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Saturday, June 29, 2019

...डूब के जाना है!


बात बीते बरस जनवरी से शुरू होती है जब नीरव मोदी बैंकों का बकाया चुकाने में चूके थे. नीरव की करतूत का घोटाला संस्करण बाद में पेश हुआ, पहले तो वित्तीय बाजार के लिए यह एक भरा-पूरा डिफॉल्ट था हीरे जैसे कीमती धंधे के कारोबारी का कर्ज चुकाने में चूकना! नीरव मोदी के डिफॉल्ट के साथ वित्तीय बाजार को मुसीबतों की दुर्गंध महसूस होने लगी थी.

मौसम एक-सा नहीं रहता और कर्ज हमेशा सस्तानहीं रहता. पूंजी की तंगी और कर्ज की लागत बढ़ते ही अर्थव्यवस्था को अपशकुन दिखने लगते हैं क्योंकि कर्ज जब तक सस्ता है, अमन-चैन है. ब्याज की दर एक-दो फीसद (छोटी अवधि के कर्ज-मनी मार्केट) बढ़ते ही, घोटाले के प्रेत कंपनियों की बैलेंस शीट फाड़ कर निकलने लगते हैं और नियामकों (रेटिंग, ऑडिटर) की कलई खुल जाती है.

पंजाब नेशनल बैंक को नीरव मोदी के झटके के एक साल के भीतर ही कई वित्तीय कंपनियां (अब तो एक टेक्सटाइल कंपनी भी) कर्ज चुकाने में चूकने लगीं.

  ·       भारत की सबसे बड़ी वित्तीय कंपनियों में एक, आइएलऐंडएफएस 2018 के अंत में बैंक कर्ज चूकी और डिफाॅल्ट का दुष्चक्र शुरू हो गया. सीरियस फ्रॉड इनवेस्टिगेशन ऑफिस (एसएफआइओ) कर्ज घोटाले में कंपनी के 30 अधिकारियों के खिलाफ पहली चार्जशीट दाखिल कर चुका है.

  ·   दीवान हाउसिंग फाइनेंस (दूसरी बड़ी संकटग्रस्त कंपनी) पर बॉक्स कंपनियां बनाकर कर्ज की बंदरबांट करने का आरोप है. रेड इंटेलीजेंस (वित्तीय डेटा कंपनी) की रिपोर्ट के मुताबिक, बड़ी वित्तीय कंपनियों के प्रवर्तक कुछ कागजी कंपनियां बनाते हैं जो आपस में एक-दूसरे को हिस्सेदारी बेचती हैं और फिर प्रवर्तक की वित्तीय कंपनी से कर्ज लेते हैं और उसी कर्ज से वापस मुख्य वित्तीय कंपनी में हिस्सेदारी खरीदते हैं. इस मामले की जांच होने के आसार हैं.

·       एनबीएफसी का ऑडिट और रेटिंग करने वाली कंपनियां भी घोटाले में शामिल मानी जा रही हैं. सीरियस फ्रॉड ऑफिस ने रिजर्व बैंक से इन कंपनियों के ऑडिट की अनदेखी करने पर रिपोर्ट तलब की है.

·       बकौल रिजर्व बैंक के 2018-19 में बैंकों में 71,500 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी हुई है.

·       एसएफआइओ ने 2017-18 में बड़े कॉर्पोरेट फ्रॉड के 209 मामले दर्ज किए, यह संख्या 2016 के मुकाबले दोगुनी है. जेट एयरवेज और कुछ अंतरराष्ट्रीय ऑडिट कंपनियों सहित करीब आधा दर्जन बड़ी कंपनियां एसएफआइओ की ताजा जांच का हिस्सा हैं.

महंगी होती पूंजी और घोटालों के रिश्ते ऐतिहासिक हैं. जनवरी 2009 में सत्यम घोटाला, 2008 में लीमैन बैंक ध्वंस के चलते बाजार में तरलता के संकट के बाद निकला था. अमेरिका का प्रसिद्ध बर्नी मैडॉफ घोटाला भी इसी विध्वंस के बाद खुला. अमेरिका में डॉटकॉम का बुरा दौर शुरू होने के 15 माह और 9/11 के एक माह के बाद, एनरॉन के धतकरम से परदा उठा था.
छोटी अवधि (एक साल या कम) के कर्ज भारतीय कारोबारी दुनिया की प्राण वायु हैं. इनमें अंतर बैंक, बैंक व वित्तीय कंपनी, म्युचुअल फंड और वित्तीय कंपनी, एनबीएफसी और कंपनियों के बीच कर्ज का लेनदेन शामिल है जो विभिन्न माध्यमों (सीधे कर्ज, बॉन्ड या कॉमर्शियल पेपर) के जरिये होता है.

जब तक आसानी से कर्ज मिलता है, कंपनियों के प्रवर्तक मनमाने तरीकों से इसका इस्तेमाल करते और छिपाते रहते हैं. उनकी बैलेंस शीट और रेटिंग चमकदार दिखती है. लेकिन जब कर्ज महंगे होते हैं तो उनकी कारोबारी शृंखला में डिफॉल्ट का दुष्चक्र शुरू हो जाता है.

बड़ी कंपनियां आमतौर पर अपने शेयर या संपत्ति के बदले कर्ज लेती हैं. तलरता के संकट में इनकी कीमत गिरती है और कर्ज देने वाले बैंक वसूली दबाव बढ़ाते हैं. नीरव मोदी, मेहुल चोकसी जैसे मामले इसका उदाहरण हैं.

अर्थव्यवस्था में अच्छी विकास दर के साथ कंपनियों की कमाई बढ़ती रहती है और उनको छोटी अवधि के कर्ज मिलते रहते हैं लेकिन मंदी की शुरुआत के साथ बैंक, कंपनियों के नतीजों पर निगाह जमाकर ब्याज की दर बढ़ाते हैं और संकट फट पड़ता है. मसलन अब ऑटोमोबाइल की बिक्री कम होने के बाद कंपनियों के लिए सस्ता कर्ज मुश्किल हो जाएगा. 

पूंजी और कर्ज की ताजा किल्लत के पीछे धतकरम और घोटाले छिपे हैं. इन्हें सूंघकर ही रिजर्व बैंक ने, सरकार के दबाव को नकार कर संकटग्रस्त गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की मदद से न केवल इनकार कर दिया है बल्कि इनके लिए नए सख्त नियम भी बना दिए हैं.

दूसरी मोदी सरकार का पहला पूर्ण बजट, कर्ज व डिफॉल्ट की हकीकतों से अलग खड़ा नजर आए तो चौंकिएगा मत. अर्थव्यवस्था के सूत्रधारों की बेचैन निगाहें भी दरअसल बजट पर नहीं बल्कि अगली तिमाही पर है जब गिरती रेटिंग और बढ़ते घोटालों के बीच गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के 1.1 खरब रुपए के बकाया कर्ज वसूली के लिए आएंगे. 


Monday, July 15, 2013

सूदखोरी का चीनी बारुद


चीन अमेरिका व यूरोप से बड़े कर्ज संकट पर बैठा है जिसे गली गली में फैले महाजनों के विशाल सूदखोरी तंत्र ने गढ़ा है।

प चीन को कितना जानते हैं?  उस तजुर्बेकार निवेशक का जवाब था कि जितना चीन बताता है, बस उतना ही इसलिए कि चीन के रहस्यों को खुद चीन की मदद के बिना कोई नहीं जान सकता। ड्रैगन की जमीन से तरक्‍की, निर्माण, आयोजन, संकट जो भी निकले वह विशाल और बड़ा ही होता है क्‍यों कि चीन में चीनियों के अलावा कुछ भी छोटा नहीं है।  दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था से अब अपने संकट का साझा कर रही है तो ग्‍लोबल निवेशकों के पैरों तले जमीन खिसकने लगी है। चीन दरअसल अमेरिका व यूरोप से बड़े कर्ज संकट पर बैठा है जिसे गली गली में फैले महाजनों, ट्रस्‍ट कंपनियों, अंडरग्राउंड बैंकों व गारंटरों के विशाल सूदखोरी तंत्र ने गढ़ा है। छद्म बैंकिंग इस विशाल नेटवर्क ने 5.8 खरब डॉलर के बकाया कर्ज का टाइम बम तैयार किया है जो चीन की अर्थव्‍यवस्‍था के नीचे टिकटिका रहा है और दुनिया का कलेजा मुंह को आ रहा है।
दुनिया की ग्रोथ के ताजा आंकड़ों में चीन का हाल सबसे परेशानी भरा है। निवेशक ग्‍लोबल मंदी से उबरने के लिए चीन पर निर्भर थे ले‍किन ग्रोथ का अगुआ चीन खुद लड़खड़ा रहा है। अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष ने चीन की ग्रोथ में तेज गिरावट का डर है। औद्योगिक उत्‍पादन के बेहद कमजोर आंकड़ो ने इस आकलन को आधार दिया है। जून के दौरान चीन की निर्यात वृद्धि में अप्रत्‍याशित कमी हैरतअंगेज है। निर्यात का करिश्‍मा टूटते ही चीन की विशाल ग्रोथ फैक्‍ट्री के पहिये थमने की

Monday, December 12, 2011

डूब कर ही उबरेगा यूरोप

यूरो जोन तवे से गिरकर चूल्‍हे में आ गया है। कर्ज संकट की लपट से बचने के लिए यूरोप के खेवनहार अपनी दुकानें अलग करने लगे हैं। यूरोप का राजनीतिक नेतृत्‍व करो या मरो टाइप का एजेंडा लेकर इस सप्‍ताह ब्रसेल्स में जुटा था। दस घंटे तक मगजमारी के बाद यूरोपीय रहनुमा जब बाहर आए तो यूरोप की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्‍यव्‍स्‍था ब्रिटेन साथ नहीं थी। डेविड कैमरुन,  यूरोप की नई संकट निवारण संधि को शुभकामनायें देकर कट लिये और यूरोपीय एकता का शीशा खुले आम दरक गया। हालांकि मर्कोजी मान रहे हैं कि यूरोपीय देश नई सख्‍त वित्‍तीय अनुशासन संधि में बंध कर संकट से बच जाएंगे। यह बात अलग है नेताओं की इन कोशिशों पर बाजार का भरोसा जम नहीं रहा है।  रेटिंग एजेंसियां कह रही हैं कि यूरोपीय देशों 2012 में कर्ज की बहुत भारी देनदारी आ रही है जो सुधारों के इस नए इंतजाम से नहीं रुकने वाली। बाजार मान रहा है कि यूरोजोन पर कर्ज की इतनी बारिश हो चुकी है कि सुधारों की धूप की निकलने पर भी यह ढह जाएगा।
यूरो की खातिर
यूरोप के राजनेता जो बच सके बचाने की फिराक में हैं। यह सर्वनाशे समुत्‍पन्‍ने  अर्ध: त्‍यजति पंडित: जैसी स्थिति है। ब्रसेल्‍स की यूरोपीय संघ शिखर बैठक से पेरिस में मर्कोजी ( एंजेल मर्केल और निकोलस सरकोजी) ने तय कर लिया था कि यूरोप की मौद्रिक एकता को बचाने के  यूरोपी देशों के बजटों का डीएनए ठीक करना होगा है। अब पूरा यूरोपीय संघ एक नई संधि में बंधेगा जिसमें बेहद सख्‍त वित्‍तीय अनुशासन होगा और घाटों के बेहाथ होने पर देशों को जुर्माना चुकाना पड़ेगा। यूरो मुद्रा अपनाने वाले 17 देशों के लिए तो नियम और भी सख्‍त है। व्‍यवहारिक रुप से यूरोप के सभी देशों को अपने बजट अपनी संसद से पहले यूरोपीय आयोग को दिखाने होंगे। संप्रभु मुल्‍कों पर को पहली एसी विकट शर्त

Monday, October 31, 2011

रहनुमाओं का थियेटर

बाल बाल बचा !!! कौन ? ग्रीस ? नहीं यूरोप अमेरिका को चलाने वाला एंग्‍लो सैक्‍सन आर्थिक मॉडल। ग्रीस अगर दिनदहाडे़ डूब जाता तो पूरा जी 20 ही बेसबब हो जाता। ग्रीस की विपत्ति टालने के लिए यूरोप में बैंकों की बलि का उत्‍सव शुरु हो गया है। बैंकों से कुर्बानी लेकर अटलांटिक के दोनों किनारों पर (अमेरिकी यूरोपीय) सियासत ने अपनी इज्‍जत बचा ली है नतीजतन ओबामा-मर्केल-सरकोजी-कैमरुन (अमेरिका, जर्मन फ्रांस, ब्रिटेन राष्‍ट्राध्‍यक्षों) की चौकडी जी 20 की कान्‍स पंचायत को अपना चेहरा दिखा सकेंगे। ग्रीस राहत पैकेज के बाद फिल्‍मों के शहर कांस (फ्रांस) में विश्‍व संकट निवारण थियेटर का कार्यक्रम बदल गया है। यहां अब भारत चीन जैसी उभरती ताकतों के शो ज्‍यादा गौर से देखे जाएंगे। इन नए अमीरों को यूरोप को उबारने में मदद करनी है और विकसित मुल्‍कों से अपनी शर्तें भी मनवानी हैं। विश्‍व के बीस दिग्‍गज रहनुमाओं के शो पर पूरी दुनिया की निगाहें हैं। कांस का मेला बतायेगा कि विश्‍व नेतृत्‍व ने ताजा वित्‍तीय हॉरर फिल्‍म की सिक्रप्‍ट बदलने की कितनी ईमानदार कोशिश की और यह संकट का यह सिनेमा कहां जाकर खत्‍म होगा।
और ग्रीस डूब गया
यूरोपीय सियासत की चपेट में आर्थिक परिभाषायें बदलने लगी हैं। शास्‍त्रीय अर्थों में मूलधन या ब्‍याज को चुकाने में असफल होने वाला देश संप्रभु दीवालिया (सॉवरिन डिफॉल्‍ट) है। इस हिसाब से बैंकों की कृपा ( तकनीकी भाषा में 50 फीसदी हेयरकट) का मतलब ग्रीस का दीवालिया होना है। मगर यूरोपीय सियासत इसे कर्ज माफी कह रही है। पिछली सदी के सातवें दशक में अर्जेंटीना यही हाल हुआ था और बाजार ने उसे दीवालिया ही माना था। यूरोप व तीसरी दुनिया में यही फर्क है। ग्रीस का ताजा पैकेज 2008 अमेरिकी लीमैन संकट की तर्ज पर है यानी कि बैंकर्ज माफ करेंगे और बाद में सरकारें बैंकों को

Monday, September 26, 2011

वो रही मंदी !

डा नाज था हमें अपने विश्‍व बैंकों, आईएमएफों, जी 20, जी 8, आसियान, यूरोपीय समुदाय, संयुक्‍त राष्‍ट्र की ताकत पर !! बड़ा भरोसा था अपने ओबामाओं, कैमरुनों, मर्केलों, सरकोजी, जिंताओ, पुतिन, नाडा, मनमोहनों की समझ पर !!..मगर किसी ने कुछ भी नहीं किया। सबकी आंखों के सामने मंदी दुनिया का दरवाजा सूंघने लगी है। उत्‍पादन में चौतरफा गिरावट, सरकारों की साख का जुलूस, डूबते बैंक और वित्‍तीय तंत्र की पेचीदा समस्‍यायें ! विश्‍वव्‍यापी मंदी के हरकारे जगह जगह दौड़ गए हैं। ... मंदी के डर से ज्‍यादा बड़ा खौफ यह है कि बहुपक्षीय संस्‍थाओं और कद्दावर नेताओं से सजी दुनिया का राजनीतिक व आर्थिक नेतृत्‍व उपायों में दीवालिया है। यह पहला मौका है जब इतने भयानक संकट को से निबटने के लिए रणनीति बनाना तो दूर  दुनिया के नेता साझा साहस भी नहीं दिखा रहे हैं। यह अभूतपूर्व विवशता, दुनिया को दूसरे विश्‍व युद्ध के बाद सबसे भयानक आर्थिक भविष्‍य की तरफ और तेजी से धकेल रही है।
मंदी पर मंदी
मंदी की आमद भांपने के लिए ज्‍योतिषी होने की जरुरत नहीं है। आईएमएफ बता रहा है कि दुनिया की विकास दर कम से कम आधा फीसदी घटेगी। अमेरिका में बमुश्किल 1.5 फीसदी की ग्रोथ रहेगी जो अमेरिकी पैमानों पर शत प्रतिशत मंदी है। पूरा यूरो क्षेत्र अगर मिलकर 1.6 फीसदी की रफ्तार दिखा सके तो अचरज होगा। जापान में उत्‍पादन की विकास दर शून्‍य हो सकती है। यूरो जोन में कंपनियों के लिए ऑर्डर करीब 2.1 फीसदी घट गए हैं। यूरो मु्द्रा का इस्‍तेमाल करने वाले 17 देशों में सेवा व मैन्‍युफैक्‍चरिंग सूचकांक दो साल के न्‍यूनतम

Monday, September 5, 2011

सोने का क्या होना है ?

सोने के सिक्‍कों का प्रचलन !! फिर से ??... अमेरिका के राज्य यूटॉ ने बीते माह एक कानून पारित कर सोने व चांदी के सिक्‍कों का इस्तेमाल कानूनी तौर पर वैध कर दिया !!! सरकारें यकीनन बदहवास हो चली हैं। मगर हमें बेचैन होने से पहले  दूसरी तस्वीर भी देख लेनी चाहिए। बीते सप्तांह सोना ऐतिहासिक ऊंचाई पर जाने के बाद ऐसा टूटा कि (तीन दिन में 200 डॉलर) कि नया इतिहास बन गया। निवेशक कराहते हुए नुकसान गिनते रह गए।... वित्तींय संकटों के तूफान में सोना अबूझ हो चला है। अनोखी तेजी व गिरावट, मांग व आपूर्ति की पेचीदा गणित और सरकारों की ऊहापोह ने सोने की गति को रोमांचक और रहस्‍यमय बना दिया है। डॉलर, यूरो, येन की साख घटते देख, निवेशक सोने पर दांव लगाये जा रहे हैं  और सोने का उत्पादन तलहटी पर है और यह धातु वर्तमान मौद्रिक प्रणाली फिट भी नहीं होती। इसलिए असमंजस चरम पर है। सोने का इतिहास जोखिम भरा है, भविष्‍य अनिश्चित है मगर संकटों का वर्तमान इसे चमका रहा है। दुनिया में सोना नहीं बल्कि यह सवाल ज्यादा चमक रहा हे कि सोने का अब क्या होना है ??
अतीत की परछाईं
सोने को अतीत की रोशनी में परखना जरुरी है। आधुनिक होती दुनिया सोने से दूरी बढ़ाती चली गई है। पंद्रह अगस्त 1971 को अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने अमेरिकी डॉलर सोने की करीब 2000 वर्ष पुरानी गुलामी से आजाद किया था। अमेरिका में गोल्ड स्टैंडर्ड खत्म होते सरकारों की गारंटी वाली बैंक मुद्रा का जमाना आ गया। गोल्ड स्टैंडर्ड का मतलब था कि कागज की मुद्रा के मूल्य के बराबर सोना लेने की छूट। जबकि इनकी जगह आए बैंकनोट (तकनीकी भाषा में फिएट करेंसी या लीगल टेंडर) सरकारी की गारंटी वाले दस्तावेज हैं, जिनको नकारना गैर कानूनी है। चीन के तांग व सोंग (607 से 1200 ईपू) शासनकालों के दौरान आई नोटों की यह सूझ

Monday, July 25, 2011

साख की राख

याद नहीं पड़ता कि इतिहास को इस कदर तेजी से पहले कब देखा था। आर्थिक दुनिया में पत्थर की लकीरों का इस रफ्तार से मिटना अभूतपूर्व है। तारीख दर्ज कर रही है कि अब वित्‍तीय दुनिया अमेरिका की साख की कसम अब कभी नहीं खायेगी। इतिहास यह भी लिख रहा है कि ग्रीस वसतुत: दीवालिया हो गया है और समृद्ध और ताकतवर यूरोप में कर्ज संकटों का सीरियल शुरु हो रहा है। अटलांटिक के दोनों किनारे कर्ज के महामर्ज से तप रहे हैं। अमेरिकी सरकार कर्ज के गंभीर संकट में है। ओबामा कर्ज की सीमा बढ़ाने के लिए दुनिया को डराते हुए अपने विपक्ष को पटा रहे हैं, दो अगस्त के बाद अमेरिका सरकार के खजाने खाली हो जाएंगे। यूरोपीय समुदाय ने ग्रीस के इलाज ( सहायता पैकेज) से मुश्किलों का नया पाठ खोल दिया है। कर्ज के संकट से बचने के‍ लिए अमेरिका और यूरोप ने शुतुरमुर्ग की तरह अपने सर संकट की रेत में और गहरे धंसा दिये हैं। जबकि संप्रभु कर्ज संकटों का अतीत बताता हैं कि आग के इस दरिया में डूब कर ही उबरा जा सकता है। दिग्गज देशों की साख, राख बनकर उड़ रही है और वित्तीय बाजारों आंखों के सामने अंधेरा छा रहा है।
दीवालियेपन का अरमेगडॉन
...यानी वित्तीय महाप्रलय। राष्ट्रपति ओबामा ने अमेरिका के संभावित डिफॉल्ट ( यानी और कर्ज लेने पर पाबंदी) को यही नाम दिया है। अमेरिकी संविधान के मौजूदा सीमा के मुताबिक देश का सार्वजनिक (सरकारी) कर्ज 14.29 ट्रिलियन डॉलर से ऊपर नहीं जा सकता। कर्ज का यह घड़ा इस साल मई में भर गया था। अमेरिका में सार्वजनिक कर्ज जीडीपी का 70 फीसदी है। संसद से कर्ज की सीमा बढ़वाये बिना, अमेरिकी सरकार एक पाई का कर्ज भी नहीं ले पाएगी। ओबामा विपक्ष को डरा व पटा रहे हैं और पहले दौर कोशिश खाली गई है। विपक्षी कर्ज की सीमा बढ़ाने के लिए कर बढ़ाने व खर्च काटने ( करीब 2.4 ट्रिलियन डॉलर का पैकेज) की शर्त लगा रहे है। घटती लोकप्रियता के बीच चुनाव की तैयारी में लगे ओबामा यह राजनीतिक जोखिम नहीं ले सकते। अमेरिका का डिफॉल्‍ट होना आशंकाओं भयानक चरम

Tuesday, December 1, 2009

समृद्धि का नकलिस्‍तान

दुनिया का सबसे महंगा होटल, सबसे बड़ी शॉपिंग मॉल, रेगिस्तान के बीच आइस स्कीइंग का इंडोर स्टेडियम, समुद्र के बीच शानदार इमारत... पिछले करीब दो दशकों में दुनिया का बहुत कुछ शानदार ठीक हमारे पड़ोस में उगा है और वह भी रेत बीच जहां तेल तक नहीं था। अब इस स्वर्ग के ढहने की बारी है। दुबई तो इस साल की शुरुआत से ही ढह रहा है मगर हमें पता तब तक इसने अर्जेटीना की राह पकड़ ली जो इसे दीवालियेपन की तरफ ले जाती है। दुबई नई उदार दुनिया का एक ऐसा अनोखा मॉडल है जिसमें अपनी पूंजीवाद न्यूनतम अच्छाइयों और अधिकतम बुराइयों के साथ मुखरित हुआ था। अचल संपत्ति लालच, कर्ज और खोखले विकास का यह मॉडल जितने कम वक्त में उभरंा था उससे भी कम समय में जमींदोज होने लगा है। खरबों डॉलर के वित्तीय संकट के धुंऐ के छंटने की उम्मीद में वित्तीय दुनिया जब आंखे खोलने की कोशिश कर रही थी तब दुबई के बवंडर की रेत इसकी आंखों में भर गई है।
रेत के महल. सच में !
नकली विकास का क्या मतलब होता है? दुबई से अच्छा कोई सबक नहीं है। नखील.. यही तो नाम है दुबई की उस कंपनी का जिस कर्ज न चुका पाने से यह पूरी कहानी शुरु हुई है। समृद्धि का नखलिस्तान बनाने की कोशिश में लगी दुबई सरकार की यह कंपनी नकली विकास का प्रतीक बन कर उभरी है। दुबई पास सिर्फ तीन चीजें थीं। एक समृद्ध अरबी का पड़ोसी, दूसरी शेखों की सल्तनत जिसमें कानून बनाना व बदलना आसान था और एक दूरदर्शी व आधुनिक उदारता, जो अरब के अन्य मुल्कों में दुर्लभ थी। यह दुबई के शासक शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम के परिवार को अन्य अरब शेखों से अलग करती है और चौथा खुद ब्रांड दुबई यानी कामयाब मार्केटिंग। इन चार के सहारे कोई देश लंबे समय तक नहीं खड़ा हो सकता अलबत्ता इन्होंने मिलकर दुबई को चुटकियों में कमाई कराने वाली मरीचिका जरुर बना दिया। तेल की नेमत से महरुम दुबई सत्तर के दशक तक महज एक बंदरगाह था। नब्बे के दशक में यह अमीर अरब देशों की बदौलत व्यापार का केंद्र बन गया। मगर दुबई की अचंभित कर देने वाली नई तस्वीर महज दस साल पहले बननी शुरु हुई थी। ऐसा मानने वालों की कमी नहीं है कि अमेरिका जब डब्लूटीसी ढहा तो दुबई में इमारतों के शिखर कंगूरे बनने शुरु हुए। आकलन है कि कानूनों में बदलाव और सख्ती से डरे अरब के समृद्ध निवेशक करीब एक खरब डॉलर वापस मध्य पूर्व में लाए थे और जिन्होंने अचल संपत्ति के कारोबार को चमका दिया। रुस के अमीरों ने इसे बढ़ाया और ब्रिटेन डेवलपरों व फाइनेंसरों को इसमें मोटी कमाई मिली जिनके पीछे लंदन का उदार वित्तीय बाजार खड़ा था। 2003 के ईराक युद्ध के बाद तेल से कमाने वालों का अकूत धन भी इस कथित स्वर्ग में लगा और कुछ वर्षों के भीतर दुबई में इतना कुछ बन गया कि देखने वाले हैरत में पड़ गए। चाहे वह बुर्ज अल अरब होटल हो या समुद्र के बीच बन रहा नखील का स्वप्निल पाम जुमेरा या मरुस्थल के बीच स्कीइंग अथवा 1.5 अरब डॉलर की लागत से होटल अटलांटिस जिसकी उद्घाटन पार्टी पर ही 20 लाख डॉलर खर्च हुए थे। दुनिया की 25 फीसदी विशालयकाय क्रेनें अकेले दुबई में खपने लगीं और निर्माण के आधुनिक आश्चर्य डिस्कवरी व नेट जिओ जैसे चैनलों की नियमित कथाओं में बदल गए। छोटे से दुबई में इस साल फरवरी तक करीब 4000 इमारतें बन रही थीं।
छोटा नहीं है यह बवंडर
दुबई का संकट विशुद्ध रुप से अचल संपत्ति का है दुबई के पास इसके अलावा कुछ है भी नहीं। जमीन और भवनों की बेसिर पैर कीमतें। मकान बनने से पहले ही कई बार बिक जाना और अंधाधुंध मुनाफा। अकेले इस साल दुबई में 60,000 अपार्टमेंट बिकने को तैयार थे। मंदी से मांग घटी और सब कुछ ढह गया बचा सिर्फ कर्ज और बेकारी। इस साल फरवरी में जब बुर्ज दुबई ने 2.5 अरब डॉलर के कर्ज के लिए रिफाइनेंस की अर्जी डाली थी तभी से यह स्पष्ट हो गया था कि दुबई में अचल संपत्ति का गुब्बारा फूटने की तरफ बढ़ रहा है। बुर्ज को अमीरात के दो बैंकों ने मदद की लेकिन कुछ माह के भीतर ही नखील के लिए कर्ज मुश्किल बनने लगा और जोखिम भरी रेटिं" के कयास लगने लगे। इस वक्त दुबई की कई सरकारी व गैर सरकारी कंपनियां और दुबई वाटर एंड इलेक्टिसिटी अथॉरिटी कर्ज भुगतान टलवाने वालों की कतार में आ गए थे। अगर कोई इसे सिर्फ 80 अरब डॉलर का संकट मान रहा है तो वह गलती पर है। यह कर्ज सिर्फ नखील और दुबई व‌र्ल्ड या डीपी व‌र्ल्ड जैसे सरकारी डेवलपरों का है। इससे कहीं ज्यादा कर्ज लेकर निजी कंपनियां वहां आई थीं और इमारतें बना रहीं थीं। दुबई का संकट इसलिए गहराने वाला है क्यों कि इसमे केवल अरब के धनकुबेरों का नहीं पैसा नहीं लगा तमाम बैंकरों, वित्तीय संस्थाओं, ने शेयर व बांड बाजारों से पैसा जुटा कर भी नकली स्वर्ग लगाया है। दुबई में यह बीमारी 'यादा बड़ी है, मगर कतर और अबूधाबी में पिछले कुछ सालों में दुबई की नकल गई है। पूरे अमीरात में बन रही लगभग आधी अचल संपत्ति परियोजनायें बंद हो गई हैं। जिनकी संयुक्त लागत 582 अरब डॉलर है। इनमें बहुचर्चित पाम जुमेरा सहित स्नोडोम और दुबई के इर्द गिर्द अरब कैनाल जैसी परियोजनायें भी हैं। कतर में भी मुश्किल है और कुवैत का एक बड़ा निवेश बैंक इस साल की शुरुआत में दो करोड़ डॉलर के कर्ज में डिफाल्टर हो चुका है। यानी कि यह रोग अरब में और फैलेगा और मारेगा उन प्रवासियों जो यहां अपनी जीविका के लिए आए थे।
शानदार गलतियां करने की कला
दुबई ने उन गलतियों को ज्यादा भव्य और बेफिक्री के साथ किया जिन्हें अन्य देश पहले से करते आए हैं। यानी अचल संपत्ति पर आधारित विकास और कर्ज का सहारा। मगर दुबई का पूरा आर्थिक मॉडल एक मामले में दुनिया में अनोखा और सबसे ज्यादा जोखिम भरा हो गया। दुबई ने अपने इस पूरे विकास में जिन्हें बाजार बनाया वह दुनिया का बहुत समृद्ध तबका था। जबकि कर्ज और अचल संपत्ति के जोखिम को कम से एक बड़ा देशी बाजार तो चाहिए ही। मगर दुबई की अधिकांश आबादी प्रवासियों की है जो सिर्फ काम करने के लिए आए हैं। विकास के बेहद महंगे मॉडल को इस महंगे मॉडल को थामने के लिए न तो देश के भीतर कोई बड़ा बाजार था और कोई दूसरा उद्योग। देश की अधिकांश आबादी प्रवासियों की है। बन रहे भवनों, होटलों या मॉल में जिनके लिए कोई जगह नहीं है। दुबई के पास कोई प्राकृतिक संसाधन या निर्यात भी नहीं है। विदेशी मुद्रा का स्रोत पर्यटन व सेवायें हैं, जिनका बाजार बहुत संवेदनशील है। इसलिए जब मंदी आई तो बड़े ग्राहक किनारा कर "ए और कर्जदारों ने अंगूठा दिखा दिया। दुबई पड़ोसी भी अपनी साख का लेकर चिंतित हैं इसलिए मदद पता नहीं कितनी होगी।
मार्केटिंग की दुनिया का प्रिय जुमला है कि अगर कोई कहानी किसी खास ढंग से सुनाई जाए तो यह भी एक अच्छा कारोबार है.. दुबई ने दुनिया को अपनी कहानी बहुत कायदे से सुनाई। दुबई पिछले दशक की सबसे बड़ी ब्रांडिंग सफलता है। संसाधनों से महरुम दुबई ने बहुत नपे तुले ढंग से स्वयं दुनिया की सबसे भव्य, सुंदर, सर्वश्रेष्ठ, आरामदेह और प्रतिष्ठित जिंदगी देने वाले देश के रुप में और प्रस्तुत किया। ब्रांड दुबई ने दुनिया के हर बड़े चर्चित व्यक्ति को खींचा नतीजतन तमाम तरह की अनोखी परियोजनायें जो कभी नहीं बनीं मगर चर्चा में रहीं। दुबई सिंगापुर की तरह एक व्यापार केंद्र बनने निकला था और अंतत: बन गया अचल संपत्ति का कैसिनो यानी जुआघर। दुनिया को सीखना चाहिए कि कुछ लाख अरबपतियों के बसने या सबसे भव्य इमारतो से कोई अर्थव्यवस्था मजबूत नहीं होती। माफ कीजिये! दुबई ने जल्दी ढह कर दुनिया पर उपकार किया है।
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