार पर पहुंच जाएगा। यानी कि दुनिया के सबसे सुरक्षित बाजार का भविष्य ही खतरे में पड़ जाएगा। ओबामा का खर्च घटाओ अभियान  अमेरिका की ठप पड़ी अर्थव्यषवस्था के मंदी में धकेल सकता है। दुनिया के सबसे बड़े बाजार में मंदी बहुतों की कंपनियां बंद कर सकती है। और अगर विपक्ष ओबामा की बात मानता है तो फेडरल रिजर्व डॉलर छाप कर कर्ज जुटायेगा, जिससे अमेरिका में हाइपरइन्फ्लेशन ( महामुद्रास्फीति) आ जमेगी। दोनों स्थितियों में में दुनिया के बाजार तबाह होंगे। अमेरिका के इस हाल के बाद डॉलर की ताकत घटना तय है जो दुनिया में निवेश व कारोबार के प्रचलित तौर तरीके ही बदल देगी। जॉन मेनार्ड केंज ने कहा था कि अगर मेरे पास एक पाउंड का कर्ज है तो यह मेरी समस्या है लेकिन अगर मेरे पास दस लाख पाउंड का कर्ज है तो यह आपकी (कर्ज देने वाले) समस्या है। अमेरिका का कर्ज अब पूरी दुनिया की समस्या है।
  अमेरिका ने दुनिया को भारी निवेश, निर्यातकों को विशाल बाजार और वित्ती य प्रणाली को गहराई दी है। लेकिन दुनिया को यह देर से पता चला कि अमेरिकी सफलता के पीछे दरअसल कर्ज की एक महान परंपरा है, जो अब खत्म हुआ चाहती है। वित्तीय दुनिया की अगुआई के दंभ और बेफिक्री में अमेरिका ने कई गलतियां की हैं। जिनकी कीमत कीमत वह अकेला नहीं बल्कि दुनिया चुकायेगी क्येां कि बड़ों की तबाही भी सामूहिक होती है। वित्तीय बाजार का महाशिखर दरक रहा है। यह ध्वंस देखने के काबिल है। इतनी नसीहतें मिलेंगी कि कंप्यूटरों की मेमोरी कम पड जाएगी।

अर्थार्थ पर यह भी

साख की राख


साख के गुंबद में छेद



मुद्रास्‍फीति की महादशा
http://artharthanshuman.blogspot.com/2010/11/blog-post.html


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