वक्त की शाख से दस का पत्ता टूट कर गिर रहा है। कलेवर बदलेगा या नहीं क्या पता मगर कैलेंडर तो बदलेगा ही। दो हजार दस का पहला सूरज को देखकर किसने सोचा कि वक्ते इतना बेरहम होगा कि अर्थव्यवस्थायें,संस्थायें,साख और लोग ...बस घाव गिनते रह जाएंगे। काल का गाल बड़ा विकराल है और समय की अपनी एक निपट अबूझ,अप्रत्याशित और शाश्वत गति है। इसलिए तारीख बदलने से अतीत कभी नहीं मरता। वह तो वर्तमान के तलवे में कांटे की तरह धंसा है। दस की चोटों से ग्यारह जरुर लंगड़ायेगा। मगर भरोसा रखिये, यही वक्त उन चोटों पर मरहम भी लगायेगा।
वक्त सौ मुंसिफों का मुंसिफ है, वक्त आएगा इंतजार करो।।
वक्त की बेरहमी को याद करने के लिए और उम्मीद के मरहम तलाशने के लिए प्रस्तु्त है पिछले एक साल के अर्थार्थ का चुनिंदा वर्षार्थ। ( चुनना जरा मुश्किल था। ... निज कवित्त केहि लाग न नीका.... लेकिन ब्लॉगर से मिले पेजव्यूज और पोस्ट के आंकड़ों ने मदद की। मेल-ओ-मोबाइल से आई प्रतिक्रियाओं ने भी रास्ता दिखाया। यह संकलन सबसे ज्यादा पढ़े गए और संदर्भ से दृष्टि से अहम लेखों का संचयन है।)
आप सब अपने अपने स्नेह और आशीष से अर्थार्थ को पोसते रहे हैं। आशीर्वाद बनाये रखियेगा। बड़ा संबल मिलता है। निराला जी ने लिखा है ... पुन: सवेरा एक बार फेरा है जी का... वक्त का फेरा ग्यारह का सवेरा लेकर दरवाजे पर पहुंचा है। दरवाजा खोलिये! स्वागत करिये!
2011 सुखद, सुरक्षित और मांगलिक हो।
अर्थार्थ का वर्षार्थ
नीतीश होने की मजबूरी ... जाति प्रमाण पत्रो की राजनीति बनाम आय प्रमाण पत्रों की राजनीति। ब्लॉगर रेटिंग में यह सबसे ज्यादा पढ़ा गया लेख।
निवाले पर आफत ... नए साल पर बर्फ से ढंका न्यूयार्क बंद है। इस साल मौसम बड़ा बेरहम रहा। रुस की आग, यूरोप की ठंड, पाकिस्तान की बाढ़ से रोटी चौपट हो गई। ब्लॉगर की रेटिंग के अनुसार सबसे ज्यादा पढ़ा गया लेख।
दो नंबर का दम .. इस साल चीन, अमेरिका के बाद, दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यसवस्था हो गया। हमारे पूर्वी पड़ोसी की ताकत अकूत है। ब्लॉगर रेटिंग के आधार पर।
साथ में पढ़ें चीन है तो चैन कहां रे और चाइनीज चेकर भी
दाग और दुर्गंध की दोस्ती.. हमारे यहां कार्बाइड उनके यहा बीपी। मगर दोहरे पैमाने। कार्बाइड माफ और मैक्सिको खाड़ी में पर्यावरण विनाश रचने वाली बीपी का टेंटुआ दबाकर हर्जाने की वसूली। यह भी ब्लॉगगर की रेटिंग के आधार पर।
मेहरबानी आपकी .. भारतीय उपभोक्ताओ की शौर्य गाथा। महंगाई के बावजूद खर्च का जोखिम। अपनी पीठ तो थपथपाइये। स्रोत ब्लॉ.गर रेटिंग।
जागते रहे.. वेदांत पर सख्ती। ताकतवर स्वयंसेवी संगठनों का उभार। एक नए किस्म की सामाजिक आर्थिक सक्रियता। स्रोत ब्लॉगर रेटिंग।
सियासत के सलीब ... सजा की सियासत। जनता गुस्सायी तो सरकारें दोषियों से याराना छोड़ सजा देने निकल पड़ीं। बैंक सूली पर टंगे। सियासत का दोहरा चेहरा। .. स्रोत ब्लॉगर रेटिंग।
फजीहत का गोल्ड मेडल.. बदनामी का कॉमनवेल्थ ... जलवा दिखाने के लिए खेल में जलालत। हमारे नेताओं को फजीहत कराने के कायदे सिखाने का स्कूल खोलना चाहिए। स्रोत ब्लॉगर रेटिंग।
संकटों के नए संसकरण ... ग्रीस के डूबने के बाद बात खत्म- नहीं हुई। नई संकट कथाओं का खुलासा। संयोग कि इस स्तंकभ के कुछ दिनों बाद आयरलैंड में ट्रेजडी का शो शुरु हो गया।
अमेरिका यूरोप संकट समग्र
डूबे तो उबरेंगे ... यूरोप और यूरो के डूबने की बात अप्रैल में .. साल बीतते आशंकायें असलियत में तब्दील हो गईं
ऐसा भी हो सकता है .... अमेरिका और ब्रिटेन में ऋण संकट के पसरने का आकलन मई में। वक्त उसी तरफ ले जा रहा है1
महात्रासदी का ग्रीक कोरस... ग्रीस के डूबने की त्रासदी। अर्थार्थ में 2009 से ग्रीस का पीछा कर रहा था।
शाएलाकों से सौदेबाजी ... संप्रभु कर्ज संकट यानी देशों के दीवालिया होने की विभीषिका। दर्द भरा इतिहास और जटिल वर्तमान
पछतावे की परियोजनायें ... संकटों का प्रायश्चित। सरकारी संपत्तियों की बिक्री। नए टैक्सों से जनता की आफत
सिद्धांतों का शीर्षासन ... एक संकट और कई सिद्धांत सर के बल। यूरोप लोक कल्या.णकारी राज्ये धराशायी
घट घट में घाटा ... घाटों का अभूतपूर्व जमघट। पूरी दुनिया की सरकारों के बजटों में भयानक घाटे।
मुद्रास्फीति की महादशा ... अमेरिका में डॉलर छपाई मशीन के खतरे। हाइपरइन्फ्लेशन का डर
साख नहीं तो माफ करो .... महाबलशाली बांड बाजार की यूरोप व अमेरिका को घुड़की
बजट के रंग
आपके जमाने का बजट या बाप के जमाने का ... बजटों का अतीत और वर्तमान, प्रौढ़ लोकतंत्र जवान अर्थव्यवस्था
बजट में जादू है ... बजटों में बहुत कुछ खो जाता है। जो मिलता है वह मिलता नजर नहीं आता।
बजट की बर्छियां ... बजट बहुत चुभते हैं। कई अदृश्य कीलें होंती हैं बजट में।
वाह क्या गुस्सा है .. वित्त मंत्री गुस्साये तो खर्च के अभियान जमीन पर आए।
बुरा न मानो बजट है ... बजट की होली। वित्तत मंत्री की शानदार ठिठोली
बजट की षटपदी ... एक शोधपूर्ण आयोजन.. बजट में कर्ज और खर्च की वास्तhविकता। करों के पुराने चाबुक और खर्च के अंधे कुएं। इस श्रंखला को काफी पढ़ा और डाउनलोड किया गया।
लूट और झूठ का राज
झूठ के पांव ... सूचनायें छिपाने का कारोबार। क्रियेटिव अकाउंटिंग। अपारदर्शिता का कारोबारी साम्राज्य
भ्रष्टाचार का मुक्त बाजार .. उदारीकरण से बढ़ा लूट का बाजार। निजीकरण ने दी नेताओं को अकूत ताकत। कंपनियां यानी देने वाले हजारों हाथ।
पर्दा जो उठ गया .. सच बोलने की नई परंपरायें। संदर्भ विकीलीक्स। झूठ की भरमार के बीच सच का महंगा बाजार
डुबाने वाले किनारे (बैंक)
ऊंटों के सर पहाड़ .. दुनिया को नचाने वाली वित्तीय संस्था ओं के बुरे दिन। बैंकों पर भारी टैक्सों की तलवार
इंस्पेक्टर राज इंटरनेशनल .. कठोरतम वित्तीय कानूनों का दौर। बैंकिंग उद्योग बतायेंगे कि कैसे मरेंगे यानी प्रॉविजन ऑफ फ्यूनरल प्ला्न ( अमेरिका का नया वित्तीय कानून)
हमको भी ले डूबे ... डूबने की फितरत यानी बैंकों की आदत। आयरलैंड से लेकर अमेरिका तक बैंकों को श्रद्धांजलि
....कुछ अलग से
बस इतना सा ख्वाब है... यह 2010 का पहला लेख था।
बीस साल बाद ... उदारीकरण के दो दशक के बाद भी कहां कहा .. जहां के तहां
भूल चूक लेनी देनी ... 2010 का अंतिम आलेख ... बढ़ती लागत, घटती साख और असंतुलित विकास का तकाजा
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