साइप्रस काली कमाई की ग्लोबल पनाहगाह है और एक टैक्स हैवेन को उदारता से उबारने के लिए यूरोप में कोई तैयार नहीं था।
नैतिक तकाजे अब राजनीतिक और आर्थिक तकाजों पर
कम ही भारी पडते हैं। लेकिन जब भी नैतिकता ताकतवर होती है तो सच को छिपाना मुश्किल
हो जाता है। कई व्यावहारिक झूठ गढते हुए यूरोप अपने आर्थिक ढांचे के उस सच को
छिपाने की कोशिश कर रहा था जिसे दुनिया टैक्स हैवेन के नाम से जानती है। साइप्रस
के संकट के साथ काली कमाई को छिपाने वाले यूरोपीय
अंधेरे खुल गए हैं। यह वही साइप्रस है जिसे यूरोपीय संघ में शामिल कराने के लिए
ग्रीस ने 2004 में बाकायदा ब्लैकमेल किया था और संघ के विस्तार की योजना को वीटो
कर दिया था। अंतत: इस टैक्स हैवेन को एकल यूरोपीय मुद्रा के चमकते मंच पर बिठा
लिया गया। लेकिन अब जब साइप्रस डूबने लगा तो यूरो जोन
के नेता इसे बचाने के लिए ग्रीस, इटली या स्पेन जैसे
दर्दमंद इसलिए नहीं हुए क्यों कि नैतिकता भी कोई चीज होती है। साइप्रस काली कमाई
की ग्लोबल पनाहगाह है और एक टैक्स हैवेन को उदारता से उबारने के लिए यूरोप में
कोई तैयार नहीं है। इसलिए साइप्रस पर सख्त शर्तें लगाई गईं और यूरोपीय संकट में
पहली बार यह मौका आया जब यूरोपीय संघ अपनी एकता की कीमत पर साइप्रस को संघ से
बाहर करने को तैयार हो गया।
बाहर करने को तैयार हो गया।
अपडेट - साइप्रस को झुकना पड़ा है रविवार की देर रात साइ्प्रस सरकार अपने बैंकों में बड़े जमाकर्ताओं पर टैकस लगाने को राजी हो गई। देश का दूसरा सबसे बडा बैंक लाइकी देा हिस्सों में बांटा जा रहा है। इसका काले धन कारोबार बंद होगा जबकि इसे सामान्य कामकाज को बैंक ऑफ साइप्रस मे मिला दिया जाएगा। लाइकी अब इतिहास बन जाएगा। साइप्रस फिलहाल दीवालिया होने से बच गया है। वित्तीय बाजारों में तेजी की होली मनेगी।
महज ग्यारह लाख की आबादी वाला नन्हा सा
भूमध्यसागरीय द्वीप देश, साइप्रस कर्ज की
मुसीबत में ग्रीस का रिश्तेदार है और बैंकिंग संकट में स्पेन व
आयरलैंड का सहोदर। साइप्रस के बैंकों ने ग्रीस में पैसा लगाया। ग्रीस डूबा तो बैंक
भी डूबे। साइप्रस को दस अरब यूरो चाहिए ताकि सरकार व बैंकों की साख लौट सके। लेकिन
इटली, ग्रीस या स्पेन के लिए दया पैकेज बनाने वाले यूरोपीय
नेतृत्व ने साइप्रस के लिए बेल आउट यानी उद्धार का फार्मूला बदल दिया है। साइप्रस
को अपने बैंकों में जमा काली कमाई पर विशेष टैक्स लगाकर अपने उद्धार की बड़ी लागत
जुटानी होगी। साइप्रस के बैंक सात दिन से बंद हैं। यूरोपीय राजनीति रविवार को दिन
भर साइप्रस के रास्ते पर आने का इंतजार करती रही है। भारत में सोमवार का सूरज उगने तक यह तय हो जाएगा कि
साइप्रस बैंक जमा पर टैकस लगायेगा या फिर दीवालियेपन की अंधी गली में उतार दिया
जाएगा।
ग्रीस व स्पेन को मिले विशाल उद्धार पैकेजों
की तुलना में छोटे से साइप्रस के लिए मदद का जुगाड़ मुश्किल
नहीं था लेकिन साइप्रस के हाल पर यूरोप में आंसू बहाने वाले कम हैं क्यों कि
साइप्रस एक घोषित टैक्स हैवेन है। इसके बैंकों में जमा रकम उसकी अर्थव्यवस्था
के आकार से पांच गुना ज्यादा है। टैक्स की न्यूनतम दरों और मनी लॉड्रिंग रोकने
के कानूनों में ढील के कारण साइप्रस के बैंकों में करीब 27 अरब डॉलर का जमा
विदेशियों का है। इसलिए जब साइप्रस की संसद ने
जमाकर्ताओं पर टैक्स को नकार तो दिया लेकिन यूरोपीय नेतृत्व ने सख्ती और
बढा दी।
रुस से साइप्रस के रिश्ते अनोखे हैं। बकौल
मूडीज रुस के अमीर राजनेता व उद्यमियों के करीब 19
अरब डॉलर साइप्रस के बैंकों में महफूज हैं। साइप्रस के तेल व गैस उद्योग में रुस
का बड़ा निवेश भी है। इसलिए बैंक जमा पर टैक्स लगाने का प्रस्ताव आते ही पहली
नाराजी रुसी राष्ट्रपति पुतिन ने जाहिर की थी। यूरोपीय समुदाय की सख्ती देखकर
साइप्रस के विदेश मंत्री तत्काल मास्को दौड़ लिये लेकिन नैतिकता का दबाव जोरदार
था इसलिए रुसी राष्ट्रपति पुतिन भी मदद को आगे नहीं आए। अंतत: साइप्रस को वापस उन
शर्तों पर विचार करना पड़ा जो सिप्रयॉट संसद ने नकार दी थीं। क्यों कि दीवालिया
होकर यूरो जोन से निकाले जाने मतलब है अर्जेंटीना हो जाना, जो
2002 में डिफॉल्टर होने
के बाद से अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाजार में कालेपानी की
सजा झेल रहा है।
साइप्रस का यूरो जोन में प्रवेश ग्रीस की जिद
पर हुआ था। ग्रीस के संरंक्षण में ही इस टैक्स हैवेन को पारदर्शिता की शर्तों से
से छूट मिलती रही है। सच यह है कि दुनिया को वित्तीय ईमानदारी की सीख देने वाले
यूरोप की अर्थव्यवस्था में टैक्स हैवेन कीमती भूमिका निभाते हैं। साइप्रस,
लक्जमबर्ग, माल्टा जैसे टैक्स हैवेन तो
यूरो मौद्रिक संघ के सदस्य ही है जबकि आइल ऑफ मैन, लीचेंस्टीन,
एंडोरा, जिब्राल्टर, केमैन
आइलैंड यूरोपीय दिग्गजों की छाया में काले धन की धुलाई कारखाने के चलाते हैं।
स्विटजरलैंड और ऑस्ट्रिया यूरोपीय समुदाय के अगुआ हैं जिनका वित्तीय चरित्र हमेशा
से सवालों में घिरा रहा है।
जर्मन दार्शनिक शॅापेनहॉवर ठीक ही कहते थे कि
सच तीन चरणों से गुजरता है। पहले मौके पर इसे झुठलाया जाता है। दूसरे मौके पर इसका
विरोध होता है मगर तीसरे मौके पर सच अपने आप सामने आ जाता है,
तब इसे स्वीकारने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। इस सदी की
शुरुआत तक यूरोप टैकस हैवेन के अस्तित्व को ही नकार रहा था। 2008 में जब अमेरिकी
बैंक डूबे और काली कमाई के इन धुलाई केंद्रों पर सख्ती की मुहिम शुरु हुई तो
यूरोप ने विरोध किया। लेकिन सच कब तक छिपता ? साइप्रस ने यह
काली हकीकत उघाड़ दी कि टैकस हैवेन देशों में जमा काला धन दरअसल यूरोप की सरकारों
के खर्च चला रहा है।
साइप्रस को लेकर निर्ममता अब यूरोपीय नेतृत्व
की मजबूरी है क्यों कि साइप्रस में सहानुभूति का निवेश करने को कोई तैयार नहीं
है। इस टैकस हैवेन पर सख्ती, यूरोप की अर्थव्यवस्था में
नैतिक आग्रहों की पहली जीत है। संकटों से ही सुधार निकलते हैं इसलिए साइप्रस की
नजीर के सहारे यूरोप में काली कमाई की दूसरी जन्नतों को पारदर्शिता की रोशनी में
लाने का रास्ता खुल रहा है। यूरोप के कर्ज संकट नया महत्वपूर्ण मोड़ आया है जहां आर्थिक नैतिकता का रंग चमकता दिख रहा है।
-----------
1 comment:
Thanks to saw the truth about Cyprus.
Post a Comment