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Monday, July 26, 2010

इंस्‍पेक्‍टर राज इंटरनेशनल !

अर्थार्थ
मौसम अचानक बिल्कुल बदल गया है। वित्तीय कारोबार पर कड़े नियमों की धुआंधार बारिश होने वाली है। पूंजी बाजारों में बेलौस और बेपरवाह वानर लीला कर रहे वित्तीय कारोबारियों पर कठोर पहरे की तैयारी हो गई है। बैंक, इन्वेस्टमेंट बैंक, हेज फंड, बांड फंड, म्यूचुअल फंड व इस जाति के सभी प्रतिनिधियों को सख्त पहरे में सांस लेनी होगी। अमेरिका में ताजा पीढ़ी के सबसे कठोर वित्तीय नियमन कानून को राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने दस्तखत से नवाज दिया है। वित्तीय कारोबार पर एक समग्र यूरोपीय सख्ती के लिए यूरोप की सरकारें भी बीते सप्ताह ब्रुसेल्स में सहमत हो चुकी हैं। यूरोप के नामी 91 बैंकों को एक अभूतपूर्व परीक्षा, स्ट्रेस टेस्ट से गुजार कर उनकी कुव्वत परख ली गई है। भारत में नियामकों का नियामक यानी सुपर रेगुलेटर (बजट में घोषित आर्थिक स्थायित्व व विकास परिषद) आने को तैयार है। आपस में झगड़ते भारत के वित्तीय नियामक इसकी राह आसान कर रहे हैं। हर तरफ एक नया इंस्पेक्टर राज तैयार हो रहा है। नौकरशाह नियामकों की फौज हर जगह वित्तीय बाजार व इसके खिलाडि़यों की आठों पहर निगरानी करेगी।
..और फ्यूनरल प्लान भी
आपके अंतिम संस्कार का प्लान क्या है? सवाल बेहूदा हो सकता है, लेकिन ताजा कानून के तहत अमेरिका के वित्तीय कारोबारियों को इसका जवाब देना होगा। बैंकों व वित्तीय कंपनियों से पूछा जाएगा कि यदि संकट में फंस कर बर्बाद हुए तो वे अपनी दुकान किस तरह बंद करना चाहेंगे? 1930 के बाद अमेरिका में वित्तीय कानूनों में सबसे बड़ा बदलाव हो गया है। वॉलस्ट्रीट पर शिकंजा कसने वाला डॉड-फ्रैंक बिल तमाम दहलीजें पार करते हुए बीते सप्ताह लागू हो गया। 2300 पेज का यह भीमकाय कानून अपनी सख्ती और पाबंदियों के लिए दुनिया में नजीर बनेगा। अमेरिका के लोग एफएसओसी, फिनरेग और वोल्कर रूल जैसे नए शब्द सीख रहे हैं। एफएसओसी बोले तो.. फाइनेंशियल स्टेबिलिटी ओवरसाइट काउंसिल। एक सुपर रेगुलेटर यानी सबसे बड़ा नियामक। यह काउंसिल वित्तीय तंत्र के लिए जोखिम बनने वाली कंपनियों की लगातार पहचान करेगी। मतलब यह कि एफसीओसी ने जिसे घूरा उसका काम पूरा। बेफिक्र और मस्तमौला हेज फंड हों या निवेश बैंक सबके लिए कानून में कड़ी शर्ते हैं। बैंकों को जमा के बीमा पर ज्यादा रकम लगानी होगी ताकि अगर बैंक डूबें तो जमाकर्ता भी न डूब जाएं। वोल्कर रूल तय करेगा कि बैंक कौन से कारोबार और कहां निवेश न करें। 615 ट्रिलियन डॉलर के डेरिवेटिव्स कारोबार को पहली बार लगाम का स्वाद मिलेगा। क्रेडिट रेटिंग, बीमा, ब्रोकर, मॉरगेज, निवेशक आदि सब इस कानून के दायरे में हैं। सबसे अहम यह है कि अमेरिका की सरकार डूबने वाले एआईजी (बीमा कंपनी जिसे अमेरिकी सरकार ने उबारा था) जैसों का पाप अपने सर नहीं लेगी। हर कंपनी अपने अंतिम संस्कार की योजना पहले घोषित करेगी ताकि अगर वह बर्बाद हो तो उसे शांति से विदा किया जा सके। इस कानून पर हस्ताक्षर करते हुए तालियों की गूंज के बीच ओबामा ने कहा अब अमेरिका की जनता वॉलस्ट्रीट की गलतियों का बिल नहीं चुकाएगी। उदारता से पूरी दुनिया को ईर्ष्‍या से भर देने वाला अमेरिकी बाजार अब सख्ती का आदर्श बनेगा।
बैंकों की अग्निपरीक्षा

27 देश, 91 बैंक और एक परीक्षा!! बेचैनी, रोमांच, असमंजस! इस 23 जुलाई को पूरी दुनिया के वित्तीय बाजारों में समय मानो ठहर सा गया था। यूरोप के बैंक स्ट्रेस टेस्ट से गुजर रहे थे, यह साबित करने के लिए अगर संकट आया तो कौन सा बैंक बचेगा और कौन निबट जाएगा? पैमाना गोपनीय था अलबत्ता परीक्षा मोटे तौर पर कर्ज का बोझ, जोखिम भरे निवेश का हिसाब-किताब और पूंजी की स्थिति आदि के आधार पर ही हुई। शुक्रवार की रात भारत में जब लोग सोने की तैयारी कर रहे, तब इस परीक्षा का रिजल्ट आया। यूरोप के सात बैंक फेल हो गए। पांच स्पेन के और एक-एक जर्मनी व ग्रीस का। इन्हें अब अपनी सेहत सुधारने के लिए 3.5 बिलियन यूरो जुटाने होंगे, जो आसान नहीं है। फेल का रिपोर्ट कार्ड लेकर निकलने वाले इन बैंकों के साथ वित्तीय बाजार नरमी नहीं बरतेगा। मगर जो बैंक इस आग के दरिया से निकल आए हैं, उनके स्वागत के लिए एक नया सख्त समग्र यूरोपीय नियामक तैयार है। यूरोपीय समुदाय नया वित्तीय दो स्तरीय नियामक ढांचा बना रहा है। वित्तीय बाजार पर दैनिक नियंत्रण देशों के पास होगा, लेकिन व्यापक नियंत्रण एक बड़े यूरोपीय नियामक के हाथ में रहेगा। बैंकों के लिए अभी कई और स्ट्रेस टेस्ट तैयार हो रहे हैं।
नियामकों का नियामक

अमेरिका की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी ओवरसाइट काउंसिल, यूरोप की पैन यूरोपियन अथॉरिटी या फिर भारत की प्रस्तावित आर्थिक स्थायित्व व विकास परिषद आदि सब उसी सुपर रेगुलेटर के अलग-अलग नाम रूप हैं, जो अब आ ही पहुंचा है। दरअसल वित्तीय दुनिया में कई नियामक हैं, सो खूब गफलत भी है। अमेरिका में डेरिवेटिव और हेज फंड को लेकर नियामक ठीक उसी तरह उलझते रहे हैं, जैसे कि यूलिप को लेकर भारत में इरडा और सेबी लड़ रहे हैं। घोटालेबाज इस भ्रम पर खेलते हैं। भारत संकट से बाल-बाल बच गया, लेकिन नसीहत के तौर पर सुपर रेगुलेटर न होने की गलती जल्द ही दूर की जा रही है। दरअसल तीसरी दुनिया के लिए सिर्फ नियम कानून चाक चौबंद करने की ही झंझट नहीं है, उन्हें एक और झटके से निबटना होगा। फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि वित्तीय निवेशक इस नए कानूनी माहौल के बाद कैसा व्यवहार करेंगे, लेकिन जब निवेश की आजादी पर दर्जनों पहरे होंगे तो निवेश की आदत में कुछ फर्क तो आएगा ही। ..उभरते बाजारों को इस असर से निबटने की तैयारी भी करनी होगी।
भारत जैसी अधखुली अर्थव्यवस्थाएं तो बचे-खुचे इंस्पेक्टर राज के विदा होने की मन्नत मांग रहीं थीं, मगर यहां तो इंस्पेक्टर राज ताजा अंतरराष्ट्रीय अवतार में वापस लौट आया है। अमेरिका, यूरोप व एशिया के वित्तीय बाजारों की लगाम नए किस्म की ब्यूरोक्रेसी के हाथ आने जा रही है। बाजार के खिलाडि़यों को वित्तीय नौकरशाह या नियामक नौकरशाहों की एक नई पीढ़ी के नाज-नखरे उठाने होंगे। वित्तीय बाजार आजादी पाकर बौरा गया था अब उसे पाबंदियों की पांत में चलना होगा। ..बस एक चूक और पुर्नमूषकोभव !!